Saturday, March 10, 2012

इरोम शर्मीला होने का अर्थ


- डॉ. शरद सिंह 

         जब कोई औरत कुछ करने की ठान लेती है तो उसके इरादे किसी चट्टान की भांति अडिग और मजबूत सिद्ध होते हैं। मणिपुर की इरोम चानू शर्मीला इसका एक जीता-जागता उदाहरण हैं। इसी साल चार नवंबर को उनकी भूख हड़ताल के ग्यारह साल पूरे हो गए। इतनी लंबी भूख हड़ताल का कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। वे अपना जीवन दांव पर लगा कर निरंतर संघर्ष करती रही हैं। इरोम शर्मीला ने मात्र २८ वर्ष की आयु में अपनी भूख हड़ताल आरंभ की थी। उस समय कुछ लोगों को लगा था कि यह एक युवा स्त्री द्वारा भावुकता में उठाया गया कदम है और शीघ्र ही वह अपना हठ छोड़कर सामान्य जिंदगी में लौट जाएगी। वह भूल जाएगी कि मणिपुर में सेना के कुछ लोगों द्वारा स्त्रियों को किस तरह अपमानित किया गया। किंतु २८ वर्षीया इरोम शर्मीला ने न तो अपना संघर्ष छोड़ा और न आम जिंदगी का रास्ता चुना। वे न्याय की मांग को लेकर संघर्ष के रास्ते पर जो एक बार चलीं तो उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। यह स्त्री का वह जुझारूपन है जो उसकी कोमलता के भीतर मौजूद ऊर्जस्विता से परिचित कराता है।

  
                  शर्मीला ने यह रास्ता क्यों चुना इसे जानने के लिए सन्‌ २००० के पन्ने पलटने होंगे। सन्‌ २००० के ०२ नवंबर को मणिपुर की राजधानी इम्फाल के समीप मलोम में शांति रैली के आयोजन के सिलसिले में इरोम शर्मीला एक बैठक कर रही थीं। उसी समय मलोम बस स्टैंड पर सैनिक बलों द्वारा अंधाधुंध गोलियां बचाई गईं। जिसमें करीब दस लोग मारे गए। इन मारे गए लोगों में ६२ वर्षीया लेसंगबम इबेतोमी तथा बहादुरी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित सिनम चन्द्रमणि भी शामिल थीं। एक ऐसी महिला जिसे बहादुरी के लिए सम्मानित किया गया और एक ऐसी स्त्री जो "सीनियर सिटिजन" की आयु सीमा में आ चुकी थी, इन दोनों महिलाओं पर गोलियां बरसाने वालों को तनिक भी हिचक नहीं हुई? इस नृशंसता ने निरपराध और निहत्थे नागरिकों पर गोलियां चलाई गई थीं। शर्मीला ने इस घटना की तह में पहुंच कर मनन किया और पाया कि यह सेना को मिले "अफस्पाक" रूपी विशेषाधिकार का दुष्परिणाम है। इस कानून के अंतर्गत सेना को वह विशेषाधिकार प्राप्त है जिसके तहत वह संदेह के आधार पर बिना वारंट कहीं भी घुसकर तलाशी ले सकती है, किसी को गिरफ्तार कर सकती है तथा लोगों के समूह पर गोली चला सकती है।

इस घटना के बाद इरोम ने निश्चय किया कि वे इस दमनचक्र का विरोध करके रहेंगी चाहे कोई उनका साथ दे अथवा न दे। इरोम शर्मीला ने भूख हड़ताल में बैठने की घोषणा की और मणिपुर में लागू कानून सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफस्पाक) को हटाए जाने की मांग रखी। इस एक सूत्री मांग की लेकर उन्होंने अपनी भूख हड़ताल आरंभ कर दी। शर्मीला ने तीन नवम्बर की रात में आखिर बार अन्न ग्रहण किया और चार नवंबर की सुबह से उन्होंने भूख हड़ताल शुरू कर दी। इस भूख हड़ताल के तीसरे दिन सरकार के आदेश पर इरोम शर्मीला को गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर आत्महत्या करने का आरोप लगाते हुए धारा ३०९ के तहत कार्रवाई की गई और न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। उल्लेखनीय है कि धारा ३०९ के तहत इरोम शर्मीला को एक साल से ज्यादा समय तक न्यायिक हिरासत में नहीं रखा जा सकता था इसलिए एक साल पूरा होते ही कथित तौर पर उन्हें रिहा कर दिया गया। फिर उन्हें गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत के नाम पर उसी सीलन भरे वार्ड में भेज दिया गया। तब से वह लगातार न्यायिक हिरासत में हैं। जवाहरलाल नेहरू अस्पताल का वह वार्ड जहां उन्हें रखा गया है, उसे जेल का रूप दे दिया गया है। वहीं उनकी नाक से जबरन तरल पदार्थ दिया जाता है।

"
अफस्पाक" शासन के ५३ वर्षों में २००४ का वर्ष मणिपुर की महिलाओं द्वारा किए गए एक और संघर्ष के लिए चर्चित रहा। असम राइफल्स के जवानों द्वारा थंगजम मनोरमा के साथ किए बलात्कार और हत्या के विरोध में मणिपुर की महिलाओं ने कांगला फोर्ट के सामने नग्न होकर प्रदर्शन किया। उन्होंने जो बैनर ले रखा था, उसमें लिखा था "भारतीय सेना आओ, हमारा बलात्कार करो"। इस प्रदर्शन पर बहुत हंगामा हुआ। मीडिया ने इसे भरपूर समर्थन दिया तथा दुनिया के सभी देशों का ध्यान मणिपुर की स्थिति की ओर आकर्षित हुआ।

         
             इरोम शर्मीला और उन महिलाओं को संघर्ष इस बात का प्रतीक है कि स्त्रियों को जिस दैहिक लज्जा का वास्ता दिया जाता है, वे न्याय के पक्ष में उस लज्जा की भी सहर्ष तिलांजलि दे सकती हैं। यानी स्त्री न्याय और सत्य के लिए किसी भी सीमा तक जाकर संघर्ष करने की क्षमता रखती है। वस्तुतः यही है इरोम शर्मीला होने का अर्थ कि स्त्री की दृढ़ इच्छाशक्ति को तोड़ा नहीं जा सकता है।ह इरोम शर्मीला और उन महिलाओं को संघर्ष इस बात का प्रतीक है कि स्त्रियों को जिस दैहिक लज्जा का वास्ता दिया जाता है, वे न्याय के पक्ष में उस लज्जा की भी सहर्ष तिलांजलि दे सकती हैं। यानी स्त्री न्याय के लिए किसी भी सीमा तक संघर्ष करने की क्षमता रखती है। वस्तुतः इरोम शर्मीला होने का अर्थ यही है कि स्त्री की दृढ़ इच्छाशक्ति को तोड़ा नहीं जा सकता है।

(साभार- दैनिकनईदुनियामें 27.11.2012 को प्रकाशित मेरा लेख)

13 comments:

  1. नमन ऐसी शख्सियत को..... उम्दा आलेख

    ReplyDelete
  2. इरोम शर्मीला क विषय में जानकारी देने के लिए धन्यवाद...निश्चय ही ये लेख महिलाओं में दृढ इच्छा शक्ति का परिचायक है...

    ReplyDelete
  3. इरोम शर्मिला जैसे उदाहरण ही हैं महिला सशक्तिकरण के योग्य ... सरकार कान मेंतेल दे कर बैठी है ... अफसोस होता है ऐसी व्यवस्था पर

    ReplyDelete
  4. ये लेख दृढ इच्छा शक्ति का परिचायक है...

    ReplyDelete
  5. मैंने काफी समय पहले किसी पत्रिका मे इरोम शर्मीला जी के बारे एक लेख पढ़ा था, लेकिन उसके बाद किसी प्रकार की सामग्री पढने के लिए उपलब्ध नहीं हो सकी! यह एक महिला के दृढ इक्छा का परिचायक कदम है! अतः इस लेख के लिए बहुत- बहुत धन्यवाद!

    ReplyDelete
  6. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
    चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
    आपकी एक टिप्‍पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

    ReplyDelete
  7. Sarthak lekhan ke liye upyukt paatr-chayan va saargarbhit prastutikaran ke liye badhai , Shukriya !

    ReplyDelete
  8. महिला सशक्तीकरण का बहूत बढीया उदाहरण है
    बढीया आलेख ....

    ReplyDelete
  9. उनका संघर्ष नायाब है। गांधीजी के सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांत पर चलकर इनका संघर्ष बेमिसाल है।

    लोग कहते हैं आज गांधीजी भुला दिए गए हैं। जब हम इरोम शर्मिला, मेधा पाटकर और सुंदरलाल बहुगुणा जैसे लोग और उनका सत्याग्रह देखते हैं तो हमें हैली सेलेसी का कथन याद आता है,

    “जब तक स्वतंत्रता और न्याय के चाहने वाले लोग रहेंगे, तब तक महात्मा गाँधी को सदा याद किया जायेगा।”

    ReplyDelete
  10. salaam hai unke zazbe ko...very nicely written sharad ji....
    shukriya apka

    ReplyDelete
  11. naman....hai unke sangharsh ko... aabhar

    ReplyDelete
  12. नमन इनके साहस और ज़ज्बे को....

    ReplyDelete
  13. इरोम पर आपका लेख पढ़ा। लोकतंत्र में इस तरह की घटना शर्मनाक है।
    आपने लि‍खा है कि‍ अब जाकर 2014 में उन्‍हें न्‍याय मि‍ला है। कि‍स रूप में न्‍याय मि‍ला, जानने को इच्‍छुक हूँ।
    डॉ जि‍तेन्‍द्र भगत
    dpm.bharat@gmail.com

    ReplyDelete