Tuesday, January 31, 2017

गणतंत्र को हमसे आशाएं ... चर्चा प्लस... - डॉ. शरद सिंह

Dr Sharad Singh
"गणतंत्र को हमसे आशाएं " - मेरे कॉलम चर्चा प्लस में "दैनिक सागर दिनकर" में ( 25.01. 2017) .....My Column Charcha Plus in "Sagar Dinkar" news paper
 



चर्चा प्लस :
गणतंत्र को हमसे आशाएं
- डॉ. शरद सिंह ...                                                                                  

                                                             
‘हम भारत के लोग...’ हमने अपनी आकांक्षाओं, आशाओं एवं विश्वास के साथ संविधान की संरचना को स्वीकार किया और सच्चे गणतंत्र की राह में आगे बढ़ने की शपथ ली। हमने तो हमेशा अपने गणतंत्र से अनेकानेक आशाएं रखीं लेकिन क्या कभी सोचा कि हमने उन आशाओं का क्या किया जो हमारे गणतंत्र को हमसे रही होंगी? क्या हम गणतंत्र की आशाओं पर खरे उतरे हैं या फिर हमने अपने गणतंत्र को अपना निजीतंत्र बनाते जा रहे हैं। अपनी वैश्विक छवि के साथ-साथ सबसे नीचे की पंक्ति के नागरिकों के जीवन-स्तर को ध्यान में रखते हुए इस संदर्भ में कभी-कभी हमे आत्मावलोकन भी करना चाहिए।
    
एक लम्बी परतंत्रता के बाद स्वतंत्रता किसी भी कीमत पर मिले स्वीकार्य थी। कीमत भी हमने चुकाई। भारतीय भू-भाग का बंटवारा हुआ। अमानवीयता का तांडव देखना पड़ा। उसके बाद ग़रीबी, बदहाली, शरणार्थियों का सैलाब, बेरोज़गारी और सांप्रदायिक तनाव ने स्वतंत्रता की खुशी को कई-कई बार हताहत किया। फिर भी स्वतंत्रता विजयी रही और हमने अपना संविधान गढ़ा तथा उसे स्वयं पर लागू किया। इसके  पहले संविधान सभा के सामने चुनौती थी कि नए गणतंत्र का निर्माण ऐसे हो कि देश में फैली भाषाई, धार्मिक, जातीय, सांस्कृतिक विविधता को आत्मसात किया जा सके और लोगों को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक दृष्टि से न्याय सुनिश्चित किया जा सके। एक ऐसा गणतंत्र जिसमें नागरिकों को बराबरी का दजर्र मिले। जिसमें शासन की शक्ति किसी एक राजा अथवा अधिनायक के पास न हो कर जनता और उसके चुने प्रतिनिधियों के हाथ में हो।
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper
गणतंत्र के साथ सुनहरी आशाएं जागीं। देश तरक्की करेगा तो हम भी तरक्की करेंगे। या फिर इसके उलट कि हम तरक्की करेंगे तो देश भी तरक्की करेगा। लेकिन इस ‘हम भारत के लोग’ में से ‘हम’ पर ‘मैं’ का प्रभाव बढ़ता गया और ‘मैं’ ने ‘हम’ को निर्बल बना दिया। कभी-कभी उन्मादी भी। हमने अपनी परम्पराओं को सहेजा संवारा और उनसे सबक लिया। समयानुसार सड़ी-गली परम्पराओं को काट कर फेंका भी लेकिन उन्माद की अवस्था में पहुंचते ही हम सत्य, अहिंसा और परमार्थ के समरकरण को भुला कर हिंसक व्यवहार करने लगते हैं। जीव मात्र के प्रति उदार विचार की परम्परा के पोषक हम यदि जलीकट्टू का समर्थन करने लगते हैं तो वहीं हमारा ‘अहिंसा परमोधर्म’ का आह्वान टूटने लगता है। हमने अपने संविधान में अहिंसा को र्प्याप्त जगह दी है। परमोधर्म को भी उच्च स्थान दिया है फिर हिंसा को अपनी गौरवमयी परम्परा कहते हुए संविधान की धाराओं को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं?
9 दिसम्बर 1946 को हुई संविधान सभा की पहली बैठक में विभिन्न जातियों, धर्मों, आर्थिक, राजनीतिक विचारों के लोग शामिल थे और सामाजिक आधार को फैलाने की कोशिश की गई थी ताकि भारत अपने आप में जिस तरह से अद्वितीय विविधता को समेटे है उसी के अनुरूप नए गणतंत्र का निर्माण हो सके। भारतीय संविधान में नैतिकता और राजनीतिक परिपक्वता को आधार बनाया गया। लेकिन समूचे देश में महिलाओं साथ बढ़ते दुर्व्यवहार को देखते हुए यह लगने लगता है कि हमारे तंत्र से अब नैतिकता का लोप होने लगा है। गोया भारतीय स्त्री बर्बरयुग के किसी नए संस्करण को जी रही हो। भारत इस समय मानव तस्करी का वैश्विक मार्ग बन चुका है। यह बर्बरता भी हमारे संवैधानिक उसूलों का सिर झुकाने को र्प्याप्त है।
गणतांत्रिक भारत में देश की विविधता और जटिलता को एक राजनीतिक व्यवस्था के रूप में अपनाया गया और ऐसा करते समय विभिन्न क्षेत्रों में बहुलतावाद का सम्मान किया गया। राजनीतिक क्षेत्र में लोकतंत्र, सांस्कृतिक क्षेत्र में संघीय ढांचे और धार्मिक मामलों में धर्मनिरपेक्षता के सहारे एक नए गणतंत्र के मायनों को स्पष्ट किया गया। गणतंत्र के गठन के बाद से ही नीति निर्धारकों की प्राथमिकता देश के संघीय ढांचे को बनाए रखना थी।
यह सच है कि कोई भी तंत्र हो उसकी अपनी व्यक्तिगत समस्याएं होती हैं। लेकिन गणतंत्र की परिकल्पना मैं संवैधानिक समस्याओं के लिए कई रास्ते खुले रखे गए। संशोधनों के द्वारा संवैधानिक ढांचे में लचीलापन भी बनाए रखा गया। फिर भी प्रत्येक नए चुनाव में चाहे वह लोकसभा का हो या विधान सभा का या फिर किसी पंचायत अथवा निगम का, गरिमा के सीमाएं चटकती मिली हैं। गणतंत्रता के क्या है मायने आज हमारे देश में। इतने लम्बे अरसे में कितने नियमों का ईमानदारी से हमने निर्वाह किया है और कितने ऐसे संवैधानिक नियम है जिनको हमने संविधान के पन्नों पर लिख कर भुला दिया है। हमारा देश भारतवर्ष एक जनतांत्रिक देश है। जहां जनता के द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों द्वारा ही देश की शासन व्यवस्था चलायी जाती है। गणतंत्र दिवस हमारे देश के इतिहास का वो दिन है, जिस दिन संविधान पूर्णरुपेण लागू किया गया था। देश की समस्त गतिविधियां इन संवैधानिक नियमों के आधार पर ही सुचारु ढंग से संचालित होती है। संविधान हमे जीने के तौर तरीके सीखाता है। एक सभ्य और कर्मठ राष्ट्र के सपने को साकार करता है हमारा संविधान। देश की गणतंत्रत को बनाये रखने हेतु प्रशासन के साथ साथ जनता का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। संविधान के नियम सबों के लिए बराबर होते है। वो किसी भी प्रकार के जातिभेद या वर्चस्व की भावना से ऊपर होता है। फिर भी भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और विभिन्न प्रकार के संकट आज भी मुंहबाए खड़े हैं। अगर हम सिर्फ अपनी उन्नति के बारे में सोचते है तो ये हमारी संकीर्ण मानसिकता का परिचायक है। हमे अपने देश और समाज के विषय में भी सोचने की जरूरत है। हमें ऐसे कार्यों की ओर स्वयं को अग्रसर करना है, जिनमें स्वयं के साथ सम्पूर्ण राष्ट्र की प्रगति भी सम्मिलित हो। जैसे हमारा संविधान हमें अपने अधिकारों और कर्तव्यों की समझ देता है। वैसे ही हमें भी देश के प्रति अपनी भावना परिलक्षित करनी चाहिए। युवावर्ग जो कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति और उसके भविष्य का एकमात्र कार्यवाहक होता है।युवाओं की सहनशीलता, कर्तव्यपरायणता और कर्मठता ही राष्ट्र की अखण्डता रुपी महल के लिए ईंट का कार्य करते है। एक एक ईंट मिलकर ही एक विशाल महल का निर्माण करता है। आज जबकि हम इक्कीसवी सदी में कदम रख चुके है। तकनीक के साथ साथ लोगों की मानसिकता भी अब बदल चुकी है। ऐसे समय में गणतंत्र दिवस को सिर्फ एक राष्ट्रीय दिवस अथवा एक दिन का उत्सव मान कर, टीवी के छोटे पर्दे पर झांकियां देख कर, नेताओं के भाषण सुन कर भुला देना और दूसरे दिन से यह भी याद न रखना कि हमारा कोई संविधान भी है, हमारा कोई गणतंत्र भी है जिसके प्रति हम उत्तरदायी हैं, यह हमारी नासमझी ही नहीं अपराध भी है।
हमारे गणतंत्र का दूसरा महत्वपूर्ण अंग तंत्र है। लेकिन आजकल ऐसा लगता है जैसे तंत्र अनियंत्रित होता जा रहा है। उसे अपनी मनमानी करने से रोकने का दायित्व जिनका है कहीं कहीं तो वे खुद ही भ्रष्टाचार की मिसाल निकल आते हैं। तंत्र के इस कथन की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि आज के दौर में सत्ता दल का राजनैतिक हस्तक्षेप प्रशासनिक अमले पर इतना अधिक रहता हैं कि वे चाहकर भी निष्पक्ष और निर्भीक होकर काम नहीं कर सकते हैं। कोई भी जनप्रतिनिधि जब एक बार अपने राजनैतिक हित साधने के लिये तंत्र का उपयोग कर लेता हैं तो फिर गणतंत्र के मूल्यों में गिरावट आने लगती है। आर्थिक मुद्रास्फीति से कहीं अधिक घातक होती है नैतिकता की स्फीति।किसी भी समस्या को हल करने के लिये गण को तंत्र का साथ देने और तंत्र को त्वरित निराकरण के प्रयास करने आवश्यक होते हैं। आज महंगाई सबसे बड़ी समस्या हैं। हालांकि विश्व स्तरीय आर्थिक मंदी, अंर्तराष्ट्रीय बाजार की उथल पुथल, नोटबंदी के बाद की आर्थिक स्थिति ने देश को भी हिला कर रख दिया है। लेकिन इतना कह देने मात्र से सरकार के कर्तव्यो की इतिश्री नहीं हो जाती है। और ना ही केन्द्र और राज्य सरकार एक दूसरे पर दोषारोपण़ करके बच सकतीं है। गण चुस्त और दुरुस्त रहें तथा तंत्र पूरी मुस्तैदी से देश के विकास और आम आदमी की खुशहाली के लिये संकल्पित हो, तभी देश एक बार फिर अपने स्वर्णिम मुकाम पर पहुंच सकेगा।
आज हम चारों ओर देख रहे हैं की बहुत सारे सरकारी कर्मचारी उन लोगों से घूस ले रहे हैं रिश्वत ले रहे हैं। क्या यही हम हमारे देश के प्रति कर्तव्य निभा रहे हैं । इसमें जिम्मेदार सिर्फ वह सरकारी आदमी नहीं है जिम्मेदार आम आदमी भी है रिश्वत लेने वाला और देने वाला भी जिम्मेदार है और रिश्वत देने वाला भी उतना ही जिम्मेदार है क्योंकि लोग अपना कर्तव्य भूल जाते हैं डॉक्टर, इंजीनियर या किसी भी विभाग के सरकारी कर्मचारी इस दूषित व्यवहार को अपनाते हैं और पूरे देश को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। विकास के पहिए ऐसे आचरण से ही बाधित हो जाते हैं। प्रश्न यह है कि सुरक्षा मामलों में भी भ्रष्टाचार के दाग़ जब उभर कर सामने आने लगे हैं तो यह मान ही लेना चाहिए कि हम अपने संवैधानिक उसूलों से भटक गए हैं। यदि स्वतंत्रता के दशकों बाद भी हम खुले में शौचमुक्त देश बनाने के लिए संघर्ष करते दिखाई दे रहे हैं तो विश्व के सक्षम राष्ट्रों से किस आधार पर अपनी तुलना कर सकते हैं? बहरहाल अब समय आ गया है कि हमें खुद को धोखा देने से रोकना होगा और सही मायने में खुद के लिए तय करना होगा कि हम अपने गणतंत्र के अनुरूप एक सही तथा अच्छे नागरिक कैसे साबित हो सकते हैं।
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Wednesday, January 18, 2017

My Train Journey in bitter cold January : From New Delhi to Sagar from World Book Fair 2017 - Dr (Miss) Sharad Singh

Dr Sharad Singh on Delhi to Sagar Train Journey from World Book Fair 2017, 07-15 January
Dr Sharad Singh on Delhi to Sagar Train Journey from World Book Fair 2017, 07-15 January
Dr Sharad Singh on Delhi to Sagar Train Journey from World Book Fair 2017, 07-15 January
Dr Sharad Singh on Delhi to Sagar Train Journey from World Book Fair 2017, 07-15 January
Dr Sharad Singh on Delhi to Sagar Train Journey from World Book Fair 2017, 07-15 January

Goodbye World Book Fair 2017 ... Dr Sharad Singh

Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017, Entrance Gate No. 8, Pragati Maidan, New Delhi
Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017, Entrance Gate No. 8, Pragati Maidan, New Delhi

Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017, Entrance Gate No. 8, Pragati Maidan, New Delhi

Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017, Entrance Gate No. 8, Pragati Maidan, New Delhi

Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017, Entrance Gate No. 8, Pragati Maidan, New Delhi

Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017, Entrance Gate No. 8, Pragati Maidan, New Delhi
 

World Book Fair 2017 ...Meeting with Friends - 3

पुस्तकों के बीच यूं मुलाक़ात होना सुखद लगता है ...
Nice to Meet You ... Anup Vashishtha ji, Dr Vivek Mishra, Reetu Kalsi, Navrahi Navyavesh, Pradeep Saurabh, Pranjal Dhar and Mahendra Bhishma
विश्व पुस्तक मेला 2017

From Left- Anup Vashishtha, Dr Sharad Singh, and Dr Vivek Mishra at World Book Fair 2017, Pragati Maidan, New Delhi

From Left- Dr Sharad Singh, Mahendra Bhishma and Dr Vivek Mishra at World Book Fair 2017, Pragati Maidan, New Delhi

From Left- Reetu Kalsi, Navrahi Navyavesh and Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017, Pragati Maidan, New Delhi

Pranjal Dhar, Dr Sharad Singh, Pradeep Saurabh at Rajkamal Stall at World Book Fair 2017, Pragati Maidan, New Delhi

Pranjal Dhar, Dr Sharad Singh, Pradeep Saurabh at Rajkamal Stall at World Book Fair 2017, Pragati Maidan New Delhi --

Dr Sharad Singh's World Book Fair 2017 Trip in Sagar (MP) News Papers

नई दिल्ली के प्रगति मैदान में 07 से 15 जनवरी तक चलने वाले विश्व पुस्तक मेला 2017 में मेरी भागीदारी के प्रति मेरे सागर शहर के समाचारपत्रों ने जो स्नेह और अपनत्व प्रदान किया है उसके लिए मैं उन सभी की दिल से आभारी हूं।
Thank You Dainik Bhaskar, Naidunia, Patrika, Dainik Aacharan and Dainik Sagar Dinkar ...!!!

Dr Sharad Singh's World Book Fair 2017 Trip in Dainik Bhaskar, Sagar Edition. 17.01.2017
Dr Sharad Singh's World Book Fair 2017 Trip in Naiduniya, Sagar Edition, 17.01.2017
Dr Sharad Singh's World Book Fair 2017 Trip in Patrika, Sagar Edition, 16.01.2017
Dr Sharad Singh's World Book Fair 2017 Trip in Dainik Aacharan, Sagar Edition, 16.01.2017
Dr Sharad Singh's World Book Fair 2017 Trip in Sagar Dinkar, 16.01.2017

World Book Fair 2017 ...Meeting with Friends - 2

विश्व पुस्तक मेला 2017 में वरिष्ठ एवं साथी साहित्यकारों एवं पत्रकारों से सुखद मुलाक़ात हुई ....
Really Glad to Meet You .... Dr Damodar Khadse, Nand Bhardwaj, Arvind Jain, Anup Vashishtha, Smita Singh and Ysha Mathur
विश्व पुस्तक मेला 2017

Dr Damodar Khadse and Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017, Pragati Maidan, New Delhi

Dr Sharad Singh and Nand Bhardwaj at World Book Fair 2017, Pragati Maidan, New Delhi

From Left- Anup Vashishtha, Dr Sharad Singh and Arvind Jain at World Book Fair 2017, Pragati Maidan, New Delhi
 
Dr Damodar Khadse, Dr Sharad Singh and Smita Singh  at World Book Fair 2017, Pragati Maidan, New Delhi
Dr Damodar Khadse, Dr Sharad Singh, Ysha Mathur and Smita Singh at World Book Fair 2017, Pragati Maidan, New Delhi

World Book Fair 2017 ...Meeting with Friends

World Book Fair 2017 ...Meeting with Friends
विश्व पुस्तक मेला 2017, प्रगति मैदान, नई दिल्ली में किताबघर प्रकाशन के स्टाल पर व्यंग के पुरोधा सुशील सिद्धार्थ, न्यूयार्क से आईं साहित्यकार सुषम बेदी, कथाकार महेन्द्र भीष्म एवं कवयित्री सुनिता शानू तथा पूजा पाण्डे से मुलाक़ात हुई। (13.01.2017)
Varishtha Vyangkar Sushil Siddharth and Dr Sharad Singh at World Book Fair, Pragati Maidan.

 Varishtha Vyangkar Sushil Siddharth, Dr Sharad Singh and Kathakar Mahendra Bhishma at World Book Fair, Pragati Maidan.

 From Left- Mahendra Bhishma, Ms Vyas, Dr Sharad Singh, Susham Bedi and Sushil Siddharth, World Book Fair, Pragati Maidan.

From Left- Pooja Pandey, Ms Vyas, Dr Sharad Singh, Susham Bedi, Sunita Shanoo and Sushil Siddharth, World Book Fair, Pragati Maidan.

Dr Sharad Singh with Sunita Shanoo, World Book Fair, Pragati Maidan.

Mahendra Bhishma,  Dr Sharad Singh,  Sushil Siddharth, World Book Fair, Pragati Maidan.
 

Book Release By Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017 - 2

अमन प्रकाशन से प्रकाशित सच्चिदानंद चतुर्वेदी के उपन्यास ‘मंझधार’ का लोकार्पण मैंने किया। इस अवसर पर सहभागी थे विवेक मिश्र, महेन्द्र भीष्म, महेश दर्पण, बलराम, सुरेशकांत, नीलाम्बर कौशिक एवं अरविन्द वाजपेयी आदि कई विशिष्ठ साथी। सच्चिदानंद चतुर्वेदी जी को हार्दिक बधाई! (13.01.2017) #WorldBookFair
 
Book Release By Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017


Book Release By Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017

Book Release By Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017

Book Release By Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017

Book Release By Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017


Book Release By Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017 - 1

‘मैं पायल’ के दूसरे संस्करण का लोकार्पण करते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई। इसे प्रकाशित किया है अमन प्रकाशन, कानपुर ने। महेन्द्र भीष्म जी को हार्दिक बधाई ! लोकार्पण के अवसर पर मेरे साथ थे- कथाकार विवेक मिश्र, वरिष्ठ साहित्यकार महेश दर्पण, महेन्द्र भीष्म एवं किन्नर गुरू पायल आदि कई महत्वपूर्ण साथी।
(13.01.2017) WorldBookFair


Book Release By Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017

Book Release By Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017

Book Release By Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017

Book Release By Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017

Book Release By Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017

Book Release By Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017

Book Release By Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017

Book Release By Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017

विश्व पुस्तक मेला 2017 : वाद, विवाद और संवाद के बीच आश्वस्ति

Dr Sharad Singh
"विश्व पुस्तक मेला 2017 : वाद, विवाद और संवाद के बीच आश्वस्ति" - मेरे कॉलम चर्चा प्लस में "दैनिक सागर दिनकर" में ( 18.01. 2017) .....My Column Charcha Plus in "Sagar Dinkar" news paper


चर्चा प्लस
विश्व पुस्तक मेला 2017 : वाद, विवाद और संवाद के बीच आश्वस्ति
- डॉ. शरद सिंह 


साहित्य जगत में प्रिंट मीडिया के भविष्य को ले कर अकसर चिंता की जाती है और उसे समापन की ओर माना जाने लगता है, ऐसे समय ही पुस्तक मेले आश्वस्त कराते हैं कि पुस्तकों का पिं्रटेड संस्करण अभी खतरे में नहीं है। ठीक इसी तरह की आश्वस्ति मिली विश्व पुस्तक मेला 2017 में। मेले की सार्थक थीम और सार्थक आयोजन। वैसे जहां चार बुद्धिजीवी जुड़ेंगे वहां वाद, विवाद और संवाद तो होगा ही। इस बार का मेला भी इससे अछूता नहीं रहा। मेले की इस बार की थीम थी ‘मानुषी’ जिसमें महिलाओं द्वारा तथा महिलाओं के ऊपर लिखने वालों को आधार बनाया गया। 

विश्व पुस्तक मेला 2017 में एक कथाकार के रूप में सहभागी होना मेरे लिए महत्वपूर्ण रहा। थीम मानुषी के अंतर्गत नारी चेतना पर आधारित कार्यक्रम में मुझे अपनी कहानी पढ़ने-सुनाने के लिए आमंत्रित किया गया था। कड़ाके की सर्दी के बीच नारी चेतना का आकर्षण भारी पड़ा और मौसम ने भी साथ दिया कि उस दौरान घना कोहरा नहीं छाया और ट्रेनें अपने समय पर चलती रहीं। साहित्य अकादमी एवं राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित नारी चेतना कार्यक्रम में बुंदेली परिवेश पर आधारित अपनी कहानी ‘‘बैठकी’’ पढ़ने के उपरान्त चर्चा-परिचर्चा एवं लोकार्पण में भी शामिल हुई। चर्चित कथाकार महेन्द्र भीष्म के उपन्यास ‘‘मैं पायल’’ एवं सच्चिदानंद चतुर्वेदी के उपन्यास ‘‘मंझधार’’ का मैंने लोकार्पण किया। वरिष्ठ पत्रकार सूर्यनाथ सिंह के उपन्यास ‘नींद क्यों नहीं आती रात भर’ पर विद्वत साहित्यकारों मैत्रेयी पुष्पा, वीरेन्द्र यादव एवं प्रो. गोपेश्वर सिंह के साथ परिचर्चा में भाग लेते हुए सूर्यनाथ सिंह के लेखन-कौशल तथा उनके उपन्यास पर मैंने भी अपने विचार रखे।
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper
मेले में पुस्तकों की भरमार और प्रतिदिन नई पुस्तकों के लोकार्पण का दृश्य प्रिंट मीडिया के भविष्य के प्रति आश्वस्त कराता रहा। युवावर्ग का वह समूह जो ऑनलाईन किताबें खरीदने का शौक रखता है, वह भी किताबों के कव्हर की फोटो और विस्तृत जानकारी बटोर रहा था ताकि अपनी मनचाही किताब ऑनलाईन खरीद सके। ऑनलाईन पुस्तक खरीदी पर रिटेल पुस्तक विक्रेताओं को अवश्य नुकसान उठाना पड़ता है किन्तु प्रकाशक, मुद्रक और लेखक को हानि नहीं होती है। यह तो तय है कि कुर्सी पर पैर फैला कर, बिस्तर या सोफे पर लेट कर अथवा झूले में डोलते हुए मनचाही किताब पढ़ने के आनन्द की जगह डिजिटल मीडिया नहीं ले सकता है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के प्रगति मैदान में नौ दिवसीय विश्व पुस्तक मेले का विगत 07 जनवरी से 15 जनवरी तक आयोजन किया गया। मानव संसाधान विकास राज्य मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय ने विश्व पुस्तक मेले का उद्घाटन किया । उद्घाटन समारोह की मुख्य अतिथि मशहूर उड़िया लेखक और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता प्रतिभा राय तथा विशेष अतिथि डेलिगेशन ऑफ द यूरोपियन यूनियन टू इंडिया के एंबेसेडर तोमास कोजलोवस्की थे। इस बार मेले का विशेष फोकस न्यास की 60वीं वर्षगांठ है और इसमें ‘यह मात्र सिंहावलोकन’ नाम की विशेष प्रदर्शनी का आयोजन किया गया, जिसमें राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की छह दशकों की पठन-संस्कृति को बढ़ावा देने के प्रयासों को दर्शाया गया।
प्रगति मैदान में शनिवार को मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री महेन्द्र नाथ पांडे ने पुस्तक मेले का उद्घाटन किया। उन्होंने पुस्तक मेले का विषय मानुषी यानी महिला लेखन रखे जाने की भी सराहना की। महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर क्षोभ व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य उनके प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने में मदद कर सकता है। इस अवसर पर ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त वरिष्ठ ओड़िया लेखिका प्रतिभा राय ने कहा कि पुरुष और नारी लेखन को अलग-अलग नहीं देखा जाना चाहिए। एनबीटी के अध्यक्ष बल्देव भाई शर्मा ने कहा कि वैदिक काल से ही विदुषियों की एक समृद्ध और सुदीर्घ परंपरा रही है।
मेले की थीम ‘मानुषी’ रखी गई थी जो महिलाओं द्वारा और उन पर आधारित लेखन को प्रस्तुत करती थी। लेखिकाओं के योगदान को प्रदर्शित करते हुए पुस्तक मेले में ‘‘मानुषी मंडप’’ (थीम पावेलियन मानुषी) बनाया गया था। इसमें अलग-अलग कालखंडों व भाषाओं में विशेष योगदान करने वाली महिलाओं का परिचय लोगों के समक्ष रखा गया। 12 विदुषियों का कैलेंडर भी मेले की आयोजक संस्था नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा जारी किया गया। थीम पैवेलियन में महिला मुद्दों व लेखन से संबंधित सेमिनार, विचार-विमर्श सत्र दिनभर चलते रहे। मेले के अंतिम दिन न्यास के अध्यक्ष बलदेव भाई शर्मा ने माना कि हम अपने उद्देश्य में सफल रहे और महिला लेखन पर हमने अधिक से अधिक चर्चाएं आयोजित कीं।

सर्जिकल स्ट्राईक का असर

सन् 1972 में शुरू हुआ विश्व पुस्तक मेला प्रति वर्ष दिल्ली में आयोजित किया जाता है। इस मेले में दुनिया के अधिकांश देश उत्सुकता से भाग लेते हैं। अनेक देश आधिकारिकतौर पर मेले में अपने स्टॉल लगाते हैं। इस वर्ष मेले में चीन, मिस्र, फ्रांस, जर्मनी, ईरान, जापान, नेपाल, पोलैंड, रुस, स्पेन, श्रीलंका सहित लगभग 20 देश शामिल हुए। विश्व पुस्तक मेला आयोजित होने से दुनिया के तमाम पब्लिशिंग हाउस और बुद्धिजीवी वर्ग के लिए दक्षिण एशियाई क्षेत्र का द्वार खुल जाता है, जिसकी वजह से यह मेला वैश्विक स्तर का हो जाता है। 2016 में संपन्न हुए विश्व पुस्तक मेले में विशेष अतिथि के रूप में चीन को आमंत्रित किया गया था। जिसकी थीम “विविधता“ थी। वही वर्ष 2017 में आयोजित होने वाले विश्व पुस्तक मेले में जापान देश के ‘गेस्ट ऑफ ऑनर’ रहा। इस वर्ष विश्व पुस्तक मेले की थीम “औरतों पर औरतों द्वारा लेखन“ रहा। देशी-विदेशी अंग्रेजी साहित्य के अतिरिक्त चीन और फ्रांस की पुस्तकों के प्रति पाठकों में उत्सुकता देखी गई। विभिन्न भाषाओं की हिन्दी में अनूदित पुस्तकों के प्रति भी पर्याप्त रुझान देखने को मिला। उल्लेखनीय है कि पुस्तक मेले में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान से कोई आवेदन नहीं आया था। उसने मेले में अपना स्टॉल नहीं लगाया। शायद यह उस सर्जिकल स्ट्राईक का असर था जो देश की सीमा पर पाकिस्तान की बेजा हरकतों के विरोध में भारत ने की थी। सर्जिकल स्ट्राईक के बाद पाकिस्तानी अभिनेता-अभिनेत्रियों एवं पाकिस्तानी धारावाहिकों पर भारत में पाबंदी लगा दी गई थी।

नहीं दिखा असर नोटबंदी का

यू ंतो मेला व्यवस्थापकों की ओर से इस मेले में नकदरहित भुगतान की पूरी व्यवस्था की गई थी और ई-भुगतान में नेटवर्क किसी तरह की कोई बाधा न डाले इसके लिए आईटीपीओ ने बीएसएनएल के साथ मिलकर विशेष इंतजाम किए थे। लगभग आधा दर्जन से ज्यादा एटीएम थे तथा कई सचल एटीएम थे। यद्यपि ग्राहकों द्वारा 2000, 500 और 100 के नोटों के द्वारा भी जमकर खरीददारी की गई।
मेले के टिकट प्रगति मैदान के अलावा 50 मेट्रो स्टेशनों पर भी उपलब्ध थे। टिकट दर वयस्कों के लिए 30 रुपए और 12 साल की उम्र से कम के बच्चों के लिए 20 रुपए थी। वहीं स्कूल की वर्दी में आने वाले छात्रों का प्रवेश निशुल्क रखा गया। न्यास के अध्यक्ष बलदेव भाई शर्मा ने जानकारी दी कि ‘‘हमने आईटीपीओ से पुस्तक मेले के लिए प्रवेश शुल्क खत्म करने का अनुरोध किया है। यदि ऐसा होता है तो आगामी विश्व पुस्तक मेले में और अधिक पुस्तक प्रेमी आ सकेंगे। उन्होंने बताया कि प्रकाशन की दुनिया में पिछले 44 वर्ष से आयोजित हो रहे, इस मेले को अब कैलेंडर में एक बड़े और महत्वपूर्ण आयोजन के रूप में स्थान मिल गया है। हर साल जनवरी के महीने में आने वाले इस मेले का इंतज़ार अब किताबों से प्यार करने वाले लोगो को बेसब्री से रहता है। हर वर्ष विश्व पुस्तक मेले में आने वालें लोगों की तादाद हर साल पिछलें वर्ष से ज़्यादा होती जाती है। मानव संसाधन एवम् विकास मंत्रालय द्वारा बनाई गई स्वायत्त संस्था “राष्ट्रीय पुस्तक ट्रस्ट“ इस मेले का आयोजन इसलिए करती है ताकि, पूरे देश और विश्व भर में लोगों में पढ़ने की आदत पर उनकी अभिरुचि बन सके।’’

याद भी, विवाद भी

मैत्रेयी पुष्पा ने प्रसिद्ध कथाकार राजेंद्र यादव पर लिखी किताब ’वह सफर था कि मुकाम था’ पर प्रेम भारद्वाज से चर्चा की। ’वह सफर था कि मुकाम था’ पर संपादक प्रेम भारद्वाज ने कहा, “राजेंद्र यादव के साथ मैत्रेयी जी की मैत्री जानी पहचानी है। लेखन की पहली पायदान से अब तक कि उनकी यात्रा के अनेक मोड़ों पड़ावों गतिविधियों के साक्षी रहे हैं राजेंद्र यादव।’’ वहीं मैत्रेयी पुष्पा ने कहा, “राजेंद्र यादव से मिलने पहले में मैं लिखती तो थी, मगर कुछ इस तरह रोती जाती थी और लिखती रहती थी और सोचती थी कि शायद ऐसे ही उपन्यास लिखते हैं। मेरे उपन्यास प्रकाशित भी हुए, मगर जब मैं राजेंद्र यादव से मिली तो उन्होंने मुझसे कहा, तुम मेरे पास एक विद्यार्थी की तरह आई हो और मैंने जो उसके बाद लिखा वो मैंने राजेंद्र यादव के पास आके ही लिखा।“
एक अन्य चर्चासत्र के दौरान मैत्रेयी पुष्पा से उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाली लेखिका का नाम पूछा गया। जिस पर उन्होंने साफगोई से कहा कि उनकी विरासत सम्हालने वाला कोई नहीं है। इस पर प्रतिरोध के स्वर उभरे जो कि चौंकाने वाले थे। मैत्रेयी ने प्रतिरोध का सामना किस तरह किया अथवा उन्हें क्या कहना पड़ा इससे अधिक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि साहित्य क्या कोई राजनीतिक सत्ता अथवा ज़मीन-जायदाद है जो उसमें विरासत परम्परा होनी चाहिए? साहित्य जगत में विरासत से जुड़ा यह विवाद मेले के बाद भी खुली चर्चाओं में गर्माता रहेगा।
वैसे इसमें कोई संदेह नहीं कि विश्व पुस्तक मेले में शामिल होने वालें प्रतिभागियों या नवोदित लेखकों के लिए लेखन या प्रकाशन के क्षेत्र में व्यवसायिक रूप से मेले में पहुंचना एक अच्छा अवसर साबित होता है।
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Tuesday, January 17, 2017

Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017 .. विश्व पुस्तक मेला 2017 में डॉ शरद सिंह

मेले में देश-परदेस के कई मित्रों से मुलाक़ात हुई ... शरद आलोक (नार्वे), रश्मि चतुर्वेदी, श्री एवं श्रीमती महेन्द्र भीष्म .... और किन्नर गुरू पायल से भी जो कथाकर महेन्द्र भीष्म के उपन्यास ‘‘मैं पायल’’ की यथार्थ मुख्यपात्र हैं....
From Left - Rashmi Chaturvedi, Smt Bhishma, Dr Sharad Singh and Sharad Alok

Kinnar Guru Payal, Dr Sharad Singh, Mahendra Bhishma


Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017 विश्व पुस्तक मेला 2017 में डॉ शरद सिंह - 2

कथाकार-पत्रकार सूर्यनाथ सिंह के नए उपन्यास "नींद क्यों रात भर नहीं आती" का लोकार्पण आलोचक गोपेश्वर सिंह ने किया। उपन्यास पर चर्चा की वीरेन्द्र यादव, डॉ. शरद सिंह, मैत्रेयी पुष्पा, महेश दर्पण, महेश भारद्वाज, दिनेश कुमार, प्रेम जनमेजय ने। 
Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017 विश्व पुस्तक मेला 2017 में डॉ शरद सिंह

Dr Sharad Singh at World Book Fair 2017 विश्व पुस्तक मेला 2017 में डॉ शरद सिंह

Dr Sharad Singh in World Book Fair 2017 With Maitreyi Pushpa

मेरी प्रिय एवं वरिष्ठ लेखिका मैत्रेयी़ पुष्पा और मै डॉ. ‪शरद सिंह ...

Dr Sharad Singh with Maitreyi Pushpa