Friday, January 19, 2018

चर्चा प्लस ... धारा 370 की ऐतिहासिक भूल अब सुधरनी ही चाहिए - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस
धारा 370 की ऐतिहासिक भूल अब सुधरनी ही चाहिए
- डॉ. शरद सिंह
(दैनिक सागर दिनकर, 17.01.2018)


धारा 370 एक ऐसा ज्वलंत मुद्दा है जो कई दशकों से प्रतीक्षा कर रहा है सुलझाए जाने का। मोदी सरकार ने अडिग रहते हुए जिस प्रकार ट्रिपल तलाक और नोटबंदी जटिल मामलों को सुलझाया एवं लागू किया, उसी प्रकार की दृढ़ता की अपेक्षा रखता है धारा 370 का मामला। इस धारा के हटते ही कश्मीर का विधिवत् सम्मिलन हो सकेगा भारत के जनसामान्य से। इस मुद्दे पर मैं यहां चर्चा कर रही हूं कुछ ऐसे तथ्यों और बिन्दुओं की जिन्हें मैंने अपनी पुस्तकों ‘‘राष्ट्रवादी व्यक्तित्व श्यामाप्रसाद मुखर्जी’’ तथा ‘‘राष्ट्रवादी व्यक्तित्व सरदार वल्लभभाई पटेल’’ में सामने रखा है।

Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in Sagar Dinkar Dainik

जिस प्रकार नोटबंदी और ट्रिपल तलाक जैसे मामलों में केन्द्र सरकार ने तत्परता दिखाई और कड़ाई से कदम उठाए उसके बाद यह सोच बनना स्वाभाविक है कि उस ऐतिहासिक भूल को भी यह सरकार सुधारने की दिशा में कोई न कोई कठोर कदम उठाएगी जिसे ‘धारा 370’ के रूप में जाना जाता है। स्वयं भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से इस तरह की मांगे समय-समय पर उठती रही हैं। विगत वर्ष यानी 2017 के दिसम्बर माह में शिवसेना के अरविंद सावंत ने कहा कि ‘‘तीन तलाक के खिलाफ विधेयक से समान नागरिक संहिता की दिशा में आगे बढ़ने की उम्मीद पैदा होती है। अगर समान नागरिक संहिता लागू हो गई और कश्मीर से धारा 370 हट गई तो बहुत सारी चीजें ठीक हो जाएंगी।’’
इससे पूर्व दिसम्बर 2013 में राजनाथ सिंह ने कहा था -‘‘संसद में इस बात पर बहस हो कि क्या धारा 370 जम्मू कश्मीर के लिए किसी तरह से फायदेमंद है या वहां के लोगों को राजनीतिक रूप से सशक्त करने का काम करती है? अगर ऐसा नहीं है, तो इसे तुरंत निरस्त कर देना चाहिए।’’
सांसद अनुपम खेर ने धारा 370 के विषय में बोलते हुए अगसत 2017 में कहा था-‘‘ “देश के विभिन्न भागों से अगर हम कश्मीर में आधारभूत ढांचा बना सकते हैं, विभिन्न भागों से लोगों को भेज सकते हैं, देश के हर इंसान एवं हर नागरिक को वहां संपत्ति लेने का अधिकार हो सकता है, वहां पर शिक्षा के शैक्षणिक संस्थाएं बनाने का अधिकार हो सकता है, मिल्स बनाने का अधिकार हो सकता है, तो यह समस्या का एक अच्छा समाधान हो सकता है.“ इसी क्रम में हाल ही में यानी 12 जनवरी 2018 को आयोजित युवा दिवस के मौके पर जयपुर में संघ के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार ने कहा कि ‘‘धारा 370 को हटाने से भारत की कीर्ति और यश बढे़गा। देश का भविष्य बदलेगा और नई दशा और दिशा की ओर बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि यह धारा अस्थाई है और अब इसे हटाने का समय आ गया है।’’
अनुच्छेद 35ए, धारा 370 का ही हिस्सा है। इस धारा के कारण से कोई भी दूसरे राज्य का नागरिक जम्मू-कश्मीर में ना तो संपत्ति खरीद सकता है और ना ही वहां का स्थायी नागरिक बनकर रह सकता है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर की कोई लड़की किसी बाहर के लड़के से शादी कर लेती है तो उसके सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं। साथ ही उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं।
वस्तुतः अनुच्छेद 370 के अंतर्गत प्रमुख प्रावधान हैं कि - (1) यह जम्मू और कश्मीर को एक विशेष स्वायत्ता वाले राज्य का दर्जा देता है। (2) इसका खाका 1947 में शेख अब्दुल्ला ने तैयार किया था, जिन्हें प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। (3) इस धारा के अनुसार संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है। लेकिन अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू कराने के लिए केंद्र को राज्य का अनुमोदन चाहिए। (4) इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर पर संविधान का अनुच्छेद 356 लागू नहीं होती है। राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है। (5) भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते हैं। यहां के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है। एक नागरिकता जम्मू-कश्मीर की और दूसरी भारत की होती है। (6) यहां दूसरे राज्य के नागरिक सरकारी नौकरी नहीं कर सकते हैं। (7) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 जिसमें देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता है। (8) अनुच्छेद 370 की वजह से ही जम्मू-कश्मीर का अपना अलग झंडा और प्रतीक चिन्ह भी है।
‘‘जवाहरलाल नेहरू ने बार-बार यह घोषणा की है कि भारत में जम्मू और कश्मीर का विलय शत-प्रतिशत पूरा हो चुका है, फिर भी यह अद्भुत बात है कि कोई भारतीय नागरिक भारत सरकार से अनुमति लिए बिना भारत के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता। यह अनुमति कम्युनिस्टों को भी मिली है जो राज्य में अपना वही विघटनकारी खेल खेल रहे हैं। किन्तु उन लोगों को जाने की अनुमति नहीं है जो भारतीय हैं और राष्ट्रीयता की दृष्टि से सोचते और करते हैं। .... मैं नहीं सोचता कि भारत सरकार को मुझे भारतीय यूनियन के किसी भी हिस्से में जिसमें स्वयं पं. नेहरू के अनुसार जम्मू और कश्मीर भी शामिल है, जाने से रोकने का कोई अधिकार है। वैसे अगर कोई कानून के प्रतिकूल आचरण करता है तो उसे इसके परिणाम अवश्य भुगतने होंगे।’’ 8 मई 1953 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीरयात्रा के लिए विदा देने आए जनसमूह सहित पत्रकारों से कहा था। उस दिन पं. श्यामा प्रसाद मुखर्जी दिल्ली से अम्बाला जाने के लिए रेलवे स्टेशन पहुंचे। दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उन्हें विदाई देने के लिए भारतीय जनसंघ, हिन्दू महासभा, आर्य समाज तथा अन्य संगठनों के हजारों कार्यकर्ता उपस्थित थे। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ अटल बिहारी वाजपेयी, वैद्य गुरूदत्त, प्रो. बलराज मधोक, डॉ. बर्मन तथा टेकचंद शर्मा भी उनके साथ रवाना होने के लिए आ पहुंचे। इस अवसर पर अनेक प्रमुख समाचार पत्रें के प्रतिनिधि वहां उपस्थित थे। उन्होंने यह भी कहा था कि -‘‘ शेख अब्दुल्ला ने पं. नेहरू पर दबाव बना कर राज्य में अलग प्रधान, अलग विधा और अलग निशान का प्रावधान करा लिया है।’’
डॉ. मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था। वहां का मुख्यमन्त्री (वजीर-ए-आजम) अर्थात् प्रधानमन्त्री कहलाता था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने देश की अखण्डता को अक्षुण्ण बनाए रखने का संकल्प लेते हुए घोषणा की - ‘‘स्वतंत्र भारत में सदा एक देश, एक निशान, एक प्रधान ही होगा और हमें अलगाववादी तत्वों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कटिबद्ध रहना होगा।’’
श्यामा प्रसाद मुखर्जी इस संवैधानिक प्रावधान के पूरी तरह खि़लाफ़ थे। उन्होंने कहा था कि इससे भारत छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट रहा है। यही नहीं, मुखर्जी का ये भी मानना था कि यह धारा शेख अब्दुल्ला के ’तीन राष्ट्रों के सिद्धांत’ को लागू करने की एक योजना है। मुखर्जी 1953 में भारत प्रशासित कश्मीर के दौरे पर गए थे. वहां तब ये क़ानून लागू था कि भारतीय नागरिक जम्मू कश्मीर में नहीं बस सकते और वहां उन्हें अपने साथ पहचान पत्र रखना ज़रूरी था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कानपुर सम्मेलन के अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि -‘‘भारतीय स्वतंत्रता को यदि सारपूर्ण बनाना है तो इसे भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्वों और मूल्यों को ठीक-ठीक समझने और उनके प्रचार-प्रसार में सहायक बनना पड़ेगा। कोई भी राष्ट्र जो अपनी अतीत की उपलब्धियों से गर्वान्वित नहीं होता अथवा प्रेरणा नहीं लेता, वह न तो कभी अपने वर्तमान का निर्माण कर सकता है और न ही कभी भविष्य की रूपरेखा बना सकता है। कोई दुर्बल राष्ट्र कभी महानता की ओर नहीं बढ़ सकता।’’
इससे पूर्व पं. नेहरू को लिखे गए अपने चतुर्थ पत्र में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने उन्होंने जम्मू-कश्मीर की समस्या को सुलझाने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे जिनमें से कुछ प्रमुख सुझाव थे- ‘‘जम्मू और कश्मीर का संविधान अंतिम रूप से भारतीय संविधान का अंग होगा, जम्मू और लद्दाख को बिना सीमा परिवर्तन के प्रांतीय स्वशासन दिया जाए तथा भारतीय राष्ट्रध्वज को सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त हो।’’ इन सुझावों पर अमल करने के विपरीत पं. जवाहरलाल नेहरू ने गोलमाल रवैया अपनाया। पंडित नेहरू श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पत्रों का टालमटोल उत्तर देते रहे और उनसे मिल कर वार्तालाप करने के अवसर को टालते रहे। कई दिन बाद पं. नेहरू ने उत्तर दिया कि ‘‘मैंने आपका पत्र मिलने के बहुत देर बाद पढ़ा था।’’
लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल सारे भारत को पटेल एक करने में सफल हुए किन्तु उनसे कश्मीर की रियासत का मामला जवाहरलाल नेहरू ने अपने लिये रख लिया था, जो आज तक ज्वलंत प्रश्न बना हुआ है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी आदि राष्ट्रवादी नेता चाहते थे कि जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के प्रश्न को हल करने का दायित्व सरदार वल्लभ भाई पटेल को सौंपा जाना चाहिए किन्तु जवाहरलाल नेहरू इस पक्ष में नहीं थे। जवाहरलाल नेहरू ने जम्मू-कश्मीर का मामला अपने हाथ में ही रखा। यदि जवाहरलाल नेहरू ने कश्मीर की रियासत को भी वल्लभ भाई के हवाले दिया होता तो कश्मीर की समस्या 21 वीं सदी का मुंह कभी नहीं देख पाती।
यही यही समय है कि एक बड़ी राजनीतिक भूल को सुधारते हुए कश्मीर में शांति स्थापना और वहां के विस्थापित एवं पीड़ित नागरिकों को एक खुशहाल ज़िन्दगी देने के लिए जरूरी है कि कश्मीर को धारा 370 से मुक्त कर के भारत के अन्य राज्यों की भांति आजादी से सांस लेने दिया जाए।
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