Thursday, April 19, 2018

चर्चा प्लस ... नोट और वोट के बीच फंसी आमजनता ... डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस
नोट और वोट के बीच फंसी आमजनता
- डॉ. शरद सिंह
नोटबंदी का जख़्म अभी पूरी तरह से भरा नहीं था कि अब 2000 के नोटों का संकट आमजनता को सांसत में डाल रहा है। एक ओर आसन्न चुनाव का शुरू हो चुका घमासान और दूसरी ओर खाली पड़े एटीएम मुंह चिढ़ा रहे हैं। यानी नोट और वोट के बीच फंसे लोग जाएं तो कहां जाएं ? कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे आमजनता के धैर्य की परीक्षा का अंतहीन सिलसिला जारी है। 
 
 नोट और वोट के बीच फंसी आमजनता ... डॉ. शरद सिंह ... चर्चा प्लसArticle for Column - Charcha Plus by Dr Sharad Singh in Sagar Dinkar Dainik
वह भी विवाहों के मुहूर्त्त के पूर्व का समय था और लोगों को नोटबंदी का सामना करना पड़ा था। भारत के 500 और 1000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण, जिसे मीडिया में छोटे रूप में नोटबंदी कहा गया, की घोषणा 8 नवम्बर 2016 को रात आठ बजे भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अचानक राष्ट्र को किये गए संबोधन के द्वारा की गयी। यह संबोधन टीवी के द्वारा किया गया। इस घोषणा में 8 नवम्बर की आधी रात से देश में 500 और 1000 रुपये के नोटों को खत्म करने का ऐलान किया गया। इसका उद्देश्य केवल काले धन पर नियंत्रण ही नहीं बल्कि जाली नोटों से छुटकारा पाना भी था। इससे पहले भी इसी तरह के उपायों को भारत की स्वतंत्रता के बाद लागू किया गया था ताकि जालसाजी और काले धन पर अंकुश लगाया जा सके। लेकिन यह अदला-बदली की प्रक्रिया थी जिसमें जनता को पर्याप्त समय दिया गया था नोट बदलने के लिए। बल्कि देखा जाए तो इन पूर्व के तमाम विमुद्रीकरण ने सिर्फ़ जमाखोरों को सबक सिखाया था और आमजनता को तो इसका प्रभाव भी महसूस नहीं हुआ था। लेकिन 8 नवम्बर 2016 को बंद किए गए 500 और 1000 रुपए के नोटों ने दिहाड़ी मजदूरों तक की कमर तोड़ दी।
अब अप्रैल 2018 के मध्य में उत्पन्न 2000 रुपयों के नोटों की कमी और एमटीएम में रुपयों की र्प्याप्त उपलब्धता नहीं होने से एक बार फिर अमजनता सशंकित हो उठी है। विवाहों का सबसे बड़ा मुहूर्त्त सिर पर है और लोगों को नोटों की कमी से जूझना पड़ रहा है। हर जगह स्वाईप या डिज़िटल तरीका काम नहीं कर पाता है। छोटे व्यापारियों, मजदूरों और रोजमर्रा की छोटी खरीददारी के लिए फुटकर नोटों से ले कर 2000 तक के नोट की जरूरत पड़ती ही है। बहरहाल, 2000 के नोटों के संकट पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के हाल ही में दिए गए बयान से पहले मीनाक्षी लेखी के उस वक्तव्य का उल्लेख करना जरूरी लग रहा है जो उन्होंने नोटबंदी का विरोध करते हुए दिया था- ‘’आम औरत और आदमी, जो लोग अनपढ़ हैं और बैंकिंग सुविधाओं तक जिनकी पहुंच नहीं है ऐसे लोग इस तरह के उपायों से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। मुख्य रूप से कुछ समय के अंतराल में स्वयं जनता 2000 के नोट को चलन से बाहर कर देगी, क्योंकि जहां कम मूल्य की वस्तु खरीदनी हो तब दुकानदार आपसे 2000 के नोट नहीं लेगा। परिणाम स्वरूप 2000 के नोट की या तो जमाखोरी होगी अथवा काले धन का ही सृजन करेंगें। सरकार को इस विषय पर प्रारंभिक समय से सचेत रहने की आवश्यकता है।’’
लगता है जैसे मीनाक्षी लेखी का अनुमान सच साबित हो रहा है। इसकी पुष्टि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के वक्तव्य से भी होती है। मध्य प्रदेश के शाजापुर में 16 अप्रैल 2018 को किसानों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था, “नोटबंदी से पहले 15 लाख करोड़ रुपए की नकदी चलन में थी। इस प्रक्रिया (नोटबंदी) के बाद यह बढ़कर 16 लाख 50 हजार करोड़ रुपए हो गई, लेकिन बाजार से 2000 का नोट गायब हो रहा है। लेकिन दो-दो हजार के नोट कहां जा रहे हैं, कौन दबाकर रख रहा है, कौन नकदी की कमी पैदा कर रहा है। यह षड्यंत्र है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है, ताकि दिक्कतें पैदा हों। सरकार इससे सख्ती से निपटेगी।“ उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने यह मुद्दा केंद्र सरकार के सामने भी उठाया है। उन्होंने इसके पीछे साजिश होने का आरोप लगाया है।
यद्यपि एसबीआई के चेयरमैन का कहना है कि नोटबंदी जैसे हालात नहीं है। उस वक्त पैसा सिस्टम से निकाला गया था, इसलिए परेशानी हुई थी। अभी ऐसी स्थिति नहीं है। एसबीआई के पास पर्याप्त कैश है। यह बात जरूर है कि 2000 के नोट का सर्कुलेशन कम हुआ है। एक वजह यह है कि फसलें आई हैं, किसानों को तेजी से पेमेंट बढ़ा है। जल्दी ही सबकुछ सामान्य हो जाएगा। वैसे पिछले कुछ हफ्ते से गुजरात, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कैश में कमी बनी हुई थी। 16 अप्रैल 2018 को पूर्वी महाराष्ट्र, बिहार और मध्य प्रदेश से नकदी की कमी की शिकायतें मिलीं। उत्तर प्रदेश, बिहार, तेलंगाना, झारखंड और महाराष्ट्र में नकदी का संकट पैदा हो गया। उधर गुजरात में भी बैंकों में नकदी की किल्लत शुरू हो चुकी है। लगभग 10 दिन पहले यह परेशानी उत्तर गुजरात से शुरू हुई, लेकिन अब पूरे राज्य में इसका असर है। यहां तक कि बैंकों ने नकदी निकालने की सीमा तय कर दी है। ज्यादातर एटीएम में पैसा नहीं है। शादी और किसानों को फसल के भुगतान का वक्त होने की वजह से लोगों को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली, एनसीआर, भोपाल, पटना, लखनऊ, हैदराबाद और अहमदाबाद समेत देश के कई इलाकों के एटीएम में पैसा नहीं होने की शिकायतें मिलीं। इस बीच, केंद्र सरकार ने स्वीकार किया कि कुछ जगह कैश की कमी है। इसके बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, “देश में नकदी के हालात की समीक्षा की जा चुकी है। कुल मिलाकर पर्याप्त नकदी चलन में है। बैंकों में पर्याप्त कैश है। कुछ जगहों पर कमी इसलिए हुई, क्योंकि कुछ जगहों पर मांग अचानक बढ़ी। इस पर जल्द ही नियंत्रण पाया जाएगा।“
न्यूज़ ऐजेंसियों के अनुसार रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने 2000 रुपए के नोटों की छपाई तीन महीने के लिए बंद कर रखी है। जिससे 500 और 200 से छोटे नोटों को ही प्रचलन में लाया जाए और सभी बैंक अपने ग्राहकों को यही नोट उपलब्ध कराए। सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड कंपंनी ने भी इस चीज की पुष्टि करते हुए बताया कि आरबीआई ने 2000 नोट को छापने की कोई भी डिमांड नहीं की इसलिए नए 500, 200 और इससे छोटे नोटों को ही छापा जा रहा है। इसका उद्देश्य यह हैं की देशभर में छोटे नोटों का प्रचलन ज्यादा से ज्यादा हो और कालेधन पर लगाम भी लग सके। इस संबंध में यह चर्चा भी जोरो रही है कि रिजर्व बैंक एक बार फिर 2000 रुपये की करेंसी के संचार को धीरे-धीरे कम कर देगी। दूसरी चर्चा यह रही कि 2000 की करेंसी की सुविधा के चलते देश में कालेधन का संचय आसान हो गया है और इसी के चलते बाजार में 2000 की करेंसी का ज्यादा संचार नहीं है।
कारण जो भी हो लेकिन फिलहाल आमजनमा को नोटों की कमी के संकट से एकबार फिर जूझना पड़ रहा है। एक ओर आसन्न चुनावों के लोक-लुभावने वादे हैं तो दूसरी ओर नोटों की कमी का कठोर यथार्थ। ऐसे में आमजनता का अपने भविष्य को ले कर चिंतित होना स्वाभाविक है कि कहीं एक बार फिर किसी प्रकार की बंदी का सामना तो नहीं करना पड़ेगा? यह समय सिर्फ़ विवाह महूर्तों का नहीं है, इस समय किसान अपनी उपज को मंडियों में पहुंचा रहे हैं और उनके खातों में धन पहुंच रहा है लेकिन यदि समय रहते यह धन उनके हाथों में रुपयों के रूप में नहीं आ पाया तो उनके लिए भी संकट खड़ा हो सकता है। स्थानीय छोटे-मोटे कर्जे या मजदूरों को चुकता करने के लिए किसानों को भी नकद राशि की दरकार होती है। एटीएम और बैंक काउंटरों पर नकद की कमी होने की स्थिति में धन होते हुए भी धन की कमी से उनहें जूझना पड़ेगा। यही स्थिति लगभग हर तबके के लोगों की रहेगी।
नोटबंदी का जख़्म अभी पूरी तरह से भरा नहीं है कि अब 2000 के नोटों का संकट आमजनता को उलझन में डाल रहा है। एक ओर आसन्न चुनाव का शुरू हो चुका घमासान और दूसरी ओर खाली पड़े एटीएम यानी नोट और वोट के बीच फंसे लोग जाएं तो कहां जाएं? कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे आमजनता के धैर्य की परीक्षा का अंतहीन सिलसिला जारी है। लिहाजा इस परीक्षा का अंत अब सरकार को ही पूरी तत्परता से करना होगा क्योंकि यह उसी के अधिकार क्षेत्र का मामला है। आमजनता सीधे आरबीआई से संवाद नहीं कर सकती है लेकिन सरकार आरबीआई को निर्देश दे सकती है। जहां तक जमाखोरी और कालाबाजारी का प्रश्न है तो इसके लिए भी सरकारी स्तर पर ही कोई ठोस कदम उठाने होंगे, वह भी ऐसे कदम जो जमाखोरों ओर कालाबाजारी करने वालों पर तो अंकुश लगाए किन्तु आमजनता को परेशानी न उठानी पड़े। आखिर कब तक बड़े-बड़े घोटालेबाज अरबों रुपयों का घोटाला कर के देश से बाहर भागते रहेंगे और आमजनता बलि का बकरा बनती रहेगी? इस प्रश्न को ध्यान में रख कर कोई तो ऐसी योजना बनानी ही होगी जिससे बार-बार आमजनता को मुद्रा की कमी और उससे उत्पन्न घबराहट न झेलनी पड़े। यह एक ऐसा मुद्दा है जो चुनावों की दिशा का निर्धारण करने की ताकत रखता है।
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Note Aur Vote Ke Beech Fansi Aamjanta - Charcha Plus by Dr Sharad Singh
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(दैनिक सागर दिनकर, 18.04.2018 )
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