Wednesday, May 22, 2019

छोटे क़दम, बड़ी मंज़िल - - डॉ. शरद सिंह, दैनिक जागरण 'सप्तरंग' परिशिष्ट में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh, Author

दैनिक जागरण (सभी संस्करण) 21.05.2019 के 'सप्तरंग' परिशिष्ट में प्रकाशित मेरा लेख ‘छोटे क़दम, बड़ी मंज़िल’ ...
 

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छोटे क़दम, बड़ी मंज़िल - - डॉ. शरद सिंह, दैनिक जागरण 'सप्तरंग' परिशिष्ट में प्रकाशित
 छोटे क़दम बड़ी मंज़िल                            
              - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

हर व्यक्ति, हर प्रयास का अपना महत्व होता है। कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता है। महत्व परिणाम का होता है। यदि परिणाम कल्याणकारी है तो छोटी से छोटी वस्तु भी बड़ा महत्व रखती है। ठीक यही बात लागू होती है सफलता पर। आज के उपभोक्तावादी समय में हर व्यक्ति जल्दी से जल्दी सफलता की सीढ़ियां चढ़ जाना चाहता है। उसे लगता है कि यदि उसने रात में जिस सफलता को पाने की इच्छा की है वह उसे सुबह आंख खोलते ही मिल जानी चाहिए। इस हड़बड़ी में व्यक्ति से अनेक गड़बड़ियां हो जाती हैं। जैसे उसे उचित-अनुचित का ध्यान नहीं रहता है। वह शार्टकट अपना कर जल्दी सफलता पा लेने को उद्यत हो उठता है। शार्टकट और जल्दबाजी दोनों का एक ही हश्र होता है। इनके द्वारा प्राप्त सफलता स्थाई नहीं होती है। जैसे पंचतंत्र में दो पक्षियों की कथा है।
एक जंगल में दो पक्षी रहते थे। उस जंगल के दूसरे छोर पर एक वृक्ष था जिसमें वर्ष में एक बार स्वादिष्ट फल आया करते थे। जब फलों का मौसम आया तो दोनों पक्षियों ने वहां जाने की योजना बनाई।
‘वह वृक्ष यहां से बहुत दूर है अतः मैं तो आराम से धीरे-धीरे वहां पहुंचूंगा। अभी फलों का मौसम दो माह रहेगा।’ पहले पक्षी ने दूसरे से कहा।
‘नहीं मित्र, मुझसे तो रहा नहीं जा रहा है। उन स्वादिष्ट फलों के बारे में सोच कर ही मेरे मुंह में पानी आ रहा है अतः मैं तो एक ही उड़ान में वहां जा पहुंचूंगा और छांट-छांट कर मीठे फल खा लूंगा।’ दूसरे पक्षी ने अतिउत्साहित होते हुए कहा। उसके मन में यह खोट भी आ गई थी कि वह पहले पहुंच कर सारे अच्छे फल खा सकता है।
दूसरे दिन दोनों पक्षी अपने घोसलों से निकल कर उस वृक्ष की ओर उड़ चले। कुछ दूर जाने पर पहले पक्षी को थकान होने लगी तो वह सुस्ताने के लिए एक वृक्ष की टहनी पर ठहर गया। वहीं, दूसरा पक्षी उसे ठहरा हुआ देख कर मुस्कुराया और तेजी से फलों की ओर उड़ने लगा। जबकि वह भी थकान का अनुभव करने लगा था। मगर उसे तो फलों को खाने की जल्दी जो थी अतः वह बिना रुके उड़ता गया, उड़ता गया, उड़ता गया। उसे फलों वाला वृक्ष दिखाई देने लगा। फलों की सुगंध भी उसे आने लगी। उसे लगा कि बस, अब तो वह पहुंच ही गया है कि तभी उसके पंख लड़खड़ाए। वह बुरी तरह थक चुका था। उसके पंखों ने जवाब दे दिया और वह वहीं आसमान से ज़मीन पर जा गिरा। उसके पंख टूट गए और वह उन फलों तक कभी नहीं पहुंच सका। जबकि पहला पक्षी जो रुक-रुक कर आ रहा था वह फलों तक आराम से पहुंच गया और उसने जी भर कर स्वादिष्ट फल खाए।
कदम कदम चल कर ही हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। उछल कूद करने वाले लोग मुंह के बल गिरते हैं और चोट खाते हैं। यह तो हम सब जानते हैं कि ना तो हिमालय का निर्माण एक दिन में हुआ था और न ही वानर सेना ने एक विशाल चट्टान से सेतु बनाया था। अनेक छोटे-छोटे पत्थरों से ही सेतु का निर्माण हुआ था। प्रत्येक सेना में अनेक सिपाही होते हैं जिनके बल पर बड़ी से बड़ी विजय प्राप्त की जाती है। एक-एक ईंट को कुशलता पूर्वक रखकर और जोड़कर ही किसी श्रेष्ठ भवन का निर्माण किया जाता है। एक-एक सीढ़ी चढ़कर ही किसी भवन के ऊपर की मंजिल तक पहुंचा जा सकता है। इतना ही नहीं अपितु हमारा विश्व भी तो छोटे-छोटे कणों द्वारा निर्मित है। जिस नैनो पार्टिकल्स ने आज जीवन में क्रांति ला दी है, वह अणु, परमाणु से ले कर ब्रह्मांड तक का निर्माता है। हमारे प्राचीन ग्रंथ ‘श्वेताश्वतरोपनिषद्’ में ब्रह्माण्ड के सबसे छोटे कण के माप का वर्णन मिलता है-

केशाग्रशतभागस्य शतांशः सादृशात्मकः।
जीवः सूक्ष्मस्वरूपोयं संख्यातीतो हि चित्कणः।।
- अर्थात् यदि केश के अग्रभाग को सौ भागों में विभाजित किया जाए और प्रत्येक भाग को और सौ भागों में विभाजित किया जाए, तब शेष बचा हुआ भाग ब्रह्माण्ड का सूक्ष्मातिसूक्ष्म भाग होगा। यही तो है नैनोपार्टिकल्स जो लघुतम होते हुए भी ब्रह्मांड की रचना करने में सक्षम हैं। अतः जो लोग छोटे-छोटे कार्यों की उपेक्षा करके महत्वाकांक्षाओं को सार्थक करने का स्वप्न देखते हैं, वे भूल जाते हैं कि छोटी-छोटी सफलताएं प्राप्त करते हुए चलने से जीवन में सफलताएं प्राप्त होती हैं। जो व्यक्ति छोटी-छोटी सफलताओं में जीवन को महत्व नहीं देते वह बड़ी सफलता से भी वंचित रह जाते हैं। महान व्यक्तियों की जीवनगाथा यह तथ्य उजागर करती हैं कि छोटे छोटे कर्तव्य पालन में उचित और अनुचित का विवेक रखकर ही वे महान बन सके हैं। महात्मा बुद्ध यह कहते थे -’तुम्हारे सामने जो कार्य है उसको पूरे उत्साह एवं पूरी शक्ति के साथ करो। छोटा समझ कर किसी कार्य की उपेक्षा मत करो।’
हम अपने लक्ष्य के प्रति बढ़ते हुए यह याद रखें कि बारह महीनों को मिलाकर ही एक वर्ष बनता है एक भी माह छूट जाने पर वर्ष पूर्ण नहीं होगा। अतः हमारा प्रत्येक कदम लक्ष्य की प्राप्ति का सूचक है इसलिए छोटे-छोटे कदमों की अवहेलना ना करते हुए उन्हीं को आत्मसात करना चाहिए और स्वयं पर विश्वास रखना चाहिए। वास्तव में हमें अपने बड़े लक्ष्य के लिए छोटे-छोटे प्रयास ही निर्धारित करने चाहिए। यदि दस छोटे प्रयासों में पांच प्रयास असफल हो कर हमें हतोत्साहित करते हैं तो वे पांच प्रयास जो सफल हो गए हैं, हमें उत्साहित भी करते हैं। किन्तु किसी भी काम को करने में जल्दबाजी करना भी घातक सिद्ध होता है-
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः।।
- अर्थात् जल्दबाजी में कोई कार्य नहीं करना चाहिए क्यूंकि बिना सोचे-समझे किया गया कार्य विपत्तियों को आमंत्रण देता हैं। जो व्यक्ति सहजता से सोच समझ कर आराम से विचार करके अपना काम करते हैं सफलता रूपी लक्ष्मी स्वयं ही उन्हें चुन लेती है।
सफलता पाने के लिए सबसे बड़ी आवश्कता होती है इच्छाशक्ति और प्रयास की। यह ‘प्रयास’ बड़ा ही संवेदनशील शब्द है। प्रयास करने की इच्छा जाग्रत होते ही उर्त्तीण अथवा अनुत्तीर्ण होने का चिंतन भी जाग उठता है। यही चिंतन प्रेरक भी बनता है और घातक भी। उत्तीर्ण होने की इच्छा का होना स्वाभाविक है लेकिन अनुत्तीर्ण होने से भी घबराना नहीं चाहिए। अनुत्तीर्ण होना इस बात का सूचक होता है कि अभी और प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। बस, मन में दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए। इस बात को बाल्यावस्था के प्रयासों से जोड़ कर देखा जाए तो सब कुछ सहज ही स्पष्ट हो जाएगा। एक बालक जब गतिशील होना आरम्भ करता है तो वह पहले बैठने का प्रयास करता है। फिर आगे झुकने का अभ्यास करता है। इसके बाद वह घुटनों के बल चलने लगता है। जब उसे घुटनों के बल चलना आ जाता है तो वह खड़े होने का प्रयास आरम्भ कर देता है। किसी न किसी वस्तु का सहारा ले कर वह खड़ा होने लगता है और फिर डगमगाते कदमों से आगे बढ़ता है। खड़े हो कर चलने के इस प्रयास में वह कई-कई बार गिरता है। उसे चोट लगती है। वह रोता है। किन्तु हार नहीं मानता है। फिर वह दिन भी आता है जब वह अपने दम पर खड़े होकर न केवल चलने लगता है अपितु दौड़ने भी लगता है। कहने का आशय यही है कि प्रत्येक उस व्यक्ति को जो अपने जीवन में सफलता पाना चाहता है उसे गिरने से डरे बिना, छोटे-छोटे कदम बढ़ाते हुए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। इसके बाद उसे जो सफलता मिलेगी, स्थाई होगी क्योंकि इसमें उसका आत्मविश्वास, उसका सतत प्रयास और उसके अनुभव शामिल रहेंगे जो उसे जीवन के हर मोड़ पर प्रेरणा देते रहेंगे।
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