Thursday, June 25, 2020

बुंदेलखंड में आज भी कमी है महिला उद्योगों की - डॉ.(सुश्री) शरद सिंह


Dr (Miss) Sharad Singh
दैनिक जागरण में प्रकाशित मेरा यह लेख ... आप भी पढ़िए...
हार्दिक आभार "दैनिक #जागरण"🙏
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विशेष लेख

बुंदेलखंड में आज भी कमी है महिला उद्योगों की 
- डॉ.(सुश्री) शरद सिंह

     वे सिर पर दो-दो, तीन-तीन घड़े उठाए चार-पांच किलोमीटर जाती हैं और अपने परिवार की प्यास बुझाने के लिए सिर पर पानी ढो कर लाती हैं। पहाड़ी या घाटी भी इनका रास्ता रोक नहीं पाती है। बढ़ते अपराध और सूखे की मार भी इन्हें डिगा नहीं पाती है। कोरोना भी इन्हें अपने परिवार के लिए मेहनत करने से नहीं रोक पाया है। जीवट हैं बुंदेलखंड की महिलाएं। बुंदेलखंड में महिलाएं घर-परिवार की अपनी समस्त जिम्मेदारियां निभाती हुई अपने परिवार के पुरुष सदस्यों का हाथ खेतीबारी में बंटाती आ रही हैं। दोहरी-तिहरी जिम्मेदारी के तले दब कर भी उफ न करने वाली बुंदेली महिलाओं के लिए मुसीबतों की कमी कभी नहीं रही। देश की आजादी के अनेक दशक बाद भी बुंदेली महिलाओं में साक्षरता का प्रतिशत कम है। उन्हें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की गाथाएं तो हमेशा सुनाई और रटाई गईं किन्तु लक्ष्मीबाई जैसी शिक्षा, आत्मरक्षा कौशल अथवा आर्थिक संबल उन्हें प्रदान नहीं किया गया। फिर भी यह बुंदेली महिलाओं की जीवटता थी कि वे बीड़ी निर्माण, वनोपज संग्रहण आदि के द्वारा अपने परिवार की हरसंभव आर्थिक मदद करती रही हैं। लेकिन अब बीड़ी उद्योग और वनोपज संग्रहण के क्षेत्र में आमदनी के अवसर कम हो चले हैं। बीड़ी उद्योग तो स्वयं ही घाटे में चल रहा है। विगत दो-तीन वर्ष में सात से अधिक बीड़ी कारखाने बंद हो गए। 
Dainik Jagaran, Article of Dr (Miss) Sharad Singh, 25.06.2020
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    महिला सशक्तीकरण की दिशा में अभी और प्रयास किये जाने की जरूरत है, ताकि महिलाओं को रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो और ज्यादा संख्या में महिला उद्यमी तैयार करने लायक माहौल बन सके। सरकारों को समझना होगा कि देश में महिला श्रमशक्ति की भागदारी बढ़ाने के लिये महिलाओं को क्षमता विकास प्रशिक्षण उपलब्ध कराने को बढ़ावा देने, देश भर में रोजगार के अवसर उत्पन्न करने, बड़ी संख्या में चाइल्ड केयर केन्द्र स्थापित करने तथा केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा हर क्षेत्र में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने सम्बन्धी प्रयास किया जाना बेहद जरूरी है।
आर्थिक पिछड़ेपन का दृष्टि से जो स्थान भारत के मानचित्र में उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश का है, वही स्थिति झांसी तथा सागर सम्भाग के जनपदों के दतिया-ग्वालियर सहित है। यहां पर विकास की एक सीढ़ी चढ़ना दुभर है। बुंदेलखंड का प्रत्येक ग्राम भूख और आत्महत्याओं की करुण कहानियों से भरा है। बुंदेलखंड में महिलाओं की शिक्षा एवं आर्थिक विकास की क्रियाओं में भागेदारी भी अपेक्षाकृत न्यून है। इस स्थिति में यदि गांवों का औद्योगीकरण करना है तो पहले महिलाप्रधान ग्रामोद्योग को बढ़ावा दिया जाना जरूरी है। इसके लिए बाहर से उद्योगपति को गांव में आमंत्रित करने की आवश्यकता ही नहीं है। इस काम के लिए महिलाओं को ही सक्षम बनाना पर्याप्त होगा। समूह आधारित सहकारिता के माध्यम से यह काम बखूबी किया जा सकता है। बुंदेलखंड के बाहर के क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा खड़े किए सेवा बैंक और लिज्जत पापड़ तो इसके अनुकरणीय उदाहरण हैं। 
मध्यप्रदेशीय बुंदेलखंड में भी महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा करने व प्रदेश के क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिए शासन ने महिलाओं को उद्योगों में बढ़ावा देने के लिए समय-समय पर कई कदम उठाए गए। महिला उद्यमी प्रोत्साहन योजना- 2013 के तहत औद्योगिक इकाई लगाने वाली महिलाओं को ऋण पर छूट प्रदान की जाने लगी। लेकिन बुंदेलखंड में उद्योगों में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है। इसे तथ्य को ध्यान में रखते हुए मध्यप्रदेश शासन ने उद्योगों में महिलाओं को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया। महिलाओं को गुह एवं लघु उद्योग के लिए ऋण दिए जाने का प्रावधान रखा गया। बुंदेलखंड में लागू इस योजना मेें ऋण लेकर उद्यम लगाने वाली महिलाओं को पांच प्रतिशत की दर से एक साल में अधिकतम पचास हजार और पांच साल में ढाई लाख रुपये ब्याज में छूट देने का प्रावधान किया गया। लेकिन यहां भी आड़े आ गई साक्षरता की कमी। एक सबसे बड़ी बाधा यह भी है कि पुरुषसत्तात्मक बुंदेलखंड में आज भी महिलाओं को स्वनिर्णय का अधिकार पूरी तरह नहीं मिल सका है, विशेषरूप से आर्थिक मामलों में। जिस प्रकार राजनीतिक क्षेत्र में पंच, सरपंच, पार्षद आदि स्तर पर महिलाएं रबर स्टैम्प की भांति पदासीन रहती हैं और उनके सारे राज-काज उनके पति यानी पंचपति, सरपंचपति, पार्षदपति सम्हालते हैं उसी प्रकार आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं को सरकार द्वारा अनेक योजनाओं के अंतर्गत दिए जाने वाले ऋण एवं लघु उद्योग का वास्तविक संचालन महिलाओं के हाथों में न हो कर उनके परिवार के पुरुषों अथवा उनके पति के हाथ में होता है। इसीलिए बुंदेलखंड में महिलाओं के लिए उस प्रकार के उद्योगों की विशेष आवश्यकता है जो पूर्णरूप से महिलाओं द्वारा संचालित हों और जिनमें महिलाओं को निर्णय लेने का पूरा अधिकार हो। इस प्रकार के उद्योगों की स्थापना से ही बुंदेली महिलाओं में आर्थिक आत्मनिर्भता को बढ़ावा मिल सकेगा और वे बुंदेलखंड के आर्थिक विकास में अपना भरपूर योगदान दे सकेंगी।   
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(दैनिक जागरण में 25.06.2020 को प्रकाशित)
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Wednesday, June 24, 2020

चर्चा प्लस - पुराने वादों के साथ नया उपचुनाव - डाॅ शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस 
पुराने वादों के साथ नया उपचुनाव 
- डाॅ शरद सिंह

वही रैली, वही वादे,  वही  उम्मींद के पर्चे
दुआ है इस दफ़ा बदलें नज़ारें, हों नए चर्चे

कोरोना का संकट भले ही न टला हो लेकिन उपचुनाव की आहटें स्पष्ट सुनाई देने लगी हैं। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए 22 विधायकों के इस्तीफे और दो विधायकों के निधन के कारण 24 खाली सीटों के लिए मध्यप्रदेश में उपचुनाव होना है। जिसमें बुंदेलखंड की सुरखी विधान सभा की सीट भी शामिल है। पिछले, उससे भी पिछले, बहुत पिछले चुनावों में जो वादे किए गए, वे वादे दोहराए जा रहे हैं।

अब भला नए वादे क्यों नहीं? तो समस्याएं भी तो नई नहीं हैं। स्वास्थ्य, जल प्रबंधन, स्वच्छता, जनसंबंधी व्यवस्थाएं आदि आज भी लड़खड़ाती चाल से चल रही हैं। कोरोनाकाल ने इन अव्यवस्थाओं में ईजाफ़ा ही किया है। भले ही उपचुनाव सुरखी विधान सभा का होने वाला है लेकिन यह महत्वपूर्ण उम्मींदवारों का महत्वपूर्ण क्षेत्र है। इस क्षेत्र ने महत्वपूर्ण मंत्री दिए हैं। आगे भी उम्मींद है कि सुरखी क्षेत्र के खाते में कोई न कोई मंत्रीपद दर्ज़ हो सकता है। इसीलिए इस क्षेत्र के उम्मींदवारों से मात्र सुरखी ही नहीं, पूरे सागर सम्भाग ही नहीं, समूचे बुंदेलखंड (मध्यप्रदेशीय) की आशाएं और आकांक्षांए जाग उठती हैं। व्यक्तिगत नहीं अपितु जनजीवन से जुड़ी समस्याओं के निराकरण और स्थाई हल की आशा।
Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh, 24.06.2020
चुनाव के संदर्भ में एक दिलचस्प चर्चा याद आ रही है। विगत शिक्षा-सत्र में यानी कोरोनाकाल के आरम्भ होने से पहले डाॅ. हरीसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय सागर, के राजनीति विज्ञान एवं लोक प्रशासन विभाग में ‘‘बुंदेलखंड में राजनीतिक लामबंदी- उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश के बीच तुलना’’ विषय पर एक व्याख्यान का आयोजन हुआ था। तब उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में जाति आधारित राजनीतिक दलों का उदय व सशक्तिकरण और मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में दशा पर विचार किया गया था। यद्यपि मध्यप्रदेशीय बुंदेलखंड में भी जाति और धर्म का समीकरण गहराया रहता है। टिकट के लिए कभी जैन समाज दबाव बनाता है तो कभी ब्राह्मण समाज। लोधी समाज तो प्रभावी रहता ही है। अनुसूचितजाति बाहुल्य क्षेत्रों में अपना अलग समीकरण रहता है। जब पूरे देश में राजनीति और जाति का गठबंधन चल रहा हो तो बुंदेलखंड भला अछूता कैसे रह सकता है फिर वह चाहे उत्तरप्रदेशीय हो या मध्यप्रदेशीय। यह अवश्य है कि मध्यप्रदेशीय बुंदेलखंड में कांग्रेस और भाजपा ही प्रमुख राजनीतिक दलों की हैसियत बनाए हुए है।
समूचे बुंदेलखण्ड की समस्याएं ज्यों कि त्यों हैं। इसीलिए जो वादे इस क्षेत्र के पहले लोकतांत्रिक चुनावों के दौरान किए गए थे, आज भी लगभग वही वादे किए जा रहे हैं। आम नागरिकों ने संघर्ष करके सागर के गौरवशाली डाॅ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिला तो दिया लेकिन इस केन्द्रीय विश्वविद्यालय में आज यह दशा है कि एक व्यक्ति दो-दो, तीन-तीन डिपार्टमेंट्स का कार्य सम्हाल रहा है जबकि वह उन विषयों का स्काॅलर भी नहीं है। जिस विश्वविद्यालय को केन्द्रीय स्वरूप मिल जाने के कारण देश-दुनिया के कोने-कोने से छात्र पढ़ने के लिए इच्छुक रहते हैं, वहां विषय विशेषज्ञों की कमी है। इस कमी को पूरा कने के लिए बहुतायत अतिथि शिक्षकों से काम चलाया जा रहा है।
क्षेत्र में आईटी पार्क खोले जाने की युवाओं द्वारा विगत वर्ष आंदोलनकारी रूप से मांग उठाई गई थी। बाद में उन्हें यह समस्या समझ में आई कि कोई भी बहुराष्ट्रीय कंपनी के उच्चाधिकारी किस साधन से इस क्षेत्र तक पहुंचेंगे? यहां मात्र एक हवाईअड्डा है। जहां से गिनती की उड़ाने हैं। कहने का आशय यह कि बुंदेलखण्ड के इस क्षेत्र में वह अनुकूल वातावरण ही नहीं है जो आईटी पार्क के लिए निवेशकों को आकर्षित कर सके। रोजगारोन्मुखी शिक्षा की कमी के चलते यहां के आम युवाओं में भी उस क्षमता (स्किल)का विकास नहीं हो सका है जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लुभा सके।
गरीब तबके की जो महिला जिसे किसी विशेष हुनर की शिक्षा नहीं मिली है वह बीड़ी बना कर अपने परिवार को आर्थिक मदद दे पाती है। इसीलिए बीड़ी उद्योग में बीड़ी बनाने का कार्य करने वाली महिलाओं का अनुपात 90 प्रतिशत है। लेकिन आज बीड़ी उद्योग भी घाटे में चल रहा है। बीड़ी पीने का चलन लगभग समाप्त होता जा रहा है और महिलाएं भी बीड़ी बनाने के काम के स्वास्थ्य संबंधी जोखिम समझने लगी हैं। लेकिन बीड़ी उद्योग नहीं तो और क्या उपाय है उनके पास अर्थोपार्जन का? इस क्षेत्र में न तो कोई फूड पार्क है, न कोई बड़ा गृहउद्योग है और न कोई ऐसा हैण्डलूम उद्योग है जो घरेलू महिलाओं को रोजगार से जोड़ सके।
बुंदेलखंड में इस बार फिर गरीबी उन्मूलन, बेरोजगारी उन्मूलन, क्षेत्र का विकास जैसे वही चुनावी वादे गूंजने लगे हैं जिन्हें दशकों से इस क्षेत्र की आम जनता सुनती आ रही है। हर बार की तरह इस बार भी आम जनता को उम्मींद है कि इसबार शायद दिन फिर जाएं और हालात बदल जाए। कोरोनाकाल हमेशा नहीं रहेगा लेकिन ये समस्याएं भी हमेशा न रहें इसके लिए अभी वादा कर रहे चुनाव टिकट आकांक्षियों को इसके लिए ईमानदारी से आगे आना होगा।      
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   (दैनिक सागर दिनकर में 24.06.2020 को प्रकाशित)
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Wednesday, June 17, 2020

चर्चा प्लस - अमल करने को कहते हैं, अमल करते नहीं खुद ही - डाॅ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh

चर्चा प्लस

अमल करने को कहते हैं, अमल करते नहीं खुद ही
- डाॅ. शरद सिंह

अमल करने को कहते हैं
अमल करते नहीं खुद ही
अगर ग़ाफिल नहीं होते
ग़लत करते नहीं खुद ही

सुरखी उपचुनाव की तैयारियां गरमाने लगी हैं। राजनीतिक आयोजनों का सिलसिला शुरू हो गया है। कोरोना संक्रमण से बचाव को ध्यान में रखते हुए जहां केन्द्रीय स्तर पर वर्चुअल रैली निकाली गई वहीं सागर जिले में ‘‘भीड़-जोड़’’ आयोजन हो गया। वैसे सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क को अनदेखा कर के जो भी राजनीतिक आयोजन हो रहे हैं उनके लिए यही कहा जा सकता है कि जोश में होश खोना यानी कोरोना को दावत देना। कोरोना को दावत देना यानी जान जोखिम में डालना।

जी हां, सुरखी उपचुनाव की तैयारियां गरमाने लगी हैं। राजनीतिक आयोजनों का सिलसिला शुरू हो गया है। कोरोना संक्रमण से बचाव को ध्यान में रखते हुए जहां केन्द्रीय स्तर पर वर्चुअल रैलियां निकाली जा रही हैं, वहीं सागर जिले में ‘‘भीड़-जोड़’’ आयोजन हो गया। वैसे सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क को अनदेखा कर के जो भी राजनीतिक आयोजन हो रहे हैं, वे आग से खेलने से कम नहीं हैं। लेकिन सवाल यह है कि कोई भी सार्वजनिक आयोजन प्रशासन की अनुमति के बिना तो होता नहीं है तो फिर प्रशासन ऐसी गंभीर चूक होने कैसे दे रहा है? माॅनीटरिंग की कमी और तुरंत संज्ञान में लेने में ऐसी ढील आमजनता के संदर्भ में तो देखने को नहीं मिलती है।

इस बार कांग्रेस की बात में दम है। मामला भले ही राजनीतिक मुद्दे के तौर पर हो लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण यह जनहित में अतिसंवेदनशील भी है। मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री सुरेंद्र चौधरी और सागर जिला ग्रामीण कांग्रेस के अध्यक्ष नरेश जैन आदि कांग्रेसी नेताओं ने आरोप लगाया है कि कोरोना वायरस को लेकर जारी केंद्रीय गाइड लाइन का खुला उल्लंघन कर मंत्री गोविंद सिंह राजपूत द्वारा बिना अनुमति के राजनैतिक आयोजन किया गया। कांग्रेसी नेताओं ने मंत्री गोविंद सिंह राजपूत पर प्रकरण दर्ज करने की मांग शासन प्रशासन से की। मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष सुरेंद्र चौधरी के अनुसार विगत 13 जून को मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने सैकड़ों लोगों को एकत्रित कर राहतगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण का कार्यक्रम आयोजित किया जो विभिन्न दैनिक समाचार पत्रों के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी प्रसारित हुआ। सुरेंद्र चौधरी ने प्रमाण सहित यह बात सामने रखी और जिला प्रशासन की कार्यप्रणाली पर निशाना साधा कि भगवान महावीर स्वामी की जयंती मनाने वालों पर प्रकरण दर्ज कर दिया गया, बंडा में जैन मुनि जी के दर्शन करने पहुंचे लोगों पर मुकदमा दर्ज कर दिया गया, यहां तक कि शवयात्रा में जाने वालों पर भी मामला दर्ज कर दिया गया लेकिन राहतगढ़ सहित अन्य स्थानों पर बिना अनुमति के भारतीय जनता पार्टी के राजनैतिक आयोजन कर शासन की गाइड लाइन की सरेआम धज्जियां उड़ाने की खुली छूट प्रशासन द्वारा दी गई। उल्लेखनीय है कि विगत मई माह में सागर जिले के बंडा में जैनमुनि प्रमाण सागर महाराज और अन्य मुनि विहार करते हुए पहुंचे थे। उनके दर्शनों के लिए बंडा के हज़ारों लोग सड़कों पर उतर आए। उस समय यह मामला बहुत गरमाया था। जब भीड़ का वीडियो सामने आया तो पुलिस व प्रशासन ने इस मामले की जांच शुरू की थी।

सागर जिला ग्रामीण कांग्रेस के अध्यक्ष नरेश जैन ने भी जिला प्रशासन पर आक्षेप लगाया है कि आमजन पर तो गाइडलाइन का पालन करने के लिए सख्ती बरती जाती है जबकि भारतीय जनता पार्टी के लोग शासन की गाइड लाइन का पालन करने के बजाय बिना अनुमति के राजनैतिक आयोजन करते रहते हैं और प्रशासन मौन रहता है। भले ही यह आरोप राजनीति प्रेरित हो लेकिन ध्यान देने योग्य है। आखिर मामला जानलेवा कोरोना वायरस के संक्रमण के फैलाव से जुड़ा हुआ है। इस समय कोई भी जोखिम उचित नहीं ठहराया जा सकता है। यूं भी कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्तियों की संख्या को लेकर सागर की स्थिति अभी सुधरी नहीं है। संक्रमण रोकने की दृष्टि से जिले के अनेक क्षेत्र चौदह दिन से भी अधिक समय से कन्टेमेंट क्षेत्र बने हुए हैं। कन्टेमेंट क्षेत्र की जनता खामोशी से असुविधाओं का सामना कर रही है क्योंकि सवाल संक्रमण को फैलने से रोकने का है।

यहां याद दिलाना ज़रूरी है कि सागर कलेक्टर के आदेश के अनुसार बिना मास्क पहने बाहर निकलने वालों पर सख्त कार्रवाई के साथ ही जुर्माने का प्रावधान है। नियमों का पालन हो सके इसके लिए जिले के संबंधित अधिकारियों को भी निर्देश दिया जा चुका है। जिले में कन्टेमेंट का उल्लंघन करने और बिना काम के बाहर निकलने वालों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई के आदेश हैं। कोरोना से बचाव के लिए सुरक्षा नियमों का पालन हो सके इसके लिए जिले की पुलिस को अलर्ट पर रखा गया है। यह सब कुछ प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया है आमजनता ने। लोगों के मन में संक्रमण का डर अभी भी मौजूद है। हो भी क्यों न, आखिर उन्होंने अपने बीच के लोगों को कोरोना से संक्रमित होते देखा है। फिर भी कुछ नासमझ अपनी नासमझी दिखा ही देते हैं। लॉकडाउन खुलने के बाद करीब 70-80 फीसदी शहरवासी प्रतिदिन अपने घर से बाहर निकल रहे हैं। उनमें ऐसे भी लोग हैं जो बाजारों में खरीदारी के दौरान शारीरिक दूरी का पालन नहीं करते हैं। कुछ लोग मास्क लगाने में भी लापरवाही कर रहे हैं। नतीजतन कोरोना संक्रमण की जकड़ में आ रहे हैं और संक्रमितों के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं।

जब कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा अभी गहराया हुआ हो तो ऐसे में प्रत्येक राजनीतिक दल के नेताओं को अपनी जिम्मेदारी का ध्यान रखते हुए आपदा नियमों का गंभीरता से पालन करना चाहिए। भावी चुनाव के जोश में होश खोना जनता के लिए भारी पड़ सकता है। इस समय संयम ही सबसे बड़ा शस्त्र है जिससे कोरोना को हराया जा सकता है।
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(दैनिक सागर दिनकर में 17.06.2020 को प्रकाशित)
Charcha Plus Column, Amal Karne Ko Kahate Hain, Amal Karte Nahi Khud Hi -  Sagar Dinkar, Dr (Miss) Sharad Singh, 17.06.2020

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विशेष लेख - उपचुनाव के जोश में होश खोना जनता के लिए भारी ना पड़ जाए - डाॅ. ( सुश्री) शरद सिंह, दैनिक जागरण में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh


उपचुनाव के जोश में होश खोना जनता के लिए भारी ना पड़ जाए - डाॅ. शरद सिंह

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विशेष लेख
उपचुनाव के जोश में होश खोना जनता के लिए भारी ना पड़ जाए
- डाॅ. ( सुश्री) शरद सिंह

नवाबों के जमाने की एक कहावत है कि जिन्हें नज़ला (सर्दी) हो उन्हें बारिश में छाता ले कर ही घर से निकलना चाहिए। यानी जिन्हें दल बदलने के बाद अंदर-बाहर दोनों ओर से विरोध की सुगबुगाहट झेलनी पड़ रही हो, उन्हें एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रखना चाहिए। एक भी चूक सारे राजनीतिक समीकरण बिगाड़ सकती है। उस पर यदि यह चूक चुनावी तैयारी के जोश में होश खो कर कोरोना को दावत देने वाली हो तो समर्थकों और आमजनता को भी गहरे संकट में डाल सकती है।
जी हां, सुरखी उपचुनाव की तैयारियां गरमाने लगी हैं। राजनीतिक आयोजनों का सिलसिला शुरू हो गया है। कोरोना संक्रमण से बचाव को ध्यान में रखते हुए जहां केन्द्रीय स्तर पर वर्चुअल रैलियां निकाली जा रही हैं, वहीं सागर जिले में ‘‘भीड़-जोड़’’ आयोजन हो गया। वैसे सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क को अनदेखा कर के जो भी राजनीतिक आयोजन हो रहे हैं, वे आग से खेलने से कम नहीं हैं। लेकिन सवाल यह है कि कोई भी सार्वजनिक आयोजन प्रशासन की अनुमति के बिना तो होता नहीं है तो फिर प्रशासन ऐसी गंभीर चूक होने कैसे दे रहा है? माॅनीटरिंग की कमी और तुरंत संज्ञान में लेने में ऐसी ढील आमजनता के संदर्भ में तो देखने को नहीं मिलती है।
इस बार कांग्रेस की बात में दम है। मामला भले ही राजनीतिक मुद्दे के तौर पर हो लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण यह जनहित में अतिसंवेदनशील भी है। मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री सुरेंद्र चौधरी और सागर जिला ग्रामीण कांग्रेस के अध्यक्ष नरेश जैन आदि कांग्रेसी नेताओं ने आरोप लगाया है कि कोरोना वायरस को लेकर जारी केंद्रीय गाइड लाइन का खुला कर मंत्री गोविंद सिंह राजपूत द्वारा बिना अनुमति के राजनैतिक आयोजन किया गया। कांग्रेसी नेताओं ने मंत्री गोविंद सिंह राजपूत पर प्रकरण दर्ज करने की मांग शासन प्रशासन से की। मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यउल्लंघनक्ष सुरेंद्र चौधरी के अनुसार विगत 13 जून को मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने सैकड़ों लोगों को एकत्रित कर राहतगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण का कार्यक्रम आयोजित किया जो विभिन्न दैनिक समाचार पत्रों के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी प्रसारित हुआ। सुरेंद्र चौधरी ने प्रमाण सहित यह बात सामने रखी और जिला प्रशासन की कार्यप्रणाली पर निशाना साधा कि भगवान महावीर स्वामी की जयंती मनाने वालों पर प्रकरण दर्ज कर दिया गया, बंडा में जैन मुनि जी के दर्शन करने पहुंचे लोगों पर मुकदमा दर्ज कर दिया गया, यहां तक कि शवयात्रा में जाने वालों पर भी मामला दर्ज कर दिया गया लेकिन राहतगढ़ सहित अन्य स्थानों पर बिना अनुमति के भारतीय जनता पार्टी के राजनैतिक आयोजन कर शासन की गाइड लाइन की सरेआम धज्जियां उड़ाने की खुली छूट प्रशासन द्वारा दी गई। उल्लेखनीय है कि विगत मई माह में सागर जिले के बंडा में जैनमुनि प्रमाण सागर महाराज और अन्य मुनि विहार करते हुए पहुंचे थे। उनके दर्शनों के लिए बंडा के हज़ारों लोग सड़कों पर उतर आए। उस समय यह मामला बहुत गरमाया था। जब भीड़ का वीडियो सामने आया तो पुलिस व प्रशासन ने इस मामले की जांच शुरू की थी।
सागर जिला ग्रामीण कांग्रेस के अध्यक्ष नरेश जैन ने भी जिला प्रशासन पर आक्षेप लगाया है कि आमजन पर तो गाइडलाइन का पालन करने के लिए सख्ती बरती जाती है जबकि भारतीय जनता पार्टी के लोग शासन की गाइड लाइन का पालन करने के बजाय बिना अनुमति के राजनैतिक आयोजन करते रहते हैं और प्रशासन मौन रहता है। भले ही यह आरोप राजनीति प्रेरित हो लेकिन ध्यान देने योग्य है। आखिर मामला जानलेवा कोरोना वायरस के संक्रमण के फैलाव से जुड़ा हुआ है। इस समय कोई भी जोखिम उचित नहीं ठहराया जा सकता है। यूं भी कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्तियों की संख्या को लेकर सागर की स्थिति अभी सुधरी नहीं है। संक्रमण रोकने की दृष्टि से जिले के अनेक क्षेत्र चौदह दिन से भी अधिक समय से कन्टेमेंट क्षेत्र बने हुए हैं। कन्टेमेंट क्षेत्र की जनता खामोशी से असुविधाओं का सामना कर रही है क्योंकि सवाल संक्रमण को फैलने से रोकने का है।
यहां याद दिलाना ज़रूरी है कि सागर कलेक्टर के आदेश के अनुसार बिना मास्क पहने बाहर निकलने वालों पर सख्त कार्रवाई के साथ ही जुर्माने का प्रावधान है। नियमों का पालन हो सके इसके लिए जिले के संबंधित अधिकारियों को भी निर्देश दिया जा चुका है। जिले में कन्टेमेंट का उल्लंघन करने और बिना काम के बाहर निकलने वालों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई के आदेश हैं। कोरोना से बचाव के लिए सुरक्षा नियमों का पालन हो सके इसके लिए जिले की पुलिस को अलर्ट पर रखा गया है। यह सब कुछ प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया है आमजनता ने। लोगों के मन में संक्रमण का डर अभी भी मौजूद है। हो भी क्यों न, आखिर उन्होंने अपने बीच के लोगों को कोरोना से संक्रमित होते देखा है। फिर भी कुछ नासमझ अपनी नासमझी दिखा ही देते हैं। लॉकडाउन खुलने के बाद करीब 70-80 फीसदी शहरवासी प्रतिदिन अपने घर से बाहर निकल रहे हैं। उनमें ऐसे भी लोग हैं जो बाजारों में खरीदारी के दौरान शारीरिक दूरी का पालन नहीं करते हैं। कुछ लोग मास्क लगाने में भी लापरवाही कर रहे हैं। नतीजतन कोरोना संक्रमण की जकड़ में आ रहे हैं और संक्रमितों के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं।
जब कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा अभी गहराया हुआ हो तो ऐसे में प्रत्येक राजनीतिक दल के नेताओं को अपनी जिम्मेदारी का ध्यान रखते हुए आपदा नियमों का गंभीरता से पालन करना चाहिए। भावी चुनाव के जोश में होश खोना जनता के लिए भारी पड़ सकता है। इस समय संयम ही सबसे बड़ा शस्त्र है जिससे कोरोना को हराया जा सकता है।
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Josh me Hosh khona Janta Ke Liye Bhari na par Jaye - Dr Sharad Singh, Jagaran, 17.06.2020

(दैनिक जागरण में 17.06.2020 को प्रकाशित)
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विशेष लेख - एक सबक है सुशांत का जाना - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह, दैनिक जागरण में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh


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विशेष लेख
एक सबक है सुशांत का जाना
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

विशेषरूप से युवावर्ग सुशांत के इस तरह जाने से सबक ले और इस बात को गांठ में बांध ले कि अपनों से दूर रह कर पैसा और प्रसिद्धि अकेलापन और अवसाद देती है मन का सुकून नहीं। चांद पर प्लाट खरीदने की क्षमता भी कभी-कभी ज़िन्दगी जीने की इच्छा को मार देती है।


वह व्यक्ति मज़दूर या कामगार नहीं था जिसे लाॅकडाउन में अपने रोजगार और घर से विस्थापित हो कर सैंकड़ों किलोमीटर का पैदल सफ़र करना पड़ा हो। अपने अभिनय के दम पर उसने इतना धन कमा लिया था कि जिससे वह चांद पर भी प्लाट खरीद सका। जी हां, #बाॅलीवुड #अभिनेता #सुशांत_सिंह_राजपूत। एक करोड़पति अभिनेता। इंडियन #क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह #धोनी के जीवन पर बनी फिल्म में उन्होंने लीड रोल निभाया था। सुशांत सिंह राजपूत एक फिल्म के लिए 5 से 7 करोड़ रुपये लेते थे। वहीं, विज्ञापन के लिए 1 करोड़ रुपये तक लेते थे। उन्होंने कई रीयल एस्टेट प्रॉपर्टीज में भी निवेश किया हुआ था। बताया जाता है कि उनकी कुल संपत्ति 80 लाख डॉलर यानी 60 करोड़ रुपये से भी अधिक थी। उनकी फिल्म ‘एमएस धोनी’ ने कुल 220 करोड़ रुपये की कमाई की थी। सुशांत सिंह राजपूत ने 34 वर्ष की छोटी-सी आयु में फिल्मों, विज्ञापनों और निवेश के जरिए करोड़ों कमाए। बॉलीवुड के दूसरे सेलेब्रिटीज की तरह सुशांत भी मुंबई के पॉश इलाके बांद्रा में आलीशान घर में रहते थे। उन्हें कारों और बाइक्स का भी काफी शौक था। इसलिए उनके पास कारों की पूरी फ्लीट थी।


सफलता सुशांत सिंह राजपूत के कदम चूम रही थी। उनकी हर फिल्म कमाई का नया रिकॉर्ड बना रही थी। ऐसे में उनकी फीस भी लगातार बढ़ती जा रही थी। कहीं कोई आर्थिक तंगी का मसला नहीं। असफलता का मसला भी नहीं। फिर भी इस युवा अभिनेता ने आत्महत्या जैसा #पलायनवादी कदम उठाया। आखिर क्यों? इस ‘क्यों’ का उत्तर सब ढूंढ रहे हैं। इस ‘क्यों’ का उत्तर शायद ही कभी मिले। लेकिन इस घटना से एक सबक ज़रूर मिला है कि पैसा और प्रसिद्धि भी वह सुख और शांति नहीं दे सकते हैं जो ज़िन्दगी से प्रेम करना सिखा सके।

Ek Sabak Hai Sushant Ka Jana - Dr (Miss) Sharad Singh, Dainik Jagaran, 16.06.2020
कुछ समय पहले सुशांत सिंह राजपूत की मैनेजर #दिशा_सलियन ने भी मुंबई में 12वीं मंजिल से कूदकर खुदकुशी कर ली थी। बताया जा रहा था कि वह अपने मंगेतर संग मुंबई के मलाड में रहती थीं। घटना की जानकारी मिलते ही उन्हें बोरिवली के हॉस्पिटल ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था। आत्महत्या के पीछे अभी कोई भी वजह सामने नहीं आई। इससे पहले ‘क्राइम पेट्रोल’ एक्ट्रेस #प्रेक्षा_मेहता ने भी पंखे से लटककर खुदकुशी की थी। बॉलीवुड इस समय मुश्किल दौर से गुजर रहा है। कई #सेलेब्स ने काम न मिलने के चलते खुदकुशी की है। सोचने की बात है कि काम न मिलने की स्थिति में विस्थापित प्रवासी मज़दूरों ने आत्महत्या करने के बजाए डट कर संकट का सामना किया लेकिन ये सेलेब्स #हताशा और #अवसाद से घिर गए। आखिर इसकी वज़ह क्या हो सकती है?


आज के #बाजारवाद और #भौतिकतावाद के युग में हम जिस तरह पैसे और प्रसिद्धि के जाल में तेजी से जकड़़ते जा रहे हैं, वह हमें अपने आप से ही दूर करता जा रहा है। जिसके पास #पैसा या #प्रसिद्धि नहीं है, वह यही सोचता है कि इन दोनों से दुनिया की सारी खुशियां खरीदी जा सकती हैं, पाई जा सकती हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि यह दोनों सबसे पहले अपनों से दूर करना शुरू कर देते हैं। इसके बाद खुद पर से भी ध्यान हटता जाता है क्योंकि लक्ष्य ‘‘स्वांतः सुखाय’’ आए नहीं बल्कि ‘‘दुनिया दिखाय’’ हो जाता है। प्रदर्शन का मोह हमें भला और बुरा सोचने का अवसर नहीं देता है। वहीं दूसरी ओर जब व्यक्ति इस प्रदर्शन के #मायाजाल में लिपटकर गलत-सही कर्मों में भेद करना भी छोड़ देते हैं, तब वे अनचाही परिस्थितियों के संजाल में उलझते जाते हैं। जहां से अवसाद की यात्रा शुरू होती है। अपने ही हाथों कमाया गया एकाकीपन व्यक्ति को वह अवसाद की ओर धकेलता जाता है। एक स्थिति वह आती है जब व्यक्ति आत्महत्या की ओर अपने क़दम बढ़ा देता है। अपने ही हाथों अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेता है। यही तो किया बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने। सुशांत ने पंखे में लटक कर आत्महत्या कर ली। वे पिछले छः माह से अधिक समय से अवसाद दूर करने की दवा खा रहे थे।



वह मानसिक स्थिति जब इंसान सही और गलत में भेद नहीं कर पाता है और अपने भ्रम पर ही अटूट विश्वास करने लगता है, उसी स्थिति में वह आत्मघात जैसे कदम उठाता है। #मनोवैज्ञानिक इस स्थिति को #सीजोफ्रेनिया कहते हैं। यह भ्रम को सच मान लेने की चरम स्थिति है। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि सीजोफ्रेनिया का मनोरोग आत्मीयता और प्रेम पा कर ठीक होने लगता है। लेकिन यह आत्मीयता भौतिकतावाद की दौड़ में तेजी से गुम होती जा रही है। अगर अवसाद (डिप्रेशन) की स्थिति घेरने लगे तो अपनी समस्याएं बेझिझक अपनो से साझा करें और अपनो के निकट रहें। आखिर सुशांत सिंह राजपूत ने जो आत्मघाती कदम उठाया उससे उनके करोड़ों फैन्स तो आहत हुए ही, वे अपनी बहनों और पिता के सीने पर दुखों का पहाड़ छोड़ जाने के अपराधी हैं। इसीलिए जरूरी है कि किसी भी प्रकार का आत्मघाती विचार आते ही पहले अपने परिवार और मित्रों के बारे में सोचना चाहिए कि वे इस दुख को कैसे झेलेंगे। यही समय है कि विशेष रूप से युवावर्ग सुशांत के इस तरह जाने से सबक ले और इस बात को गांठ में बांध ले कि अपनों से दूर रह कर पैसा और प्रसिद्धि अकेलापन और अवसाद देती है मन का सुकून नहीं।
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(दैनिक जागरण में 16.06.2020 को प्रकाशित)
#लॉकडाउन #दैनिकजागरण #शरदसिंह #DrSharadSingh #miss_sharad #कोरोना #postforawareness #अनलॉक
Late Sushant Singh Rajput Bolywood Actor

डाॅ. शरद सिंह द्वारा संपादित पुस्तक मनोरमा ईयरबुक 2020 में शामिल

Third Gender Vimarsh - Book Edited By Dr (Miss) Sharad Singh

❤️ Hearty Thanks The #Malayala_Manorama_Hindi_Yearbook 2020 🙏
❤️Hearty Thanks #Samayik_Prakashan 🙏

 मेरे द्वारा संपादित एवं सामयिक प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित पुस्तक ‘‘थर्ड जेंडर विमर्श’’ को मनोरमा ईयर बुक वर्ष 2020 में शामिल किया गया है। इस समाचार को वेब पोर्टल्स एवं सागर के समाचार पत्रों ने जिस प्रमुखता से स्थान दिया है उसे देख कर उनकी आत्मीयता का बोध होता है।
❤️ हार्दिक धन्यवाद ...
# दैनिकभास्कर #नवदुनिया #नवभारत #दैनिकजागरण #आचरण #देशबंधु #सागरदिनकर #राजएक्सप्रेस #स्वदेशज्योति #राष्ट्रीयहिंदीमेल

❤️ हार्दिक धन्यवाद वेब पोर्टल्स ...
#युवाप्रवर्तकडॉटकॉम #तीनबत्तीन्यूज़डॉटकॉम
#हरमुद्दाडॉटकॉम

Dr (Miss) Sharad Singh Edited Book Third Gender Vimarsh in Manorama Year Book 2020, Navdunia,  06.06.2020

Dr (Miss) Sharad Singh Edited Book Third Gender Vimarsh in Manorama Year Book 2020, Sagar Dinkar,  06.06.2020

Dr (Miss) Sharad Singh Edited Book Third Gender Vimarsh in Manorama Year Book 2020, Navbharat,  06.06.2020

Dr (Miss) Sharad Singh Edited Book Third Gender Vimarsh in Manorama Year Book 2020, Dainik Bhaskar,  06.06.2020

Dr (Miss) Sharad Singh Edited Book Third Gender Vimarsh in Manorama Year Book 2020, Aacharan,  06.06.2020

Dr (Miss) Sharad Singh Edited Book Third Gender Vimarsh in Manorama Year Book 2020, Deshbandhu,  06.06.2020

Dr (Miss) Sharad Singh Edited Book Third Gender Vimarsh in Manorama Year Book 2020, Jagaran,  06.06.2020

Dr (Miss) Sharad Singh Edited Book Third Gender Vimarsh in Manorama Year Book 2020, Raj Express,  06.06.2020

Dr (Miss) Sharad Singh Edited Book Third Gender Vimarsh in Manorama Year Book 2020, Rashtriya Hindi Mail,  06.06.2020

Dr (Miss) Sharad Singh Edited Book Third Gender Vimarsh in Manorama Year Book 2020, Swadesh Jyoti,  06.06.2020

Dr (Miss) Sharad Singh Edited Book Third Gender Vimarsh in Manorama Year Book 2020, Web Portal, Teenbatti News.Com  05.06.2020

Dr (Miss) Sharad Singh Edited Book Third Gender Vimarsh in Manorama Year Book 2020, Web Portal, Yuva Pravartak,  05.06.2020

Dr (Miss) Sharad Singh Edited Book Third Gender Vimarsh in Manorama Year Book 2020, Web Portal, Har Mudda.Com  05.06.2020

Dr (Miss) Sharad Singh Edited Book Third Gender Vimarsh in Manorama Year Book 2020

Saturday, June 13, 2020

ड्यूटी निरस्त ...

Navdunia, Dr (Miss) Sharad Singh
❤️ धन्यवाद मित्रो, टिप्पणी द्वारा समर्थन के लिए..
🚩आज एक अच्छी ख़बर...कलेक्टर सागर ने तत्काल प्रभाव से #शराब_बिक्री_केंद्रों में #महिलाओं सहित सभी शासकीय कर्मचारियों की #ड्यूटी_निरस्त कर दी है.... यह असर हुआ शराब बिक्री केंद्रों में  महिला कर्मचारियों की ड्यूटी लगाए जाने  के संबंध में विरोध का... आज #नवदुनिया में प्रकाशित आदेश निरस्त संबंधी समाचार...
#नवदुनिया
#नारीसम्मान
#जनहित

शराब बिक्री केंद्रों में महिला कर्मचारियों की ड्यूटी के विरोध में डॉ शरद सिंह के विचार

Views of Dr (Miss) Sharad Singh
शराब बिक्री केंद्रों में  महिला कर्मचारियों की ड्यूटी लगाए जाने  के संबंध में कल 12.06.2020 को  Web Portal Harmudda.com ने भी आवाज़ उठाई.. और जिसमें मेरे विचार भी शामिल किए ...
इस मुद्दे को विस्तार से पढ़िए इस लिंक पर- 
https://harmudda.com/?p=20075

Friday, June 12, 2020

महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला निर्णय - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, दैनिक जागरण में प्रकाशित

Dainik Jagaran, Views of Dr (Miss) Sharad Singh, 12.06.2020 
आश्चर्य होता है  कि जनहित में सोचने वाली सरकार को ऐसी सलाहें कौन देता है  कि शराब बिक्री केंद्रों पर  महिला कर्मचारियों की ड्यूटी लगा दी जाए ?🤔?    
     पहले सरकार ने ताबड़तोड़ शराब की दुकानें खुलवाईं और अब उन शराब बिक्री केंद्रों में महिलाओं की ड्यूटी लगाई जा रही है। 😲😥
🚩'दैनिक जागरण' को हार्दिक धन्यवाद जिसने पहल करते हुए इस अति संवेदनशील मुद्दे पर प्रतिक्रियाएं प्रकाशित की हैं। इस मुद्दे पर सभी को राजनीतिक विचारों से ऊपर उठकर विचार करना चाहिए। स्वयं सरकार को भी महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को ध्यान में रखते हुए अपने इस निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए।🚩
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शराब बिक्री केंद्रों में  महिला कर्मचारियों की ड्यूटी लगाए जाने  के संबंध में आज 12.06.2020 को 'दैनिक जागरण' में प्रकाशित  मेरे विचार ...

महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला निर्णय
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार एवं कॉलमिस्ट
       यह एक दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय है। कोरोना संक्रमण  के चलते शराब की दुकानें खोली ही नहीं जानी चाहिए थीं क्योंकि इनमें सुरक्षा नियमों की अनदेखी होने और साथ ही शारीरिक डिस्टेंसिंग का पालन होने की संभावना कम है, जिसके उदाहरण सामने भी आते जा रहे हैं। अब  शासकीय कर्मचारियों से, बल्कि उस पर अब शराब बिक्री केंद्रों में महिलाओं की ड्यूटी लगा कर उनसे शराब बिक्री करवाना उचित नहीं है । महिला बाल विकास जैसे विभागों से कर्मचारियों को बुलाकर, जिनकी ड्यूटी में इस तरह का कोई भी कार्य शामिल नहीं है, उनसे भी शराब केंद्रों पर शराब की बिक्री कराना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय है। यह निर्णय महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान  को ठेस पहुंचाने वाला है। अपने इस निर्णय पर  प्रशासन को पुनर्विचार करना चाहिए।
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#DrSharadSingh
#miss_sharad
#DainikJagaran #दैनिकजागरण #शराब_बिक्री_केन्द्र #महिला_कर्मचारियों_की_ड्यूटी

Wednesday, June 10, 2020

चर्चा प्लस - नाराज़ हैं अन्नदेवता और उदास है कुरैया- डाॅ शरद सिंह


Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस
नाराज़ हैं अन्नदेवता और उदास है कुरैया
- डाॅ शरद सिंह

कर्जों पर  कर्जे हैं  ब्याज के
बारिश में  भीगते  अनाज के
अन्नदेव क्रोधित हैं आज फिर
देख दशा लापरवाही-राज के

          एक बार फिर हज़ारों टन गेंहू भीगा है बारिश में। एक बार फिर मंडियों की राह में खड़े किसानों अपना अनाज भीगने से बचाने के लिए जूझना पड़ा है। अनाज भीगता है, सड़ता है, नष्ट होता है तो किसान तो खून के आंसू रोता ही है, साथ में आम जनता भी मज़बूर हो जाती है मंहगा अनाज खरीदने को। सवाल यह है कि चूक एक बार हो तो वह चूक कही जा सकती है लेकिन प्रति वर्ष वही किस्सा दोहराया जाता है। अब इसे अपराध कहें या अक्षम्य लापरवाही? इस अव्यवस्था के चलते देश में हर साल लगभग 2.10 करोड़ टन गेहूं बर्बाद होता है।

अन्ना देवता नाराज़ हैं, बेहद नाराज़ और उतनी ही उदास है कुरैया। अन्नदेवता ने सोचा था कि गेंहूं के रूप में किसानों के खेत में उपजने के बाद उन्हें खुले में पड़े-पड़े हर साल की तरह भीगना, सड़ना नहीे पडे़गा। लेकिन दुर्भाग्य से इस बार फिर वही हुआ। खुले में पड़ा अनाज़ भीग गया। अब अन्नदेवता नाराज तो होंगे ही। उन्हें भी लगता होगा कि जब अन्न का संरक्षण और सम्मान करना नहीं आता है तो उसे उगाया ही क्यों जाता है? किसानों से मेहनत ही क्यों कराई जाती है? यूं भी इस बार समय कठिन था। कोरोना आपदा के कारण किसानों को अनाज की ़
कटाई, ढुलाई आदि सभी में परेशानी का सामना करना पड़ा। उस पर जैसे तैसे व्यवस्था कर के, परमिट बनवा कर किसान ने सरकारी खरीद स्थल तक अपना अनाज पहुंचाया। मगर हर साल की तरह इस साल भी उस समय बारिश हुई जब सरकारी मंडियों में अनाज खुले में पड़ा था। दोष निसर्ग तूफान से उपजी चक्रवाती बारिश को दें या फिर उस अव्यवस्था को जिसके तहत अनाज के संरक्षण की समुचित व्यवस्था आज भी नहीं हो सकी है। 
Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh, 10.06.2020
अनाज के भीगने पर वह कुरैया भी उदास है जिससे मापा गया था अनाज को। बुन्देलखण्ड में प्रचलित कुरैया, कहने को तो महज एक पीतल का बरतन होता है। यह एक ऐसा बरतन है जो प्रत्येक किसान के जीवन से जुड़ा रहता है। कुरैया अनाज मापने का एक बरतन होता है जिसके द्वारा अनाज को माप कर यह पता लगाया जाता है कि खेत में कुल कितनी फसल हुई। कुरैया से मापे जाने के बाद ही अनाज के बोरों को तराजू पर तौला जाता है। इस तरह माप का पहला विश्वास भी कुरैया ही होता है। यह अथक श्रम से जुड़ा हुआ बरतन है। कुरैया को कभी भी जूता या चप्पल पहन कर उपयोग में नहीं लाया जाता है। अन्न की यह ऊपर तक भरी हुई मात्रा पांच किलो मानी जाती है। बीस कुरैया का एक बोरा होता है अर्थात् सौ किलो माप का। अनाज को कुरैया से मापते समय अन्न के खेप की गिनती भी विशेष प्रकार से की जाती है। पहली माप को ‘एक’ न कह कर ‘राम’ कहा जाता है। दूसरी माप करते समय, जब तक कुरैया ऊपर तक भर नहीं जाती तब तक ‘राम-राम-राम’ का ही उच्चारण किया जाता है। कुरैया ऊपर तक भरने के पश्चात दूसरी माप से ‘दो-दो-दो’ का उच्चारण किया जाता है। इसके बाद इसी क्रम में तीन-तीन-तीन, चार-चार-चार, पांच-पांच-पांच आदि सामान्यतौर पर माप की जाने वाली गिनती बोली जाती है। इस प्रकार अनाज की पहली माप ‘राम’ नाम से आरम्भ होती है जो शुभ-लाभ का पर्याय है। अनाज भीगेगा तो कुरैया भी तो उदास होगी ही। बस, संवेदनाएं अगर नहीं जागती हैं तो उन व्यवस्थापकों की जिनके जिम्मे होता है अनाज का संरक्षण।
निसर्ग तूफान के चलते प्रदेश में जमकर बारिश हुई। इस बारिश का अलर्ट पहले ही जारी कर दिया गया था। इस बीच जिले भर के उपार्जन केंद्रों पर खुले में पड़ा हुआ था। बारिश हुई और हजारों क्विंटल अनाज बारिश में भीग गया। जिला कलेक्टर की ओर से निर्देश दिये गए थे कि अनाज परिवहन तेजी करवाया जाए। यदि किसी भी प्रकार की लापरवाही हुई तो कार्यवाही की जाएगी। इसके बाद भी परिवहन में जिले के केंद्रों पर भंडारण परिवहन में लापरवाही बरती गई। या तो निर्देश में दम नहीं था या फिर निर्देश की अवहेलना करने वालों की खाल मोटी हो चुकी है। तभी तो सागर जिले में भी यह स्थिति रही कि जिले के सहकारी समर्थन मूल्य पर खुरई के झारई, गढौला जागीर, बहरोल और मालथौन के केंद्रों में खुले में पड़ा रहा हजारों क्विंटल अनाज और भीग गया। वही मालथौन केंद्र पर एक दर्जन से ज्यादा किसान चना की उपज को बेचने के लिये रुके हुए ट्रेक्टर ट्राली में त्रिपाल से ढांक कर जूझते रहे।
किसानों की मेहनत और मौसम की अनुकूलता के चलते इस बार पूरे मध्यप्रदेश में गेहूं की बंपर पैदावार हुई। लेकिन सरकार गेहूं के भंडारण की उचित व्यवस्था नहीं कर पाई। गेहूं निर्यात नहीं होने से भारतीय खाद्य निगम ने भी गेहूं नहीं उठाया। वेयर हाउसिंग कॉरपोरेशन के गोदाम पुराने अनाज से ही भरे हैं। ऐसे में किसानों का गेहूं निजी गोदामों और खुले में बनाए कैप में रखना पड़ा। यह व्यवस्था अपर्याप्त रही। परिणाम यह कि बारिश में खुले में रखा करीब 6 लाख क्विंटल गेहूं भीग गया।
देश में गेहूं बर्बाद होने से कई सवाल राज्यों से लेकर केन्द्र की सरकारों पर हमेशा से खड़े होते रहे हैं। इस विषय में सन् 1918 में सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र से कहा था कि देश के गोदामों में गेहूं सड़ा देने से अच्छा है उसे उसे गरीबों में बांट दिया जाए। गेहूं की बर्बादी को लेकर सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण थी। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में भुखमरी का सामना करने वाले सबसे ज्यादा प्रभावित लोग हैं। देश में करीब 19 करोड़ लोगों को उनकी आवश्यकता के अनुसार भोजन नहीं मिल पा रहा है। वहीं देश में हर साल 2.10 करोड़ टन गेहूं बर्बाद होता है। इस बर्बादी को लेकर न तो भारतीय खाद्य निगम गंभीर है और न ही गेहूं खरीदने वाली राज्य की एजेंसियां। आखिर कब चेतेगी सरकार और कब भीगने से बचेगा अनाज? कहीं अन्नदेवता रूठ ही न जाएं।
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(दैनिक सागर दिनकर में 10.06.2020 को प्रकाशित)
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Thursday, June 4, 2020

गुलामी की छाप से मुक्ति की प्रतीक्षा में 'साउगोर’ (सागर) वल्द ‘इंडिया’ - डाॅ. शरद सिंह, दैनिक जागरण में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh  
गुलामी की  छाप से मुक्ति की प्रतीक्षा में
‘साउगोर’ (सागर) वल्द ‘इंडिया’
           - डाॅ. शरद सिंह
  दैनिक जागरण में प्रकाशित मेरा यह लेख हमारे देश और मेरे शहर के नाम के मुद्दे पर है ... आप भी पढ़िए...
हार्दिक आभार "दैनिक जागरण"🙏
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गुलामी की  छाप से मुक्ति की प्रतीक्षा में
‘साउगोर’ (सागर) वल्द ‘इंडिया’
           - डाॅ. शरद सिंह
            हमारे संविधान में देश का नाम इंडिया से बदलकर भारत रखे जाने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है। दिल्ली निवासी याचिकाकर्ता का कहना है कि इंडिया शब्द से अंग्रेजों की गुलामी झलकती है जो कि भारत की गुलामी की निशानी है। इसलिए इस इंडिया शब्द की बजाय भारत का इस्तेमाल होना चाहिए। साथ ही याचिका में कहा गया है कि संविधान के पहले अनुच्छेद में लिखा है कि इंडिया यानी भारत। लेकिन आपत्ति यह है कि जब देश एक है तो उसके दो नाम क्यों है, एक ही नाम का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाए। याचिका में दावा किया गया है कि ‘भारत’ या ‘हिंदुस्तान’ शब्द हमारी राष्ट्रीयता के प्रति गौरव का भाव पैदा करते हैं इसलिए याचिका में सुप्रीम कोर्ट से सरकार को संविधान के अनुच्छेद 1 में संशोधन के लिए उचित कदम उठाते हुए ‘इंडिया’ शब्द को हटाकर, देश को ‘भारत’ या ‘हिंदुस्तान’ कहने का निर्देश देने की मांग की गई है। यह अनुच्छेद इस गणराज्य के नाम से संबंधित है। याचिका में कहा गया है कि संविधान में यह संशोधन इस देश के नागरिकों की औपनिवेशिक अतीत से मुक्ति सुनिश्चित करेगा। याचिका में 1948 में संविधान सभा में संविधान के तत्कालीन मसौदे के अनुच्छेद एक पर हुई चर्चा का हवाला दिया गया है जिसमें उस समय देश का नाम ‘भारत’ या ‘हिंदुस्तान’ रखने पर ज़ोर दिया गया था।
Name of Sagar , Article - Dr Sharad Singh, Dainik Jagaran, 04.06.2020
      विश्व का सबसे बड़ा गणतंत्र का दर्ज़ा रखने वाला देश - भारत, हिन्दुस्तान या इंडिया। एक देश जिसके तीन नाम। आधिकारिक तौर पर दो नाम हैं-इंडिया और भारत। बार-बार इस बात की मांग उठती रही है कि देश का एक नाम रहे-‘भारत’। अभी कुछ अरसा पहले विश्वविख्यात जैन संत आचार्य विद्यासागर ने ‘इंडिया’ शब्द की व्याख्या करते हुए देश का नाम ‘भारत’ रखे जाने पर तार्किक पक्ष रखे हैं और ‘भारत बोलो’ मुहिम का आह्वान किया है। 
भारत या इंडिया, क्या नाम है इस देश का? हिन्दुस्तान सिर्फ़ बोलचाल में है अथवा पुराने अभिलेखों में किन्तु ‘इंडिया’ और ‘भारत’ आज भी समान रूप से प्रयोग में लाया जा रहा है। सन् 2012 में लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा ने केंद्र सरकार से यह प्रश्न किया था। सूचना के अधिकार के अंतर्गत उर्वशी शर्मा ने पूछा था कि सरकारी तौर पर भारत का नाम क्या है? उन्होंने अपने प्रश्न पूछे जाने का कारण बताते हुए उल्लेख किया था कि ‘इस बारे में हमारे बीच काफी असमंजस है। बच्चे पूछते हैं कि जापान का एक नाम है, चीन का एक नाम है लेकिन अपने देश के दो नाम क्यूं हैं।’ इसीलिए वे यह जानना चाहती हैं ताकि वे बच्चों को सही-सही उत्तर दे सकें और आने वाली पीढ़ी के बीच इस बारे में कोई संदेह न रहे। उर्वशी ने कहा कि  ‘हमें सुबूत चाहिए कि किसने और कब इस देश का नाम भारत या इंडिया रखा? कब ये फैसला लिया गया?’ उर्वशी का तर्क था कि यह एक भ्रम की स्थिति है जिसके कारण सरकारी स्तर पर भी देश के दो नामों का प्रयोग किया जाता है। इसी आधार पर उन्होंने कहा कि ‘मैं केवल ये जानना चाहती हूं कि भारत का सरकारी नाम भारत है या इंडिया, क्योंकि सरकारी तौर पर भी दोनों नाम इस्तेमाल किए जाते हैं।“ उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में लिखा है- ‘इंडिया दैट इज़ भारत’। अर्थात् देश के दो नाम हैं। सरकारी कामकाज में ‘गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया’ और ‘भारत सरकार’ दोनों का प्रयोग किया जाता है। अंग्रेजी में भारत और इंडिया दोनों का इस्तेमाल किया जाता है जबकि हिंदी में भी इंडिया कहा जाता है। उर्वशी ने कहा था कि वे इस मुद्दे को गंभीरता से लेती हैं क्योंकि ये देश की पहचान का सवाल है।

   ठीक ऐसे ही गुलामी की छाप से मुक्ति की प्रतीक्षा है सागर को। सागर के नाम की स्पेलिंग बहुप्रचलन के अनुरुप सही और सरलीकृत किए जाने की यह प्रतीक्षा कोई नई नहीं है। वर्षों व्यतीत हो गए बाट जोहते। लेकिन इस मुद्दे पर कोई पुरजोर प्रयास नहीं किया गया। सबसे अधिक परेशानी तब आती है जब कोई व्यक्ति सागर आने के लिए या सागर से जाने के लिए रेलवे रिजर्वेशन कराता है तो उसे रेलवे की साईट पर सागर ढूंढने पर भी नहीं मिलता है। दरअसल, अंग्रेजी में सागर की प्रचलित स्पेलिंग है ‘एस ए जी ए आर’। राज्य शासन में भी यही स्पेलिंग मान्य है। लेकिन अंग्रेजों ने इसे अपने उच्चारण के हिसाब से ‘साउगोर’ कहा। यानी स्पेलिंग रखी-‘एस ए यू जी ओ आर’। सेना छावनी तथा रेलवे में यही स्पेलिंग चलाई गई, जो आज भी कायम है जबकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आम व्यवहार में यह स्पेलिंग भारतीय उच्चारण के अनुरुप सरलीकृत हो कर सागर यानी ‘एस ए जी ए आर’ हो गई। आज पत्राचार से लेकर इंटरनेट की विभिन्न साईट्स में सागर की यही स्पेलिंग काम में लाई जा रही है। यह उच्चारण और शब्दों के अनुरुप है तथा लिखने में भी सरल है। फिर भी भारतीय रेलवे में आज भी सागर की स्पेलिंग अंग्रेजों वाली ‘साउगोर’ ही चल रही है। जिससे होता ये है कि जब किसी को सागर के लिए रेलगाड़ियों की जानकारी अथवा रिजर्वेशन कराना होता है तो प्रचलित स्पेलिंग से मध्यप्रदेश में स्थित यह सागर स्टेशन मिलता ही नहीं है। प्रायः कर्नाटक स्थित शिव सागर मिल जाता है। जिससे बड़ा भ्रम उत्पन्न हो जाता है।

    जिस प्रकार देश के दो नामों में से मात्र ‘भारत’ किए के पक्ष में याचिका दायर की गई है उसी प्रकार सागर के नाम की स्पेलिंग ‘साउगोर’ और ‘सागर’ में से हर स्थान पर ‘सागर’ (एस ए जी ए आर) ही होनी चाहिए। संदर्भगत उल्लेखनीय है कि इस लेख की लेखिका (डाॅ शरद सिंह) यानी मैं स्वयं सागर के नाम की अंग्रेजी स्पेलिंग सुधारे जाने के लिए विगत 5 वर्ष से आवाज उठा रही हूं। मेरी इस मांग को संज्ञान में लेते हुए चिंतक एवं समाजसेवी रघु ठाकुर ने भी अपनी ओर से प्रयास किया और दिल्ली रेल मंत्रालय को भी पत्र लिखा। इस संबंध में सांसद राज बहादुर सिंह ने भी आश्वस्त किया था कि वे इस दिशा में प्रयास करेंगे। मार्च 2020 में इस संबंध में निर्णय होने की संभावना थी किंतु कोरोना संकट के चलते इस कार्य में फिलहाल व्यवधान आ गया है। अब जरूरत है इस संबंध में पुरजोर आवाज़ उठाए जाने की। सच तो यह है कि जनआंदोलन के अभाव में ‘सागर’ वल्द ‘भारत’ आज भी ‘साउगोर’ वल्द ‘इंडिया’ के रूप में गुलामी की छाप ढो रहा है।        
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(दैनिक जागरण में 04.06.2020 को प्रकाशित)
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