- डॉ. शरद सिंह
अरब में औरतें के अधिकारों को लेकर अनेक प्रश्न उठते रहे हैं लेकिन ये अरब औरतें अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने बच्चों और समाज के प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवाज उठाने लगी हैं। ये अरब औरतें नशीली दवाओं के विरुद्ध एकजुट होती जा रही हैं। संयुक्त अरब अमीरात के महिला विकास मंत्रालय के डायरेक्टर अमाल खशोगी ने एक ऐसा कार्यक्रम भी चला रखा है जो महिलाओं को नशीली दवाओं से होने वाली हानियों की समुचित जानकारी देता है। अमाल मानते हैं कि जब औरतें भी नशे की लत में डूबने लगती हैं, उस स्थिति में समस्या और विकट हो जाती है इसलिए यदि औरतें अपने घर अपने परिवार को बचाने के लिए नशीली दवाओं का विरोध करने लगी हैं तो सरकार हर हाल में उनका साथ देगी।
मुस्लिम औरतों और वह भी यदि खाड़ी देशों की हों तो एक ही तस्वीर सामने आती है, बुर्के (हिजाब) में लिपटी, रूढ़िवादी परंपराओं की जंजीरों से जकड़ी और पुरुषों की दासता में जीती औरत। मगर अब खाड़ी देशों की औरतों की तस्वीर तेजी से बदल रही है। विशेष रूप से संयुक्त अरब अमीरात में औरतों के समुचित विकास पर ध्यान दिया जा रहा है।
राजकुमारी लुलुआ |
अरब क्षेत्र में महिलाओं की दशा में सुधार लाने का श्रेय सऊदी के राजकुमार सऊद अल फैजल और उनकी बहन राजकुमारी लुलुआ को दिया जा सकता है जो लगातार इस दिशा में प्रयत्नशील हैं। राजकुमारी लुलुआ ने अरब महिलाओं की शिक्षा ओर शिक्षित महिलाओं को रोजगार से जोड़ने की महत्वपूर्ण पहल की। राजकुमार सऊद अल फैजल भी उनके साथ हैं। राजकुमारी लुलुआ का कहना है कि हम अपनी महिलाओं को पश्चिमी शैली में नहीं, अपनी स्वस्थ परंपराओं के अनुरूप विकास की मुख्यधारा से जोड़ रहे हैं, हम कट्टर रूढ़ियों से औरतों को बाहर निकलने में मदद कर रहे हैं।
राजकुमारी लुलुआ की बातों में दम है। सदियों की परंपराओं को एक झटके के साथ तोड़ना कभी कारगर नहीं रहा। शिक्षा के प्रति रुचि लगा कर, स्वास्थ्य एवं समाज संबंधी बुराइयों के विरुद्ध जागरूकता ला कर आमूलचूल परिवर्तन लाया जा सकता है। यह सही रास्ता है। अब अरब औरतें इसी रास्ते पर बढ़ती जा रही हैं। यह भी सही है कि यह सब कुछ बहुत आसान नहीं है, इसमें अभी बहुत समय लगेगा फिर भी एक अच्छी पहल हमेशा अच्छी ही होती है। भारत में भी इस तरह के बहुत सार्थक प्रयास किए गए तब कहीं जाकर आज भारतीय औरतें खुली हवा में सांस ले पा रही हैं। भारत में भी नशीली दवाओं के विरुद्ध अनेक कानून हैं- मृत्युदंड को छोड़कर। नशेड़ियों को नशे की लत से मुक्त कराने के लिए अनेक स्वयंसेवी संगठन काम कर रहे हैं।
राजकुमारी लुलुआ की बातों में दम है। सदियों की परंपराओं को एक झटके के साथ तोड़ना कभी कारगर नहीं रहा। शिक्षा के प्रति रुचि लगा कर, स्वास्थ्य एवं समाज संबंधी बुराइयों के विरुद्ध जागरूकता ला कर आमूलचूल परिवर्तन लाया जा सकता है। यह सही रास्ता है। अब अरब औरतें इसी रास्ते पर बढ़ती जा रही हैं। यह भी सही है कि यह सब कुछ बहुत आसान नहीं है, इसमें अभी बहुत समय लगेगा फिर भी एक अच्छी पहल हमेशा अच्छी ही होती है। भारत में भी इस तरह के बहुत सार्थक प्रयास किए गए तब कहीं जाकर आज भारतीय औरतें खुली हवा में सांस ले पा रही हैं। भारत में भी नशीली दवाओं के विरुद्ध अनेक कानून हैं- मृत्युदंड को छोड़कर। नशेड़ियों को नशे की लत से मुक्त कराने के लिए अनेक स्वयंसेवी संगठन काम कर रहे हैं।
कभी-कभी घरेलू महिलाएं भी संगठित होकर स्वयं निकल पड़ती हैं शराब जैसे नशे का विरोध करने। किंतु अन्य नशीली सामग्रियों और उनके दुष्प्रभावों की जानकारी उन्हें नहीं के बराबर है। इसी तथ्य को अरब प्रशासन ने अपने यहां समझा और उस पर ध्यान दिया। वहां का प्रशासन अपने देश की औरतों को हर तरह के नशों के विरुद्ध सजग कर देना चाहता है।
संयुक्त अरब अमीरात के कानून के अनुसार नशीली दवाओं के तस्करी पर मृत्युदंड तक का प्रावधान है। फिर भी वहां का प्रशासन उस समय चौंका जब एक सलाहकार शोरा परिषद के समक्ष प्रस्तुत रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि लगभग एक लाख से अधिक युवा सऊदी पुरुष और महिलाएं किसी न किसी नशीली दवा के शिकार हैं। इसीलिए वहां की सरकार ने महिलाओं को नशामुक्ति के अपने अभियान में शामिल कर लिया क्योंकि महिलाएं घरेलू स्तर पर नशे की प्रवृत्ति को रोकने में कानून से भी अधिक कारगर साबित हो सकती हैं।
संयुक्त अरब अमीरात के मदीना, हाइल, जझान, ताबुक और कासिम आदि क्षेत्रों में सरकार की ओर से महिलाओं को विभिन्न स्तरों पर नशीली दवाओं नारकोटिक्स और उससे होने वाली हानि तथा नशीली दवाएं लेने से रोकने के उपायों की जानकारी देने वाले केंद्र काम कर रहे हैं।
दिलचस्प बात यह भी है कि इन केंद्रों के प्रति अरब औरतों में स्वतः उत्साह है। वे अपने पति, अपने बेटों, अपनी बेटियों और अपने अन्य परिवारजन को नशीली दवाओं से मुफ्त देखना चाहती हैं। हन्ना अल फरीह शासकीय संस्थान की यूनिट डायरेक्टर हैं। जझान के केंद्र में लगभग ६० औरतें जानकारी प्राप्त कर चुकी हैं जो अब नशीली दवाओं के विरुद्व उठ खड़ी हुई हैं। निश्चितरूप से यह अरब औरतों की जागृति की वह बयार है जो अन्य मुस्लिम देशों पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेगी।
संयुक्त अरब अमीरात के कानून के अनुसार नशीली दवाओं के तस्करी पर मृत्युदंड तक का प्रावधान है। फिर भी वहां का प्रशासन उस समय चौंका जब एक सलाहकार शोरा परिषद के समक्ष प्रस्तुत रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि लगभग एक लाख से अधिक युवा सऊदी पुरुष और महिलाएं किसी न किसी नशीली दवा के शिकार हैं। इसीलिए वहां की सरकार ने महिलाओं को नशामुक्ति के अपने अभियान में शामिल कर लिया क्योंकि महिलाएं घरेलू स्तर पर नशे की प्रवृत्ति को रोकने में कानून से भी अधिक कारगर साबित हो सकती हैं।
संयुक्त अरब अमीरात के मदीना, हाइल, जझान, ताबुक और कासिम आदि क्षेत्रों में सरकार की ओर से महिलाओं को विभिन्न स्तरों पर नशीली दवाओं नारकोटिक्स और उससे होने वाली हानि तथा नशीली दवाएं लेने से रोकने के उपायों की जानकारी देने वाले केंद्र काम कर रहे हैं।
दिलचस्प बात यह भी है कि इन केंद्रों के प्रति अरब औरतों में स्वतः उत्साह है। वे अपने पति, अपने बेटों, अपनी बेटियों और अपने अन्य परिवारजन को नशीली दवाओं से मुफ्त देखना चाहती हैं। हन्ना अल फरीह शासकीय संस्थान की यूनिट डायरेक्टर हैं। जझान के केंद्र में लगभग ६० औरतें जानकारी प्राप्त कर चुकी हैं जो अब नशीली दवाओं के विरुद्व उठ खड़ी हुई हैं। निश्चितरूप से यह अरब औरतों की जागृति की वह बयार है जो अन्य मुस्लिम देशों पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेगी।
(साभार- दैनिक ‘नईदुनिया’ में 31.07.2011 को प्रकाशित मेरा लेख)