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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, August 22, 2013

तेज़ाब मामले में इतनी काफ़ी नहीं






- डॉ. शरद सिंह
                       
(‘इंडिया इन साइड’ के August 2013 अंक में ‘वामा’ स्तम्भ में प्रकाशित मेरा लेख आप सभी के लिए ....पढ़ें, विचार दें....
आपका स्नेह मेरा उत्साहवर्द्धन करता है......
)

 ‘तेजाब कांड’ कहने को एक ‘कांड’ यानी जघन्य घटना भर लगती है लेकिन वस्तुतः यह जघन्य से जघन्यतम और घृणा से भी अधिक घृणास्पद अपराध है। देखा जाए तो यह हत्या से भी अधिक बड़ा अपराध है। हत्या में तो मृतक को कुछ पल का कष्ट सहना होता है किन्तु तेजाब पीडि़त की तो एक पल में सारी दुनिया ही बदल जाती है। मर्मान्तक शारीरिक पीड़ा के साथ ही अचानक दुनिया से खुद को समेट लेने, छिप जाने को विवश होने की पीड़ा को शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता है।
नई दिल्ली की शाहदरा निवासी रेणु जब 19 साल की थी उस पर तेजाब फेंका गया था। यह घटना 15 फरवरी 2006 को घटित हुई। उस समय से सन् 2013 तक उसकी 8 सर्जरी हुईं किन्तु जो उससे छिन गया था था उसे नहीं मिला। रेणु के कान और आंख की तंत्रिकाएं क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। कॉस्मेटिक विशेषज्ञ डॉ. सुरुचि पुरी के अनुसार,‘‘ऐसे लोगों की सर्जरी का सिलसिला लंबा चलता है। अगर तेजाब अंदर तक जा चुका हो तब तो घाव भरने में ही काफी समय लग जाता है। एंटीबायोटिक्स की हाई डोज से लेकर लेजर से उपचार तक की प्रक्रिया बहुत खर्चीली होती है। तेजाब डलने के बाद त्वचा पूरी तरह विकृत हो जाती है। पीडि़त अपना चेहरा देख ही कर दहल जाता है। इसके अलावा नाक, कान, होंठ, पलकें आदि की नाजुक त्वचा तेजाब से बहुत कस जाती है जिसे सामान्य करना जरूरी होता है। तंत्रिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाएं तो काम करना बंद कर देती हैं।’’ 
Before ...and After Acid Attack
तेजाब की खुलेआम बिक्री और उसके इस जघन्य दुरुपयोग के प्रति सरकार को बहुत पहले जाग जाना चाहिए था किन्तु वह नहीं जागी और अनेक युवतियां तेजाब की शिकार होती रहीं। इन्हीं में से एक है लक्ष्मी। सन् 2006 में तेजाब के हमले में घायल नाबालिग लक्ष्मी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है। लक्ष्मी पर तुगलक रोड के पास तीन युवकों ने तेजाब फेंक दिया था क्योंकि उसने इनमें से एक से शादी करने से इनकार कर दिया था। तेजाब के इस हमले में लक्ष्मी के हाथ, चेहरा और शरीर के दूसरे हिस्से झुलस गए थे। यह साहसी लड़की हारी नहीं और उसने इस अपराध के कारण पर अंकुश लगाने के लिए मुहिम छेड़ दी। लक्ष्मी ने एक याचिका दायर की जिसमें नया कानून बनाने या फिर भारतीय दंड संहिता, साक्ष्य कानून और अपराध प्रक्रिया संहिता में ही उचित संशोधन करके ऐसे हमलों से निपटने का प्रावधान करने और पीडि़तों के लिए मुआवजे की व्यवस्था करने का अनुरोध किया। लक्ष्मी की याचिका के आधार पर ही सुप्रिम कोर्ट ने गाइड लाइन जारी करते हुए सभी राज्यों को तीन महीने के अंदर क्लिक करें तेजाब एवं अन्य हानिकारक पदार्थों की खुदरा बिक्री का नियमन करने के लिए कहा। सुप्रिम कोर्ट ने तेजाब की शिकार महिलाओं को तीन लाख रूपए मुआवजा देने के आदेश जारी किया। इसमें से एक लाख का मुआवजा राज्य सरकार को घटना के पन्द्रह दिन के अंदर देना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र, राज्य और केन्द्रशासित प्रदेशों से तेजाब से हमले को गैर-जमानती अपराध बनाने के लिए कहा। अदालत के आदेशानुसार 18 साल से कम उम्र के व्यक्ति को तेजाब नहीं बेचा जा सकेगा। इसके अलावा अदालत के फैसले के बाद अब तेजाब खरीदने के लिए फोटो पहचान पत्र जरूरी होगा। साथ ही साथ विक्रेता को खरीदार का पता भी रखना होगा। गैर-कानूनी ढंग से तेजाब बेचने वाले पर 50,000 जुर्माना लगाया जाएगा। इसी तारतम्य में केंद्र सरकार ने भी तेजाब की खरीद फरोख्त को नियंत्रित करने के लिए ‘प्वॉयजन पजेशन एंड सेल्स रूल 2013’ का मसौदा तैयार किया।
Stop Acid Attack !!!

लेकिन प्रश्न उठता है कि ऐसे घिनौने एवं जघन्य अपराध करने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए जो सजाएं तय की गई हैं वे पर्याप्त हैं या नहीं? लक्ष्मी के मामले में अभियुक्तों पर हत्या के आरोप में मुकदमा चल (2013 में भी) रहा है और इनमें से दो व्यक्ति इस समय जमानत पर हैं। लक्ष्मी के अनुसार ‘‘अदालत ने 2009 में तेजाब हमलों के दोषियों के लिए दस साल की सजा तय की थी। ये दस साल की सजा बहुत कम है। जिस पर हमला होता है, उसका पूरा जीवन खत्म हो जाता है। यह तो दोषियों को दोबारा ऐसी वारदातें अंजाम देने का मौका देने जैसा है। वे जल्दी जेल से निकले तो फिर ऐसा ही करेंगे।’’
तेजाब पीडि़ता को जिस मर्मान्तक पीड़ा को जीवन भर झेलना पड़ता है उसे देखते हुए अपराधी के लिए एक मृत्युदण्ड भी कम प्रतीत होता है। ऐसे समय वे पुरातन कठोर कानून याद आते हैं जब अंाख के बदले आंख निकाल लिए जाने और हाथ के बदले हाथ काट लिए जाने का दण्ड दिया जाता था। यूं भी हमारे यहां व्यवस्थाएं वह रूप ले चुकी हैं कि न्याय पाने की चाहत रखने वाले की अदालत का चक्कर काटते-काटते एडि़यां घिस जाती हैं। यदि सरकारें अपराध नियंत्रण के प्रति सजग होतीं तो जो लड़ाई लक्ष्मी ने लड़ी वह उसे नहीं लड़नी पड़ती। बल्कि वह उस घटना की शिकार भी नहीं हो पाती यदि किसी युवती पर तेजाब फेंके जाने की पहली घटना के बाद ही कठोर से कठोरतम कानून लागू कर दिया गया होता। तेजाब पीडि़तों की मदद करने और तेजाब की खुली बिक्री पर प्रतिबंध लगाए जाने के साथ ही अपराधी के लिए एक ऐसी कठोर सज़ा होनी ही चाहिए जो किसी भी व्यक्ति को ऐसे अपराध में प्रवृत्त होने से रोक सके।
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