Sharad Singh |
(‘इंडिया इन साइड’ के November 2013 अंक में ‘वामा’ स्तम्भ में प्रकाशित मेरा लेख आप सभी के लिए ....आपका स्नेह मेरा उत्साहवर्द्धन करता है.......)
सन 2013
जाते-जाते सवालों का जखीरा छोड़ जाएगा, यह भला किसने सोचा था? पांच राज्यों
में विधान सभा चुनावों ने जो परिणाम दिए उनसे सन् 2014 और उसके आगे की
भारतीय राजनीति की दिषा और दषा तय होगी। बरहहाल, चुनाव तो कोई न कोई परिणाम
लाते ही हैं और परिदृष्य भी बदल देते हैं मगर कुछ सवाल वे हैं जिनके उत्तर
ढूंढना नए साल की सबसे बड़ी चुनौती होगी।
सन् 2013 के अनुत्तरित सवालों में औरतों से जुड़े सवालों का प्रतिषत अधिक है। सन् 2013 में ‘निर्भया’ को न्याय मिलना था। उसे न्याय मिला। किन्तु ‘निर्भया-कांड’ का एक जघन्य अपराधी ‘जुवेनाइल’ के दायरे में आने के कारण न्यूनतम सजा का भागीदार बना। अपराध के समय उसकी उम्र 18 वर्ष से कुछ माह कम थी। समूचा देष सोच में डूब गया कि अपराध बालिगों का और सजा नाबालिगों वाली, क्या यह उचित है? ‘जुवेनाइल’ किसे कहा जाना चाहिए? वर्तमान लागू कानून के अनुसार 7 वर्ष से 18 वर्ष की आयु वर्ग किषोर यानी जुवेनाइल के दायरे में आती है। हत्या, चोरी, मार-पीट जैसे अपराध परिस्थितिजन्य आवेष में आ कर घटित हो जाते हैं। बिलकुल गैरइरादतन भी। लेकिन बलात्कार गैरइरादतन कदापि नहीं होता। जो मस्तिष्क बलात्कार करने के बारे में सोच सकता हो, योजना बना सकता हो और जो शरीर इस अपराध को अंजाम दे सकता हो उसे ‘नाबालिग’ के दायरे में कैसे रखा जा सकता है? तो क्या जुवेनाइल की आयु सीमा बदलनी होगी? इस प्रष्न का उत्तर सन् 2014 को देना पड़ेगा।
सन् 2013 के अनुत्तरित सवालों में औरतों से जुड़े सवालों का प्रतिषत अधिक है। सन् 2013 में ‘निर्भया’ को न्याय मिलना था। उसे न्याय मिला। किन्तु ‘निर्भया-कांड’ का एक जघन्य अपराधी ‘जुवेनाइल’ के दायरे में आने के कारण न्यूनतम सजा का भागीदार बना। अपराध के समय उसकी उम्र 18 वर्ष से कुछ माह कम थी। समूचा देष सोच में डूब गया कि अपराध बालिगों का और सजा नाबालिगों वाली, क्या यह उचित है? ‘जुवेनाइल’ किसे कहा जाना चाहिए? वर्तमान लागू कानून के अनुसार 7 वर्ष से 18 वर्ष की आयु वर्ग किषोर यानी जुवेनाइल के दायरे में आती है। हत्या, चोरी, मार-पीट जैसे अपराध परिस्थितिजन्य आवेष में आ कर घटित हो जाते हैं। बिलकुल गैरइरादतन भी। लेकिन बलात्कार गैरइरादतन कदापि नहीं होता। जो मस्तिष्क बलात्कार करने के बारे में सोच सकता हो, योजना बना सकता हो और जो शरीर इस अपराध को अंजाम दे सकता हो उसे ‘नाबालिग’ के दायरे में कैसे रखा जा सकता है? तो क्या जुवेनाइल की आयु सीमा बदलनी होगी? इस प्रष्न का उत्तर सन् 2014 को देना पड़ेगा।
कोई युवती अपने साथ आपत्तिजनक कृत्य किए जाने का विरोध करती है तो क्या सभी युवतियों को संदेह की दृष्टि से देखा जाना चाहिए? संदेह इस आधार पर कि कोई भी युवती या स्त्री किसी भी ‘सज्जन पुरुष’ को कटघरे में खड़ा कर सकती है। यह भय एवं संदेह मीडिया के समक्ष केन्द्रीय मंत्री फारुख अबदुल्ला ने जताया था। उनके इस बयान का विरोध हुआ और उन्होंने क्षमा मांग ली। यह घटना भी एक ज्वलंत प्रष्न छोड़ गई। जिस देष में, जिस समाज में तेजपाल, आसाराम, नारायण साईं, जस्टिस एके गांगुली जैसे लोग हों वहां किसी भी स्त्री को आगे बढ़ने के लिए कितनी विकट बाधाएं पार करनी पड़ती हैं, यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। समाज का परिदृश्य ऐसा है कि जिसमें आज भी लड़कियां खुल कर बयान नहीं कर पाती हैं कि उसके साथ किसी ने गलत कृत्य किया है। कुछ साहसी लड़कियां एवं स्त्रियां सामने आई और उन्होंने कुत्सित मानसिकता वाले पुरुषों को बेनकाब किया तो इससे भयभीत सिर्फ उन्हीं पुरुषों को होना चाहिए जो स्त्रियों के प्रति घृणित सोच रखते हैं, उन्हें कैसा भय जो वास्तव में सज्जन पुरुष हैं।
चाहे आध्यात्म का क्षेत्र हो या पत्रकारिता का स्त्रियों के प्रति घृणित अपराध में लिप्त दिखाई दिया। इससे भी बढ़ कर खेद जनक घटना यह रही कि एक पूर्व न्यायाधीष पर अपनी लाइंटर्न के साथ अषोभनीय कृत्य करने की घटना सामने आई। जांच कमेटी बैठी। लॉ इंटर्न के यौन शोषण मामले में पूर्व जज एके गांगुली पर लगे आरोपों की जांच कर रही सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय कमेटी तो रिपोर्ट में जस्टिस गांगुली का व्यवहार प्रथम दृष्टया ‘अवांछित’ और ‘यौन प्रकृति’ कहा गया। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, ‘इंटर्न जस्टिस गांगुली के साथ 24 दिसंबर 2012 को नई दिल्ली स्थित ली-मेरिडीयन होटल के कमरे में रात 08 बजे से रात 10.30 बजे तक थी। इस तथ्य को गांगुली ने भी नहीं नकारा है। रिपोर्ट के मुताबिक गांगुली 3 फरवरी 2012 को रिटायर होने के बाद इस होटल में अपनी पुस्तक लेखन के लिए रुके थे और इंटर्न उनकी मदद कर रही थी। कमेटी का मानना है कि इस दौरान उन्होंने इंटर्न के साथ गलत किया।
सन् 2013 में जिस तरह एक के बाद एक घटनाएं सामने आईं और प्रतिष्ठित माने जाने वाले चेहरों से पर्दा उठा वह सन् 2014 के लिए एक प्रष्न छोड़ गया है कि क्या पुरुष वर्ग अपनी मानसिकता की समीक्षा करेगा और अपने आचरण को स्त्रियों के प्रति सकारात्मक बनाएगा?
एक और प्रष्न है जो सन् 2014 को मथेगा। वह है धारा 370 का प्रष्न। कष्मीर को धारा 370 के अंतर्गत विषेषाधिकार दिए गए हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 एक ‘‘अस्थायी प्रबंध’’ के जरिए जम्मू और कश्मीर को एक विशेष स्वायत्ता वाला राज्य का दर्जा देता है। भारतीय संविधान के भाग 21 के तहत, जम्मू और कश्मीर को यह ‘‘अस्थायी, परिवर्ती और विशेष प्रबंध’’ वाले राज्य का दर्जा मिलता है। भारत के सभी राज्यों में लागू होने वाले कानून भी इस राज्य में लागू नहीं होते हैं। जम्मू और कश्मीर के लिए यह प्रबंध शेख अब्दुल्ला ने 1947 में किया था। शेख अब्दुल्ला को राज्य का प्रधानमंत्री महाराज हरि सिंह और जवाहर लाल नेहरू ने नियुक्त किया था।
इस अनुच्छेद के अनुसार रक्षा, विदेश से जुड़े मामले, वित्त और संचार को छोड़कर बाकी सभी कानून को लागू करने के लिए केंद्र सरकार को राज्य से मंजूरी लेनी पड़ती है। इस प्रकार राज्य के सभी नागरिक एक अलग कानून के दायरे के अंदर रहते हैं, जिसमें नागरिकता, संपत्ति खरीदने का अधिकार और अन्य मूलभूत अधिकार शामिल हैं। इसी धारा के कारण देश के दूसरे राज्यों के नागरिक इस राज्य में किसी भी तरीके की संपत्ति नहीं खरीद सकते हैं। अनुच्छेद 370 के कारण ही केंद्र राज्य पर आर्थिक आपातकाल (अनुच्छेद 360) जैसा कोई भी कानून राज्य पर नहीं लागू कर सकता है। केंद्र राज्य पर युद्ध और बाहरी आक्रमण के मामले में ही आपातकाल लगा सकता है। केंद्र सरकार राज्य के अंदर की गड़बडि़यों के कारण इमरजेंसी नहीं लगा सकता है, उसे ऐसा करने से पहले राज्य सरकार से मंजूरी लेना आवष्यक है।
क्या धारा 370 पर बौद्धिक बहस होगी और इसे बदला जा सकेगा? इस प्रष्न का उत्तर भी सन् 2014 को देना होगा।
27 अगस्त को कवाल कस्बे में हुये एक बवाल ने पूरे मुजफ्फरनगर को अपने आगोश में ले लिया था। इस घटना में एक स्कूली लड़की से छेड़छाड़ की घटना ने विकराल रूप ले लिया। मुजफ्फरनगर, शामली, और आस पास के जिलों तक ये आग इतनी तेजी से फैली जिसे सम्भालने के लिये केंद्र सरकार को संज्ञान लेना पड़ा और अर्धसैनिक बल वहां तैनात करने पड़े। इन दंगो में करीब 50 हज़ार लोग विस्थापित होकर 58 रिफ्यूजी कैम्प में पहुंच गए। क्या इक्कीसवीं सदी में आ कर ऐसे दंगे राजनीतिक एवं सामाजिक असफलता नहीं है?
सवालों को क्रम यहीं समाप्त नहीं होता है। सुपर पावर बनने के स्वप्न देखने वाला देष घोटालों से कैसे पार पाएगा? यह भी एक गंभीर प्रष्न है। सन् 2014 को इन सभी सवालों के जवाब ढूंढने ही होंगे।
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India Inside, December 2013-Dr Sharad Singh's Article |