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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, April 26, 2019

बुंदेलखंड के लोकनृत्यों पर अपसंस्कृति का संकट - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह - नवभारत में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh
आज
26.04.2019 को "नवभारत" में मेरा लेख "बुंदेलखंड के लोकनृत्यों पर अपसंस्कृति का संकट" प्रकशित हुआ है। इसे आप भी पढ़िए ... हार्दिक धन्यवाद नवभारत !!!

बुंदेलखंड के लोकनृत्यों पर अपसंस्कृति का संकट
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
आज समूचे विश्व में नृत्य को ‘हीलिंग थेरेपी’ माना जाता है। सन् 1982 को यूनेस्को की अंतर्राष्ट्रीय नृत्य समिति ने 29 अप्रैल की तिथि ‘नृत्य दिवस’ के रूप में घोषित की थी। इस दिन जीन जार्ज नावेरे का जनम हुआ था जो एक महान नर्त्तक थे। अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस को पूरे विश्व में मनाने का उद्देश्य जनसाधारण को उसकी तमाम व्यस्तताओं के बीच नृत्य विधा से जोड़े रख कर उसकी संवेदनाओं को जगाए रखना तथा उसके भीतर मौजूद कलात्मकता को जीवित रखना है। हमारे देश में नृत्यकला देवताओं द्वारा प्रदत्त मानी जाती है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार देवताओं के अनुरोध पर ब्रह्माजी ने नृत्यवेद तैयार किया, तभी से नृत्य की उत्पत्ति संसार में मानी जाती है। इस नृत्यवेद में सामवेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद व ऋग्वेद से कई तत्वों को शामिल किया गया। जब नृत्यवेद की रचना पूरी हो गई। इसके रचनाकार भरत मुनि थे। नृत्य के संबंध में चली आ रही भारतीय एवं वैश्विक परंपाओं पर गर्व करने के साथ ही यह देखना भी जरूरी है कि लोकनृत्यों पर किस तरह अपसंस्कृति की काली छाया पड़ती जा रही है। लोकनृत्यों का मूल सौंदर्य नष्ट होता जा रहा है और थर्ड ग्रेड की फिल्मों के तर्ज़ का फूहड़पन उसकी जगह लेता जा रहा है। 
बुंदेलखंड के लोकनृत्यों पर अपसंस्कृति का संकट - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह - नवभारत में प्रकाशित   An article of Dr (Miss) Sharad Singh in Navbharat newspaper
     बुंदेलखंड में लोकनृत्य के रूप में नृत्य परम्परा आदिकाल से चली आ रही है। यहां विभिन्न प्रकार के लोक नृत्य किये जाते हैं, जिनमें बधाई नृत्य, कानड़ा नृत्य, बरेदी नृत्य, ढिमरयाई नृत्य, नौरता नृत्य, दुलदुल घोड़ी और राई प्रमुख हैं। यहां कुछ प्रमुख नृत्यों की चर्चा की जा रही है। दुर्भाग्यवश इन नृत्यों की मौलिकता पर भी ‘डीजे’ और ‘बारडांस’ प्रभावी होने लगा है। फिर भी अभी बहुत सारी मौलिकता शेष है जिसे बचाए रखना होगा।
राई नृत्य : राई नृत्य बुंदेलखंड का एक लोकप्रिय नृत्य है यह नृत्य उत्सवों जैसे विवाह, पुत्रजन्म आदि के अवसर पर किया जाता है। अशोकनगर जिले के करीला मेले में राई नृत्य का आयोजन सामूहिक रूप से किया जाता है। यहां पर लोग अपनी मन्नत पूर्ण होने पर देवी के मंदिर के समक्ष लगे मेले में राई नृत्य कराते हैं। यह मुख्यरूप से बेड़िया समाज की स्त्रियों अर्थात् बेड़िनों द्वारा किया जाता है।
बधाई नृत्य : बुंदेलखंड क्षेत्र में जन्म, विवाह और त्योहारों के अवसरों पर ‘बधाईं’ लोकप्रिय है। इसमें संगीत वाद्ययंत्र की धुनों पर पुरुष और महिलाएं सभी, ज़ोर-शोर से नृत्य करते हैं। नर्तकों की कोमल और कलाबाज़ हरकतें और उनके रंगीन पोशाक दर्शकों को चकित कर देते है।
दिवारी नृत्य : बुंदेलखंड में दीपावली तब तक अधूरी ही मानी जाती है, जब तक दिवारी नृत्य नहीं होता है। इस नृत्य की एक पूरी विधि है और इसके लिए वस्त्र भी हैं। नृत्य करने वाले कमर में झेला बांधे रहते हैं जो घंटीनुमा होता है जो नाचते समय आवाज करता है। लौंगा झूमर वस्त्र होता है। इस दिवारी के साथ मृदंग, ढोलक, मजीरा, झीका, नगड़िया, कांसे की थाली, रमतूला जैसे वाद्ययंत्रों के बीच लोग दिवारी नृत्य में झूमते हैं।
कानड़ा नृत्य : भगवान कृष्ण या कान्हा से सम्बन्धित कानड़ा नृत्य विवाह के अवसर पर यि जाता है। हल्दी के समय, मेहर का पानी भरते समय, मण्डप छांजते समय, बारात विदा होते समय, बारात की अगुवानी में कनाड़ियाई का चलन आज भी सुदूर ग्रामीण अंचलों में है।
बरेदी नृत्य : इस नृत्य के बारे में मान्यता है कि इसकी भगवान कृष्ण ने की थी। वे ग्वालों के साथ मिलकर इसे किया करते थे। एक बार कंस ने सारे जानवरों को बंधक बना लिया। चरवाहे इससे बहुत दुखी थे। दीपावली के एक दिन बाद श्रीकृष्ण ने जानवरों को कंस से मुक्त करवाया। इसी खुशी में चरवाहों और ग्वालों ने नृत्य किया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। चरवाहे नृत्य कर भगवान से अपने घर और जानवरों की सुरक्षा की प्रार्थना करते हैं।
ढिमरयाई नृत्य : यह लोक नृत्य मूल रूप से ढीमर या केवट जाति के वर्ग के लोगों द्वारा किया जाने बल बुंदेलखंड का एक प्रमुख और प्रसिद्ध लोकनृत्य है। इस नृत्य में नृत्य करने बाले पुरुषों का परिधान धोती, बनड़ी होते हैं और इस नृत्य में प्रमुख वाद्य यंत्र ढोलक और सारंगी होती है।
दुल-दुल घोड़ी नृत्य : यह नृत्य अब बुंदेलखंड के शहरी क्षेत्रों से लुप्त हो चूका है। यह नृत्य बारात के साथ किया जाता है। दूल्हे की घोड़ी के आगेदुलदुल घोड़ी नर्त्तक नृत्य करते चलते हैं। यह वरपक्ष के उमंग और उत्साह की सुंदर प्रस्तृति होती है। इस नृत्य को वाले पुरुष साफा पहन कर लकड़ी के घोड़ों की आकृति को कमर में बांधकर वाद्ययंत्रों की धुन पर नृत्य करते हैं।
पारिवारिक नृत्य : इनमें कलश नृत्य है जो शिशु जन्म के समय बुआ द्वारा लाये गये बधाई के साथ किया जाता है। इस नृत्य की परम्परा आज भी मौजूद है। रास बधावा नृत्य विवाह में भांवर की रस्म पूरी होने के पश्चात कन्या पक्ष की महिलायें द्वारा जब वह डेरों पर जाती हैं तो बहू का टीका पूजन, वर पक्ष के रिश्तेदारों द्वारा किया जाता है। बालिकायें व महिलायें बन्नी गाते हुये नृत्य करती हैं। बहू उतराई का नृत्य विवाहोपरान्त वर पक्ष के निवास में होता है। शगुन चिरैया गीत गाये जाते हैं सास देवरानी, जिठानी, बुआ आदि उल्लास में नाचती हैं। बालिकाओं द्वारा नौरता नृत्य भी किया जाता है।
जब कोई नृत्य अपने मूल स्वरूप को खो देता है और आधुनिकता में ढलने लगता है तो न केवल नृत्य एवं लोकनर्त्तकों का नुकसान होता है बल्कि उनसे जुड़ी वादन, गायन एवं साज-सज्जा की कला भी नष्ट होने लगती है। बुंदेलखंड के ‘कला गुरु’ कहे जाने वाले स्व. विष्णु पाठक का कहना था कि ‘‘समय के साथ हर चीज बदल जाती है, लेकिन हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम अपनी लोकसंस्कृति से अपने बच्चों को परिचित करवाएं और अपनी विरासत को सहेज के रखें।’’ उनकी इस नसीहत पर अमल करती हुई बुंदेलखंड में कई कला संस्थाएं ऐसी हैं जो इन नृत्यों पर कार्यशाला करके सभी जातिवर्ग के लोगों को ये नृत्य सिखा कर इन्हें बचाए रखने का हरसंभव प्रयास कर रही हैं। इन नृत्यों को अपसंस्कृति से बचाना भी इन संस्थाओं एवं कलाप्रेमियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
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( नवभारत, 26.04.2019 )
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मतदाता जागरूकता पर आयोजित संवाद में डॉ (सुश्री) शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh at Navdunia Matdada Jagrukta Samvad, 25.04.2019
25.04.2019 को नवदुनिया समाचार पत्र द्वारा आयोजित संवाद कार्यक्रम में श्री मनोहर दुबे आयुक्त सागर संभाग की अध्यक्षता में नगर के प्रबुद्ध नागरिकों ने मतदान प्रतिशत बढ़ाने के संबंध में व्यक्तिगत रूप से किए जा रहे प्रयासों के बारे में चर्चा की जिसमें मैंने भी अपने प्रयासों का विवरण देते हुए अपने विचार साझा किए। तस्वीरें तथा समाचार उसी अवसर के....  
 हार्दिक धन्यवाद नवदुनिया !!!
Dr (Miss) Sharad Singh at Navdunia Matdada Jagrukta Samvad, 25.04.2019

Dr (Miss) Sharad Singh at Navdunia Matdada Jagrukta Samvad, 25.04.2019

Dr (Miss) Sharad Singh at Navdunia Matdada Jagrukta Samvad, 25.04.2019

Dr (Miss) Sharad Singh at Navdunia Matdada Jagrukta Samvad, 25.04.2019

Dr (Miss) Sharad Singh at Navdunia Matdada Jagrukta Samvad, 25.04.2019

Dr (Miss) Sharad Singh at Navdunia Matdada Jagrukta Samvad, 25.04.2019

Dr (Miss) Sharad Singh at Navdunia Matdada Jagrukta Samvad, 25.04.2019

Dr (Miss) Sharad Singh at Navdunia Matdada Jagrukta Samvad, 25.04.2019

Dr (Miss) Sharad Singh at Navdunia Matdada Jagrukta Samvad, 25.04.2019

Dr (Miss) Sharad Singh at Navdunia Matdada Jagrukta Samvad, 25.04.2019

Dr (Miss) Sharad Singh at Navdunia Matdada Jagrukta Samvad, 25.04.2019

Wednesday, April 24, 2019

चर्चा प्लस ... और कितनी सीमाएं लांघी जाएंगी? - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस ...                 
और कितनी सीमाएं लांघी जाएंगी?   
           - डॉ. शरद सिंह                                                                 दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में सबसे बड़ा आमचुनाव। राजनीतिक चेहरों में उलटफेर। दल-बदल के चलते भगदड़ का माहौल। अपशब्दों की बाढ़। जातीय और धार्मिक दबावों का बोलबाला। उस पर पड़ोसी देश श्रीलंका में सीरियल बम-विस्फोट। भारतीय उपमहाद्वीप जो दुनिया के लिए शांति की एक मिसाल रहा है, भारत जो दुनिया के सामने संस्कृति और सभ्यता का उम्दा उदाहरण रहा है, आज किस ओर जा रहा है? अपशब्दों और सम्मान की सीमाओं पर सीमाएं लांघी जा रही हैं। भला, अब और कितनी सीमाएं लांघी जाएंगी?         
चर्चा प्लस, और कितनी सीमाएं लांघी जाएंगी - डॉ शरद सिंह
        श्रीराम, श्रीकृष्ण की धरती होने के साथ ही यह भारत भूमि भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, गुरुनानक देव की भी भूमि है। यहां ईद और दीवाली आपसी सौहार्द्य के साथ मनाई जाती है। ईसा मसीह के क्रूस पर चढ़ाए जाने वाले दिन को याद कर सभी की आंखों में समान रूप से आंसू आते हैं और ईसा के पुनर्जीवित होने के दिन सभी इस तरह खुश होते हैं जैसे ईसा मसीह मात्र ईसाइयों के नहीं समस्त मानवता के मसीहा हैं। हमारे देश में जाति और धर्म की जो दीवारें समय-समय पर खड़ी करने की कोशिश की गईं वे भी कच्ची साबित हुईं। आज भी अजमेर शरीफ़ की दरगाह हमारे लिए उतनी ही पवित्र है जितनी कि गंगा की धाराएं। किन्तु इस बार के लोकसभा चुनाव के दौरान जो अशोभनीय जुमले उछाले गए हैं उन्होंने विश्वपटल पर हमारा तमाशा बना दिया है।

इस लोकसभा चुनाव में महिला उम्मींदवारों की संख्या यूं भी कम है। जो हैं भी वे किसी न किसी स्तर पर ओछेपन की शिकार हो रही हैं। यह तो सभी मानते हैं कि राजनीतिक चुनावों में वे राजनीतिक मुद्दे ही होने चाहिए जो आमजनता की भलाई से सरोकार रखते हों, किन्तु जब समय आता है उस पर अमल करने का तो परिदृश्य बदल जाता है। धर्म का टैग लगाए बिना गोया काम ही नहीं चल पा रहा हो। हाल ही में अभिनेत्री उर्मिला मांतोडकर जो स्वयं इस चुनाव में एक उम्मींदवार हैं, उनका एक साक्षात्कार टीवी पर देखा। उर्मिला मांतोडकर ने एक मुस्लिम व्यवसायी से विवाह किया है। वे बालिग हें और अपना जीवन साथी चुनने का उन्हें पूरा अधिकार है। लेकिन जैसा कि उन्होंने बताया कि जब उन्होंने अपनी मां के जन्मदिन पर उनसे केक कटवाती हुई तस्वीर ट्विटर पर शेयर की तो उस पोस्ट को विचित्र ढंग से ट्रोल किया गया। उनसे पूछा गया कि -‘क्या उनकी मां भी मुस्लिम हैं?’ ‘क्या उर्मिला ने अपना धर्म बदल लिया है?’ आदि-आदि। प्रश्न यह उठता है कि क्षेत्र के विकास के लिए वह उम्मीदवार जिम्मेदार रहेगा या फिर उसकी मां अथवा उसका धर्म? यदि उम्मीदवार ने विवाह के बाद धर्म बदल लिया हो तो क्या उसकी नीयत बदल जाएगी? या फिर उसने धर्म नहीं बदला है तो नीयत शर्तिया उम्दा रहेगी? कम से कम यह तो लोकतांत्रिक सोच नहीं हो सकती है।

एक और उदाहरण सामने आया। संयोग से वह भी महिला हैं और फिल्मी दुनिया से हैं। नाम है जयाप्रदा। पहले भी सांसद रह चुकी हैं। पहले वे जिस दल के साथ थीं, उनसे अलग हो गईं। वैचारिक मतभेद स्वाभाविक हैं। किन्तु चुनावी मंच से उन पर जो छींटाकशी की गई वह अशोभनीय ही कही जाएगी। विरोधी दल में से पिता ने उन्हें ‘‘आम्रपाली’’ कहा। उल्लेखनीय है कि आम्रपाली बौद्ध काल में वैशाली की नगरवधू थी। फिर उस पिता के पुत्र ने ठीक वैसी ही चुनावी सभा में मंच से उन्हें ‘‘अनारकली’’ कहा जो प्रचलित कथा साहित्य के अनुसार मुगलकालीन दरबार में नर्त्तकी थी। अर्थात् कल तक जो पिता-पुत्र जयाप्रदा को अपनी पार्टी में पा कर ‘बहन’ और ‘बुआ’ का संबोधन देते थे वे आज जया द्वारा पार्टी छोड़ देने पर उन्हें अप्रत्यक्षतौर पर ‘नाचनेवाली’ कह कर अपमानित कर रहे हैं।

रहा अपमान का सवाल तो शहीद हेमंत करकरे भी इस लपेटे में आ चुके हैं। मामला न्यायालय से अभी पूरी तरह से निपटा नहीं है अतः उस पर टिप्पणी करना उचित नहीं है कि मालेगांव बमकांड में क्या हुआ था? कौन दोषी था या कौन नहीं? लेकिन शहीद को ले कर संयम भी जरूरी था। जो भारतीय लोकतंत्र जनता के लिए, जनता के द्वारा और जनता का है, उसमें जनभावनाओं का ध्यान रखा जाना भी जरूरी है। विशेष राजनीतिक दल के घोड़े पर सवार हो कर चुनाव जीते जा सकते हैं किन्तु आमजनता के दिल नहीं। यह तथ्य सभी को समझना जरूरी है चाहे किसी भी राजनीति दल अथवा राजीतिक समुदाय का हो।         
इस समय देश में चुनाव हो रहे हैं और टीवी से लेकर सोशल मीडिया तक लगातार बहसें चल रही हैं। विचार की जगह कांव-कांव सामने आती है। एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने की ललक में दिवंगतों को भी नहीं बख़्शा जा रहा है। स्वर्गीय दादा-परदादा, दादी-परदादी की नीयत और धर्म को बेवजह बहस का मुद्दा बनया गया है। जिसका आमजनता के वर्तमान हालात यानी गरीबी, बेरोजगारी, मंहगाई, शिक्षा साधनों की कमी आदि से कोई लेना-देना ही नहीं है। भारत के सत्तर साल के लोकतांत्रिक इतिहास में आज जितनी असंवेदनशीलता, अभ्रदता और असंयम बढ़ा है। वह पहले कभी नहीं रहा। सोशल मीडिया और ट्विटर जैसे इंटरनेट एकाउंट्स में नकली पहचानधारियों ने माहौल बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। नकली नाम, नकली प्रोफाईल तस्वीरों के सहारे आग उगलने का जो काम किया जा रहा है वह किसी बमविस्फोट से कम घातक नहीं है। महान फ्रांसीसी विचारक रुसो ने सही कहा था कि -‘‘यदि शरीर विकालांग भी हो जाए तो जीने की इच्छा बलवती रहती है और एक विकलांग दुनिया जीत सकता है किन्तु यदि विचार दूषित हो कर कमजोर पड़ जाएं तो हाथ-पांव सही-सलामत होने पर भी वह अपनी लड़ाई पल भर में हार सकता है।’’

यहां बाबू जगजीवनराम का उल्लेख किया जाना समीचीन होगा। वर्ष 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में गठित प्रथम लोकसभा में बाबू जगजीवनराम ने श्रम मंत्री के रूप में देश की सेवा की और उसके बाद अगले तीन दशकों तक कांग्रेस मंत्रिमंडल में बने रहे। वर्ष 1952 में पंडित जवाहरलाल नेहरु ने सासाराम से निर्वाचित बाबू जगजीवनराम को संचार मंत्री बनाया। वर्ष 1956-62 तक रेल मंत्रालय की ज़िम्मेदारी दी गई। बाबू जगजीवनराम ने दिसंबर 1885 में बनी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को अपनी मां के समान बताया है। वर्ष 1977 तक वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रहे। फिर, 25 जून 1975 को श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा देश भर में आपातकाल की घोषणा कर दी गयी। इस आपातकाल को संविधान के मौलिक अधिकारों का हनन मानते हुए बाबू जगजीवनराम ने अपने पद का त्यागपत्र दे दिया तथा कांग्रेस पार्टी त्याग दी। इसके बाद उन्होंने उसी दिन ’कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’  (सी.एफ़.डी.) नामक एक नयी पार्टी गठित की। वर्ष 1977 के आम चुनावों में बाबू जगजीवनराम की विजय हुई तथा वें रक्षा मंत्री बने। 25 मार्च 1977 को कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी, जनता पार्टी में सम्मिलित कर ली गयी जिसके बाद जनवरी 1979 में बाबू जगजीवनराम भारत वर्ष के उपप्रधानमंत्री के बनाए गए। श्रीमती इंदिरा गांधी के विरोध में जयप्रकाश नारायण द्वारा दिया गया नारा-‘इंदिरा हटाओ, देश बचाओ!’ बढ़-चढ़ कर लगवाया। किन्तु जब सन् 1984 में श्रीमती इंदिरा गांधी की जघन्य हत्या की गई तो इस समाचार को सुन कर वे व्यथित हो कर बोल उठे थे-‘‘अब राजनीति में मैं किसका विरोध करूंगा?’’ बाबू जगजीवनराम ने इंदिरा गांधी के जीवनकाल में न तो उनके लिए कोई अभद्र टिप्पणी की और इंदिरा गांधी ने भी बाबू जगजीवनराम के लिए कभी कोई अपशब्द नहीं कहे। परस्पर एक-दूसरे पर लांछन लगाते समय भी मर्यादा की एक सीमा स्वतः ही तय रखी गई।     

इस लोकसभा चुनाव के दौरान भाषा की आक्रामकता ने अपनी सारी हदें तोड़ दी हैं। जबकि लोकतंत्र में आक्रामकता का कोई स्थान नहीं होता है। फिर भी आक्रामक वक्तव्यों वाले नेताओं को स्वीकार्यता मिल रही है और यही उनकी श्रेष्ठता बताई जा रही है। क्या हम एक नया आक्रामक लोकतंत्र रच रहे हैं? जिसने समता और समानता को अपने पैरों तले दबा रखा है। इस दौरान समाज की नैतिकताएं कमजोर हुई हैं। इन्हीं कमजोरियों को अपनी शक्ति बनाकर सत्ता के स्वप्न-महल खड़े किए जा रहे हैं। जबकि भाषाई हिंसा से किसी का भला नहीं होता है। भाषाई हिंसा सौहार्द्य को सुखा कर लोकतंत्र को निस्तेज बना देती है। ध्यान से देखें तो हमारे लोकतांत्रिक मूल्य तेजी से नीचे गिरा रहे हैं। जिन्हें समय रहते बचाए जाने की जरूरत है।
जरूरत तो इस बात की भी है कि आतंकवाद के विरोध को किसी एक राजनीतिक दल की थाती की भांति पेश करना छोड़ कर सम्पूर्ण भारतवासियों के द्वारा प्रकट किया जाने वाले विरोध के रूप में सामने रखें। आतंकवाद के मुद्दे पर राजनीतिक दलों द्वारा परस्पर एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने से वैश्विक पटल पर हमारी विचारधारा और हमारे आचरण की हंसी ही उड़ेगी। कसाब और उसके साथियों का मुबई तक घुस आना और पुलवामा में सैनिकों की गाड़ियों में किए जाने वाले विस्फोटों की योजना का समय रहते पता न चल पाना हमारी सुरक्षा खामियों की ओर संकेत करता है। अतः ऐसे मसलों को चुनावी मैदान में घसीटने से किसी का भला नहीं होने वाला है। आम जनता सिर्फ़ उसी की ओर आकर्षित होती है जो उसकी रोजी-रोटी और उसके बच्चों के सुखद भविष्य की योजनाएं सामने रखता है। अतः चुनावी मैदान में उतरे सभी राजनीतिक दलों को सुप्रीमकोर्ट की फटकार की सीमा तक पहुंचने से बेहतर है कि वे अपने संयम को सहेज कर चलें।   
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(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 24.04.2018)
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Monday, April 22, 2019

पृथ्वी है तो हम हैं ! .. पृथ्वी दिवस मनाएं, पृथ्वी को बचाएं ! - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

Happy Earth Day - Dr (Miss) Sharad Singh
पृथ्वी है तो हम हैं ! 
पृथ्वी दिवस मनाएं, पृथ्वी को बचाएं ! - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

Dear Friends, 
🌏Earth is our home, by saving water, forest and climate, we have to save the Earth because we will not have any other place.🌏
Happy Earth Day 
Earth Day

Thursday, April 18, 2019

बुंदेलखंड के काव्य में समाज, राजनीति और चुनाव - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह - नवभारत में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh
नवभारत में मेरा लेख "बुंदेलखंड के काव्य में समाज, राजनीति और चुनाव" प्रकशित हुआ है। इसे आप भी पढ़िए ....  
हार्दिक धन्यवाद  "नवभारत " !!!


बुंदेलखंड एक ऐसा क्षेत्र है जहां देश की स्वतंत्रता के दशकों बाद भी विकास की गति कछुआचाल से चल रही है। सड़क, जल और बिजली की दृष्टि से ही नहीं अपितु शिक्षा, स्वास्थ्य और औद्योगिक दृष्टि से भी यह क्षेत्र अभी भी आस लगाए बैठा है। अब तक जितना विकास हुआ है वह भी जनसंख्या के मुकाबले सीमित ही कहा जाएगा। विसंगतियों का नमूना तो यह है कि जहां युवा है वहां शिक्षा के केन्द्र कम हैं, जहां शिक्षा के केन्द्र हें वहां अध्यापकों की कमी है। जहां जल स्रोत नहीं हैं वहां तो सूखे का बोलबाला है ही और जहां जलस्रोत हैं वहां उचित प्रबंधन की कमी के कारण गर्मियां आते-आते सूखे का संकट गहराने लगता है। शिक्षा के अभाव के कारण अत्याधुनिक युग में भी यहां के लोग अंधविश्वास, कुरीति, परम्परागत बुराइयों के के साथ जी रहे हैं। सदियों से चली आ रही अवहेलना ने बुंदेली जनता को मानो अभाव को अपना भाग्य मानकर परिस्थितियों से समझौता करना सिखा दिया है। अभाव का यह दौर कोई आज ही नहीं उपजा है बल्कि महाकवि जगनिक काल से चला आ रहा है। 

Dr (Miss) Sharad Singh's article on Politics, Voting and Social condition in Bundelkhand published in Navbharat , बुंदेलखंड के काव्य में समाज, राजनीति और चुनाव - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह - नवभारत में प्रकाशित
 पृथ्वीराज चौहान एवं महोबा के राजा परमाद्रिदेव के युद्ध में बुन्देलखण्ड के किसानों की खड़ी फसल बर्बाद होती रही फिर भी युद्ध जारी रहे। जिसके बारे में महाकवि जगनिक ने गोया असंतुष्ट हो कर लिखा है कि -
ऐसो समय परौ महुबे पै, विपदा कछू कहीं न जाये।
रोबे रैयत चन्देलों की, हा, हम कौन देश भग जाये।।
कवि ईसुरी के समय भी सिथतियां बदली नहीं थीं। युद्ध भले ही कम हो गए थे परन्तु प्राकृतिक विपदा से छुटकारा नहीं मिला था क्योंकि राजकीय तौर पर जल प्रबंधन और कृषि प्रबंधन में पहले जैसी तत्परता नहीं रह गई थी-
पर गये एई साल में ओरे कऊं भौत कऊं थोरे,
कैसे जिये गरीब गुसइयां छिके अन्न के दौरे।
प्रकृतिक विपदाएं भी रूप बदल-बदल कर आतीं। कभी फसल को ‘गिरुआ रोग’ लग जाता तो कभी ओले से पकी पकाई फसल नष्ट हो जाती। ईसुरी ने अपनी फाग कविताओं में जहां प्रेम को रीतिकालीन शैली में वर्णित किया है वहीं उस अकाल की पीड़ा का भी वर्णन किया है जिसने बुन्देलखण्ड के जनजीवन को विकट रूप में प्रभावित किया था।
आसौं दे गओ काल करौटा, करौ-खाव सब खौंटा।
गोऊं पिसी खों गिरुआ लग गऔ, मऊअन लग गऔ लौंका।।
आज भी बुंदेली कृषक अज्ञान और प्राकृतिक विपदा के बीच झूलता रहता है। रही-सही कसर पूरी कर देता है जलप्रबंधन का अभाव। इस दुर्दशा का कवि संतोष सिंह बुंदेला ने मार्मिक उललेख किया है-
स्यारी में सूखा पर गऔ तो, ऊ में कछू न पाओ।
बीज साव को धरौ चुकावे, दानों लैन आओ।
बुन्देलखण्ड का विकास जितना और जिस तेजी से होना चाहिए था, भ्रष्टाचार के कारण हो नहीं सका। इस दशा पर कटाक्ष करती हुई कवि रामेश्वर प्रसाद गुप्ता की ये पंक्तियां देखें -
भूखी सब जनता मरै, नेता गोल मटोल।
चींथ चींथ के देश खों, करतई पोलम पोल।
जब समाज पर राजनीति का दबाव हो और राजनीति में स्वार्थ का बोलबाला हो तो जो दृश्य उपस्थित होता है वह कवयित्री डॉ. वर्षा सिंह  के इन दोहों में देखा जा सकता है-
कोनउ को परवा नईं, सूखी नदिया- ताल।
हो रयी कैसी दुरदसा, फैलो स्वारथ जाल।।
अपनो घर भरबे मगन, जो सक्छम कहलायं।
औरन पे लातें धरें, अपनो पेट भरायं।।
बुंदेली माटी कहे- “जो का कर रये, लाल !
उल्टे- सूधे काज कर, काय करत बेहाल ।।
वर्षा" का को से कहें, सबई इते मक्कार।
पेड़ काट, धूरा उड़ा, मिटा रये संसार ।।

राजनीति में आती जा रही गिरावट को देखते हुए कवि महेश कटारे की ये पंक्तियां सहसा याद आने लगती हैं-
अपनी तौ पांचई घी में हैं
खूब मचै कुहराम हमें का
मौका मिलौ काय खौं छोडौ
मरै आदमी आम हमें का

इन दिनों जब लोकसभा चुनाव का समय आ गया है और मतदान की तिथि करीब आती जा रही है तो ऐसे में यह बुंदेली लोकगीत बहुत मायने रखता है जिसमें उम्मींदावारों पर कटाक्ष भी है और मतदाताओं को झकझोर कर जगाने का प्रयास भी है-
वोट मांगबे आये दुआारे, फेर ने ऐहें
कभऊं ने मिलहें सांझ-सकारे, फेर ने ऐहें
जिनने मतलब राखो नईयां आगूं-पीछूं
ने चुनियो झिन ऐसे कारे, फेर ने ऐहें
बुंदेलखंड की जनता अगर लोकतंत्र की शक्ति को याद रखे और इन कविताओं में कही गई सच्चाई को ध्यान में रखे तो मतदान के द्वारा सही उम्मींदवार चुन कर अपने क्षेत्र के लिए तीव्र विकास का अधिकार पा सकती है।
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( नवभारत, 18.04.2019 )
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Wednesday, April 17, 2019

चर्चा प्लस ... महावीर जयंती (17 अप्रैल) पर विशेष : सदा प्रासंगिक हैं भगवान महावीर के विचार - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस ...
महावीर जयंती (17 अप्रैल) पर विशेष :                
सदा प्रासंगिक हैं भगवान महावीर के विचार     

 - डॉ. शरद सिंह                                                 .ईसापूर्व छठीं शताब्दी विश्व के इतिहास में बौद्धिक एवं आध्यात्मिक उथल-पुथल का समय माना जाता है। भारत के इतिहास में भी यह बौद्धिक एवं दार्शनिक क्रांति का युग था। इस काल में हमारे देश में भी भगवान महावीर जैसे तत्वज्ञाता हुए। ईश्वर के नाम पर होने वाले अनाचार पर रोक लगाते हुए भगवान महावीर ने आत्म संयम, नैतिकता और सद्कर्म को प्रमुखता दी। भगवान महावीर का कहना था कि ‘मनुष्य की आत्मा में जो कुछ महान है और जो शक्ति और नैतिकता है, वही ईश्वर है।’  
Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh in Sagar Dinkar Daily News Paper चर्चा प्लस ... सदा प्रासंगिक हैं भगवान महावीर के विचार- डॉ. शरद सिंह
                                                    
भगवान महावीर ने कारण और परिणाम दोनों के परस्पर एकात्मता को प्रतिपादित किया। यही एकात्मता है जिसके कारण मूल द्वारा खाद-पानी मिलने पर पौधे का अग्र भाग फूलता-फलता है। इसी प्रकार मूल प्रवृत्तियों एवं मूल कर्म में ‘सद्’ का समावेश जीवन को श्रेष्ठ बनाता है। जैनाचार में कर्म संबंधी पंच-व्रतों के पालन के लिए दो स्तर निर्धारित किए गए हैं-साधु धर्म एवं श्रावक धर्म। साधु धर्म निवृत्ति मूलक है। यह हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह के सम्पूर्ण त्याग से आरम्भ होता है। श्रावक धर्म गृहस्थ धर्म है। इसमें पांचों पापों का अधिक से अधिक त्याग करने का आग्रह किया जाता है। वस्तुतः गृहस्थ धर्म त्याग और भोग के बीच संतुलित जीवन जीने की पद्धति है। जिसको वर्तमान समय में और भी अधिक अपनाए जाने की आवश्यकता है।
किसी भी धर्म के मूल सिद्धांतों को जानने, समझने और उसके व्यावहारिक रूप को परखने का सबसे अच्छा माध्यम होती हैं, उस धर्म के आधारभूत विचारों एवं सिद्धांतों की जीवन में उपादेयता को दर्शाने वाली कथाएं। व्यक्ति अपनी बाल्यावस्था में जीवन संबंधी जो भी नैतिक शिक्षा ग्रहण करता है उसमें अधिकांश कथाओं के माध्यम से दी जाती हैं। अपने शेष जीवन में भी व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के जीवन-अनुभवों की कथाओं से शिक्षा लेता रहता है। अतः जीवन में कथाओं की उपयोगिता निर्विवाद है। वाचिक परम्परा में विशेष रूप से नैतिक तथा जीवनोपयोगी सिद्धांतों की शिक्षा कथाओं द्वारा जितने सहज ढंग से कही और सुनी जाती रही है। इसीलिए मैंने ‘‘श्रेष्ठ जैन कथाएं’’ पुस्तक लिखी जो सन् 2008 में सामयिक प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित हुई जिससे मैं जैन धर्म के सिद्धांतों को सरल एवं रोचक स्वरूप में सर्वधर्म पाठकों तक पहुंचा सकूं।
यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे अपने अब तक के जीवन में वर्तमानयुग के श्रेष्ठ जैनाचार्यों - श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्य तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ, दिगम्बर सम्प्रदाय के आचार्य विद्यासागर, मुनि क्षमा सागर, आचार्य देवनन्दी से धर्म-चर्चा करने तथा तत्संबंधी अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। मैंने जैन धर्म के सिद्धांतों को दोनों पंथों के ग्रंथों एवं आचार्यों के उपदेशों द्वारा जितना भी जाना और समझा है उसके  आधार पर मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों में कोई सैद्धांतिक अन्तर नहीं है मात्रा व्यावहारिक रूप में ही तनिक भिन्नता है। प्रस्तुत पुस्तक में मैंने जिन कथानकों को प्रस्तुत किया है (जहां तक मुझे ज्ञान है) वे मूलतः जैन सिद्धांतों पर आधारित हैं, किसी सम्प्रदाय विशेष पर नहीं। ईसापूर्व छठीं शताब्दी विश्व के इतिहास में बौद्धिक एवं आध्यात्मिक उथल-पुथल का समय माना जाता है। भारत के इतिहास में भी यह बौद्धिक एवं दार्शनिक क्रांति का युग था। इस काल में हमारे देश में भी भगवान महावीर जैसे तत्वज्ञाता हुए। ईश्वर के नाम पर होने वाले अनाचार पर रोक लगाते हुए भगवान महावीर ने आत्म संयम, नैतिकता और सद्कर्म को प्रमुखता दी। भगवान महावीर का कहना था कि ‘मनुष्य की आत्मा में जो कुछ महान है और जो शक्ति और नैतिकता है, वही ईश्वर है।’
व्यक्तिगत रूप से मुझे जैन धर्म के कर्म सिद्धांत ने सबसे अधिक प्रभावित किया है। धार्मिक ग्रंथों में विद्वानों द्वारा इस सिद्धांत के  अंतर्गत कर्म की विस्तृत व्याख्या की गई है जिसका सार यही है कि मनुष्य अपने जीवन में जो भी दुख अथवा सुख प्राप्त करता है, वह उसके पूर्व में किए गए कर्मों का परिणाम होता है। जिसे हम आम बोलचाल की कहावत में भी कहते हैं कि ‘जो जैसा बोएगा-वैसा काटेगा’। इस पुस्तक में जो कथाएं हैं उनमें इसी तथ्य को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है कि मनुष्य के अपने कर्म उसे दुख-सुख का परिणाम देते हैं। सामान्य व्यक्ति इसे ‘भाग्य’ अथवा ‘दुर्भाग्य’ की संज्ञा दे कर संतोष कर लेता है अथवा कुछ व्यक्ति ‘हमारे साथ ही ऐसा क्यों होता है?’ जैसे प्रश्न के भंवर में डूबते-उतराते रहते हैं। जबकि निमित्त-ज्ञानी व्यक्ति अपने निमित्त-ज्ञान से यह जान लेते हैं कि यह किस ‘पाप’ का फल है अथवा किस ‘पुण्य’ का फल है।
जैन सिद्धांतों में कर्म को प्रधान माना गया है। जिसके अनुसार पूर्व भव (जन्म) के कर्म ही इस बात का निर्णय करते हैं कि किस वंश में हमारा जन्म होगा और कैसा हमारा शरीर होगा। कर्म अनेक प्रकार के होते हैं और उनके फल भी विभिन्न प्रकार के होते हैं। कर्मफल के प्रभाव से ही धनी अथवा निर्धन के घर जन्म होता है। जो इस तथ्य को भली-भांति समझ लेता है वह इस जन्म में अच्छे कर्म कर के अपना भविष्य संवार लेता है। क्रोध, माया, मोह, लोभ आदि कषायों के कारण ही आत्मा बंधनों में पड़ती है। मोक्ष के द्वारा ही इन बंधनों से मुक्ति मिलती है अन्यथा बारम्बार जनम ले कर अपने कर्मों के परिणाम भुगतने होते हैं। जैन दर्शन में कर्म को पुद्गल परमाणुओं का पिण्ड माना गया है। जिसके अनुसार यह लोक तेईस प्रकार की पुद्गल वर्गणाओं से परिपूर्ण है। प्रत्येक जीव अपने मन, वचन और काय की प्रवृत्तियों के अनुरूप इन्हें ग्रहण करता है। यह भी तक संभव होता है जब वह कर्म करता है। इस प्रकार कर्म से प्रवृत्ति और प्रवृत्ति से कर्म की परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है। कर्म भी दो प्रकार की श्रेणियों के होते हैं-द्रव्य कर्म और भाव कर्म। इनमें राग-द्वेष आदि भाव-कर्म के रूप हैं जो कर्म और उसके परिणाम को प्रभावित करते हैं। जैन कर्म सिद्धांत के अनुसार कर्म की आठ मूल प्रवृत्तियां बताई गई हैं जो मनुष्य के कर्म और उसके परिणामों को अच्छे अथवा बुरे की श्रेणी में निर्धारित करती हैं- ‘ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र एवं अन्तराय।’ (गोम्मटसार कर्मकाण्ड-1) इनमें ज्ञानावरण, दर्शनावरण,मोहनीय और अन्तराय से आत्मा के गुणों का घात होता है अतः इन्हें घातिया माना गया है। जबकि शेष चार मोहनीय, आयु, नाम तथा गोत्रा से आत्मा को घात नहीं होता है अतः इन्हें अघातिया माने गए हैं। सभी मूल कर्म अपने-अपने स्वाभाव के अनुसार ही फल देते हैं। उनमें परस्पर कोई परिवर्तन नहीं होता है। जैसे ज्ञानावरणी कर्म का फल ज्ञान को कुण्ठित व अवरुद्ध करने का ही मिलेगा किन्तु अन्य शक्तियों के फल को प्रभावित करने का कार्य वह नहीं करता है।
जैन परम्परा में आचार और विचार को समान स्थान दिया गया है। अहिंसा मूलक आचार और अनेकान्त मूलक विचार जैन परम्परा की प्रमुख विशेषता है। अहिंसा जैनाचार का प्राण तत्व है। इसे परब्रह्म और परमधर्म कहा गया है। जैन धर्म में अहिंसा का जितना सूक्ष्म विवेचन और आचरण जैन-परम्परा में मिलता है, उतना किसी अन्य परम्परा में नहीं। प्रत्येक आत्मा चाहे वह सूक्ष्म हो या स्थूल, स्थावर हो या त्रास, तात्वि दृष्टि से समान है। सभी जीवों में एक-सी आत्मा का वास होता है। दुखः,सुख का अनुभव प्रत्येक प्राणी को होता है। जैनाचार में अहिंसा का पालन करने के लिए अहिंसा सहित पंचसूत्रीय आचार निर्धारित किए गए हैं-सत्य, अहिंसा, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह। तद्नुसार हिंसा नहीं करनी चाहिए, झूठ नहीं बोलना चाहिए, चोरी नहीं करनी चाहिए, कुशील नहीं करना चाहिए तथा परिग्रह का संचय नहीं करना चाहिए। जैनाचार के अनुसार मनुष्य के आचरण का परिष्कार निषेधात्मक नियमों से ही किया जा सकता है। पंचसूत्रीय आचार में निषेध किए गए कार्य वस्तुतः सामाजिक-पाप माने जा सकते हैं। जो व्यक्ति इनका परित्याग करता है वह समाज का हितैषी एवं सभ्य माना जाता है।
वर्तमान में आतंकवाद, जातिवाद, लिंगभेद, रंगभेद आदि जो कलुष मनुष्यों के बीच व्याप्त है वह संयम और सद्भाव से ही दूर हो सकते हैं। आज के युग में, मनुष्य को सबसे अधिक आवश्यकता है, महावीरजी के अपरिग्रह के सिद्वान्त को समझने की। संग्रह अशांति का अग्रदूत है, विनाश, विषमता तथा अनेक समस्याओं को जन्म देता है। महावीरजी का अपरिगृह का विचार ही, इसकी संजीवनी है जो अमीर गरीब की दूरी कम कर सामाजिक समता स्थापित कर सकती है। भगवान महावीर के उपदेशों में, यदि अचैर्य के सिद्वान्त का अनुकरण किया जाय तो, आज विश्व में व्याप्त भ्रष्ट्राचार व कालेधन पर अंकुश लगाया जा सकता है। भगवान महावीर ने स्त्री वर्ग के लिए भी उदारता के विचार व्यक्त किए जिसमें उन्होंने स्त्रियों को पूर्णतः स्वतंत्र और स्वावलम्बी बताया। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में स्त्रियों के समान अधिकार एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता हेतु भगवान महावीर के विचार आज भी सार्थक हैं। भगवान महावीर ने तन-मन की शुद्धि तथा आत्म बल बढ़ाने हेतु, साधना एवं तपश्चर्या पर बल दिया। आज के भौतिकवादी युग में जहां खानपान की अशुद्धता एवं अनियमितता है, और जीवन तनावयुक्त है, ऐसे में भगवान महावीर द्वारा बताई तप, त्याग एवं साधनामय जीवन-शैली ही समस्याओं का समाधान है।
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(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 10.04.2018)
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डॉ (सुश्री) शरद सिंह "श्रीमती सुधा सावित्री तिवारी स्मृति सम्मान - 2019" से सम्मानित

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019
14.04.2019 को "श्रीमती सुधा सावित्री तिवारी स्मृति सांस्कृतिक पर्व - 2019" के अंतर्गत आयोजित सम्मान समारोह में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह को साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए "श्रीमती सुधा सावित्री तिवारी स्मृति लेखिका सम्मान - 2019" एवं  डॉ. वर्षा सिंह को "श्रीमती सुधा सावित्री तिवारी स्मृति कवयित्री सम्मान-2019" से सम्मानित किया गया।
Dr (Miss) Sharad Singh & Dr Varsha Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019
इस अवसर पर विधायक सागर नगर माननीय शैलेन्द्र जैन, समाजसेवी श्रीमती अनु शैलेन्द्र जैन, पूर्व विधायक देवरी श्री सुनील जैन, श्रीमती मधु अभय दरे, डॉ. अलका जैन, डॉ. अशोक कुमार तिवारी, डॉ. मुन्ना शुक्ला, डॉ. कविता शुक्ला,भाई उमाकांत मिश्र श्यामलम् सहित नगर के अनेक विद्वतजन उपस्थित थे।
Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019
 
Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

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Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr Varsha Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr Varsha Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019, Dainik Bhaskar, 15.04.2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019, Aacharan, 15.04.2019

Dr (Miss) Sharad Singh Honered by Smt. Sudha Savitri Tiwari Smriti Samman 2019, Dainik Jagaran, 15.04.2019