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My Editorials - Dr Sharad Singh

Saturday, July 30, 2011

दक्षिणी सूडान की स्वतंत्रता और स्त्री शक्ति

- डॉ. शरद सिंह 

 आंधी-तूफान के बाद खिलने वाली सुनहरी धूप की भांति दक्षिणी सूडान की स्वतंत्रता एक लंबे गृहयुद्ध के बाद हासिल हुई है। गृहयुद्ध के दौरान पुरुषों ने बढ़-चढ़ कर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी और बड़ी संख्या में हताहत हुए। इसका सबसे अधिक दुष्परिणाम झेला स्त्रियों ने। अपनों के मारे जाने का दुख और शेष रह गए जीवितों के प्रति जिम्मेदारी का संघर्ष। इन सबके बीच अनेक स्त्रियों को बलात्कार जैसी मर्मांतक पीड़ा से भी गुजरना पड़ा।


     छत्तीस वर्षीया जेसिका फोनी ने अपने अभी तक के जीवन में आठ बार प्रसव पीड़ा सहन की है और सुविधा के अभाव में अपने दो बच्चों को मौत के मुंह में जाते देखा है। जेसिका को जब इस बात का पता चला कि उसकी जन्मभूमि एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में दुनिया के नक्शे पर स्थापित होने जा रही है तो वह स्वयं को रोक नहीं सकी। जेसिका की आंतरिक प्रसन्नता और अपने स्वतंत्र राष्ट्र से जुड़ी हुई आशा और दक्षिणी सूडान की राजधानी खींच लाई जहां देश की स्वतंत्रता की विधिवत घोषणा की जाने वाली थी। सुदूर ग्रामीण क्षेत्र से आई जेसिका ने उत्सव का जी भर कर आनंद लिया।    
    आंधी-तूफान के बाद खिलने वाली सुनहरी धूप की भांति दक्षिणी सूडान की स्वतंत्रता एक लंबे गृहयुद्ध के बाद हासिल हुई है। गृहयुद्ध के दौरान पुरुषों ने बढ़-चढ़ कर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी और बड़ी संख्या में हताहत हुए। इसका सबसे अधिक दुष्परिणाम झेला स्त्रियों ने। अपनों के मारे जाने का दुख और शेष रह गए जीवितों के प्रति जिम्मेदारी का संघर्ष। इन सबके बीच अनेक स्त्रियों को बलात्कार जैसी मर्मांतक पीड़ा से भी गुजरना पड़ा। वह दक्षिणी सूडान के इतिहास का एक अंधकारमय समय था किंतु जैसा कि अंधेरा छंटता है और सूरज दिखाई देने लगता है, दक्षिणी सूडान में भी स्वतंत्रता का सूरज उग ही गया। 
   जेसिका फोनी के लिए देश की स्वतंत्रता का एक अर्थ है कि अब उसके सुदूर गांव जैसे ग्रामीण अंचलों में प्रसूति से जुड़ी चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हो जाएंगी। उसे आशा है कि अब उसकी तरह किसी और मां को चिकित्सा सुविधा के अभाव में अपने बच्चों को अपनी आंखों के सामने मरते हुए नहीं देखना पड़ेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकडों के अनुसार दक्षिणी सूडान में मातृ-शिशु मृत्यु दर विश्व में सर्वाधिक है। वहां अब तक प्रत्येक एक लाख प्रसव के दौरान लगभग २०५४ स्त्रियों की मृत्यु हो जाती है। ऐसी विकट स्थिति में जेसिका के सुरक्षित मातृत्व का सपना देश की स्वतंत्रता का पर्याय है।
        
 
जेम्मा नुनू कुंबा
   जेसिका फोनी के सपने को सच होने की संभावना तक लाने का श्रेय उन स्त्रियों को है जो स्वतंत्रता के संघर्ष के दौरान पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर सशस्त्र लड़ाई लड़ती रहीं। सूडान पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की गर्ल्स बटालियन ने द्वितीय गृह युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सूडान में दो प्रमुख गृहयुद्ध हुए। पहला सन्‌ १९४३ से १९७२ तक और दूसरा १९८३ से आरंभ हुआ और देश को स्वतंत्रता का दर्जा दिलाने तक चला। गर्ल्स बटालियन की कमांडर अगिएर अगुम ने जिस साहस और दृढ़ता के साथ बटालियन का संचालन किया था वह गृहयुद्ध को सकारात्मक परिणाम में बदलने में एक अहम निर्णायक पक्ष रहा। कमांडर अगिएर अगुम ने सहायता शिविरों के लिए भी काम किया था।
      
अगिएर अगुम की भांति जेम्मा नुनू कुंबा ने भी दक्षिणी सूडान के स्वतंत्रता संघर्ष में बढ़ चढ़ कर भाग लिया था। यह जानते हुए भी कि इस संघर्ष में किसी भी पल वे किसी गोली या बम का शिकार हो सकती थीं। जेम्मा नुनू कुंबा का मानना है कि प्रत्येक मनुष्य में स्वतंत्रता की भावना प्राकृतिक रूप से पाई जाती है। जेम्मा ने स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल होने के लिए विश्वविद्यालय की अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी। जेम्मा का जन्म अन्या-न्या में उस समय हुआ था जब प्रथम गृह युद्ध शुरू हो चुका था। देश में अस्थिरता का वातावरण था। इसीलिए जेम्मा के भीतर देश की स्वतंत्रता की भावना उम्र बढ़ने के साथ-साथ बलवती होती गई। जेम्मा स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए सशस्त्र संघर्ष को उचित ठहराती हैं। उनके अनुसार, "प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्रता के वातावरण में सांस लेना चाहता है और स्वतंत्रता उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। अतः यदि स्वतंत्रता पाने के लिए सशस्त्र संघर्ष भी करना पड़े तो वह जीवन संघर्ष की भांति उचित है। "
  स्वतंत्र दक्षिणी सूडान में जेम्मा नुनू कुंबा पर जिम्मेदारी है जेसिका फोनी जैसी हजारों स्त्रियों के सपनों को पूरा करने की। वे स्वतंत्र दक्षिणी सूडान की प्रथम महिला गवर्नर होने का गौरव पाने के साथ ही देश के प्रथम राष्ट्रपति साल्वा कीर मयार्दित सरकार में हाउसिंग और इन्फ्रास्ट्रक्चर मंत्री हैं। जेम्मा को अरूबा का सपना भी पूरा करना है जो एक शिक्षिका है और जिसने अपने स्कूल के बच्चों को कठिनतम समय में भी पढ़ाई से जोड़े रखा। अरूबा के स्कूल में न तो फर्नीचर है और न ब्लैक बोर्ड। दाने-दाने के लिए जूझने वाले बच्चों के पास किताबें होने का तो प्रश्न ही नहीं था। फिर भी अरूबा ने हिम्मत नहीं हारी और अपने ज्ञान को मौखिक रूप से बच्चों को देती रहीं ताकि वे जीवन के आवश्यक ज्ञान से वंचित न रह जाएं। अरूबा को कुछ समय भूमिगत भी रहना पड़ा क्योंकि उसके क्षेत्र के सैन्य अधिकारी को संदेह हो गया था कि वह पढ़ाने के साथ-साथ उन लोगों की सहायता करती है जो स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत हैं।
                                     
       
दक्षिणी सूडान
जेम्मा नुनू कुंबा, अगिएर अगुम, अरूबा, साफिया इश्क आदि अनेक स्त्रियों ने अपना सब कुछ दांव पर लगाकर दक्षिणी सूडान को स्वतंत्रता दिलाई है और अब यही स्त्री शक्ति एक सुदृढ़ देश का ताना-बाना रचेगी।
(साभार- दैनिकनईदुनियामें 17.07.2011 को प्रकाशित मेरा लेख)


34 comments:

  1. शरद जी aapki har post सराहनीय होती है पर स्त्रियों पर आधारित vishesh रूप से .आप यदि पसंद करें तो ''भारतीय नारी'' ब्लॉग से जुड़े व् अपने सार्थक आलेखों को हम सभी के साथ साझा करें .आप अपने इमेल मुझे 'shikhakaushik666@hotmail.com' पर preshit करें ताकि मैं आपको निमंत्रण भेज सकूँ .सादर

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  2. सूडान की स्वतंत्रता के साथ वहाँ की स्त्रियों की स्थिति पर सार्गाभित लेख ..आभार इस जानकारी को हम तक पहुंचाने के लिए

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  3. गहन विचारों से परिपूर्ण शोधपूर्ण आलेख। आलेख के बारिक विश्‍लेषण गहरे प्रभावित करते हैं। स्त्री-शक्ति के महत्व और ताकत का आपने बहुत सुंदर उदाहरण पेश किया है।

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  4. कोई शक...नहीं...

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  5. सारगर्भित आलेख ..अच्छी जानकारी मिली इस शोधपरक आलेख से .....

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  6. firstly i beg to sorry ,four or five time i tried to comment on this work ,but failed , ..secondly i have relation with history also,i like to know the progress ,reformation , revision aggrandizement of people ,nation in light of humanity for whole mankind . Sudan has acquired its destination ,on this juncture your work is very precious and instantaneous. Very commendable job you have done ,specially in terms of women participation . congratulation Dr
    sarad .Go ahead its my compliments .

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  7. युद्ध की मार स्त्रियों को ही झेलनी पड़ती है,जीत हो या हार। इसलिए बलात्कार जैसे घृणित कृत्य से बचने के लिए "जौहर"(सामुहिक आत्मदाह) करना पड़ता था।

    ज्ञानवर्धक आलेख के लिए आभार
    एवं शुभकामनाएं।

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  8. ललित जी की बातो से सहमत । एक नये राष्ट्र के जन्म की त्रासदी प्रसव पीड़ा से कम नही होती । आम तौर पर विभाजन दुखदायी ही होता है । सूडान से बने दोनो राष्ट्रो को उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं और आपको अच्छे लेख के लिये धन्यवाद ।

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  9. जानकारी पूर्ण बहुत अच्छा लेख । शुभकामनाएँ ।

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  10. आभार,
    इस जानकारी को हम तक पहुंचाने के लिए

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  11. dahalaa dene vali jankaree deta lekh. is lekh ka upyog karoonga main..

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  12. ज्ञानवर्धक सारगर्भित प्रस्तुति के लिए आभार.सादर,
    डोरोथी.

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  14. बहुत ही सुन्दर और गहरे भाव के साथ लिखी हुई इस सारगर्भित आलेख के लिए हार्दिक बधाइयाँ! बहुत ही महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
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  15. दक्षिणी सूडान के बारे में आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है। स्त्रियों के बलिदान और संघर्ष की प्रेरक गाथाएं हर राष्ट्र की पूंजी होती हैं। स्त्रियां हर संघर्ष में बढ़ चढ़ कर भाग लेती हैं और त्याग -बलिदान की मिसाल बनती हैं।

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  16. "प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्रता के वातावरण में सांस लेना चाहता है और स्वतंत्रता उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। अतः यदि स्वतंत्रता पाने के लिए सशस्त्र संघर्ष भी करना पड़े तो वह जीवन संघर्ष की भांति उचित है। "

    दक्षिणि सूडान के स्वतंत्रता संघर्ष और स्तरियों के बलिदान की प्रेरक कहानी ।

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  17. स्त्री शक्ति के नाम पर हम अक्सर दुर्गा और कली को ही याद करतें हैं ...

    उन्हें तो हम ने देखा नहीं है.. लेकिन ये स्त्रियाँ -!! शक्ति की जीती जागती मिसाल हैं

    अगुम, अरूबा जैसी नारियां.. प्रेरणादायक हैं...

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  18. आज़ादी की इच्छा और धड़कन यकसां है .दक्षिणी सूडान उसका अपवाद कैसे हो सकता है .लक्ष्मी बाई स्थान और काल बदल के आतीं हैं और एक इतिहासिक धरोहर बन जातीं हैं .जेम्मा नुनू कुंबा, अगिएर अगुम, अरूबा, साफिया इश्क आदि अनेक स्त्रियों ने अपना सब कुछ दांव पर लगाकर दक्षिणी सूडान को स्वतंत्रता दिलाई है और अब यही स्त्री शक्ति एक सुदृढ़ देश का ताना-बाना रचेगी।आलेख की पुनर -प्रस्तुति के लिए आभार और बधाई .
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  19. प्रेरक प्रस्तुति....
    शोधपरक लेख ......बहुत कुछ समाहित

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  20. aapka is blog pe aana pehli baar hum utna hi accha laga jitna aapki ghazlon ko padhkar lagata hai..shodhparak jaankari.

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  21. जुझारू महिलाओं की संघर्ष गाथा को मुखरित करती एक महत्वपूर्ण पोस्ट .बधाई .कृपया यहाँ भी पधारें -http://veerubhai1947.blogspot.com/ /
    सोमवार, ८ अगस्त २०११ /
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    ..क्‍या भारतीयों तक पहुंच सकेगी जैव शव-दाह की यह नवीन चेतना ?
    Posted by veerubhai on Monday, August 8
    Labels: -वीरेंद्र शर्मा(वीरुभाई), Bio Cremation, जैव शवदाह, पर्यावरण चेतना, बायो-क्रेमेशन /

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    जुझारू औरतों के संगर्ष को रूपायित करती अति -महत्वपूर्ण पोस्ट .बधाई डॉ .शरद जी .

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  23. बहुत बढ़िया...
    प्रेरक प्रस्तुति....

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  24. bahut achchhi jankari di aapne .mahilaon ne apna aasman pane ke liye bahut mehnat ki hai
    rachana

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  25. शोध, संकलन और प्रस्तुति की तारीफ़ में शायद मेरे शब्द छोटे पड़ जाएँ - ज्ञान वर्धन के लिए सादर साभार धन्यवाद्

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  26. नमस्कार....
    बहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें
    मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में पलकें बिछाए........
    आपका ब्लागर मित्र
    नीलकमल वैष्णव "अनिश"

    इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्

    1- MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......

    2- BINDAAS_BAATEN: रक्तदान ...... नीलकमल वैष्णव

    3- http://neelkamal5545.blogspot.com

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  27. बहुत सुन्दर आलेख. बधाई स्वीकारें

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  28. very apt and pellucid analysis of condition of women in South Sudan... there past experiences and future aspirations.
    Fantastic read !!

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  29. एक बेहतरीन लेख है , और शायद हमारे देश की महिलाओं के लिए एक सबक भी ...
    आप बेहतरीन लेखक हैं ...
    अगर एक ही ब्लॉग में लिखतीं तो विभिन्न विषय और रोचक शैली बेहतर संग्रह एवं सुविधाजनक होता !
    मैंने जबसे अपने तीन ब्लॉग पर लिखना छोड़ा अधिक संतुलित महसूस करता हूँ !
    यह जन्माष्टमी देश के लिए और आपको शुभ हो !

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  30. अनेक स्त्रियों ने अपना सब कुछ दांव पर लगाकर दक्षिणी सूडान को स्वतंत्रता दिलाई है और अब यही स्त्री शक्ति एक सुदृढ़ देश का ताना-बाना रचेगी।बहुत बढ़िया.

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