सम्पत देवी पाल |
- डॉ. शरद सिंह
एक दुबली-पतली सांवली-सी औरत जिसकी उम्र
लगभग 64 वर्ष हो और उसके बारे में यह पता
चले कि वह एक ऐसे संगठन को संचालित कर रही है जिसका नाम भी अपने आप में अनूठा है -‘गुलाबी गैंग’ तो चकित रह जाना स्वाभाविक है। क्योंकि बुन्देलखण्ड अंचल में ऐसा वातावरण नहीं
है कि स्त्रियां स्वतंत्र हो कर कोई निर्णय ले सकें अथवा घर की चैखट लांघ कर
न्याय की बातें कर सकें।
धनगढ़ (गड़रिया) परिवार में सन् 1947 को जन्मीं सम्पत देवी पाल उत्तरप्रदेश के बांदा जिले में कई वर्ष से कार्यरत
हैं। सम्पत देवी पाल ग्रामीण महिलाओं में जागरूकता लाने का अनथ प्रयास कर रही हैं।
इस कार्य को सही एवं सुचारु ढंग से क्रियान्वित करने के लिए सम्पत देवी ने महिलाओं
के एक दल का समाजसेवी गठन कर रखा है। यह दल ‘गुलाबी गैंग’ अथवा ‘पिंक गैंग’ के नाम से लोकप्रिय है। इस संगठन का यह नाम इस लिए पड़ा क्यों कि इस संगठन के
अंतर्गत कार्य करने वाली महिलाएं ‘युनीफॉर्म’ की भांति गुलाबी रंग की साड़ी ही पहनती हैं। गुलाबी रंग की साड़ी की एकरूपता
ने इन्हें एक अलग और अनूठी पहचान दी है।
श्रीमती सोनिया गांधी के साथ सम्पत देवी पाल |
बांदा जिला बुन्देलखण्ड का आर्थिक रूप
से वह पिछड़ा हुआ जिला है जहां शिक्षा और जनसुविधाओं की कमी निरन्तर महसूस की जाती
रही है। वैसे बुन्देलखण्ड से ले कर मुंबई तक बांदा जिला अपने लठैतों के लिए विशेष
रूप से जाना जाता है। इसका मतलब यह भी नहीं है कि यहां के निवासी लड़ाकू होते हैं, उनका लठैत होना इस बात का द्योतक है कि वे साहसी होते हैं। किन्तु जहां तक
महिलाओं का प्रश्न है तो रूढि़वादी परम्पराओं और शिक्षा की न्यूनता के कारण इस
जिले की महिलाएं विकास की मुख्यधारा से बहुत दूर रही हैं। संभवतः इसीलिए सम्पत
देवी पाल को इस बात की आवश्यकता का अनुभव हुआ होगा कि बांदा जिले की महिलाओं को
आत्मनिर्भरता का रास्ता दिखाया जाए। यह रास्ता अधिकारों की जागरूकता की अलख जगा कर ही लाया जा सकता था।
सन् 2008 में ओह प्रकाशन से फ्रांसीसी भाषा में एक पुस्तक प्रकाशित हुई जिसका नाम था-‘मोई, सम्पत पाल: चीफ डी गैंग एन सारी
रोज़’ अर्थात् ‘मैं सम्पत पाल: गुलाबी साड़ी दल की मुखिया’। ‘मोई, सम्पत पाल: चीफ डी गैंग एन सारी रोज़’ को एन्ने बरथोड ने फ्रांसीसी में लेखबद्ध किया है।
फ्रांसीसी में लिखी गई पुस्तक |
पुस्तक के बारे में प्रकाशक ने ‘सम्पत पाल हमारी सहायता कर सकती है’ शीर्षक से लिखा कि ‘‘भारत के ऊंचे पहाड़ों और बाढ़ग्रस्त मैदानों वाले उत्तर प्रदेश के एक नितान्त
साधनहीन क्षेत्रा यह किंवदन्ती चल निकली कि एक महिला बाहुबलियों के अत्याचारों के
सामने अकेली उठ खड़ी हुई है। जिसका नाम है सम्पत पाल जो प्रताडि़त पत्नियों, सम्पत्ति छीनलिए गए लोगों और उच्चवर्ग (विशेष रूप से ब्राह्मणों) द्वारा
अस्पृश्यता के शिकार लोगों को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष कर रही है। वह महिला
स्वयं साधनहीन गड़रिया जाति की है। क्या ऐसी कोई महिला दबंगों से लोहा ले सकती है? न्याय की इच्छुक एक विद्रोहिणी? यह उसकी कहानी है जो वह यहां बता रही है। बचपन में उसने स्कूल-भवन के खम्बे की
ओट में चोरी से खड़े हो कर शिक्षा पाई क्यों कि वह ग़रीब थी। बारह वर्ष की आयु में
विवाह हो गया। उसने अपने ससुरालवालों के अत्याचार का डट कर सामना किया, अपनी एक पड़ोसी स्त्री की रक्षा की और अपनी एक सहेली की परिवार से दुखी सहेली
की सहायता की....किन्तु सबसे जोखिम भरा काम था गांव के दबंगों को चुनौती देना और
उनके द्वारा सुपारी देकर पीछे लगाए गए (हिटमैन्स) गुण्डों से स्वयं की रक्षा करना।
सम्पत पाल को अपना घर, अपना गांव आदि सब कुछ छोड़ना पड़ा। तब उसे महसूस हुआ कि वह अकेली लम्बी लड़ाई
नहीं लड़ सकती है किन्तु यदि उसके साथ और औरतें आ जाएं पांच, दस, सौ.....तो वे सब मिल कर लोगों को
अन्याय और प्रताड़ना से बचा सकती हैं। आज (सन् 2008 में) ‘गुलाबी गैंग’ में 3,000 औरतें हैं जो गुलाबी रंग की साड़ी पहनती हैं और अपने हाथ में लाठी रखती हैं।
एक वास्तविक नायिका की भांति सम्पत पाल ने अपने आस-पास की सैंकड़ों लोगों का जीवन
बदल दिया है, अभी तो उसकी लड़ाई की यह शुरुआत भर है।’’
सम्पत पाल के गुलाबी दल की औरतें निपट
ग्रामीण परिवेश की हैं। वे सीधे पल्ले की साड़ी पहनती हैं, सिर और माथा पल्ले से ढंका रहता है किन्तु उनके भीतर अदम्य साहस जाग चुका है।
अपने एक साक्षात्कार में अपने गुलाबी गैंग के बारे में सम्पत पाल ने कहा था कि ‘‘जब पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी हमारी मदद करने के लिए आगे नहीं आते हैं तब
विवश हो कर हमें कानून अपने हाथ में लेना पड़ता है। हमारा दल गुलाबी गैंग के नाम
से प्रसिद्ध हो चुका है किन्तु इसमें ‘गैंग’ शब्द का अर्थ कोई गैरकानूनी गैंग नहीं है, यह गैंग फॉर जस्टिस है। हमने गुलाबी रंग अपनाया है क्योंकि यह जीवन का रंग
है।’’
आज सम्पत देवी पाल का अर्थ है एक औरत, एक निश्चय और ‘गुलाबी गैंग’ यानी न्याय के पक्ष में आजीवन डटे रहना।
(साभार- दैनिक ‘नईदुनिया’ में 13.11.2011 को प्रकाशित मेरा लेख)
(साभार- दैनिक ‘नईदुनिया’ में 13.11.2011 को प्रकाशित मेरा लेख)