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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, January 10, 2013

डॉ. अम्बेडकर के जीवन को प्रभावित करने वाली स्त्रियां-भाग 1

प्रभाव दो प्रकार के होते हैं- अच्छे और बुरे। विद्वान व्यक्ति अच्छे प्रभाव की मीमांसा करते हैं और बुरे प्रभाव के कारणों का विश्लेषण करते हैं जो उनकी दृष्टि को सम्यक बनाता है। डॉ. अम्बेडकर के जीवन पर भी विभिन्न स्त्रियों का भिन्न प्रभाव पड़ा किन्तु उन्होंने उन प्रभावों को सभी स्त्रियों के हित के परिप्रेक्ष्य में देखा।

जीवनदायिनी मां भीमाबाई 

 
भीमाबाई के पिता सूबेदार मेजर धर्मा मुरबाड़कर थाने जिले के मुरबाड़ नामक स्थान के रहने वाले थे। उनका परिवार आर्थिक दृष्टि से सुसंपन्न था। धर्मा मुरबाड़कर अपनी युवा होती बेटी भीमाबाई के विवाह को लेकर चिंतित थे। वे अपनी बेटी के लिये सुयोग्य वर की तलाश में थे। संयोगवश धर्मा मुरबाड़कर सेना की जिस कमान में थे, उसी में  रामजी सकपाल भी नियुक्त थे। धर्मा मुरबाड़कर ने रामजी सकपाल को देखा तो वे उनके व्यवहार एवं व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुये। उन्होंनें रामजी सकपाल के साथ अपनी बेटी भीमाबाई का विवाह करने का निश्चय किया। रामजी सकपाल के परिवार आर्थिक स्थिति मुरबाड़कर की अपेक्षा कमजोर थी इसीलिये धर्मा मुरबाड़कर की पत्नि इस विवाह के पक्ष में नही थीं। वहीं उनका बड़ा पुत्रा पिता की पसंद से सहमत था। उसे भी रामजी सकपाल अपनी बहन के योग्य प्रतीत हुये। अंततः सन् 1865 में रामजी सकपाल और भीमाबाई का विवाह संपन्न हो गया।
भीमाबाई वाक्चातुर्य की धनी, सुन्दर, सुशील और धर्मपरायण थीं। वे अत्यन्त स्वाभिमानी थीं। उनके स्वाभिमान का पता एक घटना से भी चलता है जब भीमाबाई की मां ने निर्धन परिवार में ब्याही अपनी पुत्री का समाचार सुना कि परिवार के अन्य सदस्य भीमाबाई की अवहेलना करने लगे थे। तब भीमाबाई ने दृढ़संकल्प लेते हुए स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि ‘मैं तभी मायके जाऊंगी जब आभूषणों से संपन्न अमीरी प्राप्त कर लूंगी।’
          भीमाबाई का यह संकल्प उनके धैर्य की परीक्षा लेने वाला था। रामजी सकपाल की नियुक्ति सान्ताक्रूज के पास हो गयी। वे अपने अल्प वेतन से पैसे बचाकर भीमाबाई के पास भेजते थे जो पूरे परिवार के लिये पर्याप्त नहीं था। परिवार के खर्चों को पूरा करने के लिये भीमाबाई ने सान्ताक्रूज में सड़क पर बजरी (कंकड़-पत्थर) बिछाने की मजदूरी का काम करना शुरू कर दिया। कुछ समय बाद भाग्य ने करवट ली और रामजी सकपाल की योग्यता को पहिचान कर उन्हें पूणे के पन्तोजी विद्यालय में पढ़ने का अवसर दिया गया परीक्षा पास करने के उपरान्त उन्हें फौजी छावनी के विद्यालय में अध्यापक का पदभार सौंपा गया। शीघ्र ही उन्हें प्रधान अध्यापक बना दिया गया। वे लगभग चैदह वर्ष तक प्रधान अध्यापक रहे। जिससे उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती गयी और भीमाबाई का संकल्प पूरा हुआ। उनके मायके वालों ने भीमाबाई से संबंध सुधार लिए। इस बीच भीमाबाई ने तेरह संतानों को जन्म दिया जिनमें सात संताने ही जीवित रहीं, शेष का बचपन में ही निधन हो गया था।
            भीमाबाई बहुत अधिक व्रत-उपवास करती थीं। साथ ही उनकी बीमारी का सही निदान न होने के कारण स्वास्थ्य लगातार गिरने लगा। रामजी सकपाल का स्थानांतरण अलग-अलग छावनियों में होता रहता था। वे पत्नी के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए कुछ समय एक ही स्थान पर पदस्थ रहना चाहते थे। आखिरकार उन्हें यह अवसर प्राप्त हुआ, जब उनका स्थानांतरण मध्यप्रदेश (वर्तमान) के इन्दौर के निकट महू छावनी के स्कूल में किया गया। महू में रहते समय रामजी सकपाल और भीमाबाई ने कामना की कि उनका एक ऐसा पुत्रा उत्पन्न हो जो दीन दुखियों की सेवा करे। भीमाबाई की यह प्रार्थना शीघ्र ही फलीभूत हुयी और उन्होंने 14अप्रेल 1891 को एक पुत्रा को जन्म दिया जिसका नाम भीमराव रखा गया। भीमराव को अपनी मां का स्नेह अधिक समय तक नहीं मिल पाया। अस्वस्थता के कारण भीमाबाई का निधन हो गया।
         भीमराव अपनी मां को ‘बय’ कह कर पुकारते थे। उन्हें अपनी मां से अगाध स्नेह था। मां की मृत्यु के उपरान्त भी वे अपनी ‘बय’ को कभी भुला नहीं सके।
         स्वाभिमान, दृढ़ इच्छाशक्ति और किसी भी संकट का साहस के साथ सामना करने का गुण भीमराव को अपनी मां भीमाबाई से मानो अनुवांशिक रूप में मिला था। यह गुण भी उन्हें अपनी मां से ही मिला था कि कोई भी काम छोटा नहीं होता है। ये सारे गुण भीमराव को जीवन में सतत आगे बढ़ाते रहे।

            ( ‘डॉ. अम्बेडकर का स्त्री विमर्श’पुस्तक से )
                     

डॉ. अम्बेडकर का स्त्री विमर्श, भारत बुक सेन्टर, 17, अशोक मार्ग, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)- 22600

Published by Bharat Book Centre, 17, Asok Road, Lucknow (Uttar Pradesh)-22600

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