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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, February 6, 2014

आमजनता ढूंढेगी अपनी समस्याओं का समाधान

- डॅा. (सुश्री) शरद सिंह



(‘इंडिया इन साइड’ के February 2014 अंक में ‘वामा’ स्तम्भ में प्रकाशित मेरा लेख आप सभी के लिए ....आपका स्नेह मेरा उत्साहवर्द्धन करता है.......)
वामा (प्रकाशित लेख...Article Text....)...



यूं तो नया साल यानी सन् 2014 चुनावी वर्ष है। अतः वाद, विवाद, प्रतिवाद तो होंगे ही। राजनीतिक ‘पोल-खोल’ प्रतियोगिताएं होती रहेंगी। फिर भी हर नया साल अपने साथ कुछ नए मुद्दे ले कर आता है। वहीं हर बीता साल अपने साथ कुछ सुख तो कुछ दुख ले जाता है। वर्ष 2013 सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक दृष्टि से बड़े उतार-चढ़ावों का साल रहा। वर्ष भर महिला सुरक्षा का मुद्दा छाया रहा। पत्रकारिता, राजनीति और न्याय.... कोई भी क्षेत्र ऐसा रहा जिसमें से नारी के अपमान का उदारहण सामने न आया हो। सन् 2012 के अंत में घटित हुए ‘दामिनी कांड’ के अभियुक्तों को दण्ड देने की प्रक्रिया चली और ‘जुवेनाईल’ के आधार पर जघन्य अपराधी को कम सजा का असंतोष छोड़ गई। जाहिर है कि 2014 में ‘जुवेनाईल’ यानी किशोर अपराधियों की आयु सीमा के नीवीनीकरण का मुद्दा गरमाएगा। लेकिन इससे भी अधिक गंभीर प्रश्न की तरह उठेगा महिला सुरक्षा का मुद्दा। 
देश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बनाए गए नए महिला सुरक्षा बिल में कई दमदार प्रावधान रखे गए हैं। मसलन, बलात्कार मामले में न्यूनतम 20 वर्ष और अधिकतम मौत की सजा, महिला के संवेदनशील अंगों से छेड़छाड़ भी माना जाएगा बलात्कार, ऐसे मामलों में कम से कम 20 साल और अधिकतम ताउम्र कैद, तेजाब हमला करने वालों को मिलेगी 10 साल की सजा, ताकझांक करने, पीछा करने के मामले में दूसरी बार नहीं मिलेगी जमानत, बार-बार पीछा करने पर अधिकतम पांच साल सजा, सहमति से सेक्स की उम्र 18 साल ही रहेगी, सजा के अतिरिक्त दुष्कर्म पीडि़त के इलाज के लिए अभियुक्त पर भारी जुर्माने का भी प्रावधान, महिला के कपड़े फाड़ने पर भी सजा का प्रावधान, धमकी देकर शोषण करने के लिए सात से दस साल कैद तक की सजा, बलात्कार के कारण हुई मौत या स्थायी विकलांगता आने पर आरोपी को मौत की सजा, बलात्कार के मामलों की सुनवाई में महिला के बयान या पूछताछ के दौरान मजिस्ट्रेट असहज करने वाले सवाल नहीं पूछ पाएंगे, इसके अलावा इस दौरान आरोपी पीडि़़त महिला के सामने मौजूद नहीं रहेगा। बलात्कार के अलावा यौन अपराधों से जुड़े अन्य मामलों में कड़ी सजा के प्रावधान के लिए इस कानून के जरिए भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता 1973, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 में जरूरी संशोधन भी किया गया है। ये सारे कानून तभी कारगर सिद्ध हो सकते हैं जब अपराध का त्वरित एवं निष्पक्षता से विवेचना की जाए। कोलकता की ‘निर्भया’ कांड में ‘निर्भया’ को कानून की शरण में जाने के कारण दुबारा सामूहिक बलात्कार झेलना पड़ा और अंततः उसे जला कर मार दिया गया। इसलिए कानून के होने और उसे कड़ाई से लागू किए जाने के बीच के अन्तर को मिटाने पर भी गंभीरता से विचार करना होगा।
दूसरा मुद्दा लिव इन रिलेशन का रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लिव-इन न तो अपराध है और न ही पाप है। साथ ही अदालत ने संसद से कहा है कि इस तरह के संबंधों में रह रही महिलाओं और उनसे जन्मे बच्चों की रक्षा के लिए कानून बनाया जाए। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दुर्भाग्य से सहजीवन को नियमित करने के लिए वैधानिक प्रावधान नहीं हैं। सहजीवन खत्म होने के बाद ये संबंध न तो विवाह की प्रकृति के होते हैं और न ही कानून में इन्हें मान्यता प्राप्त है। न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में सहजीवन को वैवाहिक संबंधों की प्रकति के दायरे में लाने के लिए दिशानिर्देश तय किए। पीठ ने कहा कि सह जीवन या विवाह की तरह के संबंध न तो अपराध हैं और न ही पाप है, भले ही इस देश में सामाजिक रूप से ये अस्वीकार्य हों। शादी करना या नहीं करना या यौन संबंध रखना बिल्कुल व्यक्तिगत मामला है। पीठ ने कहा कि विभिन्न देशों ने इस तरह के संबंधों को मान्यता देना शुरू कर दिया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कानून बनाए जाने की जरूरत है क्योंकि इस तरह के संबंध टूटने पर महिलाओं को भुगतना पड़ता है। इसने कहा कि बहरहाल हम इन तथ्यों से मुंह नहीं मोड़ सकते कि इस तरह के संबंधों में असमानता बनी रहती है और इस तरह के संबंध टूटने पर महिला को कष्ट उठाना पड़ता है। इसके साथ ही पीठ ने कहा कि कानून विवाह पूर्व यौन संबंधों को बढ़ावा नहीं दे सकता और लोग इसके पक्ष एवं विपक्ष में अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं। यानी इस विषय पर अभी स्थितियां पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं और वाद-विवाद जारी रहेगा।
समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दिए जाने का मुद्दा भी उठेगा। सरकार ने समलैंगिकता को उच्चतम न्यायालय द्वारा गैरकानूनी घोषित किए जाने के फैसले को पलटने के लिए फौरी कदम उठाने का वादा किया और संकेत दिया कि वह शीर्ष अदालत में उपचारात्मक याचिका दाखिल कर सकती है। विधिमंत्री कपिल सिब्बल ने इस फैसले को लेकर उपजे विवाद के बीच संवाददाताओं से कहा था कि हमें कानून को बदलना होगा। यदि उच्चतम न्यायालय ने इस कानून को सही ठहराया है, तो निश्चित रूप से हमें मजबूत कदम उठाने होंगे। बदलाव तेजी से करना होगा और कोई देरी नहीं की जा सकती। हम जल्द से जल्द बदलाव करने के लिए सभी उपलब्ध उपायों का इस्तेमाल करेंगे। वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि ‘‘उच्चतम न्यायालय का फैसला ‘गलत’ है। यह फैसला पूरी तरह दकियानूसी है।’’
समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दिए जाने के विषय में अपने कथन के अनुरुप फौरी कदम न तो कपिल सिब्बल की ओर से उठाए गए और न पी चिदंबरम की ओर से। कई पश्चिमी देशों में समलैगिकता को वैधानिक दर्जा दिया गया है। इस आधार पर भारतीय समलैंगिकों के द्वारा उनके संबंधों को सामाजिक प्रतिष्ठा दिलाने के लिए कानूनी रूप से वैध माने जाने की मंाग फिर से उठेगी, यह तय है।
सामाजिक मुद्दों के साथ ही कषशमीर को ‘विशेष राज्य’ के अधिकारों पर भी बहसें होंगी। मंहगाई पर भी प्रष्न किए जाएंगे। डीजल-पेट्रोल की रोज बढ़ती कीमतें और तैल-कंपनियों के हित की दुहाई के तले पिसती आम जनता की कराह भी उभर सकती है। इन सबके साथ होगा भारतीय राजनीति के भावी स्वरूप मुद्दा जो कम से कम चुनाव तक तो सिर चढ़ कर बोलेगा ही। कौन-सा राजनीतिक दल केन्द्र में सत्तासीन होगा और किसे अपना वर्चस्व गंवाना पड़ेगा, यह ‘आप’, भजपा और कांग्रेस के त्रिकोणीय संघर्ष से निकल कर बाहर आएगा। क्षेत्रीय दल कितने प्रभावी साबित होंगे, यह भी सामने आएगा। मुजफ्फरपुर के दंगों और रेलों में होने वाले अग्निकाण्डों पर भी सुगबुगाहट होती रहेगी।
अगर छोटे-बड़े सभी मुद्दों की संख्या पर गौर किया जाए तो लगता है कि वर्ष 2014 के 365 दिन में 365 मुद्दे गरमाए रहेंगे और आमजनता अपनी परेशानियों का हल ढूंढती रहेगी।


 

2 comments:

  1. समस्याएं सामाजिक कम हमारी व्यक्तिगत ज्यादा हैं. कानून बनाने से ज्यादा जरुरत लोगों को सही शिक्षा देने की है .

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  2. बहुत ही सामयिक लेख...

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