Pages

My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, March 31, 2016

"आउटलुक" में प्रकाशित मेरा लेख - निशाने पर हर बार स्त्री ही क्यों - शरद सिंह

Article of Dr Sharad Singh published in " Outlook " (Hindi) 11 April 2016
" Outlook " (Hindi) 11 April 2016


"आउटलुक" में प्रकाशित मेरा लेख

       निशाने पर हर बार स्त्री ही क्यों  

                     - शरद सिंह

                                                                                  

      कई सरकारी योजनाएं हैं जो समाज में स्त्री के अस्तित्व एवं अधिकारों के लिए कटिबद्ध दिखाई देती हैं, लेकिन यह भी सच है कि राजनीति की बिसात पर भी स्त्रियों के अधिकारों के प्रश्न को गोटियों की भांति सुविधानुसार आगे और पीछे किया जाता हैं। दुर्भाग्य है कि हिंसा और प्रतिशोध की बात आती है तब सबसे पहला शिकार बनती हैं स्त्री। फिर कानून घटना बाद जांच और आयोग के रूप में दिखाई पड़ता है।  एक ऐसी रक्तरंजित लकीर जिसे तथाकथित पुरुष सदियों से खींचते चले आ रहे हैं, वह लकीर देश के बंटवारे के समय से ले कर निर्भया कांड से होती हुई मुरथल तक आ पहुंची है। बलात्कार अथवा सामूहिक बलात्कार की घटना घटी अथवा नहीं, यह जांच का विषय होता है लेकिन इस बात की पड़ताल कभी नहीं की जाती है कि किसी राजनीतिक मसले की चैपड़ पर स्त्री की अस्मिता को ही क्यों दांव पर लगाया जाता है 

देश की राजधानी दिल्ली से लगभग 50 किलोमीटर दूर हरियाणा के मुरथल में हुआ कथित गैंगरेप इसका एक और दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण है। इस मामले में मीडिया में समाचारों की बाढ़ आने के बाद एक महिला साहस कर के सामने आई। उस महिला ने हरियाणा पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि 22 फरवरी की रात मुरथल में उसके साथ गैंगरेप हुआ। पुलिस में दर्ज शिकायत में इस महिला ने कहा कि कि वो 22-23 फरवरी की रात को बस से जा रही थी और जब बस खराब हो गई तो वो और लोगों के साथ एक वैन में सवार हो गई जब ये घटना हुई। उसने यह भी बताया कि 22 और 23 फरवरी की दरमियानी रात को ‘हुड़दंगियों’ ने कई महिलाओं के साथ गैंगरेप किया। 

जाट आंदोलन के दौरान सामूहिक बलात्कार की इस अपुष्ट खबर को लेकर चश्मदीद गवाहों के परस्पर भिन्न बयान भी सामने आने लगे। एक ट्रक ड्राइवर ने दावा किया कि उसने मुरथल के पास देखा कि कई महिलाओं को खेतों में खींचकर ले जाया जा रहा था। यद्यपि ड्राइवर ने कहा कि वह निश्चित रूप से यह नहीं कह सकता कि उनके साथ किसी तरह की बदसलूकी हुई थी।  सुखविंदर सिंह नाम के इस ड्राइवर के अनुसार 150 से भी ज्यादा लोग खेतों से हाईवे की तरफ आए और औरतों को खींचते हुए ले गए। सुखविंदर ने कहा मैंने करीब 50 औरतों को देखा था। उन्हें खेतों में ले जाया जा रहा था। मैंने यह नहीं देखा कि उनके साथ क्या किया गया।

ट्रक ड्राइवर का उस वक्त वहां मौजूद होने का दावा और मुरथल के पास हाईवे पर महिलाओं के बिखरे हुए आंतरिक वस्त्र इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि कुछ अनहोनी अवश्य हुई थी। हरियाणा में जाट आंदोलन के दौरान नेशनल हाइवे संख्या-1 पर दिल्ली से सटे मुरथल के नजदीक महिलाओं से कथित बलात्कार की रिपोर्टों की सत्यता की जांच के लिए हरियाणा पुलिस ने तीन सदस्यीय समिति गठित की गई। इसमें डीआईजी रैंक की एक अधिकारी समेत तीन महिला अधिकारी शामिल की गईं। इन्हें पीडि़त महिलाओं या घटना के बारे में जानकारी रखने वाले लोगों से संपर्क करने के लिए कहा गया। साथ ही सड़कों पर बिखरे आंतरिक वस्त्रों को फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया।

जाट आंदोलन के सदस्यों द्वारा कई महिलाओं के बलात्कार और छेड़छाड़ की कथित घटनाओं पर गौर करने के लिए हरियाणा सरकार द्वारा बनाई गई महिला पुलिस अधिकारियों की तीन सदस्यीय टीम की प्रमुख राजश्री ने कहा कि ‘‘पीडि़त अपराध के सटीक स्थल को लेकर निश्चित नहीं है, लेकिन उसका दावा है कि हरिद्वार से एक वैन में दिल्ली के नरेला जाते वक्त मुरथल के पास एक इमारत में उसका बलात्कार किया गया। हालांकि महिला ने कहा कि उसके साथ मौजूद 15 साल की उसकी बेटी का बलात्कार नहीं किया गया, लेकिन उसके कपड़े फाड़े गए।

यदि यह भी मान लिया जाए कि मुरथल-कांड के पीछे आंदोलनकारियों को बदनाम करने का कोई षडयंत्र है, फिर भी यह तो तय है कि स्त्री की अस्मिता को एक बार फिर तार-तार किया गया है। चाहे बलात्कार द्वारा अथवा बलात्कार की घटना के आरोप द्वारा, स्त्री की अस्मिता को ही उन्माद और राजनीति की बलिवेदी पर चढ़ाया गया है। घटना घटित हुई अथवा नहीं लेकिन निशाना तो बनी स्त्री की अस्मिता। इस संदर्भ में कश्मीर से कन्याकुमारी तक लगभग एक-सी दशा है।    

अपने पौरुषेय अहम् भावना को संतुष्ट के लिए स्त्रियों की अस्मत और उनके जीवन पर घात लगाने वालों की बात की जाए तो शोपिया के जख़्म अभी पूरी तरह से सूखे नहीं हैं। विगत वर्ष भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर के शोपिया जि़ले से दो स्त्रियां लापता हो गई थीं। उन स्त्रियों की ढूंढ-खोज के बाद पुलिस उनके शव प्राप्त करने में सफल रही। दोनों स्त्रियों की हत्या के कारणों का पता लगाने के लिए जांच आयोग गठित की गई। जांच की प्रक्रिया में चालीस दिन लगे। इस दौरान शोपिया जि़ले में हिंसा और प्रदर्शन जारी रहे। लोगों के मन में स्त्रियों के मारे जाने पर रोष था। इसी मुद्दे को ले कर प्रदर्शनकारियों ने पुलिस के साथ संघर्ष किया। जांच आयोग ने पाया कि दोनों के साथ बलात्कार किया गया था और फिर उनकी हत्या कर दी गई थी। दुखद बात यह थी कि शोपिया मामले में ही बलात्कार और हत्या करने के दोषियों के रुप में वर्दी पहने लोगों के होने की पुष्टि हुई। संबंधित दोषी पुलिस अधिकारी के विरुद्ध एफ.आई.आर. लिखाए जाने के पर उन्हें मात्र निलंबित किया गया। प्रकरण की जांच में यह तथ्य सामने आया कि कुछ वर्दीधारियों के मन में उन दोनों औरतों के प्रति द्वेष भावना थी और वे उन्हें और उस क्षेत्र के लोगों को सबक सिखाना चाहते थे।

कभी भी कोई दंगे अथवा दुश्मनी की भावना हो, इस पुरुषप्रधान समाज में द्वे, हिंसा और प्रतिशोध की पहली शिकार स्त्रियां ही होती हैं। अपना वर्चस्व अथवा अपने पौरुष का प्रभाव जताने के लिए स्त्रियों के प्रति यौन हिंसा का घिनौना सहारा लिया जाता है। तथाकथित पुरुष अपने पौरुष की धाक जमाने के लिए हर बार स्त्री को ही निशाने पर लेते हैं।

प्रकरण चाहे भोपाल में एक स्त्री के साथ कार में किया गया सामूहिक बलात्कार हो, चाहे गुजरात दंगों के दौरान स्त्रियों की अस्मत से खिलवाड़ का हो, चाहे मुंबई की लोकल ट्रेन में युवती के सम्मान का हनन हो, शोपिया मामले में दो स्त्रियों का अपहरण कर उनके साथ बलात्कार कर उनकी हत्या किए जाने का मामला हो या फिर मुरथल का मामला हो, बार-बार यही तथ्य सामने आता है कि स्त्रियां असुरक्षित हैं। यह भी कि समाज और कानून घटना घट जाने के बाद सामने आता है। सन् 1947 ई. से अब तक स्त्रियों के पक्ष में अनेक कानून पारित हुए अनेक महिला संगठन बने लेकिन ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति याद दिला देती है कि देश में स्त्रियों की स्थिति अभी चिन्ताजनक है तथा इस दिशा में और कड़े कानून बनाए जाने की आवश्यकता है जिससे इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोका जा सके। माया एंजलो की ये पंक्तियां कौंधती हैं -

तुम मुझे

अपने तीखे और विकृत झूठों के साथ

इतिहास में शामिल कर सकते हो अपनी चाल से

मुझे गंदगी में धकेल सकते हो

लेकिन फिर भी

मैं धूल की तरह उड़ती आऊंगी

        ---------------------------

Wednesday, March 30, 2016

चर्चा प्लस ... भारतीय मुस्लिम महिलाओं का भविष्य .... डॉ. शरद सिंह

Charcha Plus - Column of Dr Sharad Singh
My Column “ Charcha Plus” published in  "Dainik Sagar Dinkar" , 30. 03. 2016
मेरा कॉलम 'चर्चा प्लस’ दिनांक 30. 03. 2016 के  "दैनिक सागर दिनकर"(सागर, मध्य प्रदेश)
में प्रकाशित ....

           
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper

 चर्चा प्लस
         भारतीय मुस्लिम महिलाओं का भविष्य
                           - डॉ. शरद सिंह


एक गैरसरकारी संस्था भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने मुस्लिम पारिवारिक कानून पर क्या सोचती हैं मुस्लिम महिलाएं’ विषय पर महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, बिहार, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, राजस्थान, झारखंड और ओडिशा की लगभग 4710 मुस्लिम महिलाओं की राय जानी। इस सर्वे में चौंका देने वाले तथ्य सामने आए। शादी, तलाक, एक से ज्यादा शादि, घरेलू हिंसा और शरिया अदालतों पर महिलाओं ने खुलकर अपनी राय रखी। राय रखने वाली 73 फीसदी महिलाएं गरीब तबके से थीं, जिनकी सालाना आय 50 हजार रुपये से भी कम है। सर्वें में शामिल 55 फीसदी औरतों की शादी 18 साल से कम उम्र में हुई और 44 फीसदी महिलाओं के पास अपना निकाहनामा तक नहीं है। सर्वे के अनुसार 53.2 फीसदी मुस्लिम महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हैं। लगभग 75 फीसदी औरतें चाहती थीं कि लड़की की शादी की उम्र 18 से ऊपर हो और लड़के की 21 साल से ऊपर। सर्वे में शामिल 40 फीसदी औरतों को 1000 से भी कम मेहर मिली, जबकि 44 फीसदी को तो मेहर की रकम मिली ही नहीं। सर्वे में शामिल 525 तलाकशुदा महिलाओं में से 65.9 फीसदी का जुबानी तलाक हुआ। 78 फीसदी का एकतरफा तरीके से तलाक हुआ लगभग 83.3 फीसदी औरतों को लगता है कि मुस्लिम कानून लागू हो तो उनकी पारिवारिक समस्याएं हल हो सकती हैं और सरकार को इसके लिए कदम उठाना चाहिए।
भारतीय मुस्लिम महिला आन्दोलन मुस्लिम महिलाओं के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय मोर्चा है, जो पूरे समुदाय और विशेषरुप से मुस्लिम महिलाओं के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्षरत है। यह ‘पाक ֯‘कुरआन’ और भारतीय संविधान से मिले अधिकारों और निहित कर्तव्यों के लिए काम करता है। यह भारतीय संविधान में निहित न्याय, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को मानता है और ‘֯‘कुरआन’ के द्वारा मुस्लिम महिलाओं को मिले अधिकारों के लिए संघर्ष करता है। 13 राज्यों की 70 हजार मुस्लिम महिलाएं सदस्यों वाले राष्ट्रीय गठबंधन भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार किए जाने की जरूरत जताते हुए नवम्बर 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत कई नेताओं को पत्र लिखा था तथा बराबरी के हक और लैंगिक न्याय की मांग की थी।
यह मांग पत्र मुस्लिम महिलाओं की अपेक्षाओं और मांगों को लेकर तैयार किया गया था। भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सह संस्थापक जकिया सुमन उस समय कहा था कि इसे स्वीकार कर लेने से मुस्लिम महिलाओं को गरिमामय जीवन जीने में मदद मिल सकेगी। उनकी मांग है कि सम्पत्ति में भी मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का हिस्सा मिले। उन्होंने सुझाव दिया था कि शरियत एप्लीकेशन एक्ट- 1937 और डिजोल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट- 1939 में संशोधन कर उन्हें न्याय दिलाया जाए।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अनिल दवे और जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की बेंच ने नेशनल लीगल सर्विसेस अथॉरिटी से इस बारे में जवाब मांगा था कि क्या भारत में मुस्लिम महिलाओं के साथ होने वाले लैंगिक भेदभाव को उनके मूल अधिकारों का हनन नहीं माना जाना चाहिए, ये वे मूल अधिकार हैं जो कि उन्हें संविधान की 14, 15 और 21 धाराओं के तहत मिले हैं।
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सह संस्थापक जकिया सुमन ने जानकारी दी थी कि ‘लैंगिक न्याय हमारे संविधान का सिद्धांत है। प्रधानमंत्री को हमारे मांगपत्र के जरिए हम मुस्लिम महिलाओं की चिंता सरकार तक पहुंचाना चाहते हैं। हमने मुस्लिम महिलाओं की अपेक्षाओं और मांगों पर आधारित ड्राफ्ट तैयार किया है।
‘कितना कठिन होता है अपने-आप से लड़ते हुए जीवन बिताना। औरतों की जि़न्दगी में मूक-बधिर की तरह हुकुम का पालन करना, रेवड़ के साथ चलते जाना क्यों होता है.... मुस्लिम महिलाओं के जीवन पर आधारित नमिता सिंह के उपन्यास ‘लेडीज़ क्लब’ का यह वाक्य विवश करता है कि भारत में मुस्लिम महिलाओं के वर्तमान और भविष्य के बारे में चिन्तन किया जाए। मार्च 2010 में नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर मुस्लिम महिलाओं ने प्रदर्शन किया था। प्रदर्शन का विषय था महिला आरक्षण बिल। प्रदर्शनकारी महिलाओं का समर्थन करते हुए गीतकार और राज्य सभा में मनोनीत सदस्य जावेद अख्तर ने कहा था कि ‘महिला आरक्षण बिल को अब कोई भी नहीं रोक सकता है। यह ठीक इसी तरह है जैसे सुबह को होने से कोई रोक नहीं सकता, वक़्त को गुजरने से कोई रोक नही सकता या मौसम को बदलने से रोका नही जा सकता। दुनिया के बावन मुस्लिम मुल्कों में से पचास मुल्कों में तलाक़-तलाक़ कहने पर तलाक नहीं हो जाता। यह भारत ही है जहां यह प्रथा जारी है जिसे मौलवी-मुल्लाओं की सरपरस्ती हासिल है।’
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की दिल्ली इकाई की ओर से आयोजित प्रदर्शन में जावेद अख़्तर ने ज़ोर दे कर कहा था कि ‘जो लोग मुस्लिम महिलाओं की बदहाली के जिम्मेदार हैं, आज वही संसद में मुस्लिम महिलाओं के लिए आरक्षण मांग रहे हैं। मतलब साफ है-विधेयक के पारित होने में वे रुकावट डालना चाहते हैं। ये वही लोग हैं जो चाहते हैं कि मुस्लिम महिलाएं घर से न निकलें और पर्दे में रहें। दरअसल उनकी इस मांग से खुद उनके चेहरे का नकाब उठ गया है।’
इसीं महिला आरक्षण विधेयक पारित होने के बाद मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड और शियाओं की ओर से कल्बे जव्वाद ने विरोध किया था। कल्बे जव्वाद ने तो यहां तक कह दिया था कि ‘मुस्लिम महिला का काम घर से निकलना नहीं, बल्कि घर में रहकर अच्छी नस्ल के बच्चे पैदा करना है।’
लेकिन क्या सभी मुस्लिम पुरुष अपने धर्म की महिलाओं के विरोधी हैं, इसका उत्तर जून 2012 में बड़े सटीक ढंग से मिला। देश की प्रमुख इस्लामी शिक्षण संस्था बरेली मरकज ने जब घोषणा की कि पति के जुल्म और घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को तलाक (खुला) लेकर अलग होने का पूरा अधिकार है। बरेली मरकज ने यह बात एक फतवे में कही। यह फतवा घरेलू हिंसा से जुड़े एक सवाल के संदर्भ में दिया गया। एक युवती ने बरेली मरकज से सवाल किया था कि अगर किसी महिला के साथ उसका पति जुल्म करता है तो उससे वह कैसे अलग हो सकती है शरिया में पत्नी की ओर से तलाक की पहल करने की इजाजत है या नहीं? इस सवाल पर आए फतवे में कहा गया है कि इस्लाम में पूरी आजादी है कि महिला अपने शौहर से तलाक लेकर अपनी जिंदगी का फैसला कर सकती है। इस्लाम में पति के सम्मान की बात की गई है, लेकिन उसका जुल्म सहना किसी भी सूरत में जायज नहीं है। संस्था से जुड़े दारूल इफ्ता के प्रमुख मुफ्ती कफील अहमद ने फतवे में कहा कि इस्लाम में महिलाओं को सताना अथवा उनके साथ जुल्म करना बहुत बड़ा गुनाह है। अगर कोई महिला इस तरह के जुल्म का शिकार हो रही है तो उसे शौहर से तलाक लेने का पूरा हक़ है। यह अधिकार उसे इस्लाम ने दे रखा है। इस्लाम में विवाह को खत्म करने के लिए पति और पत्नी दोनों को अधिकार है। पति को यह अधिकार तलाक और पत्नी को खुला के रूप में दिया गया है।
फतवे पर ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की प्रमुख शाइस्ता अंबर ने कहा था कि ‘इस्लाम में महिलाओं को पूरा अधिकार दिया गया है कि वह अपनी जिंदगी का फैसला खुद कर सकती हैं। इतनी बड़ी संस्था ने इस्लामी नजरिए से यह फतवा दिया है और हम इससे पूरा इत्तेफ़ाक रखते हैं।’
सरकार एवं समाज चिन्तित है मुस्लिम महिलाओं के बहुमुखी विकास को ले कर किन्तु क्या मात्रा इससे कोई हल निकल सकता है कि महिलाओं को कानूनी अधिकार दे दिए जाएं? यह भी तो उतना ही जरूरी है कि महिलाएं अपने अधिकारों को जान सकें और उन्हें पाने का साहस कर सकें। पढ़ी-लिखी महिला ही अपना कानूनी अधिकार सुगमता से प्राप्त कर पाती है। सन् 2001 के आंकड़ों के आधार पर सच्चर कमेटी की रिपोर्ट थी कि समाज के अन्य धर्मों की महिलाओं की तुलना में मुस्लिम महिलाओं में शिक्षा का प्रतिशत बहुत कम है। मुस्लिम महिलाओं में केवल 41 प्रतिशत महिलाएं साक्षर थी जबकि गैर मुस्लिम महिलाओं में 46 प्रतिशत महिलाएं साक्षर थी। स्कूलों में मुसलमान लड़कियों की संख्या अनुसूचित जाति एवं जनजातियों की तुलना में तीन प्रतिशत कम थी। 101 मुस्लिम महिलाओं में से केवल एक मुस्लिम महिला स्नातक कर सकी जबकि 37 गैरमुस्लिमों में से एक महिला ने स्नातक उपाधि पाई। यही वो बुनियाद है जहां से मुस्लिम महिलाओं के बहुमुखी विकास के रास्ते खुल सकते हैं। मुस्लिम महिलाओं के मध्य शिक्षा को अधिक से अधिक बढ़ावा दिए जाने पर परिदृश्य बदल सकता है। इसके लिए आवश्यक हो जाता है कि मुस्लिम महिलाओं पर केन्द्रित जागरुकता एवं साक्षरता शिविर का आयोजन किया जाए। आखिर मुस्लिम महिलाओं के विकास का भविष्य देश के विकास के भविष्य से अलग नहीं है। पढ़ी-लिखी मुस्लिम महिलाएं देश के विकास में उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं जितनी कि गैरमुस्लिम महिलाएं।
-------------------------------------- https://www.facebook.com/1735738846657624/photos/pcb.1759923027572539/1759921714239337/?type=3&theater

Wednesday, March 23, 2016

विवादों के रंग और सद्कार्यों की उमंग

An article of Dr (Miss) Sharad Singh
 

"दैनिक सागर दिनकर" में  23. 03. 2016 को प्रकाशित मेरे लेख






विवादों के रंग और सद्कार्यों की उमंग 

- डॉ. शरद सिंह 
    
देश के राजनीतिक पटल पर पिछले कई माह से लाल, पीले, काले, हरे, केसरिया रंग उड़ते दिखाई दे रहे हैं। ये रंग विवादों के हैं। उन विवादों के जिनकी जड़ें देश की आजादी के पहले से मजबूत थी और आज भी ये विवाद हरियाए हुए हैं। विवादों की सतत श्रृंखला देख-देख कर तो यही लगता है कि कुछ समय बाद षायद यह कहा जाने लगे कि हम विवादप्रिय हैं। विवादों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। विवादों के रंग उड़-उड़ कर एक-दूसरे के चेहरे रंगे जा रहे हैं और रंग उड़ाने वाले ताल ठोंक कर अपनी-अपनी प्रसन्नता का प्रदर्शन कर रहे हैं। एक विवाद समाप्त हो नहीं पाता है कि दूसरा सामने खड़ा मिलता है। वैसे जहां विचारों को प्रकट करने की स्वतंत्रता होगी, वहां विवाद तो उपजेंगे ही। बेशक लोकतंत्र में विवादों की पर्याप्त जगह रहती है। इसे लोकतंत्र की स्वस्थ परंपरा का प्लस-प्वांइट कहा जा सकता है। लेकिन विवाद भी तो प्लस तरीके से होना चाहिए। सिर्फ़ हाय-हाय करने से, देश को मिटाने के नारे लगाने से विवाद का वास्तविक स्वरूप उभर कर नहीं आ पाता है।
जेएनयू के प्रांगण में जिस विवाद का रंग खेला गया वह दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा। कुतर्कों की पिचकारी से इतिहास के रंगों को बदला नहीं जा सकता है। कश्मीर भारतीय राजनीति की दुखती रग है। रियासतों के विलय के समय यदि कश्मीर की समस्या को लौहपुरुष वल्लभ भाई पटेल को नहीं सौंपा गया तो उसका खामियाजा आज तक भुगतना पड़ रहा है। 30 अगस्त 1968 को लोकसभा में धारा 370 पर बोलते हुए भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि ‘‘जम्मू-कश्मीर और शेष भारत के बीच में आज एक मनोवैज्ञानिक दीवार खड़ी है। यह दीवार जम्मू-कश्मीर में अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न करती है। यह दीवार भारत विरोधी तत्वों को बल प्रदान करती हैै। यह दीवार एकीकरण के मार्ग में बाधा है। समय आ गया है कि अब यह मनोवैज्ञानिक रुकावट दूर कर दी जाए और जम्मू-कश्मीर अन्य राज्यों की तरह भारतीय गणराज्य में आदर और बराबरी का स्थान प्राप्त करे। ....जिन परिस्थतियों में विशेष दर्जा दिए जाने की बात कही गई थी, वे परिस्थितियां आज नहीं हैं।’’
कश्मीर की समस्या पर अब तक इतना लहू बह चुका है कि अब लहू के इस लाल रंग का शांतिपूर्ण ढंग से निपटारा किया जाना जरूरी हो गया है। जेएनयू प्रकरण ने इस समस्या की गंभीरता को एक नए ढंग से रेखांकित कर दिया। एक बार फिर कुछ युवा दूषित राजनीति के जाल में फंसे हुए दिखाई पड़े । इन युवाओं ने यदि जल समस्या, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार या बढ़ते अपराधों को मुद्दा बनाया होता या फिर राजनीति के काले पक्ष को उजागर करने का साहस किया होता तो उनका अभियान सार्थक सिद्ध होता। उन्हें जनसमर्थन भी मिलता लेकिन देश को कोसने में उनका साथ भला कौन देगा? किसने किसके कंधे पर बंदूक रखी और किसके सीने को निषाने पर रखा, यह विचारणीय है।
जेएनयू में देश विरोधी नारे लगने और इस पर हो रही सियासत पर बॉलीवुड की दिग्गज हस्तियों का भी चिंतित हो उठना स्वाभाविक था। अंकुश’, ‘तेजाबऔर प्रतिघातजैसी फिल्में बना चुके चर्चित डायरेक्टर एन चंद्रा ने जहां जेएनयू और कथित असहिष्णुता के मुद्दे पर फिल्म बनाने की बात कही, वहीं प्रयाग फिल्म फेस्टिवल के उद्घाटन समारोह में उन्होंने अपनी यह इच्छा प्रकट की थी। लेकिन ऐसे संवेदनशील विषयों पर फिल्म बनाते समय इस बात का ध्यान उन्हें रखना होगा कि कहीं कोई गलत तत्व महिमामंडित न हो जाए।
जेएनयू विवाद थमा नहीं था कि संसद का सत्र आरम्भ हो गया। अब संसद को तो बरसाना बनना ही था। जी हां, लट्ठमार होली वाला बरसाना। ब्रज के बरसाना गांव में होली एक अलग तरह से खेली जाती है जिसे लठमार होली कहते हैं। ब्रज में वैसे भी होली खास मस्ती भरी होती है क्योंकि इसे कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है। यहाँ की होली में मुख्यतः नंदगांव के पुरूष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंदगांव के थे और राधा बरसाने की थीं। नंदगांव की टोलियां जब पिचकारियां लिए बरसाना पहुंचती हैं तो उनपर बरसाने की महिलाएं खूब लाठियां बरसाती हैं। पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है और साथ ही महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है। नंदगांव और बरसाने के लोगों का विश्वास है कि होली की लाठियों से किसी को चोट नहीं लगती है। अगर चोट लगती भी है तो लोग घाव पर मिट्टी मलकर फिर शुरु हो जाते हैं। इस दौरान भांग और ठंडाई का भी जमकर सेवन किया जाता है। राजनीति में शक्तिसम्पन्नता का नषा भांग या ठंडाई से कम नहीं होता है। संसद भवन में राजनीतिक शक्ति से परिपूर्ण लोग ही विराजते हैं, बेषक उन्हें यह शक्ति जनता ने ही दी होती है। लेकिन सदन का बहिष्कार, नारेबाजी, झूमाझटकी संसद में भी चलती रहती है। इस बार संसद में दो महिलाओं के बीच लट्ठमार होली की नौबत आते-आते बची। जरा याद कीजिए कि किस प्रकार स्मृति ईरानी ने उनके उत्तर पर विरोधियों के संतुष्ट न होने पर अपना सिर काट कर विरोधियों के चरणों में रख देने की हुंकार भरी तो विरोध में अपना स्वर मुखर करती हुई मायावती ने कहा कि वे स्मृति ईरानी के उत्तर से संतुष्ट नहीं हैं अतः स्मृति को अपना वचन पूरा करना चाहिए। स्मृति ईरानी ने भी ललकारा कि वे यानी मायावती चाहें तो उनका सिर काट सकती हैं। इस दृष्य के बाद तो संसद को भारतीय राजनीति का बरसाना कहने का दिल करता है।
राजनीति अथवा राजनीतिज्ञ हमेशा गड़बड़ ही करते हों यह जरूरी नहीं है। अनेक अच्छे काम भी इन्हीं के सौजन्य से होते हैं। वह कहावत है न कि यदि इरादे नेक हों तो काम भी नेक होते हैं। नेकी का एक काम सुरखी विधान सभा की विधायक पारुल साहू ने किया। यूं तो वे अच्छे काम करती ही रहती हैं लेकिन यह काम ठीक वैसा ही है जैसे किसी ने माथे पर तिलक लगा कर प्यार से होली की शुभकामनाएं दी हों। वे उस बच्ची को देखने बुंदेलखण्ड मेडिकल कॉलेज पहुंचीं जहां वह बच्ची सरिता इलाज के लिए भर्ती है जिसे उसके पिता ने जान से मारने का प्रयास किया था। उसकी मां पारिवारिक कलह के चलते पहले ही मौत को गले लगा चुकी है और उसकी दो बहनों की मौत घटना स्थल पर हो गई थी। सरिता बच गयी थी। उसका इलाज मेडिकल कालेज में चल रहा है। सुरखी विधायक पारुल साहू रविवार को सरिता को देखने बुन्देलखंड मेडिकल कॉलेज गईं। सरिता जैसीनगर क्षेत्र के बदौआ गांव की है। जो 16 मार्च 2016 को पिता चन्द्रभान गौड़ द्वारा कैंचा से किए गए हमले में घायल हुई थी, इसी हमले में उसकी दो बहनों की मौत घटना स्थल पर हो गई थी। रविवार को विधायक जिस समय सरिता के पलंग के पास पहुंचीं, उस दौरान सरिता बेसुध पड़ी थी। उसके घुटने का घाव खुला था। विधायक ने पाया कि ड्यूटी वाली नर्स मोबाईल पर गाने सुन रही थी और ड्यूटी वाला डॉक्टर अस्पताल के बाहर किसी मेडिकल स्टोर में बैठा था। विधायक के पहल करने पर उस जख्मी बच्ची के खुले घाव की ड्रेसिंग हो सकी। इसके पहले गोया इलाज का केवल दिखावा किया जा रहा था। विधायक के पहुंचने के बाद लगभग चैबीस घंटे के भीतर लगभग साढ़े तीन हजार की दवा मेडिकल स्टोर से खरीदी गईं। विधायक ने स्पष्ट शब्दों में डॉक्टर से कहा ‘‘बच्ची की जान बचाना है। इलाज में किसी भी तरह की कोताही न हो। पैसों की बात हो या दवाई की। मुझे बताएं, मैं व्यवस्था करूंगी।’’
इस अच्छे काम की मिठास ने एक बार फिर भरोसा दिलाया कि यदि जनसेवक अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहें तो जनता की आशाओं में खरे उतर सकते हैं।
मिठास की दिशा में विश्व सूफी सम्मेलन को भी याद किया जाना जरूरी है। सूफी सम्मेलन में पाकिस्तान समेत 20 देशों के 200 से भी अधिक मशहूर सूफी विद्वानों ने समारोह में भाग लिया।  कार्यक्रम से पहले अखिल भारतीय उलेमा और एआईयूएमबी के संस्थापक अध्यक्ष सैयद मोहम्मद अशरफ ने कहा था  कि समारोह का उद्देश्य दुनियाभर में हिंसक उग्रवाद से लड़ने के लिए इस्लाम के शांति और सहिष्णुता के संदेश को फैलाना है। तमाम विवादों को परे रख कर सूफी सम्मेलन में मुक्त कंठ से ‘‘भारत माता की जय’’ के नारे लगाए गए। विश्व सूफी सम्मेलन के आखिरी दिन जारी घोषणापत्र में आतंकवाद को इंसानियत और इस्लाम का दुश्मन घोषित किया गया। पाकिस्तान से आए सूफी धर्मगुरू ताहिर उल कादरी ने इस मौके पर भारत-पाकिस्तान से साथ मिलकर आतंकवाद से लड़ने की अपील की। पाकिस्तान के जाने-माने धर्मगुरू और सूफी विद्वान ताहिर उल कादरी की ये अपील दिल्ली में चल रहे विश्व सूफी सम्मेलन के आखिरी दिन गूंजी। ताहिर उल कादरी ने आतंकवाद को पूरी इंसानियत का दुश्मन बताते हुए इसके खात्मे की अपील की। विश्व सूफी सम्मेलन में दुनिया भर से डेढ़ सौ से ज्यादा विद्वान जुटे थे। सम्मेलन के आखिरी दिन विश्व सूफी फोरम ने अपना घोषणापत्र जारी किया। इसमें कहा गया, “हम तालिबान, अल कायदा जैसे आतंकवादी संगठनों की उस विचारधारा की निंदा करते हैं, जो इंसानियत के खिलाफ है और दुनिया भर में तबाही फैला रही है। हमारी मुस्लिम नौजवानों से पुरजोर अपील है कि वो शांति और इस्लाम के दुश्मन ऐसे आतंकी संगठनों से खुद को दूर रखें और कट्टरपंथी सोच से बचें।
    ________________________________
 

Wednesday, March 16, 2016

Dr Sharad Singh Honored by "Shakti Samman - 2016"

Dr Sharad Singh Honored by "Shakti Samman - 2016" on the occasion of International Women's Day
Function held on 13 March 2016 at Ravindra Bhavan, Sagar, Madhya Pradesh, India
From left : Honorable Chairman Municipal Corporation Raj bahadur Singh, MLA Sagar Shailendra Jain, Chairperson Madhya Pradesh State Women's Commission Smt Lata Wankhede, Mayor Sagar Abhay Dare, Transport Minister MP Govt Bhupendra Singh, MP Sagar Laxmi Narayan Yadav, Dr (Miss) Sharad Singh , Chairperson Zila Panchayat Sagar Smt Divya Singh, MLA Surkhi Smt Parul Sahu Kesari, and a official of BJP Mahila Morcha........... Dr Sharad Singh Honored by "Shakti Samman - 2016",  Ravindra Bhavan, Sagar, Madhya Pradesh, India

Dr Sharad Singh Honored by "Shakti Samman - 2016",  Ravindra Bhavan, Sagar, Madhya Pradesh, India


Dr Sharad Singh Honored by "Shakti Samman - 2016",  Ravindra Bhavan, Sagar, Madhya Pradesh, India

Dr Sharad Singh Honored by "Shakti Samman - 2016",  Ravindra Bhavan, Sagar, Madhya Pradesh, India

Dr Sharad Singh Honored by "Shakti Samman - 2016",  Ravindra Bhavan, Sagar, Madhya Pradesh, India

Dr Sharad Singh Honored by "Shakti Samman - 2016",  Ravindra Bhavan, Sagar, Madhya Pradesh, India

Dr Sharad Singh honored by "Patrika" News Paper on Celebration of International Women's Day 2016

Dr Sharad Singh honored by "Patrika" News Paper on Celebration of International Women's Day 2016
08 March 2016
Dr (Miss) Sharad Singh

Dr Sharad Singh honored by "Patrika" News Paper on Celebration of International Women's Day 2016 .... 08 March 2016


Dr Sharad Singh honored by "Patrika" News Paper on Celebration of International Women's Day 2016 .... 08 March 2016

"Patrika" News Paper, 09 March 2016

Dr Sharad Singh honored by "Patrika" News Paper on Celebration of International Women's Day 2016 .... 08 March 2016

Dr Sharad Singh honored by "Patrika" News Paper on Celebration of International Women's Day 2016 .... 08 March 2016

Dr Sharad Singh honored by "Patrika" News Paper on Celebration of International Women's Day 2016 .... 08 March 2016

Dr Sharad Singh honored by "Patrika" News Paper on Celebration of International Women's Day 2016 .... 08 March 2016

Dr Sharad Singh honored by "Patrika" News Paper on Celebration of International Women's Day 2016 .... 08 March 2016