Pages

My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, March 30, 2016

चर्चा प्लस ... भारतीय मुस्लिम महिलाओं का भविष्य .... डॉ. शरद सिंह

Charcha Plus - Column of Dr Sharad Singh
My Column “ Charcha Plus” published in  "Dainik Sagar Dinkar" , 30. 03. 2016
मेरा कॉलम 'चर्चा प्लस’ दिनांक 30. 03. 2016 के  "दैनिक सागर दिनकर"(सागर, मध्य प्रदेश)
में प्रकाशित ....

           
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper

 चर्चा प्लस
         भारतीय मुस्लिम महिलाओं का भविष्य
                           - डॉ. शरद सिंह


एक गैरसरकारी संस्था भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने मुस्लिम पारिवारिक कानून पर क्या सोचती हैं मुस्लिम महिलाएं’ विषय पर महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, बिहार, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, राजस्थान, झारखंड और ओडिशा की लगभग 4710 मुस्लिम महिलाओं की राय जानी। इस सर्वे में चौंका देने वाले तथ्य सामने आए। शादी, तलाक, एक से ज्यादा शादि, घरेलू हिंसा और शरिया अदालतों पर महिलाओं ने खुलकर अपनी राय रखी। राय रखने वाली 73 फीसदी महिलाएं गरीब तबके से थीं, जिनकी सालाना आय 50 हजार रुपये से भी कम है। सर्वें में शामिल 55 फीसदी औरतों की शादी 18 साल से कम उम्र में हुई और 44 फीसदी महिलाओं के पास अपना निकाहनामा तक नहीं है। सर्वे के अनुसार 53.2 फीसदी मुस्लिम महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हैं। लगभग 75 फीसदी औरतें चाहती थीं कि लड़की की शादी की उम्र 18 से ऊपर हो और लड़के की 21 साल से ऊपर। सर्वे में शामिल 40 फीसदी औरतों को 1000 से भी कम मेहर मिली, जबकि 44 फीसदी को तो मेहर की रकम मिली ही नहीं। सर्वे में शामिल 525 तलाकशुदा महिलाओं में से 65.9 फीसदी का जुबानी तलाक हुआ। 78 फीसदी का एकतरफा तरीके से तलाक हुआ लगभग 83.3 फीसदी औरतों को लगता है कि मुस्लिम कानून लागू हो तो उनकी पारिवारिक समस्याएं हल हो सकती हैं और सरकार को इसके लिए कदम उठाना चाहिए।
भारतीय मुस्लिम महिला आन्दोलन मुस्लिम महिलाओं के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय मोर्चा है, जो पूरे समुदाय और विशेषरुप से मुस्लिम महिलाओं के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्षरत है। यह ‘पाक ֯‘कुरआन’ और भारतीय संविधान से मिले अधिकारों और निहित कर्तव्यों के लिए काम करता है। यह भारतीय संविधान में निहित न्याय, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को मानता है और ‘֯‘कुरआन’ के द्वारा मुस्लिम महिलाओं को मिले अधिकारों के लिए संघर्ष करता है। 13 राज्यों की 70 हजार मुस्लिम महिलाएं सदस्यों वाले राष्ट्रीय गठबंधन भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार किए जाने की जरूरत जताते हुए नवम्बर 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत कई नेताओं को पत्र लिखा था तथा बराबरी के हक और लैंगिक न्याय की मांग की थी।
यह मांग पत्र मुस्लिम महिलाओं की अपेक्षाओं और मांगों को लेकर तैयार किया गया था। भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सह संस्थापक जकिया सुमन उस समय कहा था कि इसे स्वीकार कर लेने से मुस्लिम महिलाओं को गरिमामय जीवन जीने में मदद मिल सकेगी। उनकी मांग है कि सम्पत्ति में भी मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का हिस्सा मिले। उन्होंने सुझाव दिया था कि शरियत एप्लीकेशन एक्ट- 1937 और डिजोल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट- 1939 में संशोधन कर उन्हें न्याय दिलाया जाए।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अनिल दवे और जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की बेंच ने नेशनल लीगल सर्विसेस अथॉरिटी से इस बारे में जवाब मांगा था कि क्या भारत में मुस्लिम महिलाओं के साथ होने वाले लैंगिक भेदभाव को उनके मूल अधिकारों का हनन नहीं माना जाना चाहिए, ये वे मूल अधिकार हैं जो कि उन्हें संविधान की 14, 15 और 21 धाराओं के तहत मिले हैं।
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सह संस्थापक जकिया सुमन ने जानकारी दी थी कि ‘लैंगिक न्याय हमारे संविधान का सिद्धांत है। प्रधानमंत्री को हमारे मांगपत्र के जरिए हम मुस्लिम महिलाओं की चिंता सरकार तक पहुंचाना चाहते हैं। हमने मुस्लिम महिलाओं की अपेक्षाओं और मांगों पर आधारित ड्राफ्ट तैयार किया है।
‘कितना कठिन होता है अपने-आप से लड़ते हुए जीवन बिताना। औरतों की जि़न्दगी में मूक-बधिर की तरह हुकुम का पालन करना, रेवड़ के साथ चलते जाना क्यों होता है.... मुस्लिम महिलाओं के जीवन पर आधारित नमिता सिंह के उपन्यास ‘लेडीज़ क्लब’ का यह वाक्य विवश करता है कि भारत में मुस्लिम महिलाओं के वर्तमान और भविष्य के बारे में चिन्तन किया जाए। मार्च 2010 में नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर मुस्लिम महिलाओं ने प्रदर्शन किया था। प्रदर्शन का विषय था महिला आरक्षण बिल। प्रदर्शनकारी महिलाओं का समर्थन करते हुए गीतकार और राज्य सभा में मनोनीत सदस्य जावेद अख्तर ने कहा था कि ‘महिला आरक्षण बिल को अब कोई भी नहीं रोक सकता है। यह ठीक इसी तरह है जैसे सुबह को होने से कोई रोक नहीं सकता, वक़्त को गुजरने से कोई रोक नही सकता या मौसम को बदलने से रोका नही जा सकता। दुनिया के बावन मुस्लिम मुल्कों में से पचास मुल्कों में तलाक़-तलाक़ कहने पर तलाक नहीं हो जाता। यह भारत ही है जहां यह प्रथा जारी है जिसे मौलवी-मुल्लाओं की सरपरस्ती हासिल है।’
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की दिल्ली इकाई की ओर से आयोजित प्रदर्शन में जावेद अख़्तर ने ज़ोर दे कर कहा था कि ‘जो लोग मुस्लिम महिलाओं की बदहाली के जिम्मेदार हैं, आज वही संसद में मुस्लिम महिलाओं के लिए आरक्षण मांग रहे हैं। मतलब साफ है-विधेयक के पारित होने में वे रुकावट डालना चाहते हैं। ये वही लोग हैं जो चाहते हैं कि मुस्लिम महिलाएं घर से न निकलें और पर्दे में रहें। दरअसल उनकी इस मांग से खुद उनके चेहरे का नकाब उठ गया है।’
इसीं महिला आरक्षण विधेयक पारित होने के बाद मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड और शियाओं की ओर से कल्बे जव्वाद ने विरोध किया था। कल्बे जव्वाद ने तो यहां तक कह दिया था कि ‘मुस्लिम महिला का काम घर से निकलना नहीं, बल्कि घर में रहकर अच्छी नस्ल के बच्चे पैदा करना है।’
लेकिन क्या सभी मुस्लिम पुरुष अपने धर्म की महिलाओं के विरोधी हैं, इसका उत्तर जून 2012 में बड़े सटीक ढंग से मिला। देश की प्रमुख इस्लामी शिक्षण संस्था बरेली मरकज ने जब घोषणा की कि पति के जुल्म और घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को तलाक (खुला) लेकर अलग होने का पूरा अधिकार है। बरेली मरकज ने यह बात एक फतवे में कही। यह फतवा घरेलू हिंसा से जुड़े एक सवाल के संदर्भ में दिया गया। एक युवती ने बरेली मरकज से सवाल किया था कि अगर किसी महिला के साथ उसका पति जुल्म करता है तो उससे वह कैसे अलग हो सकती है शरिया में पत्नी की ओर से तलाक की पहल करने की इजाजत है या नहीं? इस सवाल पर आए फतवे में कहा गया है कि इस्लाम में पूरी आजादी है कि महिला अपने शौहर से तलाक लेकर अपनी जिंदगी का फैसला कर सकती है। इस्लाम में पति के सम्मान की बात की गई है, लेकिन उसका जुल्म सहना किसी भी सूरत में जायज नहीं है। संस्था से जुड़े दारूल इफ्ता के प्रमुख मुफ्ती कफील अहमद ने फतवे में कहा कि इस्लाम में महिलाओं को सताना अथवा उनके साथ जुल्म करना बहुत बड़ा गुनाह है। अगर कोई महिला इस तरह के जुल्म का शिकार हो रही है तो उसे शौहर से तलाक लेने का पूरा हक़ है। यह अधिकार उसे इस्लाम ने दे रखा है। इस्लाम में विवाह को खत्म करने के लिए पति और पत्नी दोनों को अधिकार है। पति को यह अधिकार तलाक और पत्नी को खुला के रूप में दिया गया है।
फतवे पर ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की प्रमुख शाइस्ता अंबर ने कहा था कि ‘इस्लाम में महिलाओं को पूरा अधिकार दिया गया है कि वह अपनी जिंदगी का फैसला खुद कर सकती हैं। इतनी बड़ी संस्था ने इस्लामी नजरिए से यह फतवा दिया है और हम इससे पूरा इत्तेफ़ाक रखते हैं।’
सरकार एवं समाज चिन्तित है मुस्लिम महिलाओं के बहुमुखी विकास को ले कर किन्तु क्या मात्रा इससे कोई हल निकल सकता है कि महिलाओं को कानूनी अधिकार दे दिए जाएं? यह भी तो उतना ही जरूरी है कि महिलाएं अपने अधिकारों को जान सकें और उन्हें पाने का साहस कर सकें। पढ़ी-लिखी महिला ही अपना कानूनी अधिकार सुगमता से प्राप्त कर पाती है। सन् 2001 के आंकड़ों के आधार पर सच्चर कमेटी की रिपोर्ट थी कि समाज के अन्य धर्मों की महिलाओं की तुलना में मुस्लिम महिलाओं में शिक्षा का प्रतिशत बहुत कम है। मुस्लिम महिलाओं में केवल 41 प्रतिशत महिलाएं साक्षर थी जबकि गैर मुस्लिम महिलाओं में 46 प्रतिशत महिलाएं साक्षर थी। स्कूलों में मुसलमान लड़कियों की संख्या अनुसूचित जाति एवं जनजातियों की तुलना में तीन प्रतिशत कम थी। 101 मुस्लिम महिलाओं में से केवल एक मुस्लिम महिला स्नातक कर सकी जबकि 37 गैरमुस्लिमों में से एक महिला ने स्नातक उपाधि पाई। यही वो बुनियाद है जहां से मुस्लिम महिलाओं के बहुमुखी विकास के रास्ते खुल सकते हैं। मुस्लिम महिलाओं के मध्य शिक्षा को अधिक से अधिक बढ़ावा दिए जाने पर परिदृश्य बदल सकता है। इसके लिए आवश्यक हो जाता है कि मुस्लिम महिलाओं पर केन्द्रित जागरुकता एवं साक्षरता शिविर का आयोजन किया जाए। आखिर मुस्लिम महिलाओं के विकास का भविष्य देश के विकास के भविष्य से अलग नहीं है। पढ़ी-लिखी मुस्लिम महिलाएं देश के विकास में उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं जितनी कि गैरमुस्लिम महिलाएं।
-------------------------------------- https://www.facebook.com/1735738846657624/photos/pcb.1759923027572539/1759921714239337/?type=3&theater

3 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31 - 03 - 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2298 में दिया जाएगा
    धन्यवाद 

    ReplyDelete
  2. हार्दिक आभार विर्क जी ....

    ReplyDelete
  3. अभी हाल ही में ऐसी ही एक चर्चा टी वी पर भी एक न्यूज़ चैनल में हो रही थी जरुरी है मुस्लिम महिलाए सामने आकर अपने हक़ की लडाई एक जुट हो कर करे ..

    ReplyDelete