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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, May 18, 2016

चर्चा प्लस ….. कुंभ से विचार महाकुंभ तक ….. डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh at International Vichar MahaKumbh, Ninora, Ujjain, MP - 12.05.2016
मेरा कॉलम 'चर्चा प्लस’ "दैनिक सागर दिनकर" में (18. 05. 2016) ..... My Column “ Charcha Plus” in "Dainik Sagar Dinkar" .....

चर्चा प्लस 
कुंभ से विचार महाकुंभ तक 
- डॉ. शरद सिंह
इन्दौर और उज्जैन के बीच निनोरा ग्राम में सामयिक तौर पर खेतों की ज़मीन का अधिग्रहण कर के एक ऐसा आयोजन स्थल बनाया गया जहां 42 देशों के विद्वानों को एक साथ बैठ कर उन सभी विषयों पर चिंतन, मनन करना था जिनके अभाव और असंतुलन से मनुष्य के भावी जीवन को खतरा दिखाई देने लगा है। मुझे भी इस अंतर्राष्ट्रीय विचार महाकुंभ में शामिल होने का निमंत्रण मिला। एक उत्सुकता के साथ मैं भी निनोरा पहुंची। एक भव्य नखलिस्तान मेरे सामने था, बिलकुल किसी फिल्मी सेट की तरह जिसका बजट करोड़ों का हो। चिलचिलाती धूप और लपट भरी हवाओं के बीच पूर्ण वातानुकूलित आयोजन स्थल। विदेशी क्या देशी अतिथि विद्वानों को भी कोई कष्ट होने वाला नहीं था। मुख्यसभागृह के अतिरिक्त चार चिन्तन कक्ष बनाए गए थे जिनमें लगातार चर्चा-परिचर्चा होनी थी। विचार कुंभ के उद्घाटन के साथ ही चिन्तन-मनन का दौर आरम्भ हो गया। इसके बाद यह मानना ही पड़ा कि विचार महाकुंभ के आमंत्रण को स्वीकार करना मेरा सही निर्णय था। सदी के दूसरे सिंहस्थ में राज्य सरकार द्वारा युगों पुरानी विचार-मंथन की परम्परा को पुनर्जीवित करते हुए सामयिक विषयों पर विचार-विमर्श के लिये अंतर्राष्ट्रीय विचार महाकुंभ का आयोजन निनोरा, उज्जैन में 12-14 मई को किया गया।
कुंभ की परिकल्पना भले ही धार्मिक विचारों से उपजी हो लेकिन प्रकृति के प्रति लगाव एवं निष्ठा इसका मूलमंत्र है। नदियांे के तट कुंभ आयोजनों के आदिस्थल माने गए हैं। इसलिए कुंभ में जब विचार महाकुंभ की संकल्पना को मूत्र्तरूप दिया गया तो उसके मेनीफेस्टो यानी ’’सार्वभौम अमृत संदेश’’ में मानव जीवन की रक्षा के लिए प्रकृति की सुरक्षा का आह्वान किया जाना लाजमी था। भले ही इस अमृत संदेश पर राजनीतिक कटाक्ष किए जाएं किन्तु यदि इस आयोजन में 42 देशों के विद्वान एक साथ बैठ कर नदी, तालाब, वृक्षों, कृषि, कुटीर उद्योगों और स्त्रियों की चिन्ता की जाए, स्थितियों को सुधारने के रास्ते ढूंढे जाएं तो आयोजन का उद्देश्य अच्छा ही कहा जाएगा। विश्व प्रसिद्ध सिंहस्थ महाकुंभ एक धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महापर्व है, जहां आकर व्यक्ति को आत्मशुद्धि और आत्मकल्याण की अनुभूति होती है। सिंहस्थ महाकुंभ महापर्व पर देश और विदेश के भी साधु-महात्माओं, सिद्ध-साधकों और संतों का आगमन होता है। इनके सानिध्य में आकर लोग अपने लौकिक जीवन की समस्याओं का समाधान खोजते हैं। इसके साथ ही अपने जीवन को ऊध्र्वगामी बनाकर मुक्ति की कामना भी करता है। मुक्ति को अर्थ ही बंनधमुक्त होना है और मोह का समाप्त होना ही बंधनमुक्त होना अर्थात् मोक्ष प्राप्त करना है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार पुरुषार्थों में मोक्ष ही अंतिम मंजिल है। ऐसे महापर्वों में ऋषिमुनि अपनी साधना छोड़कर जनकल्याण के लिए एकत्रित होते हैं।
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper
सिंहस्थ उज्जैन का महान स्नान पर्व है। बारह वर्षों के अंतराल से यह पर्व तब मनाया जाता है जब बृहस्पति सिंह राशि पर स्थित रहता है। इसीलिए उज्जैन में सिंहस्थ के नाम से कुंभ का आयोजन होता है। पुराणों के अनुसार देवों और दानवों सहयोग से सम्पन्न समुद्र मंथन से अन्य वस्तुओं के अलावा अमृत से भरा हुआ एक कुंभ भी निकला था। देवगण दानवों को अमृत नहीं देना चाहते थे। देवराज इंद्र के संकेत पर उनका पुत्र जयन्त जब अमृत कुंभ लेकर भागने की चेष्टा कर रहा था, तब कुछ दानवों ने उसका पीछा किया। अमृत-कुंभ के लिए स्वर्ग में बारह दिन तक संघर्ष चलता रहा और उस कुंभ से चार स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें गिर गईं। यह स्थान पृथ्वी पर हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक थे। इन स्थानों की पवित्र नदियों को अमृत की बूंदे प्राप्त करने का श्रेय मिला। क्षिप्रा के जल में अमृत की बूंद मिलने की घटना के संदर्भ में सिंहस्थ महापर्व उज्जैन में मनाया जाता है।
उज्जैन के सिंहस्थ कुंभ में विचार महाकुंभ का आयोजन करना और एक ‘मेनीफेस्टो’ जारी करना राजनीतिक हलकों में खबली मचाए हुए है। सिंहस्थ-2016 का सार्वभौम अमृत संदेश दरअसल विचार महाकुंभ तथा उसके पूर्व आयोजित संगोष्ठियों में प्राप्त अनुशंसाओं तथा सुझावों के आधार पर तैयार किया गया है जिसके प्रति मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री आश्वस्त हैं कि सार्वभौम संदेश में निहित मार्गदर्शी सिद्धांत मानव के सम्यक एवं परिपूर्ण जीवन का मार्ग प्रशस्त करेंगे। यद्यपि कतिपय राजनीतिक परिसरों में इस बात को ले कर भी चर्चा-परिचर्चा चल रही है कि इस सिंहस्थ के बाद ‘शिवराज सरकार’ को कहीं अपनी सत्ता तो नहीं गंवानी पड़ेगी? क्यों कि यह कहा जाता है कि सिंहस्थ के बाद सत्ता परिवर्तन हो जाता है। इस तथाकथित ‘अपशकुन’ की परीक्षा भी आगामी चुनाव में हो जाएगी। बहरहाल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह संतों का आशीर्वाद पा कर प्रसन्न और आश्वस्त हैं। वैसे, इसमें कोई संदेह नहीं है कि सिंहस्थ में प्रदेश शासन की ओर से व्यवस्थाओं को सुचारू बनाए रखने के लिए कोई कसर नहीं उठा रखी गई। अंाधी, पानी की आपदा आने से उत्पन्न अव्यवस्था पर जितनी तेजी से नियंत्रण पा लिया गया वह प्रशंसनीय है। यही तत्परता प्रशासन के प्रत्येक सोपान पर मिले तो आमजनता की सारी समस्याएं ही सुलझ जाएं।
सिंहस्थ महापर्व के प्रथम शाही स्नान के बाद से प्रतिदिन लगभग 25 -30 लाख श्रद्धालुओं ने धर्मलाभ लिया। रविवार एवं पर्व स्नान पर एक साथ लगभग 50 लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंचे। सम्पूर्ण सिंहस्थ में आठ से दस करोड़ श्रद्धालुओं उज्जैन पहुंच कर कुंभ में शामिल होना किसी भी प्रबंधन के लिए एक बड़ी चुनौती कहा जा सकता है। चुनौती तो वे सारी समस्याएं भी हैं जिनके कारण ग्लोबलवार्मिंग जैसे संकट उत्पन्न हो गए हैं। इसीलिए सिंहस्थ अर्थात् कुंभ के अंतर्गत् अंतर्राष्ट्रीय विचार महाकुंभ आयोजित किया गया जिसमें मानव जीवन, मानव-कल्याण के लिए धर्म, ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन, विज्ञान एवं अध्यात्म, महिला सशक्तीकरण, कृषि की ऋषि परंपरा, स्वच्छता एवं पवित्रता, कुटीर एवं ग्रामोद्योग विषयों पर भारत एवं विश्व भर के विभिन्न देशों से आए विद्वानों ने विचार विमर्श किया और उन विमर्शों से प्रेरित होकर मानव जीवन के लिए प्रासंगिक मार्गदर्शी सिद्धांतों को सिंहस्थ 2016 के ‘‘सार्वभौम अमृत संदेश’’ जारी किया गया। कुल 51 सूत्रीय ‘‘सार्वभौम अमृत संदेश’’ में मुख्य रूप से कहा गया है कि - संपूर्ण मानव जाति एक परिवार है। अतः सहयोग और अंतर्निर्भरता के विभिन्न रूपों को अधिकतम प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। विकास का लक्ष्य सभी के सुख, स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करना है। जीवन में मूल्य के साथ जीवन के मूल्य का उतना ही सम्मान करना जरूरी है। शिक्षा में मूल्यों के शिक्षण, व्यवहार एवं विकास का नियमित पाठ्यक्रम शामिल किया जाए, ताकि कम उम्र से ही बच्चों में उनका प्रस्फुटन हो सके। इस पाठ्यक्रम को अन्य विषयों की तरह समान महत्व दिया जाना चाहिए। यह पाठ्यक्रम ऐसे आरंभिक प्लेटफार्म की तरह हो जिसके आस-पास शिक्षा का संपूर्ण पाठ्यक्रम विकसित किया जा सके। अस्वस्थ प्रतिस्पर्धात्मकता के स्थान पर सामाजिकता, अंतर्निर्भरता करुणा, मैत्री, दया, विनम्रता, आदर, धैर्य, विश्वास, कृतज्ञता, पारदर्शिता, सहानुभूति और सहयोग जैसे मूल्यों को बढ़ाने के लिए शिक्षा की पद्धतियों में यथोचित परिवर्तन किया जाए। मूल्यान्वेषण सिर्फ निजी विकास के लिए नहीं बल्कि समाज को एक व्यवस्था देने, संबंधों को संतुलित करने और जीवन प्रतिमानों का निर्माण करने के लिए जरूरी है। सर्वधर्म समादर की भावना विकसित करने के लिये शिक्षा में उपयुक्त पाठ्यक्रम सम्मिलित किये जायें। धर्म जहां हमें प्रेम, सहयोग, सामन्जस्य के पाठ के माध्यम से एक सूत्र में बांधता है, वहीं विस्तारवादी उद्देश्यों के लिए किये गये उसके दुरुपयोग से विश्वबंधुता का हनन होता है। धर्म यह सीख देता है कि जो स्वयं को अच्छा न लगे, वह दूसरों के लिए भी नहीं करना चाहिए। जियो और जीने दो का विचार हमारे सामाजिक व्यवहार का मार्गदर्शी सिद्धांत होना चाहिए।
इस अमृत संदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पृथ्वी पर पर्यावरणीय संकट का समाधान सिर्फ प्रकृति के साथ आत्मीयता से प्राप्त होगा। इसके लिए देशज ज्ञान के विविध क्षेत्रों, जैसे कृषि, वानिकी, पारंपरिक चिकित्सा, जैव विविधता संरक्षण, संसाधन प्रबंधन और प्राकृतिक आपदा में महत्वपूर्ण सूचना स्त्रोत के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। पारिस्थितिकी की रक्षा के लिए अत्यधिक उपभोक्तावाद पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है। प्राकृतिक संसाधनों के अविवेकपूर्ण शोषण ने अनेक प्राकृतिक विपदाओं को जन्म दिया है। इसका संज्ञान लेते हुए ऐसी जीवन शैली एवं अर्थ-व्यवस्थाओं को विकसित करें जिनसे प्रकृति का पोषण हो।
विचार महाकुंभ में विश्व में स्त्रियों की घटती जनसंख्या और दुर्दशा पर भी चर्चा हुई। साथ ही विश्व में व्याप्त भीषण जल-संकट की गंभीरता को समझते हुए जल-संवर्धन की तकनीकों और प्रणालियों को प्रोत्साहित करने और पृथ्वी की जल-संभरता को क्षति पहुंचाने वाली प्रक्रियाओं को रोकने के उपायों पर भी निर्णय लिए गए। साधु-संतों ने भी वृक्षारोपण का संकल्प लिया। कुलमिला कर आशान्वित करने वाले निष्कर्षों एवं निर्णयों के साथ विचार महाकुंभ का समापन होना कुछ अच्छे संकेत छोड़ गया है बशर्ते उन संकेतों एवं प्रयासों के संकल्पों पर नौकरशाही की धूल न जमने पाए।
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