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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, November 2, 2016

चर्चा प्लस ... आंतक और अपराध का अंधकार दूर हो .... डाॅ. शरद सिंह


Dr (Miss) Sharad Singh
मेरा कॉलम #चर्चा_प्लस "दैनिक सागर दिनकर" में (26. 10. 2016) .....
 

My Column #Charcha_Plus in "Sagar Dinkar" news paper

 

आंतक और अपराध का अंधकार दूर हो
- डॉ. शरद सिंह 


हमारे पास चुनाव का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक हथियार है। बस, जरूरत है इस हथियार को काम में लाते समय अपने विवेक से काम लेने की। वस्तुतः हम सुधार सकते हैं देशज और वैश्विक समस्याएं बशर्ते हम परस्पर एक-दूसरे पर विश्वास करने, परस्पर सहायक बनने और मिल कर कदम उठाने का संकल्प लें। स्वार्थपरक विवाद अंधकार ही ला सकते हैं प्रकाश नहीं। तो इस बार की दीपावली पर हम अपने देश और दुनिया के लिए प्रकाश का आह्वान तो कर ही सकते हैं कि आतंक और अपराध का अंधकार दूर हो, ताकि और मोसुल ने बने, और एलप्पो न ढहें और दुनियां की बेटियां आत्मसम्मान के साथ निडर हो कर जी सकें।

Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper

दीपावली आते ही सफाई-स्वच्छता, उत्सव और संकल्पों की बातें होने लगती हैं। एक उत्साह का वातावरण निर्मित हो जाता है। ऐसा लगता है मानो विगत का सारा अंधकार दूर हो जाएगा और वर्तमान से भविष्य तक प्रकाश का साम्राज्य जगमगाता रहेगा। हम भारतीय वैश्विक बंधुत्व पर विश्वास रखते हैं। इसीलिए दुनिया के किसी भी कोने में किसी भी इंसान पर अत्याचार होने पर विचलित हो उठते हैं। हम अपने देश के घरेलू मामलों को भी सुधारना चाहते हैं। जिससे दुनिया के सामने एक मिसाल बन सकें। लेकिन देश में अपराध के निरंतर फैलाव के आगे हमें अपने प्रयास बौने प्रतीत होने लगते हैं और भय का अंधकार गहराने लगता है। हम भारतियों को प्रयासों के साथ-साथ प्रार्थना की शक्ति पर भी विश्वास रहता है। इसीलिए हमारे वैदिक ग्रंथों में भी विश्व शांति के लिए प्रार्थनाएं मिलती हैं। यदि ध्यान से देखें तो हमारे देश में ही नहीं, बल्कि समूचे विश्व में आतंक और अपराध का अंधकार बढ़ता जा रहा है। वैश्विक आतंकवाद के विरुद्ध हमारे देश की विदेश नीति बखूबी काम कर रही है। दुनिया के हरेक मंच पर हम आतंकवाद का डट कर विरोध कर रहे हैं। वहीं देश के भीतर अस्मिता को झकझोरने वाली घटनाओं से से सबक लेने का प्रयास करते रहते हैं। लेकिन हमारे भीतर कुछ कमियां हैं जिन्हें दूर करने का संकल्प कम से कम इस दीपावली पर तो ले ही सकते हैं।

वैश्विक अंधकार

दुनिया के अनेक देशों में घोर अस्थिरता का वातावरण फैला हुआ है। गोया हम विश्वयुद्ध के कगार पर हों। ईरान, इराक, टर्की, फ्रांस आदि सभी आतंकवाद के झटके खा रहे हैं। फ्रांस के पेरिस शहर में हुए आतंकी हमले को जल्दी भुलाया नहीं जा सकता है। वह प्रेस की आजादी ही नहीं वरन नागरिकों की वैचारिक आजादी पर भी हमला था। मोसुल और एलप्पो शहर की बरबादियां मन को कंपा देती हैं। आईएसआईएस के कब्ज़े वाले इराक़ी शहर मोसुल के बाशिन्दों को बाहर जाने के लिए बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ रही है। इस्लामिक स्टेट बाहर जाने वालों से उनका मकान या कार ज़मानत के तौर पर जमा करने का कानून बना दिया है। इसी वर्ष जून माह में सेक्स गुलाम बनने से इनकार करने पर आईएसआईएस आतंकवादियों ने 19 यजीदी लड़कियों को लोहे के पिंजरे में बंद कर के जिंदा जला दिया था। आईएसआईएस आतंकवादियों ने 19 यजीदी लड़कियों को लोहे के पिंजरे में बंद करके जिंदा जला दिया था। इसी वर्ष अभी, अक्टूबर माह में इस्लामिक स्टेट (आईएस) के आतंकियों द्वारा इराक के उत्तरी शहर किरकुक में हमला करने के एक दिन बाद शनिवार को इराकी सेना आईएस के नियंत्रण वाले शहर मोसुल के निकट के एक नगर में दाखिल हो गई थी। बलात्कार के बाद इस्लामिक स्टेट ने की चार महिलाओं की पत्थर मार कर हत्या कर दी थी। आतंकी संगठन इस्‍लामिक स्‍टेट के कब्जे वाले मोसुल के सीमावर्ती गांवों में इराकी और कुर्दिश फौजों की बढ़ती ताकत के बीच इस शहर के लोगों का कहना है कि अपनी जान बचाने के लिए आतंकी नागरिकों को ’मानव ढाल’ के रूप में इस्‍तेमाल कर रहे हैं।
सीरिया के उत्तर-पश्चिम में भूमध्य सागर के तट से थोड़ी दूरी पर बसा एक नगर है जो प्राचीन काल से एशिया और यूरोप के मध्य व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। अलेप्पो शहर में हुए एक हवाई हमले में कथित तौर पर 15 लोगों की मौत हो गई है। दुनिया के सारे देश सीरिया संकट को ले कर चिंतित हैं। उनकी यह चिन्ता स्वाभाविक है। हाज़ारों परिवार बिखर गए हैं और बूढ़े, बच्चे, औरतें शरणार्थी के रूप में शिविरों में जीने को विवश हैं। कई बच्चे ऐसे हैं जिन्हों ने बेहद कठिन परिस्थितियों में शरणार्थी शिविरों में ही जन्म लिया है। इन बच्चों के भविष्य क्या होगा, यह कोई नहीं बता सकता है।
भारत और पाकिस्तान के बीच की खाइयां भी चौड़ी होती जा रही हैं। धैर्य की सीमा पर बार-बार चोट करते हुए पाकिस्तान ने जो हरकतें की, उन्होंने विवश कर दिया कि भारत भी सर्जिकल स्ट्राइक जैसा कदम उठाए। लेकिन दुख की बात यह है कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से बौखलाए पाकिस्तान की तरफ से लगातार सीमा पर सीजफायर का उल्लंघन जारी है। कश्मीर में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पैलेट गन के विकल्प के रूप में लाने का विचार आया और ’पावा शेल्स’ के बारे में भी केन्द्र सरकार ने नए सिरे से चिनतन किया। भारत की एक ओर सीमा पर आतंकी गतिविधियां सिर उठाने लगी हैं। यह सैन्य आतंक का मामला है जो कि चीन की तरफ से दिखाई दे रहा है। भारत सरकार ने इस संबंध में चीन को चेतावनी भी दी है। स्थिति को निंयंत्रित करने के उद्देश्य से पहली बार भारत और चीन ने जम्मू-कश्मीर के पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में संयुक्त सैन्य अभ्यास किया।


आंतरिक अंधकार

देश के भीतर अपराध की बढ़ती दर अंधकार की उस चादर को बढ़ाती जा रही है जिसके नीचे आम नागरिकों का दम घुटने लगा है। समाचारपत्रों में लगभग एक से डेढ़ पृष्ठ के समाचार अपराधों के ही रहते हैं। जो कुछ घटित होता है उसे ही समाचारपत्र प्रस्तुत करते हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आज कोई भी नागरिक स्वयं को सुरक्षित अनुभव नहीं करता है। घर में ताला लगा कर बाहर निकलते समय उसे इस बात का भय लगा रहता है कि लौट कर आने तक उसका घर चोरों के धावे से बचा रहेगा या नहीं? औरतों और लड़कियों के साथ होने वाले जघन्य अपराध वातावरण को और भी दूषित कर रहे हैं। चिन्ताजनक बात यह भी है कि आज एकल हिंसा या एकल बलात्कार की जगह सामूहिक हिंसा और सामूहिक बलात्कार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। परिवार जितने विखंडित होते जा रहे हैं, संकट भी उतने अधिक बढ़ते जा रहे हैं। परस्पर असंवेदना का वातावरण गहराने लगा है। एक के दुख से दूसरे के दुखी होने का संस्कार सिकुड़ता जा रहा है।
एक दुखद उदाहरण बीना शहर जो प्रशासनिक तौर पर एक छोटा-सा तहसीली इलाका है। इसी बीना शहर में एक नग्न युवती पेड़ों के पीछे छिपी हुई थी। इंसानों की उस पर दृष्टि पड़ी तो उसके इर्द-गिर्द भीड़ लगाने लगे। वह घबरा कर भागी और बिजली के हाईटेंशन टॉवर पर चढ़ती चली गई और लगभग 70 फुट की ऊंचाई पर पहुंच कर वह अपना संतुलन खो बैठी और गिर गई। नीचे गिरते ही उसकी मौत हो गई। यह हृदयविदारक घटना घटी उस युवती के साथ जिसने अपना जीवन अभी ठीक से शुरू भी नहीं किया था। मध्यप्रदेश के डिंडौरी जिले के एक छोटे से गांव की आदिवासी लड़की अपने और अपने परिवार के सपने को सच करने के लिए नौकरी का साक्षात्कार देने जबलपुर गई। फिर जबलपुर से इन्दौर गई। इन्दौर में चार युवकों ने उसे सहायता देने का झांसा दे कर उसके साथ बलात्कार किया। इसके बाद एक युवक उसे इन्दौर से बीना पहुंचा कर रेलवे स्टेशन पर छोड़ गया। बीना में भी उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। दिन के उजाले में उस निर्वस्त्र युवती को भीड़ ने घेर लिया। वह आतंकित युवती भीड़ से भयाक्रांत हो कर आत्मघाती कदम उठा बैठी। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो असंवेदनशीलता के अंधकार ने उस युवती का जीवन लील लिया। उस पर बहुत जल्दी भुला दी गई यह घटना। इस घटना को जानने वालों को भी नहीं पता कि उस युवती को उस दशा में पहुंचाने वाले सलाखों के पीछे पहुंचाए गए या नहीं। अपराध के विरूद्ध कानून की मांग भी अब किसी बड़े आंदोलन की प्रतीक्षा करती है और फिर कैंडल मार्च के साथ ठंडे बस्ते में चली जाती है।


करना होगा प्रकाश का आह्वान

राजनीति एक ऐसा माध्यम है जो समाज में कुछ भी सुधार सकता है या फिर कुछ भी बिगाड़ सकता है। लेकिन यदि राजनीति ही ड्रामेबाजी बन कर रह जाए तो कुछ भी सुधरने की आशा कैसे की जा सकती है? यह हम नागरिकों का सौभाग्य है कि हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में रहते हैं । हमारे पास चुनाव का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक हथियार है। बस, जरूरत है इस हथियार को काम में लाते समय अपने विवेक से काम लेने की। वस्तुतः हम सुधार सकते हैं देशज और वैश्विक समस्याएं बशर्ते हम परस्पर एक-दूसरे पर विश्वास करने, परस्पर सहायक बनने और मिल कर कदम उठाने का संकल्प लें। स्वार्थपरक विवाद अंधकार ही ला सकते हैं प्रकाश नहीं। तो इस बार की दीपावली पर हम अपने देश और दुनिया के लिए प्रकाश का आह्वान तो कर ही सकते हैं कि आतंक और अपराध का अंधकार दूर हो, ताकि और मोसुल न बने, और एलप्पो न ढहें और दुनियां की बेटियां आत्मसम्मान के साथ निडर हो कर जी सकें।
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