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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, November 16, 2016

सब्र, सियासत और कालाधन

मेरा कॉलम #चर्चा_प्लस "दैनिक सागर दिनकर" में (16. 11. 2016) .....

My Column #Charcha_Plus in "Sagar Dinkar" news paper

 
सब्र, सियासत और कालाधन 
- डॉ. शरद सिंह 
दुनिया की नज़र भारत पर उस घड़ी से टिकी हुई है जिस घड़ी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पुराने पांच सौ और हज़ार के नोट बंद किए जाने की घोषणा की। कोई और देश होता तो शायद आमजनता सड़कों पर निकल आती और आपदा गहरा जाती। लेकिन भारत की जनता ने बड़े से बड़े संकट में धैर्य का परिचय दिया है और एक बार फिर अपनी इसी खूबी को दुनिया के सामने रख दिया है। सब्र, सियासत और काले धन के त्रिकोण के बीच खड़ी आमजनता प्रतिदिन एक मिसाल बनती जा रही है।   

यह पहली बार नहीं है जब देश में बड़े नोटों को वापस लिया गया हो और फिर बाज़ार में नए सिरे से हजार, पांच हजार और दस हजार के रुपए लाए गए हों। सन् 1946 में भी हज़ार रुपए और 10 हज़ार रुपए के नोट वापस लिए गए थे। सन् 1954 में हज़ार, पांच हज़ार और दस हज़ार रुपए के नोट वापस लाए गए। उसके बाद जनवरी 1978 में इन्हें फिर बंद कर दिया गया। 16 जनवरी 1978 को एक अध्यादेश जारी कर हज़ार, पांच हज़ार और 10 हज़ार के नोट वापस लेने का फ़ैसला लिया गया था। लेकिन उन दिनों आमआदमी की घर की बचत में अथवा रोजमर्रा की जरूरतों में बड़े नोट आज की तरह शामिल नहीं थे। इसलिए आमजनता पर इसका प्रतिकूल असर नहीं पड़ा था। आज मंहगाई के चलते पांच सौ रुपए दैनिक उपभोग के खर्च में शामिल हो चुका है। सब्ज़ी-भाजी अथवा दैनिक किराना में पांच सौ का नोट आसानी से तुड़वाया जा सकता है। ऐसी स्थिति में अचानक हज़ार और पांच सौ के नोट बंद कर दिए जाने से आमजनता का परेशान होना स्वाभाविक है। फिर जितनी शीघ्रता में और कम समय देते हुए नोट-बंदी का यह क़दम उठाया गया उससे देश-दुनिया सभी को हत्प्रभ होना ही था।
निःसंदेह नोट-बंदी का यह ऐतिहासिक कदम कालेधन पर सीधी चोट है लेकिन आमजनता कालेधन और इस नोटबंदी के बीच जिस तरह पिस गई है, वह भी इतिहास के पन्नों में दर्ज़ हो कर रहेगा। इतिहास के पन्नों में दर्ज़ तो आमजनता का वह धैर्य भी होगा जिसका प्रदर्शन उसने इस आर्थिक विपत्ति के समय किया है।

Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper

कालेधन के विरुद्ध कानून

राजग सरकार ने विदेशों में जमा कालेधन को देश में लाने और देश के भीतर कालाधन पैदा न हो इस मकसद की भरपाई के लिए कारगर कानूनी उपाय किए पिछले साल दो कानून बनाकर किए थे। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘मन की बात‘ कार्यक्रम में कालेधन के कुबेरों को चेतावनी दी थी कि 30 सितंबर तक यदि कालाधन घोषित नहीं किया गया तो कठोर कार्यवाही की जाएगी। इस चेतावनी का भी कोई विशेष असर नहीं हुआ। मोदी सरकार ने इस नाते एक तो ‘कालाधन अघोषित विदेशी आय एवं जायदाद और आस्ति विधेयक-2015‘ को संसद के दोनों सदनों से पारित कराया था। दूसरे देश के भीतर कालाधन उत्सर्जित न हो,इस हेतु ‘बेनामी लेनदेन; निषेध विधेयक को मंत्रीमण्डल ने मंजूरी दी थी। इस विधेयक में विदेश में काला धन छिपाने वालों को दस साल तक की सजा और नब्बे फीसद का जुर्माना लगाने का प्रावधान है। इसके पहले वर्ष 1997 में तत्कालीन संयुक्त मोर्चा सरकार ने काले धन का खुलासा करने के लिए इस तरह की योजना चलाई थी। उसके बाद से अब तक कई बार इस बारे में विचार किया गया, लेकिन राजनीतिक वजहों से लागू नहीं किया गया। वहीं नए कानून के तहत कर चोरी के मामलों को भी धनशोधन (मनी लांड्रिंग) निरोधक कानून, 2002 के तहत अपराध माना जा सकेगा। यानी कर चोरी के मामलों में मनी लांड्रिंग निरोधक कानून के तहत कार्रवाई की जा सकेगी। उल्लेखनीय है कि भारत ने वैश्विक स्तर पर समयबद्ध रूप में कर संबंधी सूचनाओं के स्वतः आदान-प्रदान की वकालत की है, जिस पर जी-20 देशों ने भी सहमति जताई है। विभिन्न देश एक साझा रिपोर्टिंग स्टैंडर्ड 2017-18 द्वारा कर संबंधी सूचनाओं का आपस में आदान-प्रदान करेंगे। यद्यपि विदेशी बैंकों में भारत का कितना काला धन जमा है, इस बात के अभी तक कोई आधिकारिक आंकड़े सरकार के पास मौजूद नहीं हैं, लेकिन अनुमान के मुताबिक यह 466 अरब डॉलर से लेकर 1400 अरब डॉलर हो सकता है।
ये दोनों विधेयक इसलिए एक दूसरे के पूरक माने जा रहे थे, क्योंकि एक तो आय से अधिक काली कमाई देश में पैदा करने के स्रोत उपलब्ध हैं, दूसरे इस कमाई को सुरक्षित रखने की सुविधा विदेशी बैंकों में हासिल है। दोनों कानून एक साथ अस्तित्व में आने से यह आशा बंधी थी कि कालेधन पर लगाम लग जाएगी। किन्तु ऐसा लगता है कि सरकार अब समझ चुकी थी कि कालेधन के विरुद्ध लाए गए कानून र्प्याप्त कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। इसीलिए ऐसा निर्णयक क़दम उठाना पड़ा।

परेशानियों का सिलसिला

इसमें कोई संदेह नहीं कि बड़े नोटों को बंद करने के पीछे उद्देश्य अच्छा है लेकिन आमजनता की परेशानी का हिसाब कौन देगा? आमजन अपनी पॉकेट-बचत में पांच सौ या हज़ार के नोट रख कर निश्चिन्तता का अनुभव करता रहा है। पांच सौ से छोटे नोट रोजमर्रा के खर्च में आते-जाते रहे हैं। ऐसी स्थिति में जब आमजन को अपने पास रखे पांच सौ और हज़ार के नोट बैंकों में जमा कराने पड़े और बदले में उसे नए नोट अथवा छोटे नोट मिलना कठिन हो गया तो संकट बढ़ना ही था। दिहाड़ी मज़दूरों पर सबसे अधिक गाज गिरी। दैनिक भुगतान वाले काम जिनमें छोटे नोटों का उपयोग अधिक होता है, लगभग थम-सा गया। क्योंकि बैंकों से रुपया निकलवाना टेढ़ी खीर जो बन गया। सुबह से शाम तक और शाम से रात तक एटीएम तथा बैंकों के दरवाज़ों पर लम्बी-लम्बी कतारों में लग कर भी असफलता हाथ लगने हताश हैं। जिनके लिए हताशा चरमसीमा पर पहुंच गई उनमें से कुछ तो दिल के दौरे के शिकार हो गए।
500 और 1000 रुपये का नोट बंद करने के फैसले ने देश में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्र्व की अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया है। कई देशों की अर्थव्यवस्था भारत के अंदर चलने वाले कारोबार पर निर्भर है। बड़े नोट की बंदी से कम से कम तीन माह के लिए पूरे देश का कारोबार बंद हो गया है। इसने दुबई तक हड़कंप मचा कर रख दिया है। चूंकि दुबई में 70 फीसद भारतीय हैं, जो नौकरी और कारोबार से जुड़े हैं और वहां पर प्रॉपर्टी तक खरीद रहे हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री के इस फैसले के बाद दुबई में प्रॉपर्टी के दाम धड़ाम होने की आशंका प्रबल हो गई है। फ्यूचर च्वॉइस ग्रुप के सीएमडी पीयूष कुमार द्विवेदी ने बताया, “वैसे तो कारोबार की हालत देश में अभी बहुत खराब है। तीन माह तक सुधरने के आसार नहीं दिख रहे है लेकिन विश्र्व भर के उद्यमियों की आंख भारत पर टिकी है। वह यह देख रहे है कि आगे क्या होने वाला है। यदि भारत की बैंक में मुद्रा भंडारण होता है तो स्वाभाविक ही डॉलर की कीमत में गिरावट दर्ज होगी। विश्व में बड़ा उलट फेर होगा।“
भारत में 500 और 1000 रुपये के नोट वापस लेने की वजह से नेपाल में भी अफ़रा-तफ़री का माहौल है। नेपाल के सीमावर्ती इलाकों में ’नोट बंदी’ का असर साफ़ देखा जा सकता है। भारत और नेपाल की सीमा खुली है और नेपाल के कई इलाकों में भारतीय रुपये का धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है, इस वजह से भारत के फ़ैसले का असर नेपाल के इलाक़ों में भी देखने को मिल रहा है। इस फ़ैसले का असर नेपाल राष्ट्र बैंक के उस आदेश के बाद और भी बढ़ गया है, जिसमें कहा गया है कि वित्तीय संस्थानों, मनी एक्सचेंज काउंटर और अन्य एजेंसियों में इन नोटों को तत्काल रोक दिया जाए। नेपाल राष्ट्र बैंक ने भारतीय रिज़र्व बैंक को इस मामले में पत्र लिखकर मैत्रीपूर्ण समाधान निकालने की मांग की है। भारत की तरफ से अचानक लिए गए इस फैसले से नेपाल के कारोबारी बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं।

सियासत के रंग

नोटबंदी के बड़े कदम पर सियासत न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। लोकतंत्र में यह स्वाभाविक भी है। उत्तर प्रदेश में होने वाले आगामी चुनाव ने भी माहौल गर्मा रखा है। यद्यपि नोटबंदी की घोषणा के तत्काल बाद सोशल मीडिया पर कोई बड़ा बयान सामने नहीं आया लेकिन दो दिन का समय बीतने पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने चुप्पी तोड़ी। फिर मुलायम सिंह, मायावती और उद्धव ठाकरे ने नोटबंदी से होनेवाली परेशानियों की ओर ध्यान खींचते हुए बयान दिए। इस बीच राहुल गांधी ने जनता के कष्टों में उनके साथ होने के सांकेतिक कदम के तौर पर कतार में लग कर चार हज़ार रूपए बदलवाए। इसके बाद प्रधानमंत्री की लगभग 97 वर्षीया माताजी ने भी साढ़े चार हज़ार रुपए बदलवाने के लिए बैंक तक का सफर किया। चाहे दल कोई भी हो, नोटबंदी के इस कदम का समर्थन सभी ने किया है लेकिन इससे आम जनता को जो कष्ट उठाना पड़ रहा है, उसने विरोधियों को भी भरपूर अवसर प्रदान कर दिया है। अब तो यहां तक कहा जाने लगा है कि यदि 2017 के चुनाव से पहले इसका कोई सकारात्मक नतीजा देखने को नहीं मिला तो खेल बदल भी सकता है। वैसे भारतीय सदैव आशावादी रहे हैं अतः आमजन को यही उम्मीद रखनी चाहिए कि उनके कष्ट झेलने के परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत हो सकेगी।
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