Pages

My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, December 29, 2016

चर्चा प्लस ... भावावेश से कैशलेस तक 2016 का सफ़र ... - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
वक़्त आएगा, वक़्त जाएगा, कुछ निशानात छोड़ जाएगा।
हर नए साल से उमीदें हों, जाने वाला यही सिखाएगा।


" भावावेश से #कैशलेस तक 2016 का सफ़र" - मेरे कॉलम #चर्चा_प्लस में "दैनिक सागर दिनकर" में ( 29.12. 2016) .....My Column #Charcha_Plus in "Sagar Dinkar" news paper
 

चर्चा प्लस
भावावेश से कैशलेस तक 2016 का सफ़र
- डॉ. शरद सिंह
यूं तो कलेण्डर के पन्ने बदलते हैं और तारीखें बदल जाती हैं लेकिन कभी-कभी यही तारीखें इतिहास बना जाती हैं। सन् 2016 में कई ऐसी तारीखें आईं जिन्होंने इतिहास रच दिया। इस वर्ष ने भावनाओं से उफनते ऐसे पल देखे जब आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े लेकिन वहीं कुछ पल ऐसे भी आए जब माथे पर चिन्ता की गहरी लकीरें खि्ांच गईं। सिंहस्थ से ओलम्पिक तक और सर्जिकल स्ट्राईक से 500-1000 के पुराने नोटों की विदाई तक। इसी वर्ष में आर्थिक जगत में एक लम्बी छलांग लगाते हुए कैशलेस इकॉनॉमी की ओर देखने लगे हैं। याद रहेगा भावावेश से कैशलेस तक वर्ष 2016 का सफ़र। 

Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper
 सन् 2016 अनेक उल्लेखनीय घटनाओं से भरा रहा। मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक तीर्थस्थल उज्जैन में 22 अप्रैल से 21 मई 2016 तक सिंहस्थ का आयोजन किया गया। जिसने सिद्ध कर दिया कि भारतीय सभ्यता व संस्कृति की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इन्हें समाप्त करना दुनिया के किसी भी राजनीतिक संगठन, धार्मिक कट्टरपंथियों अथवा आतंकियों के बस की बात नहीं है। वर्ष 2016 में ही रियो ओलम्पिक का आयोजन हुआ जिसमें भारत की ओर से 119 खिलाड़ियों का दल भेजा गया। जिसमें भारत को सिर्फ 2 मेडल मिले। पी.वी. सिंधू (सिल्वर) और साक्षी मलिक (ब्रांज) ही मेडल जीत पाईं। इन दोनों खिलाड़ियों ने साबित कर दिया कि भारत की बेटियां खेल में किसी से कम नहीं हैं। इस साल किसी भी भारतीय पुरुष खिलाड़ी को मेडल नहीं मिला। दो मेडल के साथ भारत को ओलंपिक की मेडल लिस्ट में 67वां स्थान मिला। निश्चित रूप से ये दोनों घटनाएं न केवल ऐतिहासिक थीं बल्कि भावनात्मक भी थीं। इन दोनों घटनाओं ने भारतीय संस्कृति एवं देशप्रेम की अनूठी तस्वीरें पेश कीं। पैरा आलम्पिक में भी भारत की ओर से एक बेटी ने इतिहास रचा। महिलाओं की शॉट पुट स्पर्धा में दीपा मलिक ने भारत को सिल्वर मेडल जीत कर सबको दिखा दिया कि शारीरिक विकलांगता भारतीय बेटी को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती है।
एक और ऐसी घटना जिसने अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भारत का सिर ऊंचा कर दिया और मानवसेवा के प्रति समर्पण को सम्मान दिलाया। भारत को अपना जीवन समर्पित करने वाली सिस्टर टेरेसा को वैटिकन में पोप फ्रांसिस ने संत घोषित किया और वे कैथोलिक ईसाइयों के लिए सारी दुनिया में आदरणीय बन गईं। यद्यपि भारत तो उन्हें पहले से ही ‘‘भारतरत्न’’ घोषित कर चुका था लेकिन 6 सितंबर 2016 को ईसाई परंपराओं के अनुसार विश्व के प्रमुख लोगों की मौजूदगी में वैटिकन ने मदर टेरेसा को संत की उपाधि से विभूषित किया। इस समारोह में 13 देशों के राष्ट्राध्यक्षों के अलावा भारतीय प्रतिनिधि भी मौजूद थे।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यू ंतो बहुत सी घटनाएं घटीं जिनमें क्यूबा के महान नेता फीदेल कास्त्रो के निधन से ले कर अलप्पो में नरसंहार तक है लेकिन एक सुखद घटना यह रही कि बोको हराम ने अप्रैल 2014 में जिन लड़कियों को चिबॉक शहर स्थित उनके स्कूल से अगवा कर लिया था उन्हें स्विट्ज़रलैंड और अंतरराष्ट्रीय रेडक्रॉस समिति के बीच इसी साल अक्तूबर में हुए एक समझौते के बाद रिहा कर दिया गया। जिन 20 से ज़्यादा नाइजीरियाई चिबॉक लड़कियों को इस्लामी गुट बोको हराम ने अक्तूबर, 2016 में छोड़ा था, उन्हें अपने परिवारों के साथ क्रिसमस मनाने का अवसर मिला और इसके साथ उनके जीवन का एक दुःस्वप्न समाप्त हुआ।
आतंक और देश की सीमाओं पर किए जाने वाले अतिक्रमण के विरुद्ध भारतीय सेना ने एक बड़ा एवं कठोर कदम उठाया और भारत तथा पाकिस्तान की सीमा पर घुसपैंठ एवं गोलीबारी के जवाब में सशस्त्र सर्जिकल स्ट्राई कर दी। भारतीय सेना के इस कदम ने दुनिया को जता दिया कि भारत अपनी सीमाओं की रक्षा करना जानता है। यह भी देशवासियों को भावुक कर देने वाली घटना थी। इस घटना ने देशवासियों के हृदय में अपने देश के प्रति प्रेम को और गहरा कर दिया। सोशल मीडिया पर भारतीय सेना के इस कदम के समर्थन की बाढ़ आ गई।
इसके बाद एक और सर्जिकल स्ट्राईक की गई जिसने समूचे भारतीय अर्थतंत्र को हिला कर रख दिया। नवम्बर माह की आठ तारीख को प्रधानमंत्री ने 500 और 1000 कें पुराने नोट बंद किए जाने की घोषणा की। उस रात देशवासियों की आंखों से नींद उड़ गई। पुराने नोटों को बैंकों में जमा कराने, बदलने और नई करेंसी निकालने का संघर्ष आरम्भ हो गया। कालेधन के विरुद्ध की गई इस सर्जिकल स्ट्राईक को जनसमर्थन मिला। इसके बाद अर्थजगत को एक और भविष्य का रास्ता दिखाया गया। यह रास्ता था कैशलेस इकॉनॉमी का। अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि भारतीय आर्थिक जगत कैशलेस इकॉनॉमी के साथ किस सीमा तक तालमेल बिठा पाता है। लेकिन इतना तो तय है कि अब प्रत्येक नागरिक साईबर दुनिया के नजदीक होता जा रहा है चाहे स्वेच्छा से या फिर मजबूर हो कर। देश की जनता ही नहीं, वैश्विक जगत ने भी नहीं सोचा था कि एक रात अचानक लगभग साढ़े तीन घंटे की अवधि में भारतीय मुद्रा की दो महत्वपूर्ण इकाइयां रद्दी के टुकड़े में बदल जाएंगी। यह एक इतना बड़ा निर्णय था जिसने सम्पूर्ण विश्व को चौंका दिया। भारत विपुल जनसंख्या का देश है और यहां वास्तविक साक्षरता का प्रतिशत भी विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है। ऐसे में ‘लिक्विड मनी’ की ओर तेजी से क़दम बढ़ाना किसी जोखिम से कम नहीं है। दफ़्तर के झगड़े, घरेलू पचड़े इन सब को भूल कर आमजन बैंकों के, एटीएम के दरवाज़ों पर कतारबद्ध हो गए। हज़ार और पांच सौ के पुराने नोट जमा करा देने के बाद पचास, बीस और दस के नोट इतनी संख्या में किसी के पास भी नहीं बचे कि वह दो-तीन महीने के लिए आश्वस्त हो सके। कालाधन बाहर आने के उत्साह के बीच घबराहट और तनाव का माहौल।
पर्यावरण परिवर्तन की चिन्ता में डालने वाली आहटें वर्ष 2016 में भी सुनाई दीं। देश की राजधानी दिल्ली को अपनी चपेट में ले लेने वाले स्मोग ने प्रदूषण के प्रति सचेत करने की कोशिश की।
स्टीफन हॉकिंग ने भविष्यवाणी की है कि पृथ्वी का भविष्य संकट में है और मानवजाति का जीवन लगभग एक हज़ार साल का बचा है। सुनने-पढ़ने में यह किसी साई-फाई फिक्शन जैसा लगता है। इसमें कोई शक़ नहीं कि मनुष्य ने कुछ सार्थक परिवर्तन किए और प्रागैतिहासिक जीवन से आगे बढ़ कर सभ्यताओं के सोपान पा लिए। लेकिन कुछ घातक परिवर्तन भी किए जैसे खनिज संपदा का अधैर्यपूर्ण दोहन, जंगलों की कटाई और वायु में ज़हरीली गैसों का निरंतर निष्पादन। किसने सोचा था कि दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर मापने की क्षमता से भी कहीं अधिक पाया जाएगा। शाम होते-होते धुंधलका छा जाना कई वर्षोंं से दिल्ली के लिए आम बात रही है। सभी ने इसे लगभग अनदेखा किया। देश की राजधानी दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में छाई धुंध ने जता दिया कि हम अपनी सांसों के प्रति कितने लापरवाह हैं। मगर इस स्थिति को बदला अथवा कुछ आगे भी बढ़ाया जा सकता है यदि हम अभी भी चेत जाएं और पर्यावरण के प्रति खुद की लापरवाहियों के विरुद्ध कुछ कठोर क़दम उठाएं।
वर्ष 2016 में साहित्य और कलाजगत के महत्वपूर्ण दिग्गजों को हमने खोया। जिनमें से 28 अगस्त को पुष्पपाल सिंह, 14 सितम्बर को जगदीश चतुर्वेदी, 25 सितम्बर को गोपाल राय और 28 सितम्बर को कवि वीरेन डंगवाल हमसे सहसा बिछुड़े। कालजयी कृति ‘हज़ार चौरासी की मां’ की लेखिका महाश्वेता देवी का देहावसान साहित्यजगत को स्तब्ध कर गया। जनजातीय समाज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उन्हीं के शब्दों में ‘‘एक लम्बे अरसे से मेरे भीतर जनजातीय समाज के लिए पीड़ा की जो ज्वाला धधक रही है, वह मेरी चिता के साथ ही शांत होगी।’’ उनके उपन्यास गहन शोध पर आधारित रहे। 1956 में प्रकाशित अपने पहले उपन्यास ‘झांसीर रानी’ की तथ्यात्मक सामग्री जुटाने के लिए उन्होंने सन् 1857 की जनक्रांति से संबद्ध क्षेत्रों झांसी, जबलपुर, ग्वालियर, ललितपुर, कालपी आदि की यात्रा की थी। वे अपने विशिष्ट लेखन के लिए सदा स्मरणीय रहेंगी।
जिस रास्ते से भी जाऊं/ मारा जाता हूं / मैंने सीधा रास्ता लिया/ मारा गया/ मैंने लम्बा रास्ता लिया/ मारा गया.... ये पंक्तियां हैं नीलाभ अश्क़ की, जिन्हें हमने खो दिया है। प्रसिद्ध साहित्यकार उपेंद्रनाथ अश्क के पुत्र एवं जाने माने कवि, पत्रकार, नाटककार, अनुवादक, आलोचक और जुझारू साथी नीलाभ अश्क। भारत के तीन सर्वोच्च सम्मान पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री से सम्मानित विश्वविख्यात चित्राकार सैयद हैदर रज़ा का निधन कलाजगत के लिए एक अपूर्णीर्य क्षति रही। ‘कभी तनहाइयों में हमारी याद आएगी...’ जिस आवाज़ में यह मशहूर गाना गाया गया था वो आवाज़ मुबारक़ बेगम की थी जिन्हें इस वर्ष हमने खो दिया।
यूं तो कलेण्डर के पन्ने बदलते हैं और तारीखें बदल जाती हैं लेकिन कभी-कभी यही तारीखें इतिहास बना जाती हैं। सन् 2016 में कई ऐसी तारीखें आईं जिन्होंने इतिहास रच दिया। इस वर्ष ने भावनाओं से उफनते ऐसे पल देखे जब आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े लेकिन वहीं कुछ पल ऐसे भी आए जब माथे पर चिन्ता की गहरी लकीरें खि्ांच गईं। सिंहस्थ से ओलम्पिक तक और सर्जिकल स्ट्राईक से 500-1000 के पुराने नोटों की विदाई तक। इसी वर्ष में आर्थिक जगत में एक लम्बी छलांग लगाते हुए कैशलेस इकॉनॉमी की ओर देखने लगे हैं। याद रहेगा भावावेश से कैशलेस तक वर्ष 2016 का सफ़र।
जाते हुए साल को विदा देते और आने वाले साल का स्वागत करते हुए मेरी ये पंक्तियां -
वक़्त आएगा, वक़्त जाएगा, कुछ निशानात छोड़ जाएगा।
हर नए साल से उमीदें हों, जाने वाला यही सिखाएगा।

---------------------------

No comments:

Post a Comment