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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, January 18, 2017

विश्व पुस्तक मेला 2017 : वाद, विवाद और संवाद के बीच आश्वस्ति

Dr Sharad Singh
"विश्व पुस्तक मेला 2017 : वाद, विवाद और संवाद के बीच आश्वस्ति" - मेरे कॉलम चर्चा प्लस में "दैनिक सागर दिनकर" में ( 18.01. 2017) .....My Column Charcha Plus in "Sagar Dinkar" news paper


चर्चा प्लस
विश्व पुस्तक मेला 2017 : वाद, विवाद और संवाद के बीच आश्वस्ति
- डॉ. शरद सिंह 


साहित्य जगत में प्रिंट मीडिया के भविष्य को ले कर अकसर चिंता की जाती है और उसे समापन की ओर माना जाने लगता है, ऐसे समय ही पुस्तक मेले आश्वस्त कराते हैं कि पुस्तकों का पिं्रटेड संस्करण अभी खतरे में नहीं है। ठीक इसी तरह की आश्वस्ति मिली विश्व पुस्तक मेला 2017 में। मेले की सार्थक थीम और सार्थक आयोजन। वैसे जहां चार बुद्धिजीवी जुड़ेंगे वहां वाद, विवाद और संवाद तो होगा ही। इस बार का मेला भी इससे अछूता नहीं रहा। मेले की इस बार की थीम थी ‘मानुषी’ जिसमें महिलाओं द्वारा तथा महिलाओं के ऊपर लिखने वालों को आधार बनाया गया। 

विश्व पुस्तक मेला 2017 में एक कथाकार के रूप में सहभागी होना मेरे लिए महत्वपूर्ण रहा। थीम मानुषी के अंतर्गत नारी चेतना पर आधारित कार्यक्रम में मुझे अपनी कहानी पढ़ने-सुनाने के लिए आमंत्रित किया गया था। कड़ाके की सर्दी के बीच नारी चेतना का आकर्षण भारी पड़ा और मौसम ने भी साथ दिया कि उस दौरान घना कोहरा नहीं छाया और ट्रेनें अपने समय पर चलती रहीं। साहित्य अकादमी एवं राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित नारी चेतना कार्यक्रम में बुंदेली परिवेश पर आधारित अपनी कहानी ‘‘बैठकी’’ पढ़ने के उपरान्त चर्चा-परिचर्चा एवं लोकार्पण में भी शामिल हुई। चर्चित कथाकार महेन्द्र भीष्म के उपन्यास ‘‘मैं पायल’’ एवं सच्चिदानंद चतुर्वेदी के उपन्यास ‘‘मंझधार’’ का मैंने लोकार्पण किया। वरिष्ठ पत्रकार सूर्यनाथ सिंह के उपन्यास ‘नींद क्यों नहीं आती रात भर’ पर विद्वत साहित्यकारों मैत्रेयी पुष्पा, वीरेन्द्र यादव एवं प्रो. गोपेश्वर सिंह के साथ परिचर्चा में भाग लेते हुए सूर्यनाथ सिंह के लेखन-कौशल तथा उनके उपन्यास पर मैंने भी अपने विचार रखे।
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper
मेले में पुस्तकों की भरमार और प्रतिदिन नई पुस्तकों के लोकार्पण का दृश्य प्रिंट मीडिया के भविष्य के प्रति आश्वस्त कराता रहा। युवावर्ग का वह समूह जो ऑनलाईन किताबें खरीदने का शौक रखता है, वह भी किताबों के कव्हर की फोटो और विस्तृत जानकारी बटोर रहा था ताकि अपनी मनचाही किताब ऑनलाईन खरीद सके। ऑनलाईन पुस्तक खरीदी पर रिटेल पुस्तक विक्रेताओं को अवश्य नुकसान उठाना पड़ता है किन्तु प्रकाशक, मुद्रक और लेखक को हानि नहीं होती है। यह तो तय है कि कुर्सी पर पैर फैला कर, बिस्तर या सोफे पर लेट कर अथवा झूले में डोलते हुए मनचाही किताब पढ़ने के आनन्द की जगह डिजिटल मीडिया नहीं ले सकता है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के प्रगति मैदान में नौ दिवसीय विश्व पुस्तक मेले का विगत 07 जनवरी से 15 जनवरी तक आयोजन किया गया। मानव संसाधान विकास राज्य मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय ने विश्व पुस्तक मेले का उद्घाटन किया । उद्घाटन समारोह की मुख्य अतिथि मशहूर उड़िया लेखक और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता प्रतिभा राय तथा विशेष अतिथि डेलिगेशन ऑफ द यूरोपियन यूनियन टू इंडिया के एंबेसेडर तोमास कोजलोवस्की थे। इस बार मेले का विशेष फोकस न्यास की 60वीं वर्षगांठ है और इसमें ‘यह मात्र सिंहावलोकन’ नाम की विशेष प्रदर्शनी का आयोजन किया गया, जिसमें राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की छह दशकों की पठन-संस्कृति को बढ़ावा देने के प्रयासों को दर्शाया गया।
प्रगति मैदान में शनिवार को मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री महेन्द्र नाथ पांडे ने पुस्तक मेले का उद्घाटन किया। उन्होंने पुस्तक मेले का विषय मानुषी यानी महिला लेखन रखे जाने की भी सराहना की। महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर क्षोभ व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य उनके प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने में मदद कर सकता है। इस अवसर पर ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त वरिष्ठ ओड़िया लेखिका प्रतिभा राय ने कहा कि पुरुष और नारी लेखन को अलग-अलग नहीं देखा जाना चाहिए। एनबीटी के अध्यक्ष बल्देव भाई शर्मा ने कहा कि वैदिक काल से ही विदुषियों की एक समृद्ध और सुदीर्घ परंपरा रही है।
मेले की थीम ‘मानुषी’ रखी गई थी जो महिलाओं द्वारा और उन पर आधारित लेखन को प्रस्तुत करती थी। लेखिकाओं के योगदान को प्रदर्शित करते हुए पुस्तक मेले में ‘‘मानुषी मंडप’’ (थीम पावेलियन मानुषी) बनाया गया था। इसमें अलग-अलग कालखंडों व भाषाओं में विशेष योगदान करने वाली महिलाओं का परिचय लोगों के समक्ष रखा गया। 12 विदुषियों का कैलेंडर भी मेले की आयोजक संस्था नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा जारी किया गया। थीम पैवेलियन में महिला मुद्दों व लेखन से संबंधित सेमिनार, विचार-विमर्श सत्र दिनभर चलते रहे। मेले के अंतिम दिन न्यास के अध्यक्ष बलदेव भाई शर्मा ने माना कि हम अपने उद्देश्य में सफल रहे और महिला लेखन पर हमने अधिक से अधिक चर्चाएं आयोजित कीं।

सर्जिकल स्ट्राईक का असर

सन् 1972 में शुरू हुआ विश्व पुस्तक मेला प्रति वर्ष दिल्ली में आयोजित किया जाता है। इस मेले में दुनिया के अधिकांश देश उत्सुकता से भाग लेते हैं। अनेक देश आधिकारिकतौर पर मेले में अपने स्टॉल लगाते हैं। इस वर्ष मेले में चीन, मिस्र, फ्रांस, जर्मनी, ईरान, जापान, नेपाल, पोलैंड, रुस, स्पेन, श्रीलंका सहित लगभग 20 देश शामिल हुए। विश्व पुस्तक मेला आयोजित होने से दुनिया के तमाम पब्लिशिंग हाउस और बुद्धिजीवी वर्ग के लिए दक्षिण एशियाई क्षेत्र का द्वार खुल जाता है, जिसकी वजह से यह मेला वैश्विक स्तर का हो जाता है। 2016 में संपन्न हुए विश्व पुस्तक मेले में विशेष अतिथि के रूप में चीन को आमंत्रित किया गया था। जिसकी थीम “विविधता“ थी। वही वर्ष 2017 में आयोजित होने वाले विश्व पुस्तक मेले में जापान देश के ‘गेस्ट ऑफ ऑनर’ रहा। इस वर्ष विश्व पुस्तक मेले की थीम “औरतों पर औरतों द्वारा लेखन“ रहा। देशी-विदेशी अंग्रेजी साहित्य के अतिरिक्त चीन और फ्रांस की पुस्तकों के प्रति पाठकों में उत्सुकता देखी गई। विभिन्न भाषाओं की हिन्दी में अनूदित पुस्तकों के प्रति भी पर्याप्त रुझान देखने को मिला। उल्लेखनीय है कि पुस्तक मेले में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान से कोई आवेदन नहीं आया था। उसने मेले में अपना स्टॉल नहीं लगाया। शायद यह उस सर्जिकल स्ट्राईक का असर था जो देश की सीमा पर पाकिस्तान की बेजा हरकतों के विरोध में भारत ने की थी। सर्जिकल स्ट्राईक के बाद पाकिस्तानी अभिनेता-अभिनेत्रियों एवं पाकिस्तानी धारावाहिकों पर भारत में पाबंदी लगा दी गई थी।

नहीं दिखा असर नोटबंदी का

यू ंतो मेला व्यवस्थापकों की ओर से इस मेले में नकदरहित भुगतान की पूरी व्यवस्था की गई थी और ई-भुगतान में नेटवर्क किसी तरह की कोई बाधा न डाले इसके लिए आईटीपीओ ने बीएसएनएल के साथ मिलकर विशेष इंतजाम किए थे। लगभग आधा दर्जन से ज्यादा एटीएम थे तथा कई सचल एटीएम थे। यद्यपि ग्राहकों द्वारा 2000, 500 और 100 के नोटों के द्वारा भी जमकर खरीददारी की गई।
मेले के टिकट प्रगति मैदान के अलावा 50 मेट्रो स्टेशनों पर भी उपलब्ध थे। टिकट दर वयस्कों के लिए 30 रुपए और 12 साल की उम्र से कम के बच्चों के लिए 20 रुपए थी। वहीं स्कूल की वर्दी में आने वाले छात्रों का प्रवेश निशुल्क रखा गया। न्यास के अध्यक्ष बलदेव भाई शर्मा ने जानकारी दी कि ‘‘हमने आईटीपीओ से पुस्तक मेले के लिए प्रवेश शुल्क खत्म करने का अनुरोध किया है। यदि ऐसा होता है तो आगामी विश्व पुस्तक मेले में और अधिक पुस्तक प्रेमी आ सकेंगे। उन्होंने बताया कि प्रकाशन की दुनिया में पिछले 44 वर्ष से आयोजित हो रहे, इस मेले को अब कैलेंडर में एक बड़े और महत्वपूर्ण आयोजन के रूप में स्थान मिल गया है। हर साल जनवरी के महीने में आने वाले इस मेले का इंतज़ार अब किताबों से प्यार करने वाले लोगो को बेसब्री से रहता है। हर वर्ष विश्व पुस्तक मेले में आने वालें लोगों की तादाद हर साल पिछलें वर्ष से ज़्यादा होती जाती है। मानव संसाधन एवम् विकास मंत्रालय द्वारा बनाई गई स्वायत्त संस्था “राष्ट्रीय पुस्तक ट्रस्ट“ इस मेले का आयोजन इसलिए करती है ताकि, पूरे देश और विश्व भर में लोगों में पढ़ने की आदत पर उनकी अभिरुचि बन सके।’’

याद भी, विवाद भी

मैत्रेयी पुष्पा ने प्रसिद्ध कथाकार राजेंद्र यादव पर लिखी किताब ’वह सफर था कि मुकाम था’ पर प्रेम भारद्वाज से चर्चा की। ’वह सफर था कि मुकाम था’ पर संपादक प्रेम भारद्वाज ने कहा, “राजेंद्र यादव के साथ मैत्रेयी जी की मैत्री जानी पहचानी है। लेखन की पहली पायदान से अब तक कि उनकी यात्रा के अनेक मोड़ों पड़ावों गतिविधियों के साक्षी रहे हैं राजेंद्र यादव।’’ वहीं मैत्रेयी पुष्पा ने कहा, “राजेंद्र यादव से मिलने पहले में मैं लिखती तो थी, मगर कुछ इस तरह रोती जाती थी और लिखती रहती थी और सोचती थी कि शायद ऐसे ही उपन्यास लिखते हैं। मेरे उपन्यास प्रकाशित भी हुए, मगर जब मैं राजेंद्र यादव से मिली तो उन्होंने मुझसे कहा, तुम मेरे पास एक विद्यार्थी की तरह आई हो और मैंने जो उसके बाद लिखा वो मैंने राजेंद्र यादव के पास आके ही लिखा।“
एक अन्य चर्चासत्र के दौरान मैत्रेयी पुष्पा से उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाली लेखिका का नाम पूछा गया। जिस पर उन्होंने साफगोई से कहा कि उनकी विरासत सम्हालने वाला कोई नहीं है। इस पर प्रतिरोध के स्वर उभरे जो कि चौंकाने वाले थे। मैत्रेयी ने प्रतिरोध का सामना किस तरह किया अथवा उन्हें क्या कहना पड़ा इससे अधिक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि साहित्य क्या कोई राजनीतिक सत्ता अथवा ज़मीन-जायदाद है जो उसमें विरासत परम्परा होनी चाहिए? साहित्य जगत में विरासत से जुड़ा यह विवाद मेले के बाद भी खुली चर्चाओं में गर्माता रहेगा।
वैसे इसमें कोई संदेह नहीं कि विश्व पुस्तक मेले में शामिल होने वालें प्रतिभागियों या नवोदित लेखकों के लिए लेखन या प्रकाशन के क्षेत्र में व्यवसायिक रूप से मेले में पहुंचना एक अच्छा अवसर साबित होता है।
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