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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, May 11, 2017

महात्मा बुद्ध के देश से ‘डिलीट’ हो हिंसा ... डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
Buddha Jayanti !
"महात्मा बुद्ध के देश से ‘डिलीट’ हो हिंसा" मेरे कॉलम #चर्चा_प्लस में "दैनिक सागर दिनकर" में ( 10. 05. 2017) ..My Column #Charcha_Plus in "Sagar Dinkar" news paper....
चर्चा प्लस
बुद्ध जयंती पर विशेष :
महात्मा बुद्ध के देश से ‘डिलीट’ हो हिंसा

- डॉ. शरद सिंह

हिंसा हमारी संस्कृति का हिस्सा कभी नहीं रही। भारत ने हमेशा शांति और अहिंसा की अगुवाई की है। महात्मा गौतम बुद्ध की इस धरती पर हिंसा अथवा अराजकता के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। इन दिनों हिंसा का जो तांडव काश्मीर की घाटी में दिखाई दे रहा है उसके कुछ संस्करण देश के उन हिस्सों में भी नज़र आने लगे हैं जहां कभी तोड़-फोड़, उत्पात अथवा हिंसा पिछले कई दशकों से नहीं हुई थी। बामियांन में ऐतिहासिक बुद्ध प्रतिमा को तोड़ने वाले भले ही अहिंसा का महत्व नहीं समझें लेकिन हमें तो समझना ही होगा और हिंसात्मक प्रवृत्त्यिं को समाप्त करने के लिए ‘अल्ट’, ‘कंट्रोल’ और ‘डिलीट’ ये तीनों शक्तियों का प्रयोग हमें आगे बढ़ कर करना होगा।

ऐसा लगता है जैसे हिंसक प्रवृत्तियां आम जनता के जीवन को घेरती जा रही हैं। नन्हीं बच्चियों से ले कर उम्रदराज़ महिलाओं तक के साथ बलात्कार की घटनाएं, जरा से वाद-विवाद पर सरेआम किसी को गाड़ी से बांध कर घसीटना और फिर उसे कुचल कर मार देना, एक-उूसरे पर शस्त्रों और पत्थरों से हमला करना- ये सब हिंया नही ंतो और क्या है? जबकि हिंसा हमारी संस्कृति का हिस्सा कभी नहीं रही। भारत ने हमेशा शांति और अहिंसा की अगुवाई की है। महात्मा गौतम बुद्ध की इस धरती पर हिंसा अथवा अराजकता के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। महात्मा बुद्ध ने कहा था कि जो हिंसा को प्रश्रय देता है वह चैन की नींद कभी नहीं सो सकता। इन दिनों हिंसा का जो तांडव काश्मीर की घाटी में दिखाई दे रहा है उसके कुछ संस्करण देश के उन हिस्सों में भी नज़र आने लगे हैं जहां कभी तोड़-फोड़, उत्पात अथवा हिंसा पिछले कई दशकों से नहीं हुई थी। अफगानिस्तान के बामियांन में ऐतिहासिक बुद्ध प्रतिमा को तोड़ने वाले भले ही अहिंसा का महत्व नहीं समझें लेकिन हमें तो समझना ही होगा और हिंसात्मक प्रवृत्तियों को समाप्त करने के लिए ‘अल्ट’, ‘कंट्रोल’ और ‘डिलीट’ ये तीनों शक्तियों का प्रयोग आगे बढ़ कर करना होगा।
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper

यदि हम भगवान बुद्ध द्वारा प्रदान किये गये पंचशील सिद्धांत को गौर से देखें तो यह जीवन के प्रति सहज दृष्टिकोण का परिचय देते हैं। यह पंचशील सिद्धांत क्या गलत है या क्या सही है की परिभाषा तय नही करते बल्कि यह हमे सिखाते हैं कि अगर हम होश रखें और जीवन को गौर से देखें तो हमारे कुछ कर्म हमको या दूसरों को दुःख पहुंचाते हैं और कुछ हमे प्रसन्नता का अनुभव भी कराते हैं । पंचशील समझौते पर 29 अप्रैल 1954 को हस्ताक्षर हुए थे। चीन के क्षेत्र तिब्बत और भारत के बीच व्यापार और आपसी संबंधों को लेकर ये समझौता हुआ था। इस समझौते की प्रस्तावना में पांच सिद्धांत थे जो अगले पांच साल तक भारत की विदेश नीति की रीढ़ रहे। इसके बाद ही हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लगे और भारत ने गुट निरपेक्ष रवैया अपनाया। फिर सन् 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में इस संधि की मूल भावना को काफ़ी चोट पहुंची। ‘‘पंचशील’’ शब्द ऐतिहासिक बौद्ध अभिलेखों से लिया गया है जो कि बौद्ध भिक्षुओं का व्यवहार निर्धारित करने वाले पांच निषेध होते हैं। तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने वहीं से ये शब्द लिया था। इस समझौते के बारे में 31 दिसंबर 1953 और 29 अप्रैल 1954 को बैठकें हुई थीं जिसके बाद अंततः बेइजिंग में इस पर हस्ताक्षर हुएं थे। पंचशील समझौते की प्रस्तावना की वजह से जिसमें पाँच सिद्धांत हैं- एक दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान, परस्पर अनाक्रमण, एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना, समान और परस्पर लाभकारी संबंध, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व।
एक चूक अवश्य हुई थी कि उस समय इस समझौते के तहत भारत ने तिब्बत को चीन का एक क्षेत्र स्वीकार कर लिया था। फिर भी उस समय इस संधि ने भारत और चीन के संबंधों के तनाव को काफ़ी हद तक दूर कर दिया था।
आज स्थितियां और अधिक जटिल हो गई हैं। भारत को अपनी प्रत्येक सीमा पर किसी न किसी खतरे से जूझना पड़ रहा है। एक ओर चीन और तिब्बत का मसला है तो दूसरी ओर काश्मीर समस्या अपने विकराल रूप में खड़ी हुई है। महात्मा बुद्ध ने मानव जीवन में सुख और शांति की स्थापना के लिए जो पांच उपदेश दिए थे उन्हें हम भूलते जा रहे हैं। उनके पांच उपदेश थे- - प्राणीमात्र के प्रति अहिंसा अपनाना।
- चोरी करने या जो दिया नही गया है उसको लेने की प्रवृत्ति से दूर रहना।
- लैंगिक दुराचार या व्यभिचार से दूर रहना ।
- असत्य बोलने से बचना।
- मादक पदार्थों से दूर रहना ।
किन्तु दशा यह है कि मानो हमने पांचों उपदेशों से मुंह मोड़ लिया है। भारत को महात्मा बुद्ध की धरती कहा जाता है। इसी धरती का अभिन्न हिस्सा है काश्मीर। इस काश्मीर को प्रकृति ने जहां आकूत सौंदर्य दिया है वहीं चंद स्वार्थी मनुष्यों ने मानो इसे नर्क की आग में झोंक दिया है। काश्मीर सदा से र्प्यटन स्थल रहा और पर्यटन के जरिए वहां के बाशिंदों ने खूब पैसे कमाए और अपनी ज़िन्दगी संवारी। भारतीय सिनेजगत के लिए काश्मीर सबसे पसंदीदा शूटिंग स्थल रहा। लेकिन पाकिस्तान के तालिबानी इरादों ने काश्मीर की सफ़ेद बर्फ़ पर जो खून की नदियां बहा रखी हैं, उसने काश्मीर की न केवल अर्थव्यवस्था बल्कि सुख-चैन को भी छीन लिया है। इन दिनों पत्थरबाजी की नृशंस घटनाओं ने काश्मीर घाटी को कलंकित कर रखा है। सड़कों पर की जाने वाली यह उपद्रवी हरकतें हमारी संस्कृति में कभी नहीं रहीं। यह हिंसात्मक विचारों के साथ सीमापार से भेजी जा रही है। अलगाववाद को पसंद करने वाले तत्व इसे निरंतर हवा दे रहे हैं। घाटी में हिंसा की साजिश के तहत सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी में महिला अलगाववादियों का हाथ है। श्रीनगर के साथ-साथ छात्राओं की पत्थरबाजी का यह सिलसिला उत्तरी कश्मीर और दक्षिणी कश्मीर में भी फैलाने की साजिश है। पिछले दिनों दुख्तरान-ए-मिल्लत की अध्यक्ष आसिया अंद्राबी की गिरफ्तारी भी इसी कड़ी का हिस्सा माना जा रहा है। कालेज की छात्राओं की ओर से अचानक सुरक्षा बलों पर पथराव की घटनाएं शुरू हो जाने से सुरक्षा बल इस नए ट्रेंड से चिंतित हो उठा। सुरक्षा एजेंसियों के पास इस बात के गुप्त जानकारी हैं कि घाटी में सक्रिय महिला अलगाववादियों को छात्राओं को भड़काने का जिम्मा सौंपा गया है। ये बुर्का धारण कर प्रदर्शनकारी छात्राओं की भीड़ में शामिल हो जाती हैं और सुरक्षा बलों को निशाना बनाती हैं। बुर्का होने की वजह से इनकी पहचान कर पाना आसान नहीं रहा। श्रीनगर महिला कालेज के साथ उत्तरी कश्मीर के सोपोर में भी छात्राओं ने प्रदर्शन करते हुए पत्थरबाजी की घटनाओं को अंजाम दिया। कहा जा रहा है कि सरकार के खिलाफ कश्मीरियों में गुस्से को दिखाने के लिए इन विरोध प्रदर्शनों को गति देने के लिए छात्राओं को ढाल बनाने की साजिश की गई। आसिया अंद्राबी की गिरफ्तारी के बाद महिला अलगाववादियों पर थोड़ा दबाव बढ़ा था, लेकिन अब भी हिंसा को भड़काने की साजिश के तहत इसे श्रीनगर से बाहर ले जाने की दिशा में कोशिशें चल रही हैं।
हिंसा एक संक्रामक रोग की तरह होता है। इसे वायरल होते देर नहीं लगती। इसका ताज़ा उदाहरण मध्यप्रदेश के एक संभागीय मुख्यालय #सागर के उस क्षेत्र में देखने को मिला जो कभी रजाखेड़ी ग्राम पंचायत के नाम से प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत रही और अब नवोदित नगरपालिका क्षेत्र है। महात्मा बुद्ध के दो सिद्धांत दिन-दहाड़े ध्वस्त होते दिखे। महात्मा बुद्ध ने मदिरापान से दूर रहने का उपदेश दिया था मगर #रजाखेड़ी में ठीक थाने के सामने शराब की दूकान खोलने जाने का लाईसेंस दिया गया। जबकि थाने के बाजू में देवी का प्राचीन मंदिर है, जहां महिलाओं और किशोरियों का निरंतर आना-जाना लगा रहता है। शराब की दूकान के विरोध में महिलाएं भी उतर आईं। शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन चल रहा था किन्तु बुद्ध जयंती के ठीक दो दिन पहले वह घटना घटी जिसने काश्मीर की पत्थरबाजी को याद दिला दिया। हुआ यूं कि महिलाओं के समर्थन में #नरयावली क्षेत्र के विधायक प्रदीप लारिया भी शराब की दूकान का विरोध करने पहुंचे। तभी कुछ लोग गाड़ियों में भर कर आए और उन्होंने दूकान का विरोध करने वालों पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। महिलाएं घायल हुईं, #विधायक #प्रदीप लारिया के पैर में भी पत्थर से चोट लगी और पुलिस वाले भी घायल हुए। उपद्रवियों द्वारा हवाई फायरिंग किए जाने के समाचार भी आए। इस तरह की हिंसात्मक घटना इस क्षेत्र में पहले कभी नहीं हुई। तो क्या काश्मीर में चल रही हिंसक प्रवृत्ति एक छोटे से कस्बाई क्षेत्र में भी आ पहुंची जहां हर व्यक्ति परस्पर एक-दूसरे को पसंद करता है और एक-दूसरे का खयाल रखता है। इस तरह की घटना घोर चिन्ता में डाल देने वाली है। बशर्ते यह चिन्ता उन्हें भी हो जो ऐसा घटनाओं को रोक सकते हैं। आश्चर्य की बात है कि स्थानीय प्रशान और प्रदेश शासन के बीच ये कौन-सी कूटनीति है कि एक और घने रिहायशी इलाकों में शराब की दूकानें खोलने के ठेके दिए जा रहे हैं और दूसरी ओर इसका विरोध करने वालों को धरना-प्रदर्शन की हद तक पहुंचने पर मजबूर किया जा रहा है। सत्ताधारी दल के विधायक को हिंसक उपद्रवियों के हाथों पत्थर खाने पड़ रहे हैं। इससे पहले की स्थितियां और अधिक पेंचीदा हो जाएं, इनका सुलझाया जाना अब निहायत जरूरी हो गया है। महात्मा #बुद्ध ने कहा था कि हिंसा के विचारों की जड़ों को जमने नहीं देना ही हिंसा से दूर रहने का सबसे अच्छा उपाय है।
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