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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, September 22, 2017

चर्चा प्लस ... मोदी और मुस्लिम महिलाओं का ‘संवाद’ क्या रचेगा नया इतिहास ? - डाॅ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस 
मोदी और मुस्लिम महिलाओं का ‘संवाद’
क्या रचेगा नया इतिहास ? 

- डाॅ. शरद सिंह

(मेरा कॉलम 'सागर दिनकर' में 20.09.2017)

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 22 सितम्बर को अपने संसदीय क्षेत्र बनारस पहुंचने वाले हैं। अपने इस दो दिवसीय दौरे में वे डीरेका ऑडिटोरियम में मुस्लिम महिलाओं के साथ ‘संवाद’ कार्यक्रम के अंतर्गत बातचीत करेंगे। इसमें काफी संख्या में वे मुस्लिम महिलाएं शामिल होने की संभावना हैं जो लंबे समय से तीन तलाक के खिलाफ आवाज बुलंद करती रही हैं। इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि तीन तलाक मामले के बाद मुस्लिम महिलाओं के बीच प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता बढ़ी है। इसीलिए आशा की जा रही है कि यह संवाद कार्यक्रम मुस्लिम महिलाओं के लिए तरक्की के कई नए रास्ते खोलेगा।
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper

लगभग 13 राज्यों की 70 हजार मुस्लिम महिला सदस्यों वाले राष्ट्रीय गठबंधन भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार किए जाने की जरूरत जताते हुए नवम्बर, 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत कई नेताओं को पत्र लिखा था तथा बराबरी के हक और लैंगिक न्याय की मांग की थी। इसके बाद 24 अक्तूबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रिपल तलाक़ के मुद्दे पर पहली बार अपनी राय सामने रखते हुए उत्तर प्रदेश में ’महापरिवर्तन रैली’ के दौरान बुंदेलखंड में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि - ‘‘हमें अपनी बेटियों, मांओं और बहनों को बचाना ज़रूरी है, इसमें धर्म आड़े नहीं आना चाहिए। मांओं और बहनों का सम्मान करना चाहिए। अब ये ट्रिपल तलाक़ का मुद्दा आ गया है. जैसे कोई हिंदू, कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराध में लिप्त होता है तो उसे जेल जाना पड़ता है उसी तरह से मेरी मुसलमान बहनों का क्या अपराध कि कोई फ़ोन पर तलाक़ कह देता है और उनकी ज़िंदगी तबाह हो जाती है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा है कि महिलाओं पर किसी तरह की ज़्यादती नहीं होनी चाहिए और धर्म के आधार पर किसी महिला के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। लोकतंत्र में बातचीत होनी चाहिए। सरकार ने अपनी स्थिति साफ़ कर दी है। वो लोग जो ट्रिपल तलाक़ के मुद्दे से ध्यान भटकाना चाहते हैं, ऐसे लोग जनता को भड़का रहे हैं। हमारे देश में मुस्लिम महिलाओं की ज़िंदगी ट्रिपल तलाक़ से बर्बाद होने की इजाज़त नहीं दी जा सकती। कुछ पार्टियां वोट बैंक की ख़ातिर 21 वीं सदी में महिलाओं के प्रति अन्याय करने पर उतारू हैं। ये किस तरह का इंसाफ़ है। राजनीति और चुनाव की अपनी जगह है लेकिन मुस्लिम महिलाओं को संविधान के मुताबिक़ अधिकार देना सरकार की और देश के लोगों की ज़िम्मेदारी है। तलाक़ के मुद्दे पर बहस में मुस्लिम समुदाय के उऩ पढ़े लिखे लोगों को हिस्सा लेना चाहिए जो क़ुरान की अच्छी जानकारी रखते हों। मुस्लिम समुदाय में भी प्रगतिशील सोच रखने वाले पढ़े लिखे लोग हैं। शिक्षित मुस्लिम महिलाएं भी इस मुद्दे पर अपने विचार रख सकती हैं।’’
तमाम मतभेदों के बावजूद भी विरोधी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि शायद आज भी नरेन्द्र मोदी की जगह किसी और के नेतृत्व की सरकार होती तो इस प्रकार का फैसला नहीं आ पाता क्योंकि जिस दृढ़ता के साथ केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने सरकार का पक्ष रखा, उससे सुप्रीम कोर्ट को फैसला सुनाने में और भी आसानी हो गई। केन्द्र की मोदी सरकार ने सुप्रीम अदालत में अपना पक्ष दृढ़ता पूर्वक रखते हुए कहा था कि सभी पर्सनल कानून संविधान के दायरे में हों। ’’शादी, तलाक, संपत्ति और उत्तराधिकारी के अधिकार को भी एक नजर से देखा जाना चाहिए। तीन तलाक इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है।’’
तीन तलाक के प्रकरण में हुआ फैसला इस लिए भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पक्ष को मजबूती देता है क्यों कि लोग अभी शाहबानो प्रकरण को भूले नहीं हैं। राजीव गांधी सरकार ने कट्टरपंथियों के दबाव में आकर मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को कानून बनाकर पलट दिया था। मध्य प्रदेश के जिला इंदौर की शाहबानो को उनके पति मोहम्मद अहमद खान ने सन् 1978 में तलाक दे दिया था। तलाक के समय शाहबानो के पांच बच्चे थे। इनके भरण−पोषण के लिए उन्होंने निचली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने शाहबानो के पक्ष में फैसला सुनाया, बाद में यह मामला हाईकोर्ट होता हुआ सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सभी जगह शाहबानो के ही पक्ष में फैसले सुनाए गए। उस समय मुस्लिम समाज का कट्टरपंथी पुरुष समुदाय शाहबानो की अपील का विरोध किया। विरोध के दबाव में आकर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने 1986 में मुस्लिम महिला अधिनियम पारित कर दिया, जिसमें शाहबानो मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय को उलट दिया गया। इस कानून में कहा गया था, ’हर वह आवेदन जो किसी तालाकशुदा महिला के द्वारा अपराध दंड संहिता 1973 की धारा 125 के अंतर्गत किसी न्यायालय में इस कानून के लागू होते समय विचाराधीन है, अब इस कानून के अंतर्गत निपटाया जायेगा, चाहे उपर्युक्त कानून में जो भी लिखा हो।’ उस समय राजीव गांधी सरकार को पूर्ण बहुमत प्राप्त था, इसीलिये उच्चतम न्यायालय के धर्म−निरपेक्ष निर्णय को उलटने वाला मुस्लिम महिला (तालाक अधिकार सरंक्षण) कानून 1986 आसानी से पास हो गया। इसके आधार पर शाहबानो के पक्ष में सुनाया गया फैसला संसद ने पलट दिया।
22 अगस्त 2017 को जब सुप्रीम कोर्ट ने ‘तीन तलाक’ की प्रथा को असंवैधानिक करार दिया तब शाहबानो के बेटे जमील अहमद ने उन दुख भरे दिनों को याद करते हुए कहा था कि ‘‘38 साल पहले जब कोर्ट ने अम्मी (शाहबानो) को भरण−पोषण के 79 रुपए अब्बा से दिलवाए थे, तो लगा था जैसे दुनिया भर की दौलत मिल गई, जो खुशी उस समय मिली थी, वही आज फिर महसूस हो रही है। जब फैसले को लेकर विवाद बढ़ने लगा तो अम्मी इतनी आहत हुईं कि उन्होंने भरण पोषण की राशि ही त्याग दी। अब ऐसा नहीं हो पायेगा। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक ठहरा कर मुस्लिम महिलाओं के हक में फैसला सुनाया है। जो मशाल 38 साल पहले अम्मी ने जलाई थी, उसकी रोशनी आज पूरे देश और समाज को रोशन कर रही है।’’
बिना किसी राजनीतिक पक्षपात के समाज हित में यह बात स्वीकार की जा सकती है कि उस समय मोदी की सरकार होती तो शायद मुस्लिम महिलाओं को 40 वर्षों तक यूं भटकना नहीं पड़ता। यह भी कहा गया कि प्रधानमंत्री ने कांग्रेस के मुस्लिम वोट के किले में सेंध लगा दी है। लेकिन यदि महिलाओं के मानवीयहित को ध्यान में रखा जाए तो इस प्रकार की राजनीति में बुरा क्या है जब इससे किसी बड़े पक्ष को बुनियादी अधिकार मिल रहा हों।
इस तारतम्य में 22 सितम्बर 2017 को बनारस में होने वाले संवाद कार्यक्रम को देखा जा रहा है। अपने इस दो दिवसीय दौरे में वे डीरेका ऑडिटोरियम में मुस्लिम महिलाओं के साथ ‘संवाद’ कार्यक्रम में भाग लेंगे। इसमें काफी संख्या में वे मुस्लिम महिलाएं शामिल होने की संभावना हैं जो लंबे समय से तीन तलाके के खिलाफ आवाज बुलंद करती रही हैं। यद्यपि वहीं दूसरी ओर देश की प्रमुख समाचार ऐजेंसियों के अनुसार मुस्लिम बाहुल शक्करतालाब इलाके में कट्टरपंथियों के सक्रिय होने से महिलाओं को धमकाने का दौर शुरू हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ’संवाद’ कार्यक्रम को लेकर मुस्लिम महिलाओं को धमकाए जाने का मामला सामने आया। कार्यक्रम में शामिल होने की इच्छुक महिलाओं को कट्टरपंथी घर-घर जाकर मारने-पीटने के साथ सामाजिक बहिष्कार की धमकी दे रहे हैं। यह जानकारी स्वयं मुस्लिम महिला फाउंडेशन की महिला कचहरी में सामने रखी गई। प्रशासन को भी इस बारे में जानकारी दी जा चुकी है।
वरुणापार इलाके में रविवार को मुस्लिम महिला फाउंडेशन की ओर से आयोजित महिला कचहरी में शामिल हुई शबाना ने बताया कि कट्टरपंथियों के इशारे पर युवकों की टोली घरों में बार-बार जाकर महिलाओं को पीएम कार्यक्रम में न जाने की बात कह धमका रही है। गुड़िया, रेशमा, शहनाज और आफरीन के अलावा एक दर्जन अन्य महिलाओं ने भी धमकाए जाने की जानकारी दी। महिलाओं ने बताया कि धमकी देने वाले कह रहे हैं कि मोदी कार्यक्रम के दिन घर से बाहर कदम रखते ही हाथ-पैर तोड़ दिया जाएगा। इस पर मुस्लिम महिला फाउंडेशन की नेशनल सदर नाजनीन अंसारी ने महिला कचहरी में कहा कि धमकी देने वाले कायर हैं। मुस्लिम महिलाएं जागरुक हो चुकी हैं। प्रधानमंत्री मोदी से मिलकर वे अपनी परेशानी जरूर बताएंगी। इस मसले पर सर्वसम्मति से तय किया गया ज्यादा से ज्यादा महिलाएं हर कीमत पर प्रधानमंत्री से मिलने जाएंगी। धमकी देने वालों के खिलाफ लिखित रिपोर्ट एसएसपी को दी जाएगी। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय सेवा प्रमुख डा. राजीव श्रीवास्तव का कहना है कि धमकी देकर मुस्लिम महिलाओं में डर पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री के ‘‘संवाद कार्यक्रम’’ के प्रति उत्साही मुस्लिम महिलाओं का साहस देखते हुए इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि तीन तलाक मामले के बाद मुस्लिम महिलाओं के बीच प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता बढ़ी है। एक ओर भारतीय मुस्लिम महिलाओं का संघर्ष दूसरी ओर सरकार की महिलाओं के हित में सकारात्मक सोच और तीसरी भारतीय न्यायायिक व्यवस्था का मानवीय दृष्टिकोण - इन तीनों ने शक्तियों ने मिल कर भारतीय मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में ‘तीन तलाक’ से मुक्ति का जो द्वार खोला है वह उन महिलाओं के सुखद और सुरक्षित भविष्य की ओर एक बड़ा और मज़बूत क़दम है। इसीलिए आशा की जा रही है कि यह संवाद कार्यक्रम मुस्लिम महिलाओं के लिए प्रगति के नए द्वार खोलेगा और रचेगा नया इतिहास।
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