Dr (Miss) Sharad Singh |
मेरा कॉलम चर्चा प्लस दैनिक सागर दिनकर में (25.10.2017)
स्वप्नजीवी सरकारी योजनाएं
- डॉ. शरद सिंह
इसमें कोई संदेह नहीं कि सरकार
बहुत अच्छी योजनाएं बनाती है लेकिन सभी अच्छी योजनाओं का क्रियान्वयन क्या
सचमुच अच्छी तरह हो सकता है? यह जरूर संदेह का विषय है। जहां औरतों,
लड़कियों यहां तक कि नाबालिग बालकों के साथ भी अनैतिक कार्यों का ग्राफ
चौंकाने वाला हो उस वातावरण में बाईक-टैक्सी कितनी सुरक्षित हो सकती है? या
फिर यह कि बच्चे एप्प पर शिकायत करेंगे कि उन्हें दिया गया मध्यान्ह भोजन
अच्छा था कि नहीं, जबकि भयवश तो अच्छे-अच्छे दमदार लोग भी ग़लतबयानी कर जाते
हैं। यह समझ से परे है कि ज़मीनी सच्चाई और सरकारी योजनाओं में इतनी दूरी
क्यों रहती है? क्या हर सपना सच्चाई की धूप में खरा उतर सकता है? करोड़ों
खर्च होने के बाद यदि सपने की कटु सच्चाई सामने आए भी तो क्या लाभ?
Charcha Plus Column by Dr Miss Sharad Singh in Sagar Dinkar Daily News Paper |
यदि आज के समय में कोई पूछे कि स्वप्नजीविता क्या है तो इसका सटीक उत्तर
होगा-‘‘बहुसंख्यक सरकारी योजनाएं’’। अभी हाल ही में दो-तीन सरकरी योजनाओं
की घोषणा की गई है ये भी स्वप्नजीविता की बेहतरीन उदाहरण कही जा सकती हैं।
स्वप्नजीविता यानी सपनों में जीना। सच्चाई के खुरदुरेपन से दूर मखमली सपनों
में सब कुछ आनन्द में डूबा, सही और विकसित दिखाई देता है। व्यवहारिकता का
इससे वस्ता सिर्फ़ इतना ही रहता है कि इनकेेेेेेे क्रियान्वयन में करोड़ों
रुपए खर्च हो जाते हैं और हाथ अगर कुछ आता है तो असफलता और जांच आयोग। हाल
ही में जो दो योजनाएं मध्यप्रदेश में घोषित की गई हैं वे निश्चितरूप से
उम्दा हैं। यदि ये योजनाएं सामान्य परिस्थितियों में लागू होतीं तो इनका
परिणाम विकास में चार चांद लगा देता लेकिन सरकार को इन योजनाओं के बारे में
सुझाव देने वाले विद्वान भूल गए कि परिस्थितियां इनके ठीक विपरीत हैं।
दोनों में से पहली योजना को ही लें, यह है बाईक-टैक्सी योजना। बदलती
जीवनशैली और शहरों में ट्रैफिक समस्या या बढ़ते वाहनों की भीड़ के मद्देनजर
अब सरकार मोटरसाइकिल का भी कॉमर्शियल लाइसेंस जारी करेगी। ताकि मोटरसाइकिल
का इस्तेमाल टैक्सी की तरह बाइक टैक्सी (बैक्सी) के रूप में हो सके। इससे
जहां एक तरफ लोगों को रोजगार मिल सकेगा, वहीं दूसरी तरफ लोग कम पैसे में और
कम समय में अधिक ट्रैफिक की स्थिति में भी अपने गंतव्य स्थल तक पहुंच
सकेंगे। यद्यपि बैक्सी नया कॉन्सेप्ट नहीं है। भारत में भी यह राजस्थान,
गोवा, गुजरात, नोएडा, गुरुग्राम और गाजियाबाद में शुरू हो चुका है लेकिन
अभी लोगों के बीच ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो सका है। बैक्सी का एप लोड करने
के बाद दो विकल्प मिलेंगे, जिसमें पिकअप और ड्रॉप लिखना होगा। ड्रॉप और
पिकअप लिखने के बाद संभावित किराया भी पता लगाया जा सकेगा। सभी बाइक चालकों
के पास स्मार्ट फोन होगा। चालक एप की मदद से आपकी स्थान (लोकेशन) खोज लेगा
और आपके घर पहुंच जाएगा। इस तरह घर बैठे आप बाइक टैक्सी को बुला सकेंगे।
मध्यप्रदेश में सरकार ने किराए पर बाईक देने की योजना को सामने रखा है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि इस प्रकार की सवारी सुविधा सस्ते दर में उपलब्ध हो
सकेगी और तंग गलियों में भी पहुंचा सकेगी।
क्या इस प्रकार की
बाईक-सेवा सुरक्षित होगी जबकि महिलाओं और बालक-बालिकाओं के प्रति अपराध के
आंकड़ें असुरक्षा की एक अलग ही कहानी कह रहे हों। एक राष्ट्रीय जांच सर्वे
के अनुसार भारत में हर एक घंटे में 22 बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं। ये
वे आंकड़े हैं जो पुलिसथानों में दर्ज कराए जाते हैं। अनेक मामले तो
पुलिसथानों तक पहुंच ही नहीं पाते हैं। अकसर लोकलाज को आधार बनाकर पीड़िता
के परिजनों द्वारा मामला दबा दिया जाता है। कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली जैसे
महानगर में उबेर कंपनी के टैक्सी चालक द्वारा अपनी महिला सवारी से बलात्कार
करने की घटना सुर्खियों में छाई रही। महिलाओं के प्रति अपराध की संभावना
भीड़ भरे वातावरण में अपेक्षाकृत कम रहती है। इसीलिए स्वयं महिलाएं भी सिटी
बस, टेम्पो, टैक्सी या ऑटोरिक्शा को प्राथमिकता देती हैं जिनमें अन्य
सवारियां भी रहती हैं। क्या सागर, जबलपुर, कटनी, झाबुआ जैसे छोटे शहरों की
महिलाएं बाईक टैक्सी में जाना पसंद करेंगी? यदि वे बाईक टैक्सी को अपनाएंगी
भी तो क्या यह उनके लिए सुरक्षित होगा? फिर महिलाएं बाईक टैक्सी में जाएं
या न जाएं किन्तु युवाओं और बच्चों को तो वह आकर्षिक करेगी ही। उल्लेखनीय
है कि एक ओर बच्चों के साथ यौन शोषण के बढ़ते मामलों के बीच एनसीईआरटी चाहता
है कि छात्र गुड टच और बैड टच के बीच का अंतर पहचानें और उन्हें किताबों
में यह पढ़ाया जाए कि यौन शोषण का सामना करने पर उन्हें क्या करना चाहिए।
स्कूली पाठ्यक्रमों और पुस्तकों पर केंद्र और राज्य सरकार को सुझाव देने
वाले राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद ने कहा है कि अगले
सत्र से उसकी सभी किताबों में ऐसे मामलों से निपटने के लिए क्या करना
चाहिए, इसकी एक सूची होगी। इसमें पोक्सो कानून और राष्ट्रीय बाल अधिकार
संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के बारे में जानकारी देने के साथ ही कुछ
हेल्पलाइन नंबर भी होंगे। एनसीईआरटी के अनुसार शिक्षकों को गुड और बैड टच
के बीच अंतर बताने के लिए छात्रों को शिक्षित करने की कोशिश करनी चाहिए।
इसीलिए तय किया गया है कि अगले शिक्षण सत्र से एनसीईआरटी की सभी किताबों के
पीछे वाले कवर के अंदर की तरफ आसान भाषा में कुछ दिशा निर्देश होंगे।
इसमें छूने के अच्छे और बुरे तरीके के बारे में कुछ चित्र भी होंगे। कुछ
हेल्पलाइन नंबर भी होंगे, जहां छात्र या अभिभावक ऐसे मामलों की रिपोर्ट कर
सकते हैं या कोई मदद या काउंसिलिंग मांग सकते हैं। गुरुग्राम (हरियाणा) में
एक निजी स्कूल में सात वर्षीय लड़के की हत्या और दिल्ली में एक स्कूल के
चपरासी द्वारा पांच साल की बच्ची का बलात्कार किए जाने की घटनाओं के
मद्देनजर छात्रों की सुरक्षा को लेकर बढ़ रही चिंताओं के बीच यह कदम उठाया
गया। सीबीएसई ने पिछले सप्ताह स्कूलों से अपने शिक्षण और गैर शिक्षण
कर्मचारियों का पुलिस वेरिफिकेशन कराने के साथ-साथ साइकोमेट्रिक जांच कराने
के लिए भी कहा। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने
स्कूली बसों के लिए महिला चालकों की भर्ती करने का भी सुझाव दिया। वहीं
दूसरी ओर राज्य सरकारों द्वारा बाईक-टैक्सी योजना सामने रखी जा रही है।
प्रदेश में कानून व्यवस्था की दशा यह है कि स्वयं पुलिसवाले असुरक्षित
दिखाई देते हैं। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिला मुख्यालय में कोतवाली थाना
क्षेत्र में आरक्षक की गोली मारकर हत्या कर दी गई। मामला ठंडा नहीं हुआ कि
एक और नया मामला सामने आ गया। छतरपुर के ही सिविल लाइन थाना में पदस्थ
आरक्षक दुवेश सोनकर अपने परिजनों को ट्रेन में बैठाने के लिए पन्ना रोड
स्थित महाराजा छत्रसाल रेलवे स्टेशन छतरपुर पहुंचे। जहां पर करीब 5-6 गुंडे
आए और आरक्षक की कालर पकड़कर गाली-गलौज करने लगे। साथ धक्कामुक्की की और
स्टेशन पर मौजूद लोग तमाशाबीन बने रहे। इस दौरान गुंडों ने आरक्षक को जान
से मारने की धमकी देते हुए कहा कि चंद्रपुरा आओ, तो काट कर फेंक देंगे।
पीड़ित आरक्षक ने इस बात की सूचना तत्काल ही सिविल लाइन पुलिस को दी, लेकिन
जब तक पुलिस पहुंची, तब तक गुंडे वहां से भाग चुके थे। इतना ही नहीं
कोतवाली थाना क्षेत्र में हुई घटना का हवाला देकर गुंडों ने आरक्षक दुवेश
को धमकाया। जब पुलिस आरक्षक ही सुरक्षित न हो तो आम जनता किसके भरोसे बाईक
टैक्सी जैसी नई योजनाओं का स्वागत करें?
स्वप्नजीवी दूसरी योजना है
कि अब बच्चे खुद खाने की गुणवत्ता जांचेंगे। महिला एवं बाल विकास विभाग के
तहत संचालित आंगनवाड़ियों में मिड डे मील की गुणवत्ता स्वयं विभाग तय नहीं
कर पा रहा हो तो बच्चे कैसे बताएंगे कि उसमें कार्बोहाइड्रेट कम है या
प्रोटीन की मात्रा मानक स्तर से कम है? वैसे महिला एवं बाल विकास विभाग ने
इसके लिए मोबाइल एप्प एमपीडब्ल्यूडी सीडी बनाया है। उस पर बताया जा सकेगा
कि भोजन में प्रोटीन या कार्बोहाइड्रेट उचित मात्रा में नहीं है। अब ज़मीनी
सच्चाई पर नज़र डाली जाए। गुणवत्ताहीन भोजन की शिकायत करने के लिए मोबाईल
एप्प की व्यवस्था रहेगी। शून्य से छह साल तक के अधिकांश कुपोषित बच्चे
ग्रामीण इलाकों से हैं। एक तो ग्रामीण क्षेत्रों में एंडरायड मोबाईल कम
लोगों के पास होते हैं, दूसरे जिनके पास होते भी हैैैैैैै वे सस्ते फोन
रखते हैं जिनमें ढेर सारे एप्प लोड नहीं किए जा सकते हैं, तीसरे जब
अच्छे-अच्छे दमदार लोग सच्चाई बयान नहीं कर पाते हैं तो छोटे-बच्चों को तो
बड़ी आसानी से अपने पक्ष में किया जा सकता है। इन तीनों से भी बड़ी सच्चाई कि
कोई छः साल का ग्रामीण बच्चा मोबाईल एप्प से शिकायत कैसे दर्ज़ करा सकेगा?
इस योजना एक अर्थ यह भी है कि मिड डे मील की गुणवत्ता पर निगरानी रखने वाले
संदेह के दायरे देखे जा रहे हैं या उन पर लगाम लगाना सरकार को कठिन लग रहा
है।
हर सरकार अच्छे काम करना चाहती है। वह जनता पर अपने प्रशासनिक
कौशल और अपनी योजनाओं की छाप छोड़ना चाहती है लेकिन वह अपनी इस आकांक्षा में
तभी कामयाब हो सकती है जब उसकी योजनाएं ज़मीनी स्तर पर खरी उतरती हों। यह
समझ से परे है कि ज़मीनी सच्चाई और सरकारी योजनाओं में इतनी दूरी क्यों रहती
है? क्या हर सपना सच्चाई की धूप में खरा उतर सकता है? करोड़ों खर्च होने के
बाद यदि सपने की कटु सच्चाई सामने आए भी तो क्या लाभ? कई राज्यों में ऐसे
मुख्यमंत्री हैं जो ज़मीन से जुड़े हुए हैं कम से कम उनसे तो यह अपेक्षा की
ही जा सकती है वे अपने अमले को व्यावहारिक योजनाएं बनाने की सलाह दें। यह
उनकी जनहितप्रिय छवि के लिए भी आवश्यक है। ---------------------------
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