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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, April 25, 2018

चर्चा प्लस ... भावनाओं से खेलते सोशल मीडिया के अपराधी - डाॅ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस
भावनाओं से खेलते सोशल मीडिया के अपराधी
- डाॅ. शरद सिंह
आज सोशल मीडिया पर जिस तरह भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जाता है उसे देख कर सुदर्शन की कहानी ‘हार की जीत’ याद आती है। उस कहानी में डाकू खड्गसिंह एक अपाहिज बन कर सहायता मांगता हुआ बाबा भारती के पास पहुंचा और उनकी सद्भावनाओं से खिलवाड़ करता हुआ उनका घोड़ा ले उड़ा था। तब उसे रोक कर बाबा भारती ने कहा था कि “लोगों को यदि इस घटना का पता चला तो वे दीन-दुखियों पर विश्वास न करेंगे।“ बाबा भारती कम से कम डाकू खड्गसिंह को यह कह तो सके लेकिन इंटरनेट की आभासीय दुनिया में फ़र्ज़ी आईडी वाले डाकुओं की कोई कमी नहीं है और ये डाकू जनता की भावनाओं पर बेख़ौफ़ डकैती डालते रहते हैं। 
भावनाओं से खेलते सोशल मीडिया के अपराधी - डाॅ. शरद सिंह ... चर्चा प्लस  Article for Column - Charcha Plus by Dr Sharad Singh in Sagar Dinkar Dainik

मुझे व्हाट्एप्प की मैसेजेस की भीड़ से घबराहट होती है। उस पर आमतौर पर ऊलजलूल संदेशों से भरे हुए व्हाट्एप्प ग्रुप से तो भगवान बचाए। संदेशों की ये बाढ़ मोबाईल की मेमोरी को तो डुबा ही देती है, साथ ही दिमाग की बत्ती भी गुल कर देती है। फिर भी कई ग्रुप एडमिन जागरूक होते हैं और वे सजगता के साथ अपने ग्रुप का संचालन करते हैं। ऐसे ही एक ग्रुप से मैं भी जुड़ी हूं। उस ग्रुप में विभिन्न क्षेत्रों के बुद्धिजीवी हैं। लेकिन जब बात भावनाओं की हो तो तर्क पीछे छूट जाते हैं। पिछले दिनों इसी तरह का उदाहरण मेरे सामने आया। उस व्हाट्एप्प ग्रुप के एक सदस्य ने एक तस्वीर पोस्ट की। तस्वीर में अपने माता-पिता के साथ दो बच्चे दिखाई दे रहे थे। एक लड़का और एक लड़की। अबोध आयु के। तस्वीर के साथ संदेश लिखा था कि-‘‘यह परिवार एक नैनो में सफर कर रहा था देवास के पास कार का सीरियस एक्सीडेंट हो गया और दोनों मां-बाप एक्सपायर हो चुके हैं। दोनों बच्चे अपना पता एड्रेस बताने में असमर्थ हैं। कृप्या इस तस्वीर को फार्वर्ड करने की कुपा करें।’’ निश्चितरूप से बड़ा मार्मिक संदेश था जिसे पढ़कर कोई भी व्यक्ति बिना सोचे-विचारे उस पोस्ट को आगे बढ़ा देगा। मैंने भी उस पोस्ट को पढ़ा लेकिन देर से। तब तक उस व्हाट्एप्प ग्रुप के एडमिन चैतन्य सोनी जो एक जागरूक पत्रकार हैं, उस पर टिप्पणी कर चुके थे। मैंने उनकी टिप्पणी पढ़ी। उनकी टिप्पणी थी कि -‘‘ये फोटो क्या नैनो कार में से मिली है?’’ फिर उनकी दूसरी टिप्पणी थी -‘‘शायद फेक है यह।’’ जाहिर है कि एक पत्रकार की नज़र ने उस जालसाजी को ताड़ लिया जो आम व्यक्ति नहीं ताड़ सकता है। मैंने भी ध्यान से देखा, वह फोटो बहुत ही अच्छी हालत में और एकदम साफ़सुथरी थी। लिहाजा उसका उस दुर्घटनाग्रस्त कार से मिलना तो संभव नहीं था। और जब बच्चे अपने घर का पता नहीं बता पा रहे थे तो वह फोटो व्हाट्एप्प मैसेज करने वाले को कहां से मिल गई? न जाने किस परिवार की फोटो का इस तरह दुरुपयोग किया गया था। उस व्हाट्एप्प ग्रुप में जिन्होंने उस पोस्ट को शेयर किया था, वे एक प्रबुद्ध व्यक्ति हैं लेकिन स्वाभाविक है कि भावुकता में वे इस पक्ष पर नहीं सोच सके होंगे और जब यह संदेश उनके पास आया होगा तो उन्होंने उसे ग्रुप में शेयर कर दिया। जब दुर्घटना और बच्चों के साथ किसी त्रासदी की बात हो तो कोई भी व्यक्ति व्याकुल हो उठेगा और जल्दी से जल्दी उनकी सहायता के लिए तत्पर हो जाएगा। इसमें उन प्रबुद्ध सदस्य का कोई दोष नहीं था। लेकिन यहीं प्रश्न उठता है कि यदि इसी तरह फर्जी संदेश सोशल मीडिया में पोस्ट और फार्वर्ड होते रहेंगे तो सच्ची घटना घटने पर अथवा सही संदेश पर कोई क्यों ध्यान देगा? दरअसल, चंद खुराफातियों ने संवेदनशील लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करने का हथियार बना रखा है सोशल मीडिया को। वहीं इसे कानून की दृष्टि को देखा जाए तो यह साईबर क्राईम है।
2 अप्रैल 2018 को देश के विभन्न हिस्सों में प्रदर्शन के दौरान जो दंगे, आगजनी और मौतें हुईं उसमें भी सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए भड़काऊ संदेशों का बड़ा हाथ रहा। उसके बाद सभी संवेदनशील क्षेत्रों में प्रशासन के द्वारा इंटरनेट पर कुछ समय के लिए रोक लगा दी। इससे उन भड़काऊ संदेश भेजने वालों का तो कुछ नहीं बिगड़ा लेकिन शेष जनता को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आजकल ई-बैंकिग का चलन है। आपात या तुरंत पैसे भेजने के लिए ई-बैंकिंग या इंटरनेट पर आधारित अन्य माध्यम ही अपनाए जाते हैं। इंटरनेट को बंद किए जाने पर न जाने कितने लोगों को समय पर पैसे नहीं मिल पाए होंगे। न जाने कितने लोग बस, रेल या हवाई रिजर्वेशन न करा पाने पर अपने अवसरों से वंचित हो गए होंगे। इन सबसे बड़ा नुकसान व्यापार जगत को हुआ। ई-मार्केटिंग तो ठप्प हुई ही, साथ ही सामान्य बाज़ार भी लड़खड़ा गया। प्रशासन जानता था कि इंटरनेट सेवा रोकने से यह सब होगा लेकिन वह मजबूर था। क्योंकि यदि इंटरनेट सेवा जारी रहती तो भड़काऊ संदेश आग उगलते रहते और उसमें आमजनता की जान और माल जलते रहते। जो सुविधा इंसान को इंसान के करीब लाने और परस्पर मित्र बनाने के लिए ईजाद की गई, उसका इस तरह घृणित उपयोग किया जाना इंसानियत को लज्जित करता है।
विभिन्न धर्मों के देवी-देवता को ले कर अभद्र संदेशों का अदान-प्रदान अकसर होता रहता है। जिसके कारण कई बार माहौल गरमाने लगता है और पुलिस व्यवस्था को यथार्थ के बदले आभासीय दुनिया से उपजे खतरों के पीछे दौड़ना पड़ता है। महिलाओं और उसमें भी विशेषरूप से स्कूल-काॅलेज जाने वाली लड़कियों को इससे विशेष खतरा रहता है। बदनीयत लड़के पहले मित्र बनते हैं फिर अवसर पाते ही विशेष ऐंगल से ली गई सेल्फी या फिर मित्रता प्रेम में बदल चुकी हो तो भावुक पलों का मोबाईल-वीडियो बना लेते हैं और फिर उसे इंटरनेट पर अपलोड करने की धमकी दे कर लड़की को ब्लैकमेल करते रहते हैं। ऐसा नहीं है कि ऐसे अपराध पहले नहीं होते थे। लेकिन एक पीढ़ी पहले तक ऐसे अपराधों को उंगलियों पर गिना जा सकता था। तब लड़की द्वारा लिखे गए प्रेमपत्र बदनीयत लड़कों के हथियार होते थे लेकिन वह उन्हें लड़की के माता-पिता या रिश्तेदारों तक ही भेजने की क्षमता रखता था। लेकिन आज एक अपलोड लड़की की गोपनीयता को पल भर में पूरी दुनिया के सामने सार्वजनिक कर सकता है। यह अपराध भावनाओं के साथ किया गया ऐसा अपराध है जो हत्या से भी अधिक जघन्य है। सिर्फ़ लड़की नहीं वरन किसी सभ्रांत पुरुष या लड़के की आपत्तिजनक तस्वीरें या वीडियो इंटरनेट पर अपलोड करने की धमकी दे कर उसका जीना हराम करने की घटनाएं भी सामने आती रहती हैं। यहां तक कि कभी कोई प्रोफेसर इस अपराध की चपेट में आता है तो कभी कोई राष्ट्रीय स्तर का नेता।
भारत में भी साइबर क्राइम मामलों में तेजी से बढ़त हो रही है। सरकार ऐसे मामलों को लेकर बहुत गंभीर है। भारत में साइबर क्राइम के मामलों में सूचना तकनीक कानून 2000 और सूचना तकनीक (संशोधन) कानून 2008 लागू होते हैं। मगर इसी श्रेणी के कई मामलों में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), कॉपीराइट कानून 1957, कंपनी कानून, सरकारी गोपनीयता कानून और यहां तक कि आतंकवाद निरोधक कानून के तहत भी कार्रवाई की जा सकती है। साइबर क्राइम के कुछ मामलों में आईटी डिपार्टमेंट की तरफ से जारी किए गए आईटी नियम 2011 के तहत भी कार्रवाई की जाती है। इस कानून में निर्दोष लोगों को साजिशों से बचाने के इतंजाम भी हैं। सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों, ई-मेल, चैट वगैरह के जरिए बच्चों या महिलाओं को तंग करने के मामले अक्सर सामने आते हैं। इन आधुनिक तरीकों से किसी को अश्लील या धमकाने वाले संदेश भेजना या किसी भी रूप में परेशान करना साइबर अपराध के दायरे में ही आता है। किसी के खिलाफ दुर्भावना से अफवाहें फैलाना, नफरत फैलाना या बदनाम करना भी इसी श्रेणी का अपराध है। इस तरह के केस में आईटी (संशोधन) कानून 2009 की धारा 66 (ए) के तहत सजा का प्रावधान है। दोष साबित होने पर तीन साल तक की जेल या जुर्माना हो सकता है। ई-मेल स्पूफिंग और फ्रॉड के मामलों में आईटी कानून 2000 की धारा 77 बी, आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 66 डी, आईपीसी की धारा 417, 419, 420 और 465 लगाए जाने का प्रावधान है।
आज का युग कम्प्यूटर, मोबाईल और इंटरनेट का युग है। इंटरनेट की मदद के बिना किसी बड़े काम की कल्पना करना भी मुश्किल है। ऐसे में अपराधी भी तकनीक के सहारे हाईटेक हो रहे हैं। वे अपराध करने के लिए कम्प्यूटर, इंटरनेट, डिजिटल डिवाइसेज और वल्र्ड वाइड वेब आदि का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऑनलाइन ठगी या चोरी भी इसी श्रेणी का अहम अपराध होता है। किसी की वेबसाइट को हैक करना या सिस्टम डेटा को चुराना ये सभी तरीके साइबर क्राइम की श्रेणी में आते हैं। साइबर क्राइम दुनिया भर में सुरक्षा और जांच एजेंसियां के लिए परेशानी का कारण साबित हो रहा है। लेकिन कंप्यूटर, इंटरनेट और मोबाईल का प्रयोग करने वालों को हमेशा सतर्क रहना चाहिए कि कहीं उनसे भी जाने-अनजाने में कोई साइबर क्राइम तो नहीं हो रहा है। जहां तक संभव हो आपत्तिजनक संदेशों को फार्वर्ड करने से बचने में ही भलाई है। साथ ही, संदिग्ध-संवेदनशील संदेशों को कुछ पल ठहर कर परखना जरूरी है। कहीं ऐसा न हो कि जाने-अनजाने हम अपनी भावुकता के हाथों ही ठगे जाएं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सोशल मीडिया के अपराधी दूसरों के दिमाग पर कब्ज़ा कर के अपने अपराधों को अंजाम देते हैं। इसी लिए सतर्क रहते हुए सोशल मीडिया में मौजूद अपराधियों से अपनी संवेदनाओं और भावनाओं को बचाए रखना जरूरी है।
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( दैनिक सागर दिनकर, 25.04.2018 )
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