Pages

My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, May 15, 2018

चर्चा प्लस ... लाखा बंजारा झील: एक संघर्ष कथा ... - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस
लाखा बंजारा झील: एक संघर्ष कथा .....
    - डाॅ. शरद सिंह
       एक तालाब जिसने कई सदियां देखीं और लाखों लोगों की प्यास बुझाई, वर्षों से  अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहा है। हालात् यहां तक पहुंचे कि यह सूख कर मैदान में तब्दील हो गया और इस पर क्रिकेट मैच भी खेला गया। समय ने करवट ली तो यह एक बार फिर लबालब हुआ। लेकिन आज यह फिर अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहा है। ...यूं तो कहने को यह लाखा बंजारा झील उर्फ़ सागर झील की संघर्ष कथा है लेकिन यह कथा वो आईना है जिसमें देश के हर शहर, गांव और कस्बे के तालाबों, कुओं सहित तमाम जलस्रोतों की अंतर्कथा देखी जा सकती है....
लाखा बंजारा झील: एक संघर्ष कथा - डाॅ. शरद सिंह ... चर्चा प्लस  Article for Column - Charcha Plus by Dr Sharad Singh in Sagar Dinkar Dainik

लाखा बंजारा झील अर्थात् सागर झील, सागर नगर की पहचान ही नहीं बल्कि इसके अस्तित्व की परिचायक भी है। यह काफी प्राचीन है। राजा ऊदनशाह ने जब 1660 में यहां छोटा किला बनवाकर पहली बस्ती यानि परकोटा गांव बसाया, तो तालाब पहले से ही मौजूद था। सागर के बारे में यह मान्यता है कि इसका नाम सागर इसलिए पड़ा क्योंकि यहां एक विशाल झील है। सागर झील की उत्पत्ति के बारे में वैसे तो कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। इनमें सबसे मशहूर कहानी लाखा बंजारा के बहू-बेटे के बलिदान के बारे में है। इस कथा के अनुसार एक बंजारा दल घूमता-फिरता सागर आया। उसके सरदार ने पाया कि सागर में पानी का भीषण संकट है। उसने अपने पुत्र लाखा बंजारा से विचार-विमर्श किया। दोनों ने तय किया जिस भूमि पर उन्होंने डेरा उाला है और जहां का वे नमक खा रहे हैं, उस भूमि के नमक का हक अदा करने के लिए एक झील बनाई जाए जिससे सागर के निवासियों को कभी पानी के संकट से नहीं जूझना पड़े। स्थानीय लोगों की मदद से उन बंजारों ने भूमि की खुदाई कर के एक विशाल झील तैयार कर ली। किन्तु समस्या यह थी कि उसमें पानी ठहरता ही नहीं था। झील सूखी की सूखी बनी रहती थी। तब किसी तांत्रिक ने बंजारा सरदार को सलाह दी कि यदि वह अपने बेटे और बहू की बलि देगा तो झील में पानी भर जाएगा। सरदार हिचका। लेकिन उसके बेटे और बहू ने अपना बलिदान देना स्वीकार कर लिया। कहा जाता है कि लाखा और उसकी पत्नी के बलिदान के बाद झील में पानी हिलोरें लेने लगा। लाखा के नाम पर ही सागर झील को लाखा बंजारा झील भी कहा जाता है। बलिदान से सहेजी गई झील की देखभाल भी बड़े जतन से की जानी चाहिए थी, मगर दुर्भाग्य से ऐसा हुआ नहीं।  
भौगोलिक तौर पर सागर नगर इस झील के उत्तरी, पश्चिमी और पूर्वी किनारों पर बसा है। दक्षिण में पथरिया पहाड़ी है, जहां विश्वविद्यालय परिसर है। इसके उत्तर-पश्चिम में सागर का किला है। सरकारी अभिलेखों में करीब चार दशक पूर्व इसे लगभग 1 वर्गमील क्षेत्र में फैला बताया गया है। एक समय था जब विश्वविद्यालय की पहाड़ी के नीचे तक झील फैली हुई थी और दूसरी ओर किले की प्राचीर से इसकी लहरें टकराती थीं। चूंकि किले में जवाहरलाल नेहरू पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित कर दिया गया जिससे किले की ओर का किनारा सुरक्षित बच गया। लेकिन विश्वविद्यालय की ओर का किनारा इस तरह सिमटना शुरू हुआ कि आज विश्वविद्यालय की पहाड़ी और तालाब के बीच अनेक काॅलोनीज़ बन गई हैं। झील के एक हिस्से को सुखा कर उस पर सरकारी बसस्टैंड बना दिया गया। ठीक दूसरी ओर झील दो भागों में बांट दी गई-छोटा तालाब और बड़ा तालाब। छोटे तालाब वाला हिस्सा मत्स्य उद्योग और सिंघाड़ा उत्पादन के सुपुर्द कर दिया गया। जबकि बड़े तालाब का हिस्सा झील के रूप में अपने अस्तित्व के लिए जूझता रहा। लंबे समय तक झील नगर के पेयजल का स्रोत रही लेकिन अब प्रदूषण के कारण इसका पानी इस्तेमाल नहीं किया जाता। कहा जाता है कि शहर के कई कुए इसी झील के अंतःस्रोतों से रीचार्ज होते रहे हैं।
लाखा बंजारा झील की दुदर्शा क्यों हुई इसके मूल रूप से दो कारण हैं- पहला बस्तियां बसाने के लिए झील की सीमा में कटौती और दूसरा नगरवासियों में अपनी विरासत को सहेजने के प्रति चेतना की कमी। ऐसा नहीं है कि नगरवासियों को अपनी झील से प्यार नहीं है, वे इसे अपना गौरव मानते हैं लेकिन इस गौरव को बचाए रखने के प्रति घनघोर लावपरवाहियां भी हुई हैं। जिसका उदाहरण है कि झील में प्रदूषण का चिंताजनक स्तर तक जा पहुंचा है और अतिक्रमण के पंजे उसके गले तक पहुंचने लगे हैं। नगर का जो विस्तार झील से परे बाहर की ओर होना चाहिए था वह झील की सीमाओं को तोड़ता हुआ झील को सीमित करता गया। गूगल अर्थ में झील पर चढ़ आए अतिक्रमण को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
लगभग 25 साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा के कार्यकाल में सागर झील की सफाई के लिए डिसिलिं्टग का प्लान बना था, लेकिन योजनानुसार अमल नहीं हो सका था। दूसरी तरफ झील के सौंदर्यीकरण के लिए केंद्र से 21 करोड़ की राशि आई थी। इस योजना पर कुछ ही काम हुआ और प्रशासनिक लापरवाहियों के चलते राशि लौटानी पड़ी। एक बार फिर झील की किस्मत संवारने का काम शुरू किया गया है। इस संबंध में प्राथमिकतौर पर शासन से 10 करोड़ की राशि मंजूरी हुई है। विगत 01 मई से प्रदेश के जलाशयों के गहरीकरण का काम शुरू हो चुका है, साथ ही सागर की लाखा बंजारा झील का भी गहरीकरण किए जाने की दिशा में काम शुरू हो गया है। सागर के महापौर अभय दरे इस अभियान को ले कर बेहद उत्साहित हैं। उनका यह उत्साह स्वाभाविक है। महापौर अभय दरे ने सन् 2016 में हैदराबाद जाकर केवल इस पूरे प्लान को समझा था, बल्कि गाद घोलने वाली फ्लोटिंग ड्रेजिंग मशीन को लाने का भी मन बना लिया था। हैदराबाद में ड्रेजिंग कॉपोरेशन ऑफ इंडिया के माध्यम से झील की सफाई हुई थी। इस मशीन की खासियत यह है कि यह पानी में नाव की तरह तैरती है। इसमें नीचे मथनीनुमा उपकरण लगे हुए हैं जो कि गाद को पानी में घोल देते हैं। झील से गंदगी निकालने के लिए मोंगा बंधान का विकल्प भी है। जांचकत्र्ताओं के अनुमान के अनुसार झील में चार फीट से ज्यादा गाद जमी हुई है।
झील की सफाई के लिए शासन से मिलने जा रहे 10 करोड़ रुपए झील के प्रदूषित हरे पानी का रंग बदलने और किनारों के आसपास की सिल्ट हटाने पर खर्च होंगे, लेकिन इसमें मिलने वाले 4 बड़े नालों के ट्रैपिंग व चैलनाइजेशन का काम केंद्र से 240 करोड़ के प्रोजेक्ट को मंजूरी मिलने के बाद ही संभव है। शहर के जनप्रतिनिधियों का दावा है कि अगली बार मैकेनाइज्ड सिस्टम से डि-सिलिं्टग और नालों से सिल्ट व सीवर जाने से रोकने के लिए नाला ट्रैपिंग का काम भी कराया जाएगा। इसके लिए केंद्र से राशि लाएंगे। वैसे झील-सफाई के मार्ग में चार बड़े नाले बाधाएं खड़ी कर रहे हैं। शनिचरी, शुक्रवारी से नालियों से बहकर आने वाला पानी और चार बड़े नाले इसे लगातार भर रहे हैं। ये चारों बड़े नाले वर्षों से झील में गंदगी और गाद उड़ेल रहे हैं-जैन हाई स्कूल के सामने से निकलने वाला नाला, डॉ. मौर्य हॉस्पिटल के बाजे से बहने वाला नाला, बॉलक कॉम्पलेक्स से निकला नाला और बरियाघाट से बहने वाला नाला। ध्यान रहे कि ये नाले अपनेआप अवतरित नहीं हुए। प्रशासनिक एवं जनता की लापरवाहियों ने इन्हें झील से जोड़े रखा।
वर्तमान में एक महत्वाकांक्षी योजना के अंतर्गत् झील का पानी आधा खाली करने के बाद इसके किनारे से सिल्ट को जेसीबी से निकालकर डंपर व ट्रकों से बाहर किया जाएगा। झील के बड़े हिस्से से सिल्ट हटाने के लिए मैकेनाइज्ड सिस्टम का प्रयोग किया जाएगा। अनुमान है कि लगभग 240 करोड़ के प्लान में लगभग 27.83 करोड़ रुपए डि-सिलिं्टग पर खर्च होना है। ड्रेजिंग मशीन के जरिए गाद को पानी में घोलकर पंप आउट किया जाएगा। यह तकनीक सामान्यतः बंदरगाहों के आसपास जमी सिल्ट को हटाने के लिए अपनाई जाती है। महापौर अभय दरे के अनुसार हैदराबाद की हुसैन सागर झील की तर्ज पर सागर झील की डि-सिलिं्टग ड्रेजिंग कार्पोरेशन ऑफ इंडिया की मदद से ही संभव है। इस पर बड़ी राशि खर्च होगी। नगर के महापौर अभय दरे के साथ ही स्थानीय नेताओं, समाजसेवियों को भी इस झील संरक्षण के महायज्ञ के सलतापूर्वक निर्विध्न पूरा हो जाने की आकांक्षा है।
एक तालाब जिसने कई सदियां देखीं और लााखों लोगों की प्यास बुझाई, वर्षों से  अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहा है। हालात् यहां तक पहुंचे कि यह सूख कर मैदान में तब्दील हो गया और इस पर क्रिकेट मैच भी खेला गया। समय ने करवट ली तो यह एक बार फिर लबालब हुआ। लेकिन आज यह फिर अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहा है। यूं तो कहने को यह लाखा बंजारा झील उर्फ़ सागर झील की संघर्ष कथा है लेकिन यह कथा वो आईना है जिसमें देश के हर शहर, गांव और कस्बे के तालाबों, कुओं सहित तमाम जलस्रोतों की अंतर्कथा देखी जा सकती है। वैसे, जिस झील ने सदियों से नगर को अपने पानी से सींचा है, उसे एक बार फिर प्रदूषणमुक्त और अतिक्रमणमुक्त हो कर जीने का अधिकार है। यदि झील गहरीकरण अभियान सफल रहता है तो झील की इस कथा में एक सुखद अध्याय जुड़ सकेगा, इसकी संघर्ष कथा समाप्त हो सकेगी, और यह निश्चिंतभाव से हिलोरें ले सकेगा।
          -------------------------

( दैनिक सागर दिनकर, 09.05.2018 )
          ---------------------------

#शरदसिंह #सागरदिनकर #दैनिक #मेराकॉलम     #Charcha_Plus #Sagar_Dinkar #Daily
#SharadSingh #WaterConservation #LakhaBanjara_Jheel #Tanks #Well #Jheel #Sagar_Jheel #Talab #तालाब #सागरझील #लाखाबंजारा_झील #कुआ #जलस्रोत #जलस्रोत

No comments:

Post a Comment