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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, May 29, 2018

चर्चा प्लस ... ऐजेंडा में सबसे ऊपर हो बलात्कार-मुक्त समाज ... डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस
ऐजेंडा में सबसे ऊपर हो बलात्कार-मुक्त समाज
- डॉ. शरद सिंह
सन् 1919 का चुनावी महासमर सामने है और सभी महारथी अपनी-अपनी कमर कस रहे हैं। सभी के अपने ऐजेंडा तैयार हो रहे हैं। बेशक सभी का ध्यान जनता की जरूरतों की ओर अटका रहेगा। आश्वासनों की थैलियां खुलती रहेंगी। किन्तु एक मुद्दा ऐसा है जिसे झूठे आश्वासन नहीं बल्कि एक शपथ के रूप में राजनीतिक दलों को अपने ऐजेंडा में सबसे ऊपर रखना ही होगा, वह है - बलात्कार-मुक्त समाज। क्योंकि, हर पंद्रह मिनट में बलात्कार की एक घटना आंकड़े के साथ कोई भी राजनीतिक दल अच्छे शासन का दम भर सकता है?

चर्चा प्लस ... ऐजेंडा में सबसे ऊपर हो बलात्कार-मुक्त समाज ... डॉ. शरद सिंह , डाॅ. शरद सिंह ... चर्चा प्लस  Article for Column - Charcha Plus by Dr Sharad Singh in Sagar Dinkar Dainik

कर्नाटक चुनाव ने देश के राजनीति परिदृश्य में एक नए अध्याय पर अपनी मुहर लगा दी है। जो दल पिछड़ते दिखाई पड़ रहे थे वे एक बार फिर ताल ठोंक कर सामने आ खड़े हुए हैं और जो सबसे आगे नज़र आ रहे थे वे लड़खड़ा गए। इसीलिए माना जाता है कि राजनीति में कुछ भी संभव है। अपने ही भ्रम में जीने वाला राजनीतिक दल कब जड़ से उखड़ जाए इसका ठिकाना नहीं है। लेकिन इस भ्रम को तोड़ने वाली सबसे बड़ी शक्ति है जनता की इच्छाशक्ति। जनता क्या चाहती है इसका ध्यान रखना हर राजनीतिक दल के लिए जरूरी है। जो यह ध्यान नहीं रखता है, जनता भी उसका ध्यान नहीं रखती है। यही तो लोकतंत्र है। सन् 1919 का चुनावी महासमर सामने है और सभी महारथी अपनी-अपनी कमर कस रहे हैं। सभी के अपने ऐजेंडा तैयार हो रहे हैं। बेशक सभी का ध्यान जनता की जरूरतों की ओर अटका रहेगा। आश्वासनों की थैलियां खुलती रहेंगी। किन्तु एक मुद्दा ऐसा है जिसे झूठे आश्वासन नहीं बल्कि एक शपथ के रूप में राजनीतिक दलों को अपने ऐजेंडा में रखना ही होगा, वह है - बलात्कार-मुक्त समाज।
मध्यप्रदेश सरकार ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ के मुद्दे को ले कर बड़ी जागरूक रही है किन्तु इसी मध्यप्रदेश में लगभग हर दूसरे दिन बलात्कार की एक घटना घटित होने लगी है। ऐसा नहीं है कि यह अपराध सिर्फ़ मध्यप्रदेश में नहीं वरन् समूचे देश को कलंकित कर रहा है। लेकिन मध्यप्रदेश प्रदेश के पुलिस मुख्यालय ने विगत मार्च 2018 में एक चौंकाने वाला खुलासा किया कि मध्यप्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहां साल भर में पांच हजार से अधिक महिलाओं और नाबालिगों से बलात्कार और छेड़छाड़ के मामले सामने आये हैं। आंकड़े के अनुसार वर्ष 2017 में 5310 बलात्कार की घटनाएं प्रदेशभर के थानों में दर्ज हुई हैं। यानी हर दिन लगभग 15 बलात्कार की घटनाएं। वर्ष 2016 के मुकाबले वर्ष 2017 में यहां महिलाओं और नाबालिगों से बलात्कार की घटनाओं में 8.76 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। एनसीआरबी की क्राइम इन इंडिया-2016 रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में उत्तरप्रदेश में हत्या और महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराध सबसे ज्यादा हुए थे। यहां हत्या के 4,889 (16.1 प्रतिशत ) और महिलाओं के खिलाफ हिंसा व अपराध के 49,262 मामले (14.5 प्रतिशत ) दर्ज किए गए। वहीं, बलात्कार के सबसे ज्यादा 4,882 मामले मध्य प्रदेश में दर्ज हुए, जो कुल घटनाओं का 12.5 प्रतिशत है। 2014 और 15 में भी मध्यप्रदेश में बलात्कार के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए थे।
बलात्कार हत्या से भी जघन्य अपराध है। हत्यारा हत्या कर के एक जीवन का अंत कर देता है किन्तु बलात्कारी बलात्कार कर के एक जीवन को एक झटके में सारे समाज से काट देता है और एकाकी , भयभीत जीवन जीने को विवश कर देता है। मध्य प्रदेश सरकार ने 12 साल या उससे कम उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार के दोषियों को फांसी की सजा देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। दण्ड संहिता की धारा 376 ।। और 376 क्। के रूप में संशोधन किया गया और सजा में वृद्धि के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। इसके अलावा लोक अभियोजन की सुनवाई का अवसर दिए बिना जमानत नहीं होगी। इस विधेयक को विधानसभा में पारित कर केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। मृत्युदंड को अमल में लाने के लिए दुष्कर्म की धारा 376 में ए और एडी को जोड़ा जाएगा, जिसमें मृत्युदंड का प्रावधान होगा। सरकार ने बलात्कार मामले में सख्त फैसला लेते हुए आरोपियों के जमानत की राशि बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दी है। इस तरह मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है, जहां बलात्कार के मामले में इस तरह के कानून के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। साथ ही शादी का प्रलोभन देकर शारीरिक शोषण करने के आरोपी को सजा के लिए 493 क में संशोधन करके संज्ञेय अपराध बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। महिलाओं के खिलाफ आदतन अपराधी को धारा 110 के तहत गैर जमानती अपराध और जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है। महिलाओं का पीछा करने, छेड़छाड़, निर्वस्त्र करने, हमला करने और बलात्कार का आरोप साबित होने पर न्यूनतम जुर्माना एक लाख रुपए लगाया जाएगा। भाजपा ने 12 वर्ष से कम आयु की बच्ची से बलात्कार के मामले में दोषी पाए जाने पर मृत्युदंड सहित कठोर दंड वाले प्रावधान संबंधी इस अध्यादेश को ऐतिहासिक करार दिया था तब वहीं विपक्षी दलों ने सवाल किया था कि सरकार को यह कदम उठाने में इतना समय क्यों लग गया? दूसरी ओर देश भर के बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के मामले में मौत की सजा का प्रावधान करने के लिए पॉक्सो कानून में संशोधन के सरकार के फैसले का विरोध किया। केंद्रीय कैबिनेट ने 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा देने की अनुमति देने वाले एक अध्यादेश को मंजूरी दी। इसके साथ ही देश की राजनीति गरमा उठी। पक्ष अपनी पीठ ठोंकता रहा तो विपक्ष खामियां गिनाता रहा। इसी दौरान राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के पूर्व सदस्य विनोद टिक्कू ने कहा कि ‘‘मुझे आशंका है कि मौत की सजा का प्रावधान हो जाने पर ज्यादातर लोग बच्चियों से बलात्कार के मामले दर्ज नहीं कराएंगे क्योंकि ज्यादातर मामलों में परिवार के सदस्य ही आरोपी होते हैं। दोषसिद्धि दर भी और कम हो जाएगी।’’
वहीं नोबल प्राईज से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी के चिल्ड्रेंस फाउंडेशन ने अपने एक ताज़ा अध्ययन के अनुसार यह कहा कि बाल यौन अपराधों से जुड़े लंबित मामलों का निपटारा करने में अदालतों को दो दशक लग जाएगा। कार्यकर्ताओं का कहना था कि सरकार को मौजूदा कानूनों को मजबूत करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए, पीड़िताओं और गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए, मुकदमों की त्वरित सुनवाई करानी चाहिए और जागरूकता पैदा करना चाहिए।
देश में पिछले तीन साल के आंकड़े जिस भयावहता की ओर संकेत कर रहे हैं वह कंपकंपा देने वाला है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के 2014 के आंकड़ों के मुताबिक देश में हर एक घंटे में 4 बलात्कार की वारदात होती हैं। एनसीआरबी द्वारा सन् 2015 के प्रस्तुत किए गए अांकड़ों पर यदि ध्यान दिया जाए तो यह सोच कर हैरानी होगी कि देश का सामाजिक स्तर किस रसातल में जा रहा है। सन् 2015 में देश में 34651 महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया था। वहीं 2113 सामूहिक बलात्कार की घटनाएं हुईं। यानी हर चार घंटे में एक सामूहिक बलात्कार। इन आंकड़ों की तुलना में यदि कानून पर ध्यान दिया जाए तो सन् 2015 में बलात्कार के 32 प्रतिशत मामले लंबित रहे, 29 प्रतिशत को सजा मिली और पिछले सालों के मामले मिलाकर कुल 86 प्रतिशत मामले लंबित रहे। संक्षेप में कहा जाए तो इन आंकड़ों के अनुसार देश में हर घंटे में चार बलात्कार हुए, अर्थात हर पंद्रह मिनट में एक बलात्कार। निर्भया बलात्कार (16 दिसंबर 2012) केस के बाद कानूनों में बदलाव किये गये, कानूनों को पहले से ज्यादा सख्त बनाया गया इस उम्मीद में कि शायद महिलाओं के साथ होने वाली आपराधिक वारदात कुछ कम होंगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। देश की राजधानी दिल्ली में वर्ष 2011 से 2016 के बीच महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामलों में 277 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। दिल्ली में वर्ष 2011 में जहां इस तरह के 572 मामले दर्ज किये गए थे, वहीं साल 2016 में यह आंकड़ा 2155 रहा। सन् 2017 और सन् 2018 के अब तक के आंकड़े भी इस तथ्य को लगातार रेखांकित कर रहे हैं कि बलात्कारियों को किसी भी कानून का कोई खौफ़ नहीं रह गया है। जितने कानून बन रहे हैं उससे दोगुनी गति से अपराध कारित हो रहे हैं। क्या कानून को लागू करने में कहीं कोई चूक हो रही है या फिर कोई और कारण है? इस कारण का पता लगाना और इसे दूर कर महिलाओं के लिए स्वच्छ, निर्भय समाज बनाना अब जरूरी हो चला है।
आज के ग्लोबल युग में भारत में घटने वाली घटना विश्व के कोने-कोने तक असर डालती है। विचारणीय है कि दुनिया के लगभग हर देश में भारतीय समुदाय रहता है। वह समुदाय क्या इन घटनाओं पर विदेशियों के सामने अपना सिर उठा पाता होगा? दुनिया के सामने देश की छवि तो बिगड़ ही रही है और स्वयं देश के अंदर महिलाएं भयभीत हो कर जीने को विवश हो रही हैं। जब आंकड़े हर पंद्रह मिनट में एक बलात्कार तक जा पहुंचे हों तो क्या इस आंकड़े के साथ कोई भी राजनीतिक दल अच्छे शासन का दम भर सकता है? इस मुद्दे पर तमाम राजनीतिक दलों को आत्ममंथन करना होगा अपना चुनावी एजेंडा तय करने से पहले और इसे प्रथमिकता देनी होगी।
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( दैनिक सागर दिनकर, 23.05.2018 )
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