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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, July 10, 2018

योग ने बनाई है सेहत भी पहचान भी - डॉ. शरद सिंह ... चर्चा प्लस

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लसः
योग ने बनाई है सेहत भी पहचान भी
   - डॉ. शरद सिंह                          
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस भले ही 21 जून को मनाया जाना है लेकिन उसका उत्साह महीने भर से छाया हुआ है। आज सभी एकमत से स्वीकार करते हैं कि योग ने जहां हमें सेहत दी है वहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान भी दी है। वस्तुतः योग स्वस्थ जीवन जीने की शैली है और अब जरूरत है इसे उस निचले तबके तक पहुंचाने की जहां कुपोषण का साम्राज्य है और सेहत के प्रति जागरूकता का तो नामोनिशान भी नहीं है। अब प्राथमिकता भी यही होनी चाहिए कम पढ़ा-लिखा और जीवन के हर कदम पर रोजी-रोटी के लिए जूझने वाला तबका भी दो पल के लिए अपनी सेहत के बारे में सोचे और योग को अपनाए। तभी सही मायने में स्वस्थ भारत की परिकल्पना साकार हो सकेगी। भूख, गरीबी और दिहाड़ी के बीच की यह डगर कठिन है किन्तु असंभव कुछ भी नहीं है अगर हम ठान लें।    
Charcha Plus -Yoga Ne Banai Sehat Bhi Pahachan Bhi - Charcha Plus Column by Dr Sharad Singh
   
“योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है; मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है; विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला है तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला है। यह व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवन-शैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है। तो आएं एक अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को गोद लेने की दिशा में काम करते हैं।“ ये शब्द थे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग की पैरवी करते हुए। इसके बाद 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र में 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को “ अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस“ को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रस्ताव को 90 दिन के अंदर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है। परिणामतः 21 जून को “ अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस“ घोषित किया गया। इस एक घोषणा से सारी दुनिया योग से जुड़ गई। इसमें कोई संदेह नहीं है कि योग सिर्फ कसरत नहीं है बल्कि यह स्वस्थ जीवन जीने की एक शैली है और प्रधानमंत्री मोदी ने इस जीवनशैली को ग्लोबल बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार संसार के सबसे पहले योगी हैं भगवान शिव। वैदिक ऋषि-मुनियों ने शिव द्वारा प्रदत्त योग को अपनी जीवनशैली बनाया और उसका विशद विवरण ताड़पत्रों पर लिखा। योगाभ्यास के प्रामाणिक सूत्र लगभग 3000 हजार ईसापूर्व सिन्धुघाटी सभ्यता के अवशेषों में मिलते हैं। लगभग 200 ईसापूर्व योग पर एक ग्रंथ लिखा गया था जिसका नाम था ‘‘योगसूत्र’’। हिन्दू, जैन, बौद्ध इन सभी धर्मों में योग के महत्व को प्रतिपादित किया गया है। भारत की यह प्राचीनतम परम्परा समूचे विश्व को हमेशा आकर्षित करती रही है। आज हॉलीवुड के नामचीन सितारे भी अपनी फिटनेस बनाए रखने के लिए योग करते हैं, फिर वो चाहे किम कर्देशियन हो या जेनीफर लोपेज। बस, हम आम भारतीय ही अपनी रोजी-रोटी के चक्कर में इस जीवनशैली से दूर होते चले गए। मानो हमारी भागमभाग वाली दिनचर्या ने हमें अपनी सेहत के बारे में सोचने से ही रोक दिया। आमतौर पर औसत भारतीयों को अपनी सेहत की सलामती की याद तभी आती है जब उसे डॉक्टरों के चक्कर काटने पड़ते हैं। ऐसे में ढेर सारी दवाओं और ढेरों परहेज के साथ वही जीवनचर्या अपनानी पड़ती है जिसे योग में बताया गया है।
मुझे याद है कि 12 मई 2016 को उज्जैन सिंहस्थ के दौरान ‘अंतर्राष्ट्रीय विचार महाकुंभ’ में योग पर चर्चा के दौरान मैंने तत्कालीन पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे से प्रश्न किया था कि गंदी बस्तियों और  झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों को सेहत के प्रति जागरूक करने के लिए क्या कोई ऐसा मॉडल बनाया जा सकता है जो उन्हें योग से जोड़ सके? इस पर उन्होंने उत्तर दिया था कि ‘‘हां, इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।’’ और फिर स्व. दवे ने योग पर चर्चा करने धर्मशाला से आए बौद्ध भिक्षु से इस बारे में राय मांगी थी। सिंहस्थ विचार महाकुंभ के बाद मेरी दोबारा अनिल माधव दवे जी से भेंट नहीं हो सकी और मुझे पता नहीं चल सका कि इस संबंध में शासन की कोई राय बनी या नहीं। किन्तु प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह योग को संयुक्तराष्ट्र संघ से अंतर्राष्ट्रीय दिवस घोषित कराया और इससे उन सेलीब्रटीज़ को जोड़ा जो निचले तबके के दिलों पर भी राज करते हैं, इससे आशा बंधी है कि एक दिन वह तबका भी अपनी सेहत के लिए योग का सस्ता नहीं बल्कि निःशुल्क, सुंंदर और टिकाऊ रास्ता अपना लेगा। अब प्राथमिकता भी यही होनी चाहिए कम पढ़ा-लिखा और जीवन के हर कदम पर रोजी-रोटी के लिए जूझने वाला तबका भी दो पल के लिए अपनी सेहत के बारे में सोचे और योग को अपनाए। तभी सही मायने में स्वस्थ भारत की परिकल्पना साकार हो सकेगी। आखिर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो योग ने बनाई है हम भारतियों की सेहत भी और भारत की पहचान भी।        
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(दैनिक सागर दिनकर, 20.06.2018 )
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