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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, May 17, 2019

संकट में है बुंदेलखंड की चित्रकला ‘बुंदेली कलम - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह - नवभारत में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh
समाचार पत्र नवभारत में बुंदेलखंड की चित्रकला बुंदेली कलम पर मेरा लेख प्रकाशित हुआ है... इसे आप भी पढ़िए...
🙏हार्दिक आभार #नवभारत 🙏


बुंदेलखंड कला और संस्कृति का धनी है। जिस प्रकार राजस्थान में चित्रकला की राजस्थानी कलम का विकास हुआ, उत्तराखंड में पहाड़ी कलम का विकास हुआ ठीक उसी प्रकार बुंदेलखंड में बुंदेली कलम विकसित हुई। यह दुर्भाग्य है कि जितनी ख्याति एवं बढ़ावा राजस्थानी कलम या पहाड़ी कलम को मिला उतनी प्रसिद्धि बुंदेली कलम को नहीं मिली। इसका सबसे बड़ा कारण बुंदेलखंड की राजनीति स्थितियां हैं। देश की स्वतंत्रता के पूर्व बुंदेलखंड याद्धाओं की कर्मभूमि बना रहा जिससे राजनीतिक अस्थिरता व्याप्त रही। वहीं, देश की स्वतंत्रता के पश्चात् राजनीतिक नेतृत्व में कला के प्रति उदासीनता ने बुंदेली कलम को ख्याति अर्जित करने का वतावरण उपलब्ध नहीं कराया। किन्तु आज भी ओरछा एवं दतिया में बुंदेली कलम के उत्कृष्ट उदाहरण अपनी स्वर्णिम गाथा कह रहे हैं।
बुंदेलखंड में चित्रकला की अपनी विशेषताएं पाई जाती है जिसके कारण कलाविशेषज्ञों ने इसे एक अलग शैली अर्थात् ‘बुंदेली कलम’ के रूप में स्वीकार किया। इसे बुंदेली स्कूल ऑफ पेंटिंग्स के नाम से भी पुकारा जाता है। अपनी कलात्मक सुंदरता एवं विशिष्ट रंग संयोजन के कारण बुंदेली कलम अन्य भारतीय चित्रकला से स्वतंत्रा अस्तित्व रखती है। बुंदेली चित्रकला में रंगों का उत्साह एवं ब्रश स्ट्रोक्स की गतिशीलता की अलग ही छटा दिखती है। लाल, गेरू, नीले, हरे, पीले और भूरे रंगों के माध्यम से चित्रों में जीवन्तता उंडेली गई है। इन चित्रों में धार्मिक अथवा पौराणिक कथाओं को विशेष स्थान दिया गया है। विशेष रूप से राम और कृष्ण की जीवन कथाओं को इसमें सहेजा गया है। रामकथा के अंतर्गत सीता स्वयंवर, ताड़का-वध, श्रीराम के राज्याभिषेक, परशुराम की चुनौती, राम एवं सीता का वनगमन, सीता-हरण, शूर्पणखा, मारीचि, जटायु, सुग्रीव और बाली की कहानियों को स्थान दिया गया है। इनमें राम और लक्ष्मण द्वारा मारे जाने वाले राक्षसों के साथ ही राम-रावण युद्ध का भी चित्रण है। 
 Navbharat - Sankat Me Hai Bundelkhand  Ki Chitrakala Bundeli Kalam .. - Dr Sharad Singh
         कृष्ण कथा के अंतर्गत माखन चोरी, पूतना वध, बकासुर वध, अघासुर वध, कलिया मर्दन आदि का घटनाओं के साथ ही रासलीला का सुंदर चित्रण भी इन हचत्रों में किया गया है। शेषनाग पर विष्णु, ,गणेश ब्रह्मा, देवी लक्ष्मी आदि के चित्र भी दीवारों एवं छतों पर चित्रित किए गए हैं। यह सारे चित्र मुख्य रूप से ओरछा के राज प्रसाद तथा लक्ष्मी मंदिर में बनाए गए हैं। उल्लेखनीय है की ओरछा में भगवान राम को एक राजा की तरह स्वीकार किया गया और इसीलिए उनका मंदिर रामराजा का मंदिर कहलाता है। रामराजा मंदिर में एक विशेष परंपरा रही है जिसके अंतर्गत भक्तों को पान का बीड़ा प्रसाद के रूप में दिया जाता रहा है। ओरछा के लक्ष्मी मंदिर में छत पर बहुत सुंदर चित्रकारी की गई है। इसमें राजा और सामंतों को भी चित्रित किया गया है। वहीं शिव और पार्वती के कथाचित्र मौजूद हैं। ओरछा में राय प्रवीण महल में दरबारी नृत्य दृश्यों का सुंदर अंकन किया गया है। ये चित्र बुंदेलखंड के रीतिकालीन काव्य को बखूबी परिलक्षित करते हैं। अभिसारिकाओं की पेंटिंग्स अपना विशेष प्रभाव छोड़ती है। ओरछा के कवि केशवदास ‘रसिकप्रिया’ एवं ‘कवि प्रिया’ तथा मतिराम की ‘रसराज’ प आधारित चित्र भी बनाए गए हैं। ओरछा के अतिरिक्त दतिया महल में बुंदेली कलम के चित्र हैं जिनमें राजकुमारों द्वारा शिकार दृश्यों की सुंदर पेंटिंग है।
बुंदेली कलम में ग्रामीण जीवन को भी पर्याप्त स्थान दिया गया है। सहां तक कि कृष्ण को भी साधारण कपड़ों तथा मनके वाली ग्रामीण मालाओं से सुसज्जित दिखाया गया है, जैसा कि आमतौर पर बुंदेलखंड के ग्वाले अथवा पशुपालक पहना करते हैं।
सन् 1857 के विद्रोह से उत्पन्न भावनाओं को भी कहीं सीधे तो कहीं प्रतीकात्मक रूप से दर्शाया गया है। ओरछा के लक्ष्मी मंदिर में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जीवन को प्रदर्शित करने वाले चित्रों की श्रृंखला है। इन चित्रों में मराठा सैनिकों को किले के भीतर अपने अस्त्र-शस्त्र सहित दिखाया गया है, जिसमें वे किले की प्राचीर पर तोप चलाते हुए भी चित्रित हैं। वहीं किले के बाहर ब्रिटिश सैनिकों को अपनी विशेष पोशाक में घोड़ों पर सवार होकर तोपों के साथ किले की ओर बढ़ते हुए चित्रित किया गया है। यह चित्र अपने आप में बुंदेलखंड की इतिहास-कथा कहता है।
बुंदेली कलम में पौराणिक एवं महाकाव्यकालीन कथाओं को प्रमुखता दी गई है। एक पेंटिंग में भरत को बैठे हुए तथा हनुमान को आकाश में उड़ते दिखाया गया है जिसमें हनुमान के हाथ में संजीवनी पर्वत है। यह हनुमान-कथा का बहुत ही सुंदर चित्रण है। वाराह और नरसिंह अवतार के चित्र भी हैं। नरसिंह अवतार के चित्र में नरसिंह को एक स्तंभ से प्रकट होते हुए दिखाया गया है। इसमें नरसिंह ने हिरण्यकश्यपु को अपनी गोद में लिटा कर उसके पेट को चीरते हुए दिखाया गया है। कथा के अनुसार हिरण्यकश्यपु को पशु अथवा मानव के द्वारा नहीं मारा जा सकता था, न उसे घर के भीतर मारा जा सकता था और न बाहर, न दिन में न रात में और ना ही किसी अस्त्र-शस्त्र से उसका वध किया जा सकता था। अतः विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यपु का वध किया। पेंटिंग के दाहिनी ओर वाराह अवतार है। जहां विष्णु के रूप में वाराह को एक राक्षस के साथ-साथ पृथ्वी को उठाते हुए दिखाया गया है। इस प्रकार प्रतीकात्मक रूप से उसे बुराई से पृथ्वी के उद्धार करता के रूप में दर्शाया गया है। यह चित्र भी ओरछा के राज महल में मौजूद है। महल में गणेश का भी सुंदर चित्र है जिसमें गणेश को एक से आसन पर विराजमान दिखाया गया है। इसमें गणेश के पास में चंवरधारी स्त्रियां है तथा एक महिला पूजा की सामग्री का पात्र लेकर सम्मुख खड़ी है। देवी-देवताओं के चित्रों के अतिरिक्त पशु-पक्षियों का भी चित्रण बुंदेली कलम में रुचि पूर्वक किया गया है। जैसे हाथी, शेर, घोड़ और मोरा आदि। कुछ पशु आकृतियां काल्पनिक है जो विविध कथाओं पर आधारित है। जैसे, हाथी के सिर और शेर के शरीर वाला पशु विशेष रूप से उल्लेखनीय है। कलात्मकता का यह सर्वोच्च उदाहरण छतरपुर जिले के धुबेला में रानी कमलापति की समाधि के द्वार पर भी चित्रित है। हरे और लाल रंग में पुष्प और लताओं का पैटर्न मुगल कला की याद दिलाता है।
बुंदेली कलम को संरक्षित एवं संवर्द्धित करने की दिशा में झांसी में कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं किन्तु मध्यप्रदेशीय बुंदेलखंड क्षेत्र में बुंदेली कलम संकटग्रस्त है। युवापीढ़ी को इस गौरवशाली चित्रकला परम्परा से जोड़ने के लिए सरकार और कलाप्रेमियों को संयुक्त पहल करनी होगी।
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( नवभारत, 17.05.2019 )
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