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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, June 5, 2019

चर्चा प्लस ... विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष : तय करना होगा कि हमें शुद्ध वायु चाहिए या अशुद्ध - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस ... विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष :
तय करना होगा कि हमें शुद्ध वायु चाहिए या अशुद्ध
- डॉ. शरद सिंह
हमारे शहरों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस को छूने चला है। राजस्थान के श्री गंगानगर में यह 50डिग्री को पार भी कर चुका है। कभी सोचा है कि ऐसा क्यों? हमने पेड़ काटे, जलस्रोतों को सुखाया जिससे हवा भी शुष्क हो गई। एक बार फिर हम आज चिंतन कर रहे हैं बढ़ते हुए वायु प्रदूषण पर। यह चिंतन ठीक इसी प्रकार है कि पहले हमने चिकित्सकों को काम से हटा दिया और फिर मरीज की चिंता करने जुटे हैं। जी हां, वायु प्रदूषण पर सबसे अधिक नियंत्रण करने वाले प्राकृतिक तत्व हैं वृक्ष। लेकिन हमने अपने कांक्रीट का साम्राज्य बढ़ाने के लिए वृक्षों को कटने दिया और आज उम्मींद कर रहे हैं कि हमें शुद्ध वायु मिले। यह स्वयं को छलने से बढ़ कर और यदि कुछ है तो वह अपराध है जो हम अपने आने वाली पीढ़ी के प्रति कर रहे हैं।
Charcha Plus -  विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष -  तय करना होगा कि हमें शुद्ध वायु चाहिए या अशुद्ध   -  Charcha Plus Column by Dr Sharad Singh
     विश्व पर्यावरण दिवस हर वर्ष 5 जून को मनाया जाता है। इस वर्ष भी मनाया जा रहा है। संयुक्तराष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा थीम तय की गई है-‘वायु प्रदूषण’। इसी थीम के आधार पर वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है। इसके साथ ही मंत्रालय इस अवसर पर कई कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। जिसके तहत 5 जून, 2019 को दिल्ली के विज्ञान भवन में एक बड़ा आयोजन तय किया गया है। इस आयोजन में पर्यावरण पर फिल्म प्रतिस्पर्धा, पुस्तकों के विमोचन के साथ ही वायु प्रदूषण, अपशिष्ट प्रबंधन एवं ‘वन : द ग्रीन लंग्स ऑफ सिटीज’ पर तीन विषयगत सत्र आयोजित रखे गए हैं। विश्व पर्यावरण दिवस दिल्ली ही नहीं वरन् देश भर में राज्यों की राजधानियों और अन्य शहरों में भी मनाया जाना है। इस आयोजन के लिए थीम सांग की लंचिंग काफी पहले की जा चुकी है।
कितना कंट्रास्ट और विरोधाभासी है न यह सब? एक ओर देश का आधे से अधिक हिस्सा पेयजल की किल्लत से जूझ रहा है वहीं दूसरी ओर उत्सवी वातावरण में पर्यावरण पर चिंतन किया जा रहा है। गोया हम अपने उत्सवधर्मिता के दायरे से बाहर आए बिना कुछ सोच ही नहीं सकते हैं। वहीं चीन अपने संसाधनों को हरसंभव बचाते हुए हमसे तेजी से आगे निकलता जा रहा है। इसीलिए वर्ष 2019 के लिए विगत 15 मार्च 2018 को को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण परियोजना कार्यालय की कार्यवाहक कार्यकारी प्रमुख जॉइसी म्सुया के साथ केन्या की राजधानी नैरोबी में संयुक्त रुप से चीन को मेजबान घोषित किया गया। अतः इस वर्ष चीन ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के आयोजन का मेजबान देश बनाया गया है। इस अवसर पर बोलते हुए म्सुया ने कहा था कि ‘वायु प्रदूषण के मुकाबले में चीन ने बड़ी नेतृत्वकारी शक्ति दिखाई। इसी क्षेत्र में चीन विश्व में और बड़े कदम उठाने में मददगार सिद्ध होगा। चीन वैश्विक अभियान का नेतृत्व करेगा, ताकि लाखों प्राणियों के प्राण बचाए जा सके।’
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्थापित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम हर साल 5 जून को “विश्व पर्यावरण दिवस” का आयोजन करता है। विश्व पर्यावरण दिवस दुनिया भर में बढ़ते प्रदूषण और उसको रोकने के उपायों पर ध्यान देने और उन उपायों को लागू करने के मकसद से हर साल मनाया जाता है। वर्तमान में वातावरण में लगातार बढ़ते प्रदूषण और उसके मानव जीवन सहित दूसरे जीव जन्तुओं में पड़ते प्रभाव को कम करने के उपायों को बेहतर बनाने के लिए है विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी विश्व पर्यावरण दिवस बुधवार 5 जून 2019 को मनाया जा रहा है। हर साल की तरह इस साल भी संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस का आयोजन होगा। वैसे तो समय-समय में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पर्यावरण पर सम्मेलन आयोजित होते रहते हैं किंतु 5 जून को विश्व के सभी सदस्य देश इस सम्मेलन में भाग लेते हैं और पर्यावरण को बेहतर और हराभरा बनाने के उपायों में विचार विमर्श करते हैं। यह विश्व के 100 से ज्यादा देशों द्वारा मनाया जाता है। इस दिन हर जगह पर्यावरण के सन्दर्भ में जागरुकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
एक बार फिर हम आज चिंतन कर रहे हैं बढ़ते हुए वायु प्रदूषण पर। यह चिंतन ठीक इसी प्रकार है कि पहले हमने चिकित्सकों को काम से हटा दिया और फिर मरीज की चिंता करने जुटे हैं। जी हां, वायु प्रदूषण पर सबसे अधिक नियंत्रण करने वाले प्राकृतिक तत्व हैं वृक्ष। लेकिन हमने अपने कांक्रीट का साम्राज्य बढ़ाने के लिए वृक्षों को कटने दिया और आज उम्मींद कर रहे हैं कि हमें शुद्ध वायु मिले। गंदगी से बजबजाते खुले नालों और कूड़े के ढेरों को देखते हुए भी हम आशा करते हैं कि हमें शुद्ध वायु मिले। यह स्वयं को छलने से बढ़ कर और यदि कुछ है तो वह अपराध है जो हम अपने आने वाली पीढ़ी के प्रति कर रहे हैं।
भारत में वाहन संबंधी वायु प्रदूषण के कारण अकेले वर्ष 2015 में साढ़े तीन लाख बच्चे दमा का शिकार बने थे। दुनिया की प्रतिष्ठित चिकित्सा पत्रिका ‘द लांसेट प्लैनटेरी हेल्थ जर्नल’ में प्रकाशित हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आयी थी। इस अध्ययन में 194 देशों और दुनिया भर के 125 प्रमुख शहरों को शामिल किया गया था। रिपोर्ट के अनुसार प्रति वर्ष बच्चों में दमा के दस में से एक से ज्यादा मामले वाहन संबंधी प्रदूषण के होते हैं। इन मामलों में से 92 प्रतिशत मामले ऐसे क्षेत्रों के रहते हैं, जहां यातायात प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देश स्तर से नीचे है। उसी दौरान अमेरिका स्थित जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ सुसान अनेनबर्ग ने इस रिपोर्ट पर बात करते हुए मीडिया से कहा था कि ‘हमारे निष्कर्षों से पता लगा है कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड से होने वाला प्रदूषण बचपन में दमा की बीमारी के लिए ज्यादा जिम्मेदार है। यह विकसित और विकासशील दोनों तरह के देशों के लिए चिंता का विषय है। ऐसे में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की सांद्रता से जुड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देश पर पुनर्विचार करने की जरूरत है तथा यातायात उत्सर्जन को कम करने के लिए भी एक लक्ष्य निर्धारित किया जाना चाहिए।’
क्या इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद हमारे देश में वायु प्रदूषण के आधार पर वाहनों के रख-रखाव अथवा प्रदूषण नियंत्रण के प्रति कोई जागरूकता सामने आई? बस, एक ठोस कदम यह उठाया गया कि 15 वर्ष से पुराने वाहनों को सड़क पर निषिद्ध कर दिया गया। जबकि वाहनों की संख्या में सौगुनी वृद्धि हुई। भारत में बहुप्रचतिल वाहनों में मुख्यतः पेट्रोल एवं डीजल का ईंधन रूप में उपयोग होता है। इन वाहनों से निकलनेवाले धुंए में कार्बन-डाई-ऑक्साइड, कार्बन-मोनो-आक्साइड जैसी विषैली गैसे होती हैं, जो मानव एवं जीव जन्तुओं के स्वास्थ्य के लिए घातक होती हैं। वायु में निरन्तर घुलते भारी जहर के कारण लोगों को श्वासजनित बीमारियां हो जाती हैं। इनमें से अनेक लाईलाज होती हैं। वाहनों के धुंए से आंखों में जलन होना तो आम बात है। वाहनों का धुंआ इनकी साईलेन्सर की नली के छोर से निकलता है, जिसका मुंह वाहनों के पीछे की ओर रहता है। पीछे की ओर हवा में जहरीले पदार्थ घुलते जाते हैं। और फिर इस नली का मुंह नीचे ओर झुका होने के कारण धुंए का तेज झोंका पहले सड़क पर टकराता है और अपने साथ सड़क की गन्दी धूल को भी लेकर हवा में उड़ाकर जहरीले तत्वों को कई गुना बढ़ा देता है। लोगों की नाक में यह धुंआ एवं गन्दी धूल घुसकर घातक प्रभाव डालती है। सबसे घातक स्थिति होती है, जब चौराहों पर लाल बत्ती होने के कारण प्रतीक्षारत वाहन खड़े रहते हैं तो उनका इंजन स्टार्ट रहता है तथा उनसे निकलता धुंआ इतना अधिक गहरा होता जाता है कि आंखों में जलन होने के साथ साथ खांसी भी आने लगती है। चौराहों पर यातायात पुलिस कर्मियों की स्थिति आत्मघातियों जैसी बनी रहती है।
हम अपने शहरों और बस्तियों में कारों की बाढ़ ले आए लेकिन हमने आज भी ‘कारपूल’ करना नहीं सीखा। जबकि ‘कारपूल’ वह पद्धति है जिसमें एक ही दफ्तर अथवा एक ही दिशा में जाने वाले कर्मचारी एक ही कार का साझा उपयोग करते हैं। प्रतिदिन किसी एक की कार का उपयोग होता है जिससे ईंधन की खपत कम होती है और सड़कों पर गाड़ियों की संख्या में भी कमी आती है। इस पद्धति में किसी एक व्यक्ति पर बोझ भी नहीं पड़ता है। किंतु दिखावा पसंद हम कारों की बढ़त के खतरों को अनदेखा कर के अपने ऐश्वर्य का प्रदर्शन करने में अधिक विश्वास रखते हैं।
आज जब लगभग हर पच्चीसवें घर की एक न एक संतान अपनी रोजगार देने वाली कंपनियों के सौजन्य से विदेशों के स्वच्छ वातावरण में कुछ दिन बिता कर आती है और उनके माता-पिता भी टूर पैकेज में विदेश यात्राएं कर लेते हैं। वहां से लौट कर वे विदेशों में स्वच्छता के किस्से तो बड़ी धूम-धाम से सुनते हैं किंतु उनमें से बिरले ही एकाध ऐसा संवेदनशील निकलता है जो विदेशों में स्वच्छता से प्रभावित हो कर अपने शहर, गांव या कस्बे को साफ-सुथरा रखने की पहल करता हो। हमारे देश में हर घर में आंगन का कंसेप्ट हुआ करता था जिसमें एक न एक छायादार बड़ा वृक्ष लगाया जाता था किन्तु अब इस तरह मकानों को अतिक्रमण करते हुए फैला दिया जाता है कि घर का मुख्यद्वार ही सड़क पर खुलता है। इस तरह हमाने अपने जीवनरक्षक वृक्ष को अपने घर से काट कर फेंक दिया है।
नदियां जो गांवों और शहरों की गंदगी को बारिश के पानी के साथ बहा कर दूर ले जाता करती थीं, उन्हें भी हमारी लापरवाहियों ने सुखा दिया है। गंगा में औद्योगिक कारखानों का ज़हर घुलता रहता है और शेष में सीवेज की गंदगी घुलती रहती है। गंदे पानी से उठने वाली बदबू वायु को शुद्ध कैसे बनाए रख सकती हैं? झील एवं तालाबों की सतह पर जब गंदगी की पर्त्तें फैल जाती हैं तो जलजीव भी दम घुटने से मरने लगते हैं। मरे हुए जलजीवों की दुर्गंध भी वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण बनती है।
कवि कालिदास के साथ जुड़ा एक किस्सा है कि वे जिस डाल पर बैठे थे उसे ही काट रहे थे, इस बात से बेखबर कि डाल कटने पर वे गिर जाएंगे। हम भी कुछ ऐसा ही तो कर रहे हैं। जो पर्यावरण हमें जीवन देता है हम उसी को तेजी के साथ नष्ट करते जा रहे हैं। वायु प्रदूषण, जलसंकट और जंगलों का विनाश - ये तीनों स्थितियां हमारी खुद की पैदा की गई हैं जो समूची दुनिया को भयावह परिणाम की ओर ले जा रही है। यदि हम अब भी नहीं चेते तो हमारे जीवन की डाल कट जाएगी और नीचे गिरने पर हमें धरती का टुकड़ा भी नहीं मिलेगा।
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(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 05.06.2019)

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1 comment:

  1. बहुत सुन्दर और सारगर्भित खलआ।

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