Pages

My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, June 12, 2019

बुंदेलखंड की लोकगाथाओं में है अद्भुत ‘महाभारत’-प्रसंग - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह - नवभारत में प्रकाशित

 
'
Dr (Miss) Sharad Singh
नवभारत' में  प्रकाशित मेरा लेख ...
धन्यवाद नवभारत !!!
 
बुंदेलखंड की लोकगाथाओं में है अद्भुत ‘महाभारत’-प्रसंग
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
 
बुन्देलखण्ड में वे लोक गाथाएं सदियों से कहीं-सुनी जा रही हैं जिनमें ‘महाभारत’ महाकाव्य की कथाएं मौजूद हैं। बुन्देलखण्ड में जगनिक के बाद विष्णुदास ने लगभग 14 वीं सदी में ‘महाभारत कथा’ और ‘रामायण कथा’ लिखी थी। अन्य बुंदेली गाथाओं में भी ‘महाभारत प्रसंग मिलते हैं। 
बुंदेलखंड की लोकगाथाओं में है अद्भुत ‘महाभारत’-प्रसंग - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह - नवभारत में प्रकाशित  Navbharat - Bundelkhand Ki Lokgathaon Me Adbhut Hai Mahabharat Prasang  - Dr Sharad Singh
बुन्देली की प्रसि़द्ध महाभारतकथा संदर्भित लोकगाथाएं हैं- बैरायठा, कृष्ण-सुदामा, द्रौपदी चीरहरण तथा मेघासुर दानव आदि। इनके अतिरिक्त राजा जगदेव की लोकगाथा में भी पाण्डवों की चर्चा का समावेश है। महाभारत कालीन चरित्रों से जुड़ी गाथाओं का इस प्रकार बुन्देलखण्ड में रूचिपूर्वक गाया जाना इस बात का द्योतक है कि बुन्देली जन प्रकृति से जितने वीर होते हें तथा मानवीय संबंधों के आकलन को लेकर उतने ही संवेदनशील होते हैं। उन्हें व्यक्ति के अच्छे अथवा बुरे होने की परख होती है तथा साहसी, वीर, उदार, दानी और सच्चा व्यक्ति अपना आदर्श प्रतीत होता है। इसीलिए जन-जन में गाए जाने वाली बैरायठा लोकगाथा में ‘महाभारत’ महाकाव्य की लगभग सम्पूर्ण कथा को जन-परिवेश में पस्तुत किया गया है। जैसे, धृतराष्ट्र और गांधारी के विवाह के प्रसंग को इन शब्दों में प्रस्तुत किया गया है-
जब आ गई है चिठिया महाराज रे कै,
जब गंधार में हो रये हैं ब्याव रे कै
जब गांधारी को हुइये नौने ब्याव रे कै,
जब खबरें तो मिल गईं महराज रे कै
इसी गाथा में कौरवों द्वारा आयोजित कपट भरी द्यूतक्रीड़ा दृश्यात्मक वर्णन मिलता है-
जब सकुनी ने डारे दाव रे कै,
जब पर गये अठारा दाव रे कै
फिर हारे धरम और राज रे कै
जब बोले जरजोधन महराज रे कै
इस विवरण में जिन तथ्यों को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है वे ध्यान देने योग्य हैं कि जब व्यक्ति अनुचित कर्म करने लगता है तो ‘धरम’ और ‘राज’ दोनों गंवा बैठता है। उस समय तो और अनर्थ होने लगता है जब दुश्शासन द्रौपदी को बलपूर्वक राजसभा ले जाता है-
जब जबरन तो लैजा रव महराज रे कै
जब जूटो तो पकरो ओने आज रे कै
जब रानी खों लै गव अपने साथ रे कै
जब आ गई सभा के नोने बीच रे कै
जब सबरो से करी है गुहार रे कै
जब कोऊ खों ने आई लाज रे कै
इसी प्रकार जब ‘पांच पती’ अर्थात् सगे-संबंधी भी रक्षा नहीं कर पाते हैं उस समय ‘हरि’ अर्थात् ईश्वर सहायता करता है-
जब भरी कचेरो महराज रे कै
जब कोनऊ ने करे सहाय रे कै
जब पांच पती मौजूद रे कै
जब हर से लगा दई ओने टेर रे कै
जब कैसे तो रये हो नोने सोय रे कै
यह मानव मन की वह अवस्था है जो राजनीतिक अस्थिरता एवं असुरक्षा के दौर में प्रभावी हो उठती है। यही भाव ‘चीरहरण’ लोकगाथा में मिलते हैं। दुश्शसन द्वारा चीरहरण किए जाने पर द्रौपदी पतियों द्वारा निर्धारित नियति को चुपचाप स्वीकार करने के बदले सहायता के लिए कृष्ण को पुकारती है-
हे श्याम मेरी सुध लइयो, रे प्रभु मोरी लाज बचइयो रे
शकुनी दुर्योधन ने मिल के, कपट के पांसे डारे
जुआ खेल के पति हमारे, राजपाट सब हारे
मोरी बिगड़ी आज बनइयो, रे प्रभु मोरी लाज बचइयो रे
‘राजा जगदेव’ लोकगाथा में भी पाण्डवों का उल्लेख प्रश्नों के रूप में है। किसने पृथ्वी को रचा? किसने संसार को रचा? किसने पाण्डवों को बनाया? पाण्डवों को किस उद्देश्य से बनाया गया? इन प्रश्नों का उत्तर भी इन्हीं के साथ दिया गया है कि देवी ने पाण्डवों को बनाया। पृथ्वी से अन्याय और अधर्म का विनाश करने के लिए पाण्डवों की रचना की गई।
कौना रची पिरथवी रे दुनियां संसार, कौना रचे पंडवां उनई के दरबार
बिरमा रची पिरथवी रे दुनियां संसार, माई रचें पंडवां रे अपने दरबार
रैबे खों रची पिरथवी रे दुनियां संसार, रन खों रचे पंडवा रे अपने दरबार ।।
अन्याय, दासता के विरुद्ध युद्धघोष करने वाले बुन्देलों के लिए महाभारतकालीन प्रसंगों का विशेष महत्व होना स्वाभाविक है। यदि मुग़लों अथवा अंग्रेजों के विरु़द्ध बुन्देलों के संघर्ष का इतिहास पढ़ा जाए तो यही तथ्य सामने आता है कि बहुसंख्यक शत्रुओं से अल्पसंख्यक बुन्देलों ने सदैव डट कर संघर्ष किया। ठीक उसी तरह जिस प्रकार पाण्डवों ने कौरवों का सामना किया था। अतः इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि ऐसे संघर्षपूर्ण अवसरों पर ये लोग गाथाएं आमजन में साहस का संचार करती रही होंगी। आज भी सुदूर ग्रामीण अंचलों में ये लोक गाथाएं गाई जाती हैं। यद्यपि आधुनिकता के आज के दौर में इन लोक गाथाओं के मूल स्वरूप के लुप्त होने का भय बढ़ चला है। आज बहुत कम लोग जानते हैं कि बुंदेली में भी अद्भुत ‘महाभारत’ प्रसंग मौजूद है।
---------------------
नवभारत, 08.06.2019

1 comment: