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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, August 21, 2019

चर्चा प्लस ... पद्मश्री कुर्रतुलऐन हैदर की पुण्यतिथि (21 अगस्त) पर विशेष : 'आग का दरिया पार’ करने वाली लेखिका - डाॅ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस ... 
 
पद्मश्री कुर्रतुलऐन हैदर की पुण्यतिथि (21 अगस्त) पर विशेष:

 
'आग का दरिया पार’ करने वाली लेखिका

 
- डाॅ. शरद सिंह

 
भारतीय साहित्य का इतिहास साक्षी है कि महिलाओं में मुखर होने का साहस बहुत देर से आया। सामाजिक दबाव के कारण वे चाह कर भी अपनी दशा-दिशा को साहित्य में नहीं उतार पाती थीं। हिन्दी की प्रथम मौलिक कहानी मानी जाने वाली कहानी ‘दुलाईवाली’ की लेखिका को ‘बंग महिला’ के छद्म नाम से रचनाएं लिखनी पड़ी थीं। ऐेसे विपरीत वातावरण में ‘मेेरे सनमख़ाने’ और ‘आग का दरिया’ जैसी कृतियां लिखना आग के दरिया में उतरने के समान था। कुर्रतुलऐन हैदर आग के दरिया में न केवल उतरीं बल्कि उन्होंने इसे हिम्म्त के साथ पार भी किया।

 
Charcha Plus - पद्मश्री कुर्रतुलऐन हैदर की पुण्यतिथि (21 अगस्त) पर विशेष - आग का दरिया पार करने वाली लेखिका  -  Charcha Plus Column by Dr Sharad Singh

       हिन्दी हो या उर्दू दोनों में लेखिकाओं एवं कवयित्रियों की अभिव्यक्ति पर अनेक बंधन रहे। यह बंध आज इक्कीसवीं सदी में टूटने लगे हैं किन्तु बीसवीं सदी के मध्य तक स्थिति इतनी सुगम नहीं थी। भारतीय साहित्य का इतिहास साक्षी है कि महिलाओं में मुखर होने का साहस बहुत देर से आया। सामाजिक दबाव के कारण वे चाह कर भी अपनी दशा-दिशा को साहित्य में नहीं उतार पाती थीं। हिन्दी की प्रथम मौलिक कहानी मानी जाने वाली कहानी ‘दुलाईवाली’ की लेखिका राजेन्द्र बाला घोष को ‘बंग महिला’ के छद्म नाम से रचनाएं लिखनी पड़ी थीं। जब महिला साहित्यकार को अपना छद्मनाम से कहानियां लिखनी पड़ें, ऐेसे विपरीत वातावरण में ही आगे चल कर ‘मेेरे सनमख़ाने’ और ‘आग का दरिया’ जैसी कृतियां लिखना आग के दरिया में उतरने के समान था। कुर्रतुलऐन हैदर आग के दरिया में न केवल उतरीं बल्कि उन्होंने इसे हिम्म्त के साथ पार भी किया। कुर्रतुलऐन हैदर की मृत्यु 21 अगस्त 2007 को नोएडा, उत्तर प्रदेश में हुई। उस समय उनकी आयु 80 वर्ष थीं। वे भारतीय साहित्य जगत् में लेखिकाओं के लिए एक बेहतरीन मिसाल हैं।
कुर्रतुलऐन हैदर का जन्म 20 जनवरी 1926 ई. अलीगढ़, उत्तर प्रदेश में उर्दू के जाने-माने लेखक सज्जाद हैदर यलदरम के यहां हुआ था। उनकी मां बिन्ते बाक़र भी उर्दू की लेखक रही हैं। कुर्रतुलऐन हैदर के पिता सज्जाद हैदर यिल्दिरम अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार थे। कुर्रतुलऐन हैदर के परिवार में तीन पीढ़ियों से लिखने की परंपरा रही। कुर्रतुलऐन हैदर के पिता की गणना उर्दू के प्रतिष्ठित कथाकारों में होती थी। कुर्रतुलऐन हैदर की मां नजर सज्जाद हैदर ‘उर्दू’ की ‘जेन ऑस्टिन’ कहलाती थीं। कुर्रतुलऐन को बचपन से ही लिखने की रुचि रही।
वे बचपन से रईसी व पाश्चात्य संस्कृति में पली-बढ़ीं थीं। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा लालबाग, लखनऊ, उत्तर प्रदेश स्थित गांधी स्कूल में प्राप्त की और अलीगढ़ से हाईस्कूल पास किया। लखनऊ के आईटी कालेज से बी.ए. और लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. किया। फिर लन्दन के हीदरलेस आर्ट्स स्कूल में शिक्षा ग्रहण की। लखनऊ में अपने पिता की मौत के बाद कुर्रतुलऐन हैदर भी अपने बड़े भाई मुस्तफा हैदर के साथ पाकिस्तान चली गयीं लेकिन 1951 में वह लन्दन जाकर स्वतंत्र लेखक-पत्रकार के रूप में बीबीसी लन्दन से जुड़ गईं। बाद में ‘द टेलीग्राफ’ की रिपोर्टर और इम्प्रिंट पत्रिका की प्रबन्ध सम्पादक भी रहीं। वह इलेस्ट्रेड वीकली की सम्पादकीय टीम में भी रहीं। सन 1956 में जब वह भारत भ्रमण पर आईं तो उनके पिताजी के अभिन्न मित्र मौलाना अबुल कलाम आजाद ने उनसे पूछा कि क्या वे भारत में बसना चाहेंगी? और वे तुंरत राजी हो गईं तथा जीवनपर्यन्त भारत में ही रहीं। अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने अपने भारत लौटने के बारे कहा था कि -‘‘मैं यहां लौट कर कैसे नहीं आती? मेरी जड़ें और मेरा दिल तो यहीं था।’’
उन्होंने अपना कैरियर भले ही एक पत्रकार की हैसियत से शुरू किया लेकिन इसी दौरान वे लिखती भी रहीं और उनकी कहानियां, उपन्यास, अनुवाद, रिपोर्ताज वगैरह सामने आते रहे। साहित्य अकादमी में उर्दू सलाहकार बोर्ड की वह दो बार सदस्य रहीं। विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में वह जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और अतिथि प्रोफेसर के रूप में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से भी जुड़ी रहीं। वे अविवाहित रहीं।
सन् 1959 में जब उनका उपन्यास ‘आग का दरिया’ प्रकाशित हुआ, भारत और पाकिस्तान के साहित्य जगत में तहलका मच गया। भारत विभाजन पर तुरन्त प्रतिक्रिया के रूप में हिंसा, रक्तपात और बर्बरता की कहानियां तो बहुत छपीं लेकिन अनगिनत लोगों की निजी एवं एक सांस्कृतिक-ऐतिहासिक त्रासदी को एकदम बेबाकी से कुर्रतुलऐन हैदर ने ही प्रस्तुत किया। ‘ऐनी आपा’ के निकनेम से प्रसिद्ध कुर्रतुलऐन हैदर के उपन्यास ‘आग का दरिया’ में उन्होंने आहत मनुष्यता और मनोवैज्ञानिक अलगाव के मर्म को अंदर तक बड़ी बारीकी से छुआ। जो प्रसिद्धि और लोकप्रियता ‘आग का दरिया’ को मिली, वह किसी अन्य उर्दू साहित्यिक कृति को शायद ही नसीब हुई हो। इस उपन्यास में लगभग ढाई हजार वर्ष के लम्बे वक्त की पृष्ठभूमि को विस्तृत कैनवस पर फैलाकर उपमहाद्वीप की हजारों वर्ष की सभ्यता-संस्कृति, इतिहास, दर्शन और रीति-रिवाज के विभिन्न रंगों की एक ऐसी तस्वीर खींची गई, जिसने अपने पढ़ने वालों को कदम-कदम पर चौेकाया।
कुर्रतुलऐन हैदर ने लिखा था कि -‘‘दुनिया की तरफ से इस्लाम का ठेका इस वक़्त पाकिस्तान सरकार ने ले रखा है। इस्लाम कभी एक बढ़ती हुई नदी की तरह अनगिनत सहायक नदी-नालों को अपने धारे में समेट कर शान के साथ एक बड़े भारी जल-प्रपात के रूप में बहा था, पर अब वही सिमट-सिमटा कर एक मटियाले नाले में बदला जा रहा है। मजा यह है की इस्लाम का नारा लगाने वालों को धर्म, दर्शन से कोई मतलब नहीं। उनको सिर्फ इतना मालूम है कि मुसलमानों ने आठ सौ साल ईसाई स्पेन पर हुकूमत की, एक हजार साल हिन्दू भारत पर और चार सौ साल पूर्वी यूरोप पर।’’ इस तरह का बयान, वह भी किसी स्त्री द्वारा दिया जाना सामाजिक तबके में हंगामा पैदा करने के लिए काफी था। कुर्रतुलऐन को उनके बेबाक लेखन के लिए हतोत्साहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई लेकिन वे डरी नहीं और कलम-कागज थामें डट कर खड़ी रहीं। उनके प्रमुख उपन्यास हैं-‘मेरे भी सनमख़ाने (1949), सफीना-ए-गमे-दिल (1952), आग का दरिया (1959), आखि़री शब के हमसफर (1979 गर्दिशे-रंगे-चमन (1987), चांदनी बेगम (1990), कारे-जहां-दराज है(1978-79), शीशे के घर (1952), पतझर की आवाज (1967) और रोशनी की रफ्तार (1982)। उनके लेखन के लिए उन्हें साहित्य अकादमी, सोवियत लैण्ड नेहरू सम्मान, गालिब सम्मान, ज्ञानपीठ, पद्मश्री से सम्मानित किया गया। अपने जिस साहसी लेखन के लिए कुर्रतुलऐन हैदर को विरोधों एवं अपमानों का समाना करना पड़ा, उसी लेखन ने उन्हें आग का दरिया पार करने वाली साहसी लेखिका की पहचान और सम्मान भी दिलाया।
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(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 21.08.2019)

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