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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, October 23, 2019

चर्चा प्लस ... (16 अक्टूबर) विश्व खाद्य दिवस पर विशेष : खड़े होना होगा हमें भूख और कुपोषण के विरुद्ध - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस ... (16 अक्टूबर) विश्व खाद्य दिवस पर विशेष :
खड़े होना होगा हमें भूख और कुपोषण के विरुद्ध
- डॉ. शरद सिंह
विश्व खाद्य दिवस की वर्ष 2019 की थीम रखी गई है-‘‘अवर एक्शन आर अवर फ्यूचर’’। इसके अंतर्गत जो लक्ष्य रखा गया है वह है -‘‘हेल्दी डाईट्स फॉर जीरो हंगर वर्ल्ड’’। अर्थात् खाद्य उपलब्धता की ओर उठाया गया ‘‘हमारा कदम ही हमारा भविष्य है’’ और ‘‘भूख विहीन दुनिया हो जिसमें सबको पौष्टिक आहार मिले’’। विश्व खाद्य दिवस 2019 की थीम और लक्ष्य दोनों अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। आज जब भूख के कारण गांवों से शहर, शहरों से दूसरे देश पलायन की विवशता दिखाई देने लगी है तब इस प्रकार के लक्ष्य तय करना जरूरी भी है। मगर इससे भी जरूरी है इस प्रकार के लक्ष्य को पूरा करने की दृढ़ इच्छाशक्ति का होना।

Charcha Plus - Vishwa Khadya Diwas - (16 अक्टूबर) विश्व खाद्य दिवस पर विशेष - खड़े होना होगा हमें भूख और कुपोषण के विरुद्ध  -  Charcha Plus Column by Dr Sharad Singh
 जब उत्पादन और जनसंख्या का संतुलन बिगड़ने लगे तब खाद्य संकट गहराएगा ही। दूसरे शब्दों में कहें तो कृषिभूमि लगातार कम होती जा रही है और जनसंख्या बढ़ती जा रही है। विश्व खाद्यान्न कार्यक्रम के अनुसार खाद्यान्नों का बढ़ता हुआ अभाव एक महासंकट का संकेत दे रहा है। विश्व बैंक के अनुसार सम्पूर्ण विश्व में करीब 800 मिलियन लोग भूखमरी से प्रभावित है। जब खाद्य सामग्री पर ही संकट छाया हो तो कुपोषण की दर तो बढ़ेगी ही। इसीलिए विश्व खाद्य दिवस की वर्ष 2019 की थीम रखी गई है-‘‘अवर एक्शन आर अवर फ्यूचर’’। इसके अंतर्गत जो लक्ष्य रखा गया है वह है -‘‘हेल्दी डाईट्स फॉर जीरो हंगर वर्ल्ड’’। अर्थात् खाद्य उपलब्धता की ओर उठाया गया ‘‘हमारा कदम ही हमारा भविष्य है’’ और ‘‘भूख विहीन दुनिया हो जिसमें सबको पौष्टिक आहार मिले’’।
विश्व खाद्य दिवस 2019 की थीम और लक्ष्य दोनों अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। आज जब भूख के कारण गांवों से शहर, शहरों से दूसरे देश पलायन की विवशता दिखाई देने लगी है तब इस प्रकार के लक्ष्य तय करना जरूरी भी है। मगर इससे भी जरूरी है इस प्रकार के लक्ष्य को पूरा करने की दृढ़ इच्छाशक्ति का होना। यदि हमारा पेट भरा है तो हम किसी भूखे के बारे में न सोचें तो विश्व खाद्य दिवस मनाने का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता है। वहीं यह भी जरूरी है कि जो खाद्य उपलब्ध है वह मिलावट से ज़हरीला न हो यह सुनिश्चित हो सके। खाद्य सामग्री में जिस तरह और जितनी बड़ी मात्रा में मिलावट की जा रही है वह हत्या के अपराध से कम नहीं है। यह धीरे-धीरे विष दे कर मारने के समान है और इसीलिए ऐसे मिलावटखोरों पर हत्या के अपराध की धरा ही लगाई जानी चाहिए। दुर्भाग्य से अथवा सरकारीतं की शिथिलता से भारत जैसे विकासशील देशों में दोनों तरह के संकट मौजूद हैं- खाद्य की कमी के भी और मिलावटखोरी के भी। मात्र सेमिनारों अथवा आयोजनों में भाषण देने या वाद-विवाद करने से ये दोनों संकट दूर नहीं हो सकते हैं।
विश्व खाद्य दिवस (वर्ल्ड फ़ूड डे) हर साल 16 अक्टूबर को दुनिया भर में मनाया जाता है। विश्व खाद्य दिवस की घोषणा संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन के 20वें जनरल सम्मेलन में नवंबर 1979 में सदस्य देशों द्वारा की गई थी। तब से प्रति वर्ष विश्व खाद्य दिवस 150 से अधिक देशों में मनाया जाता है और भूख तथा गरीबी के पीछे समस्याओं और कारणों का आकलन एवं निवारण दिशा में जागरूकता का प्रयास किया जाता है। यह दुनिया भर में सरकारों द्वारा लागू प्रभावी कृषि और खाद्य नीतियों की महत्वपूर्ण आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने में भी मदद करता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि दुनिया भर में हर किसी के लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध हो। इस दिवस के तारतम्य में खाद्य इंजीनियरिंग पर भी जोर दिया जाता है जिससे कम लागत और कम भूमि में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने का कौशल विकसित किया जा सके।
हम भारतीय एक ऐसे देश के निवासी है जहां बड़ी संख्या में लोग भूख और कुपोषण के शिकार हैं। यह सच है कि हमारा देश वैश्विक महाशक्ति और वैश्विक गुरु बनने की दिशा में बढ़ रहा है किन्तु यह भी कटु सत्य है कि हमारे किसान आत्महत्या का कदम उठाने को विवश हो उठते हैं और ग्रामीण अंचल से लोग भुखमरी के कारण पलायन कर रहे हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में भूखे लोगों में से लगभग 23 प्रतिशत लोग भारत में रहते हैं।
इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) की ओर से वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) पर जारी 2018 की रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनिया के 119 विकासशील देशों में भूख के मामले में भारत 100वें स्थान पर है। इससे पहले 2016 की रिपोर्ट में भारत 97वें स्थान पर था। यानी इस मामले में साल भर के दौरान देश की हालत और बिगड़ी और भारत को ‘गंभीर श्रेणी’ में रखा गया।

उल्लेखनीय है कि वैश्विक भूख सूचकांक चार स्थितियों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाता- आबादी में कुपोषणग्रस्त लोगों की संख्या, बाल मृत्युदर, अविकसित बच्चों की संख्या और अपनी उम्र की तुलना में छोटे कद और कम वजन वाले बच्चों की संख्या। आईएफपीआरआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में पांच साल तक की उम्र के बच्चों की कुल आबादी का पांचवां हिस्सा अपने कद के मुकाबले बहुत कमजोर है। इसके साथ ही एक-तिहाई से भी ज्यादा बच्चों की लंबाई अपेक्षित रूप से कम है। भारतीय महिलाओं का हाल भी बहुत बुरा है। युवा उम्र की 51 फीसदी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं यानी उनमें खून की कमी है। अमतोर पर सरकारी और गैर सरकारी आंकड़ों में पर्याप्त अंतर मिलता है किन्तु इस विषय पर सरकारी आंकड़े भी इन आंकड़ों से अलग नहीं हैं। 2016-2017 में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री रहे फग्गन सिंह कुलस्ते ने संसद को बताया था कि देश में 93 लाख से ज़्यादा बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार हैं।
भारत जैसे देशों में खाद्य सामग्री का असमान वितरण तथा कृषिभूमि का असमान वितरण भी बड़ा कारण है खाद्य संकट का। वर्तमान में जनसंख्या वृद्धि दर खाद्य पदार्थ उत्पादन में वृद्धि की दर से कहीं अधिक है। यह वृद्धि अल्पविकसित देशों में और भी अधिक है परिणामस्वरूप इस समस्या का प्रभाव भी उन देशों में अधिक है। विश्व बैंक के अनुसार वर्ष 2030 तक खाद्यान्नों की वैश्विक मांग दुगनी होने की संभावना है। खाद्य संकट को दूर करने के लिए हमें स्वयं ही प्रयास करने होंगे, इस संकट को दूर करने के लिए कोई परग्रहवासी नहीं आएगा। यदि हम कृषि भूमि को बचा सकें, जनसंख्या पर नियंत्रण रख सकें, कुपोषित बच्चों को पौष्टिक खाद्य उपलब्ध करा सकें तभी विश्व खाद्य दिवस के लक्ष्य को पूरा कर सकेंगे और एक स्वस्थ देश का निर्माण कर सकेंगे। यह लक्ष्य कठिन है, किन्तु असंभव नहीं। बस जरूरत है तो एक पत्थर को उछाल कर आकाश में सुराख करने का हौसले की। वरना यह भी सच है कि संकट किसी लरपरवाह को दूसरा अवसर नहीं देता है।
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