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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, October 2, 2019

चर्चा प्लस .. (2 अक्टूबर) जन्मतिथि पर विशेष : सदा प्रासंगिक हैं महात्मा गांधी के विचार - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस .. (2 अक्टूबर) जन्मतिथि पर विशेष :
 

सदा प्रासंगिक हैं महात्मा गांधी के विचार
- डॉ. शरद सिंह
        

अपने जीवन को कष्टों के सांचे में ढालकर दूसरों के लिए सुखों की खोज करने वाले महात्मा गांधी बीसवीं सदी के महानायकों में से एक थे। उनके विचारों, उनके कार्यों एवं उनके जीवन-दर्शन ने समूची मानवता को नये आदर्श प्रदान किए। उनका कहना था, ‘‘स्त्रियों को अबला पुकारना उनकी आंतरिक शक्ति को दुत्कारना है।’’ स्वतंत्रता आंदोलन के समय भी उन्होंने स्वच्छता के आग्रह को विस्मृत नहीं किया था। महात्मा गांधी का कहना था, ‘‘स्वच्छता अच्छे विचारों को जन्म देती है और अच्छे विचार मनुष्य को अच्छी जीवन-दशाएं प्रदान करते हैं।’’
Charcha Plus - (2 अक्टूबर) जन्मतिथि पर विशेष... सदा प्रासंगिक हैं महात्मा गांधी के विचार  -  Charcha Plus Column by Dr Sharad Singh
    वैश्विक स्तर पर महात्मा गांधी के विचारों को सर्वसम्मति से स्वीकार किया जाता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि 15 जून, 2007 को संयुक्त राष्ट्र की महासभा में 2 अक्टूबर को ‘अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ घोषित करने के लिए मतदान हुआ, तदुपरान्त संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2 अक्टूबर के दिन को ‘अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ घोषित किया। महात्मा गांधी के विचारों को ‘गांधीवाद’ के नाम से पुकारा जाता है। गांधीवाद को अपनाने के लिए उनके राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक आदि विचारों को अपनाना आवश्यक है।
महात्मा गांधी राजनीति का परिष्कृत रूप स्थापित करना चाहते थे। उनका मानना था कि राजनीति के परिष्कार के लिए राजनीति में सत्य, अहिंसा, नैतिकता, परोपकार, सादगी एवं सदाचार का अधिक से अधिक प्रतिशत होना चाहिए तभी राजनीति दूषित होने से बची रहती है। 21वीं सदी के दूसरे दशक में राजनीति में जो हिंसा, बाहुबल, बेईमानी, भाई-भतीजावाद एवं आर्थिक घोटालों का बोलबाला दिखाई देता है, उसमें महात्मा गांधी के ‘राजनीति के परिष्कार’ का मूलमंत्र प्रासंगिक एवं व्यावहारिक ठहरता है। यदि राजनेताओं में संयम रहे अथवा संयमित व्यक्ति राजनीति में प्रवेश करें तो राजनीति का परिष्कार सम्भव है। एक स्वस्थ राजनीतिक परिवेश देश के प्रत्येक तबके को उसके अधिकारों से जोड़ सकता है और राजनीतिक संस्थाओं के प्रति नागरिकों के मन में विश्वास पैदा कर सकता है।
महिलाओं को सशक्त बनाने का स्वप्न ही महात्मा गांधी के स्त्री-आंदोलन की बुनियाद था। महात्मा गांधी मानते थे कि स्त्रियों को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों के समकक्ष सशक्त होना चाहिए। वे राजनीति में महिलाओं की सहभागिता के पक्षधर थे। वस्तुतः महात्मा गांधी का अहिंसावादी आंदोलन स्त्रियों की उपस्थिति के कारण अधिक सार्थक परिणाम दे सका। इस तथ्य को महात्मा गांधी ने स्वीकार करते हुए एक बार कहा था कि स्त्रियां प्रकृति से ही अहिंसावादी होती हैं। स्त्रियां पुरुषों की तुलना में अधिक संवेदनशील और सहृदय होती हैं, अतः स्त्रियों की उपस्थिति से अहिंसावादी आंदोलन एवं सत्याग्रह अधिक कारगर हो सकते हैं।
महात्मा गांधी स्त्रियों को अबला कहने के विरोधी थे। वे मानते थे कि स्त्री पुरुषों की भांति सबल और शक्ति सम्पन्न है। जिस प्रकार एक सशस्त्र पुरुष के सामने निःशस्त्र पुरुष कमजोर प्रतीत होता है, ठीक उसी तरह सर्वअधिकार प्राप्त पुरुषों के सामने स्त्री अबला प्रतीत होती है जो कि वस्तुतः अबला नहीं है। उनका कहना था, ‘‘स्त्रियों को अबला पुकारना उनकी आंतरिक शक्ति को दुत्कारना है। यदि हम इतिहास पर नजर डालें तो हमें उनकी वीरता की कई मिसालें मिलेंगी। यदि महिलाएं देश की गरिमा बढ़ाने का संकल्प कर लें तो कुछ ही महीनों में वे अपनी आध्यात्मिक अनुभूति के बल पर देश का रूप बदल सकती हैं।’’
गांधी जी मानते थे कि स्त्रियों की उपस्थिति पुरुषों को भी आचरण की सीमाओं में बांधे रखती है। यही कारण है कि उन्होंने कांग्रेस में महिलाओं को नेतृत्व का पूरा अवसर दिया। विभिन्न आंदोलनों में स्त्रियों को शामिल होने दिया। उन्होंने कांग्रेस के अंतर्गत स्त्रियों के सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और राजनीतिक उत्थान के कार्यक्रम भी चलाए। वे स्त्रियों को एक स्त्री के रूप में न देखकर एक पूर्ण व्यक्ति के रूप में देखते थे। वे पारिवारिक सम्पत्ति पर पुरुषों के बराबर स्त्रियों को स्वामित्व दिए जाने के भी पक्षधर थे।
महात्मा गांधी का कहना था, ‘‘कोई भी राष्ट्र अपनी आधी आबादी (अर्थात् स्त्रियों) की अनदेखी करके विकास नहीं कर सकता है।’’ वे कहते थे कि पुरुषों की तुलना में स्त्रियों को कमजोर नहीं समझना चाहिए। वे स्त्रियों के आर्थिक स्वावलम्बन एवं शिक्षा के पक्षधर थे। शुचिता एवं सतीत्व के नाम पर स्त्रियों को बन्धन में रखना वे पसन्द नहीं करते थे। महात्मा गांधी का यह विचार हर युग में खरा उतरता है।
महात्मा गांधी ने स्वच्छता पर विशेष बल दिया। जब वे दक्षिण अफ्रीका में थे तो वहां उन्हें अनुभव हुआ कि वहां बसे भारतीय स्वच्छता पर ध्यान नहीं देते हैं जिसके कारण अंग्रेज उन्हें घृणा की दृष्टि से देखते हैं। इस पर महात्मा गांधी ने वहां स्वच्छता आंदोलन चलाया। इस आंदोलन का परिणाम यह हुआ कि अफ्रीका में बसे भारतीय समाज में घर-बार साफ रखने के महत्त्व को स्वीकार कर लिया गया।
महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन के समय भी उन्होंने स्वच्छता के आग्रह को विस्मृत नहीं किया था। महात्मा गांधी का कहना था, ‘‘स्वच्छता अच्छे विचारों को जन्म देती है और अच्छे विचार मनुष्य को अच्छी जीवन-दशाएं प्रदान करते हैं।’’ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में महात्मा गांधी का सामना असीम गन्दगी से हुआ। कई बार उन्होंने स्वयं झाड़ू लेकर दूसरों का भी पाखाना साफ किया। अपनी भारत-यात्रा के दौरान भी रेल के तृतीय श्रेणी के डिब्बे में व्याप्त गन्दगी का साम्राज्य तथा काशी की गलियों में फैली हुई गन्दगी ने उनके मन को आहत किया। स्वतंत्रता आंदोलन के समय भी उन्होंने स्वच्छता के आग्रह को विस्मृत नहीं किया था। महात्मा गांधी का कहना था, ‘‘स्वच्छता अच्छे विचारों को जन्म देती है और अच्छे विचार मनुष्य को अच्छी जीवन-दशाएं प्रदान करते हैं।’’
यदि महात्मा गांधी के विचारों को अपनाकर स्वच्छता को जीवन का अंग बना लिया जाए तो नागरिकों को स्वस्थ तन-मन की सम्पदा मिल सकती है। वस्तुतः महात्मा गांधी का प्रत्येक विचार हर युग में हर परिस्थिति में प्रासंगिक है और रहेगा। यदि उनके मर्म को भली-भांति समझकर उसे आत्मसात किया जाए।
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(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 02.10.2019)
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