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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, January 22, 2020

चर्चा प्लस... दया मांगने वालो! तुमसे भी तो मांगी थी निर्भया ने दया की भीख- डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस 
दया मांगने वालो! तुमसे भी तो मांगी थी निर्भया ने दया की भीख
- डॉ. शरद सिंह
      अपराधी और अपराधियों का साथ देने वाले किस तरह कानून से खेलते हैं इसका ताज़ा उदाहरण निर्भया के गुनाहगारों के मामले में साफ़ देखा जा सकता है। आज जो महामहिम राष्ट्रपति के समक्ष दया की याचिका प्रस्तुत कर रहे हैं, उन्हें वो पल याद करने चाहिए जब निर्भया ने गिड़गिड़ाते हुए उनसे रहम की भीख मांगी होगी। उसने तो कोई गुनाह भी नहीं किया था फिर भी इन दरिंदों ने उसे नृशंता की हदें पार करते हुए मौत के मुंह में धकेल दिया। उस पर शर्मनाक बात यह कि आज इस अतिसंवेदनशील मुद्दे को राजनीति का मोहरा बना कर खेला जा रहा है।      

एक ओर जहां निर्भया के माता-पिता और पूरा देश सात साल से उसके गुनहगारों को फांसी पर लटकता देखने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, वहीं सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह के एक बयान ने विवाद खड़ा कर दिया। इंदिरा जयसिंह ने निर्भया की मां से अपील कर डाली कि वह दोषियों को माफ कर दें। इंदिरा के इसी बयान से निर्भया की मां आशादेवी के मन को चोट पहुंची और उन्होंने नाराज होते हुए पूछा कि ‘‘क्या आपकी बेटी या आपके साथ ऐसा होता तब भी आप यहीं कहतीं?’’ दरअसल, इंदिरा जयसिंह ने ट्वीट किया था, ‘मैं आशा देवी के दर्द से पूरी तरह से वाकिफ हूं। मैं उनसे अनुरोध करती हूं कि वह सोनिया गांधी के उदाहरण का अनुसरण करें जिन्होंने नलिनी को माफ कर दिया और कहा कि वह उसके लिए मौत की सजा नहीं चाहती हैं। हम आपके साथ हैं लेकिन मौत की सजा के खिलाफ हैं।’ हर व्यक्ति इस ट्वीट पर अचंभित रह गया। दोनों घटनाओं में कोई समानता नहीं, फिर यह आग्रह क्यों? वह भी एक वरिष्ठ वकील, उस पर एक महिला द्वारा? उनका यह ट्वीट ट्रोल किया गया। जहां तक संवेदनाओं की गिरावट का प्रश्न है तो राजनीतिक स्तर पर निर्भया केस को जिस तरह बिसात बना दिया गया है और उस पर गुनहगारों की सज़ा के मुद्दे को मोहरा बना कर चालें चली जा रही हैं, वह अत्यंत शर्मनाक है। दिल्ली के आगामी चुनावों के परिप्रेक्ष्य में जिस तरह से राजनीतिक दल एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, उससे उनकी अमानवीयता ही उजागर हो रही है। निर्भया जो आज रेप-पीड़िताओं को न्याय दिलाने की प्रक्रिया की प्रतीक बन चुकी है, उसके प्रति असंवेदना भर्त्सना योग्य है।

निर्भया केस को 7 साल बीत चुके हैं। अभी भी पूरे देश को गुनहगार मुकेश, विनय और अक्षय और पवन की फांसी की प्रतीक्षा है। 16 दिसंबर की वो काली रात कोई भुला नहीं सकता है, जब दिल्ली के मुनिरका क्षेत्र में निर्भया के साथ नृशंसता बरती गई थी। उस दिन पैरामेडिकल की छात्रा निर्भया अपने एक दोस्त के साथ साकेत स्थित सेलेक्ट सिटी मॉल में ‘‘लाइफ ऑफ पाई’’ फिल्म देख कर लौट रही थी। लौटने के लिए दोनों ऑटो पर सवार हुए। ऑटोवाले ने मुनीरका बसस्टैंड तक उन्हें छोड़ा। उस समय रात्रि के मात्र साढ़े आठ बजे थे। वहां से उन्हें घर हुंचने का दूसरा साधन पकड़ना था। एक सफेद रंग की बस पहले से वहां खड़ी थी। जिसमें एक लड़का  बार-बार कह रहा था चलो कहां जाना है। बस में 6 लोग मौजूद थे और ऐसे दिखावा कर रहे थे जैसे काफी सवारी आने वाली हैं। निर्भया और उसके दोस्त उसे सामान्य बस समझ कर सवार हो गए। तब निर्भया को क्या पता था कि वह मौत की सवारी करने जा रही है।
चर्चा प्लस, डाॅ. शरद सिंह, दैनिक  सागर दिनकर, 

                बस चल पड़ी। फिर कुछ ही देर में उन लड़कों के असली चेहरे सामने आ गए। बस के दरवाज़े बंद कर दिए गए। निर्भया का मोबाईल फोन छीन लिया गया। निर्भया के दोस्त को बुरी तरह पीटा गया और निर्भया के साथ नृशंसता की हदें पार की जाने लगीं। वह रोती, गिड़गिड़ाती, चींखती रही मगर दरिंदों को उसकी दया की गुहार सुनाई नहीं दी। जब उन लड़कों को लगा कि निर्भया और उसके दोस्त मरणासन्न हो चुके हैं तो उन्हें मरने के लिए बस के बाहर फेंक कर रवाना हो गए। दिसंबर की कड़ाके ठंड वाली रात और मरणासन्न निर्भया। निर्भया का दोस्त होश में था। उसने वहां से गुज़रने वालों से मदद मांगी। कई लोगों ने अनदेखा किया किन्तु अंततः एक बाईक सवार ने पुलिस तक सूचना भिजवाई। तब कहीं जा कर निर्भया को अस्पताल पहुंचाया जा सका।
निर्भया की दशा देख कर चिकित्सकों तक की आत्मा कांप उठी। दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा था कि उनमें इतनी हिम्मत नहीं कि वो पीड़ित लड़की को देखने जा सकें। यद्यपि कांग्रेस की पूर्वअध्यक्ष सोनिया गांधी ने सफदरजंग अस्पताल जाकर पीड़िता का हालचाल जाना था। निर्भया की बिगड़ती दशा देखकर सरकार ने उसे सिंगापुर के माउन्ट एलिजाबेथ अस्पताल भेजा। किन्तु 29 दिसंबर को निर्भया ने रात के करीब सवा दो बजे वहां दम तोड़ दिया।
इस घटना के बाद देश भर में आंदोलन की आग फैल गई। पूरा देश बलात्कारियों के लिए मृत्युदंड की मांग करने लगा। संसद में इसे लेकर जमकर हंगाम हुआ। सड़कों और सोशल मीडिया पर बार-बार आवाज़ें उठाई जा रही थीं। दिल्ली के साथ-साथ देश में जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे थे। मामला कोर्ट में चल रहा था। घटना के दो दिन बाद 18 दिसंबर 2012 को दिल्ली पुलिस ने छह में से चार आरोपियों राम सिंह, मुकेश, विनय शर्मा और पवन गुप्ता को गिरफ्तार किया। वहीं 21 दिसंबर 2012 दिल्ली पुलिस ने पांचवां नाबालिग आरोपी को दिल्ली से और छठे आरोपी अक्षय ठाकुर को बिहार से गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने मामले में 80 लोगों को गवाह बनाया था। सुनवाई शुरू हो गई। इसी बीच आरोपी बस चालक राम सिंह ने तिहाड़ जेल में 11 मार्च, 2013 को आत्महत्या कर ली।
इसके बाद सात साल का लम्बा समय जिसमें निर्भया की मां और पिता ने अपनी मृत बेटी को न्याय दिलाने यानी गुनहगारों को सज़ा दिलाने के लिए दिन-रात एक कर दिया। न्यायालय में विधिवत् गुनाह सिद्ध हुए और अपराधियों को फांसी का मृत्युदण्ड सुनाया गया। इसके बाद गुनहगारों को याद आया ‘‘दया’’ शब्द। निर्भया सामूहिक दुष्कर्म केस में दोषी मुकेश की ओर से राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका प्रस्तुत की गई। किन्तु राष्ट्रपति ने मुकेया की दया याचिका खारिज कर दी। इसके साथ ही दोषी मुकेश के सभी कानूनी विकल्प प्रत्यक्षतः खत्म हो गए हैं। लेकिन दया याचिका के इस अधिकार को दांव की तरह चलते हुए अपराधियों ने फांसी की तिथि आगे खिसकवा ली और अभी विधि विशेषज्ञों की मानें तो फांसी तारीख और आगे बढ़ सकती है। जबकि आज देश का हर नागरिक निर्भया के अपराधियों से पूछ रहा है कि खुद के लिए दया याचिका पेश करने वालो, क्या तुम भूल गए कि निर्भया ने भी तुमसे दया की भीख मांगी थी। अतः इस अतिसंवेदनशील मामले पर सजा की कार्यवाही में अब और अधिक विलम्ब कहीं आमजनता के धैर्य का बांध न तोड़ने लगे।
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(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 22.01.2020)
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