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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, June 17, 2020

विशेष लेख - एक सबक है सुशांत का जाना - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह, दैनिक जागरण में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh


दैनिक जागरण में प्रकाशित मेरा यह लेख ... आप भी पढ़िए...

❗हार्दिक आभार "दैनिक जागरण"🙏

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विशेष लेख
एक सबक है सुशांत का जाना
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

विशेषरूप से युवावर्ग सुशांत के इस तरह जाने से सबक ले और इस बात को गांठ में बांध ले कि अपनों से दूर रह कर पैसा और प्रसिद्धि अकेलापन और अवसाद देती है मन का सुकून नहीं। चांद पर प्लाट खरीदने की क्षमता भी कभी-कभी ज़िन्दगी जीने की इच्छा को मार देती है।


वह व्यक्ति मज़दूर या कामगार नहीं था जिसे लाॅकडाउन में अपने रोजगार और घर से विस्थापित हो कर सैंकड़ों किलोमीटर का पैदल सफ़र करना पड़ा हो। अपने अभिनय के दम पर उसने इतना धन कमा लिया था कि जिससे वह चांद पर भी प्लाट खरीद सका। जी हां, #बाॅलीवुड #अभिनेता #सुशांत_सिंह_राजपूत। एक करोड़पति अभिनेता। इंडियन #क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह #धोनी के जीवन पर बनी फिल्म में उन्होंने लीड रोल निभाया था। सुशांत सिंह राजपूत एक फिल्म के लिए 5 से 7 करोड़ रुपये लेते थे। वहीं, विज्ञापन के लिए 1 करोड़ रुपये तक लेते थे। उन्होंने कई रीयल एस्टेट प्रॉपर्टीज में भी निवेश किया हुआ था। बताया जाता है कि उनकी कुल संपत्ति 80 लाख डॉलर यानी 60 करोड़ रुपये से भी अधिक थी। उनकी फिल्म ‘एमएस धोनी’ ने कुल 220 करोड़ रुपये की कमाई की थी। सुशांत सिंह राजपूत ने 34 वर्ष की छोटी-सी आयु में फिल्मों, विज्ञापनों और निवेश के जरिए करोड़ों कमाए। बॉलीवुड के दूसरे सेलेब्रिटीज की तरह सुशांत भी मुंबई के पॉश इलाके बांद्रा में आलीशान घर में रहते थे। उन्हें कारों और बाइक्स का भी काफी शौक था। इसलिए उनके पास कारों की पूरी फ्लीट थी।


सफलता सुशांत सिंह राजपूत के कदम चूम रही थी। उनकी हर फिल्म कमाई का नया रिकॉर्ड बना रही थी। ऐसे में उनकी फीस भी लगातार बढ़ती जा रही थी। कहीं कोई आर्थिक तंगी का मसला नहीं। असफलता का मसला भी नहीं। फिर भी इस युवा अभिनेता ने आत्महत्या जैसा #पलायनवादी कदम उठाया। आखिर क्यों? इस ‘क्यों’ का उत्तर सब ढूंढ रहे हैं। इस ‘क्यों’ का उत्तर शायद ही कभी मिले। लेकिन इस घटना से एक सबक ज़रूर मिला है कि पैसा और प्रसिद्धि भी वह सुख और शांति नहीं दे सकते हैं जो ज़िन्दगी से प्रेम करना सिखा सके।

Ek Sabak Hai Sushant Ka Jana - Dr (Miss) Sharad Singh, Dainik Jagaran, 16.06.2020
कुछ समय पहले सुशांत सिंह राजपूत की मैनेजर #दिशा_सलियन ने भी मुंबई में 12वीं मंजिल से कूदकर खुदकुशी कर ली थी। बताया जा रहा था कि वह अपने मंगेतर संग मुंबई के मलाड में रहती थीं। घटना की जानकारी मिलते ही उन्हें बोरिवली के हॉस्पिटल ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था। आत्महत्या के पीछे अभी कोई भी वजह सामने नहीं आई। इससे पहले ‘क्राइम पेट्रोल’ एक्ट्रेस #प्रेक्षा_मेहता ने भी पंखे से लटककर खुदकुशी की थी। बॉलीवुड इस समय मुश्किल दौर से गुजर रहा है। कई #सेलेब्स ने काम न मिलने के चलते खुदकुशी की है। सोचने की बात है कि काम न मिलने की स्थिति में विस्थापित प्रवासी मज़दूरों ने आत्महत्या करने के बजाए डट कर संकट का सामना किया लेकिन ये सेलेब्स #हताशा और #अवसाद से घिर गए। आखिर इसकी वज़ह क्या हो सकती है?


आज के #बाजारवाद और #भौतिकतावाद के युग में हम जिस तरह पैसे और प्रसिद्धि के जाल में तेजी से जकड़़ते जा रहे हैं, वह हमें अपने आप से ही दूर करता जा रहा है। जिसके पास #पैसा या #प्रसिद्धि नहीं है, वह यही सोचता है कि इन दोनों से दुनिया की सारी खुशियां खरीदी जा सकती हैं, पाई जा सकती हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि यह दोनों सबसे पहले अपनों से दूर करना शुरू कर देते हैं। इसके बाद खुद पर से भी ध्यान हटता जाता है क्योंकि लक्ष्य ‘‘स्वांतः सुखाय’’ आए नहीं बल्कि ‘‘दुनिया दिखाय’’ हो जाता है। प्रदर्शन का मोह हमें भला और बुरा सोचने का अवसर नहीं देता है। वहीं दूसरी ओर जब व्यक्ति इस प्रदर्शन के #मायाजाल में लिपटकर गलत-सही कर्मों में भेद करना भी छोड़ देते हैं, तब वे अनचाही परिस्थितियों के संजाल में उलझते जाते हैं। जहां से अवसाद की यात्रा शुरू होती है। अपने ही हाथों कमाया गया एकाकीपन व्यक्ति को वह अवसाद की ओर धकेलता जाता है। एक स्थिति वह आती है जब व्यक्ति आत्महत्या की ओर अपने क़दम बढ़ा देता है। अपने ही हाथों अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेता है। यही तो किया बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने। सुशांत ने पंखे में लटक कर आत्महत्या कर ली। वे पिछले छः माह से अधिक समय से अवसाद दूर करने की दवा खा रहे थे।



वह मानसिक स्थिति जब इंसान सही और गलत में भेद नहीं कर पाता है और अपने भ्रम पर ही अटूट विश्वास करने लगता है, उसी स्थिति में वह आत्मघात जैसे कदम उठाता है। #मनोवैज्ञानिक इस स्थिति को #सीजोफ्रेनिया कहते हैं। यह भ्रम को सच मान लेने की चरम स्थिति है। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि सीजोफ्रेनिया का मनोरोग आत्मीयता और प्रेम पा कर ठीक होने लगता है। लेकिन यह आत्मीयता भौतिकतावाद की दौड़ में तेजी से गुम होती जा रही है। अगर अवसाद (डिप्रेशन) की स्थिति घेरने लगे तो अपनी समस्याएं बेझिझक अपनो से साझा करें और अपनो के निकट रहें। आखिर सुशांत सिंह राजपूत ने जो आत्मघाती कदम उठाया उससे उनके करोड़ों फैन्स तो आहत हुए ही, वे अपनी बहनों और पिता के सीने पर दुखों का पहाड़ छोड़ जाने के अपराधी हैं। इसीलिए जरूरी है कि किसी भी प्रकार का आत्मघाती विचार आते ही पहले अपने परिवार और मित्रों के बारे में सोचना चाहिए कि वे इस दुख को कैसे झेलेंगे। यही समय है कि विशेष रूप से युवावर्ग सुशांत के इस तरह जाने से सबक ले और इस बात को गांठ में बांध ले कि अपनों से दूर रह कर पैसा और प्रसिद्धि अकेलापन और अवसाद देती है मन का सुकून नहीं।
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(दैनिक जागरण में 16.06.2020 को प्रकाशित)
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