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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, June 4, 2020

गुलामी की छाप से मुक्ति की प्रतीक्षा में 'साउगोर’ (सागर) वल्द ‘इंडिया’ - डाॅ. शरद सिंह, दैनिक जागरण में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh  
गुलामी की  छाप से मुक्ति की प्रतीक्षा में
‘साउगोर’ (सागर) वल्द ‘इंडिया’
           - डाॅ. शरद सिंह
  दैनिक जागरण में प्रकाशित मेरा यह लेख हमारे देश और मेरे शहर के नाम के मुद्दे पर है ... आप भी पढ़िए...
हार्दिक आभार "दैनिक जागरण"🙏
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गुलामी की  छाप से मुक्ति की प्रतीक्षा में
‘साउगोर’ (सागर) वल्द ‘इंडिया’
           - डाॅ. शरद सिंह
            हमारे संविधान में देश का नाम इंडिया से बदलकर भारत रखे जाने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है। दिल्ली निवासी याचिकाकर्ता का कहना है कि इंडिया शब्द से अंग्रेजों की गुलामी झलकती है जो कि भारत की गुलामी की निशानी है। इसलिए इस इंडिया शब्द की बजाय भारत का इस्तेमाल होना चाहिए। साथ ही याचिका में कहा गया है कि संविधान के पहले अनुच्छेद में लिखा है कि इंडिया यानी भारत। लेकिन आपत्ति यह है कि जब देश एक है तो उसके दो नाम क्यों है, एक ही नाम का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाए। याचिका में दावा किया गया है कि ‘भारत’ या ‘हिंदुस्तान’ शब्द हमारी राष्ट्रीयता के प्रति गौरव का भाव पैदा करते हैं इसलिए याचिका में सुप्रीम कोर्ट से सरकार को संविधान के अनुच्छेद 1 में संशोधन के लिए उचित कदम उठाते हुए ‘इंडिया’ शब्द को हटाकर, देश को ‘भारत’ या ‘हिंदुस्तान’ कहने का निर्देश देने की मांग की गई है। यह अनुच्छेद इस गणराज्य के नाम से संबंधित है। याचिका में कहा गया है कि संविधान में यह संशोधन इस देश के नागरिकों की औपनिवेशिक अतीत से मुक्ति सुनिश्चित करेगा। याचिका में 1948 में संविधान सभा में संविधान के तत्कालीन मसौदे के अनुच्छेद एक पर हुई चर्चा का हवाला दिया गया है जिसमें उस समय देश का नाम ‘भारत’ या ‘हिंदुस्तान’ रखने पर ज़ोर दिया गया था।
Name of Sagar , Article - Dr Sharad Singh, Dainik Jagaran, 04.06.2020
      विश्व का सबसे बड़ा गणतंत्र का दर्ज़ा रखने वाला देश - भारत, हिन्दुस्तान या इंडिया। एक देश जिसके तीन नाम। आधिकारिक तौर पर दो नाम हैं-इंडिया और भारत। बार-बार इस बात की मांग उठती रही है कि देश का एक नाम रहे-‘भारत’। अभी कुछ अरसा पहले विश्वविख्यात जैन संत आचार्य विद्यासागर ने ‘इंडिया’ शब्द की व्याख्या करते हुए देश का नाम ‘भारत’ रखे जाने पर तार्किक पक्ष रखे हैं और ‘भारत बोलो’ मुहिम का आह्वान किया है। 
भारत या इंडिया, क्या नाम है इस देश का? हिन्दुस्तान सिर्फ़ बोलचाल में है अथवा पुराने अभिलेखों में किन्तु ‘इंडिया’ और ‘भारत’ आज भी समान रूप से प्रयोग में लाया जा रहा है। सन् 2012 में लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा ने केंद्र सरकार से यह प्रश्न किया था। सूचना के अधिकार के अंतर्गत उर्वशी शर्मा ने पूछा था कि सरकारी तौर पर भारत का नाम क्या है? उन्होंने अपने प्रश्न पूछे जाने का कारण बताते हुए उल्लेख किया था कि ‘इस बारे में हमारे बीच काफी असमंजस है। बच्चे पूछते हैं कि जापान का एक नाम है, चीन का एक नाम है लेकिन अपने देश के दो नाम क्यूं हैं।’ इसीलिए वे यह जानना चाहती हैं ताकि वे बच्चों को सही-सही उत्तर दे सकें और आने वाली पीढ़ी के बीच इस बारे में कोई संदेह न रहे। उर्वशी ने कहा कि  ‘हमें सुबूत चाहिए कि किसने और कब इस देश का नाम भारत या इंडिया रखा? कब ये फैसला लिया गया?’ उर्वशी का तर्क था कि यह एक भ्रम की स्थिति है जिसके कारण सरकारी स्तर पर भी देश के दो नामों का प्रयोग किया जाता है। इसी आधार पर उन्होंने कहा कि ‘मैं केवल ये जानना चाहती हूं कि भारत का सरकारी नाम भारत है या इंडिया, क्योंकि सरकारी तौर पर भी दोनों नाम इस्तेमाल किए जाते हैं।“ उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में लिखा है- ‘इंडिया दैट इज़ भारत’। अर्थात् देश के दो नाम हैं। सरकारी कामकाज में ‘गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया’ और ‘भारत सरकार’ दोनों का प्रयोग किया जाता है। अंग्रेजी में भारत और इंडिया दोनों का इस्तेमाल किया जाता है जबकि हिंदी में भी इंडिया कहा जाता है। उर्वशी ने कहा था कि वे इस मुद्दे को गंभीरता से लेती हैं क्योंकि ये देश की पहचान का सवाल है।

   ठीक ऐसे ही गुलामी की छाप से मुक्ति की प्रतीक्षा है सागर को। सागर के नाम की स्पेलिंग बहुप्रचलन के अनुरुप सही और सरलीकृत किए जाने की यह प्रतीक्षा कोई नई नहीं है। वर्षों व्यतीत हो गए बाट जोहते। लेकिन इस मुद्दे पर कोई पुरजोर प्रयास नहीं किया गया। सबसे अधिक परेशानी तब आती है जब कोई व्यक्ति सागर आने के लिए या सागर से जाने के लिए रेलवे रिजर्वेशन कराता है तो उसे रेलवे की साईट पर सागर ढूंढने पर भी नहीं मिलता है। दरअसल, अंग्रेजी में सागर की प्रचलित स्पेलिंग है ‘एस ए जी ए आर’। राज्य शासन में भी यही स्पेलिंग मान्य है। लेकिन अंग्रेजों ने इसे अपने उच्चारण के हिसाब से ‘साउगोर’ कहा। यानी स्पेलिंग रखी-‘एस ए यू जी ओ आर’। सेना छावनी तथा रेलवे में यही स्पेलिंग चलाई गई, जो आज भी कायम है जबकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आम व्यवहार में यह स्पेलिंग भारतीय उच्चारण के अनुरुप सरलीकृत हो कर सागर यानी ‘एस ए जी ए आर’ हो गई। आज पत्राचार से लेकर इंटरनेट की विभिन्न साईट्स में सागर की यही स्पेलिंग काम में लाई जा रही है। यह उच्चारण और शब्दों के अनुरुप है तथा लिखने में भी सरल है। फिर भी भारतीय रेलवे में आज भी सागर की स्पेलिंग अंग्रेजों वाली ‘साउगोर’ ही चल रही है। जिससे होता ये है कि जब किसी को सागर के लिए रेलगाड़ियों की जानकारी अथवा रिजर्वेशन कराना होता है तो प्रचलित स्पेलिंग से मध्यप्रदेश में स्थित यह सागर स्टेशन मिलता ही नहीं है। प्रायः कर्नाटक स्थित शिव सागर मिल जाता है। जिससे बड़ा भ्रम उत्पन्न हो जाता है।

    जिस प्रकार देश के दो नामों में से मात्र ‘भारत’ किए के पक्ष में याचिका दायर की गई है उसी प्रकार सागर के नाम की स्पेलिंग ‘साउगोर’ और ‘सागर’ में से हर स्थान पर ‘सागर’ (एस ए जी ए आर) ही होनी चाहिए। संदर्भगत उल्लेखनीय है कि इस लेख की लेखिका (डाॅ शरद सिंह) यानी मैं स्वयं सागर के नाम की अंग्रेजी स्पेलिंग सुधारे जाने के लिए विगत 5 वर्ष से आवाज उठा रही हूं। मेरी इस मांग को संज्ञान में लेते हुए चिंतक एवं समाजसेवी रघु ठाकुर ने भी अपनी ओर से प्रयास किया और दिल्ली रेल मंत्रालय को भी पत्र लिखा। इस संबंध में सांसद राज बहादुर सिंह ने भी आश्वस्त किया था कि वे इस दिशा में प्रयास करेंगे। मार्च 2020 में इस संबंध में निर्णय होने की संभावना थी किंतु कोरोना संकट के चलते इस कार्य में फिलहाल व्यवधान आ गया है। अब जरूरत है इस संबंध में पुरजोर आवाज़ उठाए जाने की। सच तो यह है कि जनआंदोलन के अभाव में ‘सागर’ वल्द ‘भारत’ आज भी ‘साउगोर’ वल्द ‘इंडिया’ के रूप में गुलामी की छाप ढो रहा है।        
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(दैनिक जागरण में 04.06.2020 को प्रकाशित)
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