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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, September 10, 2020

कोरोना संक्रमण के विस्फोटक आंकड़ों के लिए कौन है जिम्मेदार? - डॉ. शरद सिंह, दैनिक जागरण में प्रकाशित



दैनिक जागरण में प्रकाशित मेरा विशेष लेख "कोरोना संक्रमण के विस्फोटक आंकड़ों के लिए कौन है जिम्मेदार?" 🚩


❗हार्दिक आभार "दैनिक #जागरण"🙏
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कोरोना संक्रमण के विस्फोटक आंकड़ों के लिए कौन है जिम्मेदार? 
   - डॉ. शरद सिंह

    कोरोना संक्रमण के विस्फोटक आंकड़ों के लिए कौन है जिम्मेदार - सरकार, अनलाॅक या हम खुद? जो आंकड़े पहले विस्फोट तक पहुंचे थे, वे अनलाॅक 4.0 में महाविस्फोट में जा पहुंचे हैं। लाॅकडाउन और कर्फ्यू लगा कर सरकार सख़्ती करती रहती तो हम इसे उसका तानाशाही रवैया कहते। सरकार ने अपने नागरिकों के विवेक पर भरोसा किया और क्रमशः अनलाॅक करते हुए आज उस चरण में पहुंचा दिया जहां से व्यापार, शिक्षा, यात्रा आदि एक बार फिर गतिमान हो सकते हैं। लेकिन बदले में हम सरकार को नहीं बल्कि खुद अपने आपको दे रहे हैं संक्रमण के विस्फोटक आंकड़े। यह लिखने का मकसद सरकार के अनलाॅक की प्रक्रिया की समीक्षा करना या उसे क्लीनचिट देना नहीं है, बल्कि मकसद है इस बात की गंभीरता को महसूस कराने का कि हमारे अपने लोग जो लापरवाहियां कर रहे हैं, वह हम पर ही भारी पड़ेंगी। ‘‘हमें कछु न हुइये!’’ की ढिठाई का नतीज़ा हमारे सामने है।
सागर जिले को ही लीजिए, 8 सितम्बर को कोरोना संक्रमण ने रिकार्ड तोड़ दिया। अभी तक  एक दिन में एक साथ सर्वाधिक 51 मरीज पॉजिटिव निकले। जिले में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़कर 1358 हो गई है। वहीं 72 लोगो की मौत हो चुकी है। बाजार का आलम यह है कि कोरोनाकाल के पहले जिस तरह फुटपाथ पर अतिक्रमण कर के दूकानें लगाई जाती थीं, ठीक उसी तरह लगाई जाने लगीं हैं। इन दूकानों को दोपहर में हटवाया जाता है तो शाम तक वे फिर यथास्थान पहुंच जाती हैं। इनके बीच खरीददारों की भीड़। न कोई सोशल डिस्टेंसिंग और न कोई सुरक्षा उपाय। एक ग़ज़ब की ढिठाई देखी जा सकती है। सागर शहर में ही जहां विगत 10 अप्रैल तक मात्र एक कोरोना पाॅजिटिव था, वहां आज संक्रमण के आंकड़े जिस तेजी से बढ़ रहे हैं, वे चिंतित करने वाले हैं।

        यहां साझा करना जरूरी समझती हूं उस व्यक्ति की पीड़ा जो कोरोना संकट की ग़िरफ्त में है। शायद उसके अनुभवों से कुछ सबक लिए जा सकें। वह व्यक्ति हैं मेरे फेसबुक मित्र - देवेन्द्र कुमार पाण्डेय। वाराणसी में रहते हैं। प्रत्यक्ष भेंट कभी नहीं हुई। उनकी फेसबुक वाॅल से साभार उनकी 7 सितम्बर की पोस्ट यहां दे रही हूं- ‘‘पिछला एक सप्ताह कठिन मानसिक यातना वाला गुजरा है। पूरा घर कोरोना पॉजिटिव हो गया। घर से दूर रहने के कारण मैं बच गया। अभी सभी घर में ही आइसोलेशन में हैं। घर सील है। बनारस में रहकर भी मैं घर नहीं जा सकता। घर से थोड़ी दूर रहकर परिवार को दवा, भोजन की व्यवस्था कर रहा हूं। अब सभी के हालत में सुधार दिख रहा है। थोड़ी राहत मिली है तो पोस्ट साझा करने की हिम्मत कर रहा हूं। उम्मीद है कि अब सब ठीक होगा। 15 अगस्त को नाना बना था। सभी बारी-बारी से हॉस्पिटल आ-जा रहे थे। सिजेरियन ऑपरेशन था। अस्पताल में 9 दिन रुकना पड़ा। मेरा पुत्र जो होली से 15 अगस्त तक कभी घर से बाहर नहीं निकला, वर्क फ्रॉम होम ही करता रहा, वह भी अस्पताल गया था और 2,3 दिन जग गया। वहीं कहीं या आने-जाने में संक्रमित हो गया। पहले तो बुखार आया, दूसरे दिन सूंघने की क्षमता खतम हो गई। डॉक्टर ने तुरंत कोरोना टेस्ट की सलाह दी। 2 दिन बाद जब तक उसका रिपोर्ट आता सभी में वही लक्षण आने लगे। श्रीमतीजी भयंकर सावधानी रखती थीं। मैं दूसरे शहर से सप्ताह में एक या दो दिन के लिए घर आता तो मुझे अलग कमरे में कोरेन्टीन कर देतीं। बाकी सब आपस मे हिले मिले रहते थे। बीच मे एक दो सप्ताह तो घर भी नहीं जाता था कि जब वहां जाकर कैद ही होना है तो जाने से भी क्या फायदा! परिणाम यह हुआ कि मैं बच गया और सभी संक्रमित हो गए। मेरा बचना भी अच्छा रहा। मैं सबकी देखभाल कर पा रहा हूं। मैं भी संक्रमित हो जाता तो कौन मदद करता? सरकारी हॉस्पिटल के ऊपर इतना बोझ है कि वहां सब भगवान भरोसे हैं। प्राइवेट हॉस्पिटल  इतने मंहगे हैं कि फीस पूछ कर ही हिम्मत जवाब दे जाती है। कुछ ईश्वर की कृपा और कुछ आप लोगों की दुआएं कि अब लगता है मुसीबत टल जाएगी। सबसे कष्ट में 20 दिन के बच्चे को लेकर बड़ी बिटिया है। यह बीमारी जो है सो है, सबको पता ही है लेकिन मेरा अनुभव यह रहा कि इसमें मानसिक संतुलन भी डगमगाने लगता है। पड़ोसी दूरी बनाकर आपका हाल पूछते हैं। मुसीबत में साथ नहीं देते। कुछ तो हाल पूछते भी डरते हैं...कहीं मदद लेने घर में आ गया तो? आपके मित्रों, रिश्तेदारों में ही कोई आपके साथ खड़ा हो सकता है। यह बीमारी बड़ी घातक है। सब कुछ सही रहा, ईश्वर की कृपा रही, होम आइसोलेशन में ही आप स्वस्थ हो गए तो भी आपको एक कठिन मानसिक यातना से गुजरना पड़ता है।...कोरोना हो ही न इसी में सबकी भलाई है। ईश्वर से प्रार्थना है कि यह कष्ट किसी को न सहना पड़े।’’ 

        वाकई ऐसी मानसिक, शारीरिक और आर्थिक पीड़ा से किसी को न गुज़रना पड़े। इसलिए सावधानी में ही सुरक्षा है। चुनाव और त्यौहार हमारे सामने हैं। संक्रमण के आंकड़ें घटाना या बढ़ाना हमारे अपने हाथ में है। हमें अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। यदि हम सावधानी रखेंगे तो संक्रमितों के आंकड़ों का विस्फोट थम जाएगा वरना कोरोना  के महाविस्फोट की ख़बरें आना शुरु हो ही गई हैं।
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(दैनिक जागरण में 10.09.2020 को प्रकाशित)
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