Pages
My Editorials - Dr Sharad Singh
Wednesday, October 28, 2020
चर्चा प्लस | 28 अक्टूबर-पुण्यतिथि | कठिन है समझना राजेन्द्र यादव होने का अर्थ | डाॅ शरद सिंह
Wednesday, October 21, 2020
चर्चा प्लस | राजनीति की अभद्र भाषा के निशाने पर महिलाएं | डाॅ शरद सिंह
Wednesday, October 14, 2020
चर्चा प्लस - जब ‘बाॅबी’ पर भारी पड़े ‘बाबूजी’ - डाॅ शरद सिंह
जब ‘बाॅबी’ पर भारी पड़े ‘बाबूजी’
- डाॅ शरद सिंह
इन दिनों सागर का सुरखी विधान सभा क्षेत्र सुर्खियों में है। उपचुनाव की तारीख घोषित हो चुकी है इसलिए सरगर्मियां भी बढ़ गई हैं। सुरखी चुनाव सीट अपने आरम्भ से ही ऐतिहासिक राजनीतिक क्षेत्र रहा है। इसका नाम लेते ही अनेक रोचक किस्से इतिहास के पन्नों से निकल कर बाहर आने लगते हैं। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि इस क्षेत्र का का संबंध राजकपूर की मशहूर फिल्म ‘बाॅबी’ और सुप्रसिद्ध राजनेता बाबू जगजीवन राम से भी रहा है।
निर्माता-निर्देशक राजकपूर की सुपरहिट फिल्म ‘‘बाॅबी’’ आज भी देखने वालों को रोमांचित कर देती है। सन् 1973 में रिलीज़ हुई इस फिल्म में अभिनेता ऋषि कपूर और अभिनेत्री डिंपल कपाड़िया ने युवा प्रेमी जोड़े का रोल निभाया था। इस फिल्म का सबसे सुपरहिट गाने ‘‘झूठ बोले कौव्वा काटे, काले कव्वे से डरियो’’ के गीतकार थे विट्ठल भाई पटेल। वे गीतकार थे, समाजसेवी थे और एक राजनीतिज्ञ भी थे। विट्ठल भाई पटेल सुरखी विधान सभा से दो बार विधायक बने। पहली बार सन् 1980 में और दूसरी बार सन् 1985 में। वैसे सुरखी विधान सभा सीट अपने आरम्भ काल से ही महत्वपूर्ण रही है। सन् 1951 में प्रतिष्ठित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित ज्वालाप्रसाद ज्योतिषी कांग्रेस से चुनाव जीते थे। इसी सीट से मध्यप्रदेश सरकार के वर्तमान नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह 1993 और 1998 में विधायक का चुनाव जीत चुके हैं। इन दिनों जिन दो महारथियों के बीच चुनाव होने जा रहा है उनमें से एक गोविंद सिंह राजपूत माधवराव सिंधिया के निकटतम हैं तथा कांग्रेस छोड़ कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर चुके हैं। साथ ही वे फिलहाल परिवहन राज्य मंत्री भी हैं। उनकी प्रतिद्वंदी पारुल साहू पहले भाजपा में थीं किन्तु वहां वैचारिक मतभेद होने के कारण कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर चुकी हैं और कांग्रेस उम्म्ीदवार के रूप में चुनाव लड़ रही हैं। ये दोनों उम्मीदवार पहले भी एक-दूसरे को चुनौती दे चुके हैं जिसमें पारुल साहू ने गोविंद सिंह राजपूत को पराजित कर के विधायक पद हासिल किया था। बहरहाल, आज मैं ‘चर्चा प्लस’ में वर्तमान चुनावी परिदृश्य की नहीं बल्कि बाबू जगजीवन राम के समय के चुनावी परिदृश्य की चर्चा कर रही हूं। बड़ी ही रोचक घटना है।
उस समय विट्ठल भाई पटेल सुरखी से विधायक तो नहीं बने थे किन्तु राजनीति में सक्रिय थे और स्व. राजकपूर से भी उनके अच्छे संबंध थे। इसलिए जब राजकपूर ने ‘‘बाॅबी’’ फिलम का निर्माण शुरू किया तो विट्ठल भाई पटेल से उन्होंने गीतों की मांग की। विट्ठल भाई पटेल ने उन्हें गीत लिख कर दिए ओर जैसाकि सभी जानते हैं कि इस फिल्म का विट्ठल भाई पटेल द्वारा लिखा गया गीत ‘‘झूठ बोले कौव्वा काटे’’ सुपरहिट तो हुआ ही, साथ ही किसी मुहावरे की तरह लोगों की ज़बान पर चढ़ गया। यहां मैं जिस घटना की चर्चा करने जा रही हूं वह फिल्म ’’बाॅबी’’ के रिलीज़ के समय की है। उन दिनों हर शहर में या हर टाॅकीज़ में एक साथ फिल्म रिलीजऋ नहीं होती थी, जैसे कि आजकल सैटेलाईट के कारण हो पाती है। ‘‘बाॅबी’’ जहां-जहां रिलीज़ हुई, वहां-वहां उसने रिकार्ड तोड़ दर्शकों की भीड़ हासिल की। कहां जाता है कि उन दिनों ‘‘बाॅबी’’ को देखने वाले ऐसे दर्शक भी थे जिन्होंने लगातार दस-दस दिन तक उस फिल्म को टाॅकीज़ में देखा। विट्ठल भाई पटेल का लिखा गाना ‘‘झूठ बोले कौव्वा काटे’’ बच्चे-बच्चे की जुबान पर था। पांच साल गुज़रने पर भी ‘‘बाॅबी’’ की लोकप्रियता सिरचढ़ कर बोल रही थी। बात जनवरी 1977 की है। 18 जनवरी 1977 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा चुनाव करवाने की घोषणा कर दी। राजनीति के जानकारों के अनुसार आपातकाल समाप्त करने की यह घोषणा आपातकाल लागू होने की घोषणा की तरह चैंकाने वाली थी। जनवरी 1977 में चुनावों की घोषणा करते हुए इंदिरा गांधी का कहना था, ‘‘करीब 18 महीने पहले हमारा प्यारा देश बर्बादी के कगार पर पहुंच गया था। राष्ट्र में स्थितियां सामान्य नहीं थी। चूंकि अब हालात स्वस्थ हो चुके हैं, इसलिए अब चुनाव करवाए जा सकते हैं।’’
देश में आपातकाल लागू हुए 19 महीने बीत चुके थे। उस समय तक इंदिरा गांधी और बाबूजगजीवन राम के बीच वैचारिक मतभेद आरम्भ हो चुका था। आपातकाल के समर्थन में लोकसभा में प्रस्ताव लाने वाले बाबू जगजीवन राम ने बाद में कांग्रेस से इस्तीफा देकर जनता पार्टी के साथ 1977 का चुनाव लड़ने का मन बना लिया था। क्यों कि आपातकाल के दौरान संविधान में इस हद तक संशोधन कर दिए गए कि उसे ‘कंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया’ की जगह ‘कंस्टीट्यूशन ऑफ इंदिरा’ कहा जाने लगा था। उसमें ऐसे भी प्रावधान जोड़ दिए गए थे कि सरकार अपने पांच साल के कार्यकाल को कितना भी बढ़ा सकती थी। विपक्ष के सभी बड़े नेता जेलों में कैद थे और कोई नहीं जानता था कि देश इस आपातकाल से कब मुक्त होगा। किन्तु 18 जनवरी 1977 को आपातकाल के समापन की घोषणा कर दी गई। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। कांग्रेस के कद्दावर जमीनी नेता बाबू जगजीवन राम ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर जगजीवन राम ने अपनी नई पार्टी ‘कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’ बनाई। उन्होंने यह भी घोषणा की कि उनकी पार्टी जनता पार्टी के साथ मिलकर ही चुनाव लड़ेगी ताकि बंटे हुए विपक्ष का लाभ कांग्रेस को न मिल सके। माना जाता है कि 1977 में उनके कांग्रेस से अलग होने के कारण जनता पार्टी को दोगुनी मजबूती मिल गई थी।
5 अप्रैल, 1908 को बिहार के भोजपुर में जन्मे जगजीवन राम स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय रहे थे। 1946 में जब जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में अंतरिम सरकार का गठन हुआ था, तो जगजीवन राम उसमें सबसे कम उम्र के कैबिनेट मंत्री बने थे। उनके नाम सबसे ज्यादा समय तक कैबिनेट मंत्री रहने का रिकॉर्ड भी दर्ज है। वे 30 साल से ज्यादा समय केंद्रीय कैबिनेट में मंत्री रहे। उनके कांग्रेस से अलग होने पर कांग्रेस को नुकसान तो पहुंचना ही था। वे बहुत अच्छे वक्ता थे। उन्हें सुनने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती थी। उन दिनों लोकनायक जयप्रकाश नारायण कांग्रेस के खिलाफ रैलियों पर रैलियां कर रहे थे। पटना, कलकत्ता, बॉम्बे, मद्रास, चंडीगढ़, हैदराबाद, इंदौर, पूना और रतलाम में जनसभाएं करते हुए मार्च की शुरुआत में वे दिल्ली पहुंच गए। मार्च 1977 के ही तीसरे हफ्ते में चुनाव होने थे। बाबू जगजीवन राम ने घोषणा की कि छह मार्च को दिल्ली में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया जाएगा। कांग्रेस इस घोषणा से सतर्क हो गई। उसे पता था कि बाबू जगजीवन राम में वह क्षमता है कि वे अपने भाषण से हजारों लोगों की भीड़ जोड़ कसते हें और उन्हें प्रभावित कर सकते हैं।
कांग्रेस ने बाबू जगजीवन राम के इस प्रभाव को तोड़ने के लिए एक दिलचस्प चाल चली। जिस समय दिल्ली में बाबू जगजीवन राम की सभा होनी थी ठीक उसी समय दूरदर्शन पर फिल्म ‘बॉबी’ का प्रदर्शन करा दिया। उन दिनों छोटे शहरों में तो दूरदर्शन का नामोनिशान नहीं था लेकिन बड़े शहरों और महानगरों में दूरदर्शन तेजी से आमजनता के जीवन से जुड़ता जा रहा था। वह दौर था जब दूरदर्शन पर हर तरह के कार्यक्रम लोग बड़े चाव से देखते थे। ऐसे समय ‘‘बाॅबी’’ जैसी सुपरहिट फिल्म घर बैठे देखने को मिल रही हो तो उसे भला कौन छोड़ना चाहता। ‘‘बाॅबी’’ के इसी आकर्षण को सियासी हथियार के रूप में प्रयोग में लाया गया। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी पुस्तक ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में इस घटना का उल्लेख किया है। कांग्रेस तय मान कर बैठी थी कि ‘‘बाॅबी’’ का आकर्षण बाबूजी अर्थात् बाबू जगजीवनराम की सभा पर भारी पड़ेगा और उन्हें श्रोता नहीं मिलेंगे। लेकिन कांग्रेस का अनुमान गलत साबित हुआ। लगभग दस लाख लोगों की भीड़ सभा में जुड़ गई और सभी ने रुचिपूर्वक बाबू जगजीवन राम और जयप्रकाश नारायण का भाषण सुना। दूसरे दिन सुबह दिल्ली के अंग्रेजी अखबारों में हैडलाइन थी-‘‘बाबूजी बीट्स बाॅबी’’ अर्थात् बाबूजी ने बाॅबी को हरा दिया।
आज भी राजनीतिक गलियारों में जब ‘‘बाॅबी’’ और ‘‘बाबूजी’’ की चर्चा होती है तो इस घटना का जिक्र जरूर होता है। फिल्म गीतकार और राजनीतिज्ञ स्व. विट्ठल भाई पटेल की फिल्मी पहचान बन गई ‘‘बाॅबी’’ उनके दो बार सुरखी क्षेत्र से विधायक बनने के बाद भी अमिट बनी रही। राजनीति और फिल्मी दुनिया के बीच ‘‘बाॅबी’’, ‘‘बाबूजी’’ और विट्ठल भाई पटेल का त्रिकोण कभी भुलाया नहीं जा सकता है, यह इतिहास के पन्ने पर एक दिलचस्प राजनीतिक दांव-पेंच के रूप में दर्ज़ हो चुका है। अब देखना है कि सुरखी में क्या कुछ दिलचस्प होगा।
------------------------------
(दैनिक सागर दिनकर में 14.10.2020 को प्रकाशित)
#दैनिक #सागर_दिनकर #शरदसिंह #चर्चाप्लस #DrSharadSingh #CharchaPlus #miss_sharad #Bobby #बॉबी #राजकपूर #बाबूजी #जगजीवनराम #इंदिरागांधी #दिल्ली #सुरखी #उपचुनाव #पारुलसाहू #गोविंदसिंहराजपूत