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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, November 25, 2020

चर्चा प्लस | डाॅ. हरी सिंह गौर : उनके जैसा दूजा नहीं और | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस
डाॅ. हरी सिंह गौर : उनके जैसा दूजा नहीं और
 - डाॅ शरद सिंह
 डॉ. हरी सिंह गौर एक प्रसिद्ध शिक्षाविद्, वकील, राजनेता, लेखक और समाज सुधारक थे। वे दिल्ली विश्वविद्यालय के पहले वाइस चांसलर, नागपुर नगरपालिका के मेयर और भारत की संविधान सभा के सम्मानित सदस्य थे। यह सारा परिचय उस समय छोटा पड़ जाता है जब उनका यह परिचय सामने आता है कि उन्होंने अपनी व्यक्तिगत संपत्ति दान दे कर एक विश्वविद्यालय की स्थापना की। अपना सब कुछ दे कर बुंदेलखंड के हर दृष्टि से पिछड़े इलाके में उच्चशिक्षा की गौरवशाली नींव रखी और दुनिया को दिखा दिया कि परहित और जनहित किसे कहते हैं   हरीसिंह गौर का जन्म 26 नवंबर 1870 को सागर में एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके तीन भाई थे- ओंकार सिंह, गणपत सिंह और आधार सिंह। दो बहनें थीं- लीलावती और मोहनबाई। हरी सिंह ने अपनी प्राथमिक शिक्षा सागर से ही पूरी की और चूंकि वह पढ़ाई में बहुत अच्छे थे। प्राइमरी के बाद उन्होनें दो वर्ष में ही आठवीं की परीक्षा पास कर ली जिसके कारण उन्हें सरकार से 2रुपये की छात्रवृति मिलने लगी, जिसके बल पर ये जबलपुर के शासकीय हाई स्कूल गये। लेकिन मैट्रिक में ये फेल हो गये जिसका कारण था एक अनावश्यक मुकदमा। इस कारण इन्हें वापिस सागर आना पड़ा दो साल तक काम के लिये भटकते रहे फिर जबलपुर अपने भाई के पास गये जिन्होने इन्हें फिर से पढ़ने के लिये प्रेरित किया। डॉ. गौर फिर मैट्रिक की परीक्षा में बैठे। अपने विद्यालय का नाम रोशन करते हुए उन्होंने पूरे प्रान्त में प्रथम स्थान पाया। इस उपलब्धि पर उन्हें 50 रुपये नगद एक चांदी की घड़ी एवं बीस रूपये की छात्रवृति मिली। आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें नागपुर जाना पड़ा। वहां हिलसप कॉलेज में दाखिला लिया। पूरे कॉलेज में अंग्रेजी एव इतिहास में ऑनर्स करने वाले वे एकमात्र छात्र थे। नागपुर के हिसलोप कॉलेज में वह इंटर की परीक्षा में अव्वल आए और पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्हें वजीफा मिल गया। 

हरी सिंह गौर की अध्ययन की प्यास अभी बुझी नहीं थी। वे लंदन जा कर उच्चशिक्षा ग्रहण करना चाहते थे। उन्होंने अपने इच्छा अपने भाइयों के सामने व्यक्त की। उनके भाइयों ने उन्हें लंदन जाने की अनुमति भी दी और सहयोग भी दिया। इसके बाद हरी सिंह गौर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गए। वहां उन्होंने सन् 1891 में दर्शनशास्त्र और अर्थशास्त्र में उपाधि प्राप्त की। इसके बाद कानून की शिक्षा ग्रहण की और कानून की उपाधि ले कर ही भारत लौटे। अपने देश लौट कर वे रायपुर में वकालत करने लगे। उन्होंने करीब चालीस साल तक वकालत की। शीघ्र ही वे एक योग्य वकील के रूप में विख्यात हो गए। उन्होंने प्रिवी कौंसिल के लिए कई महत्वपूर्ण मुकद्दमें लड़े। वह हाई कोर्ट बार कौंसिल के सदस्य थे और बाद में उन्हें हाई कोर्ट बार एसोसिएशन का अध्यक्ष भी चुना गया। उन्होंने महिलाओं को वकालत करने के लिए क़ानूनी लड़ाई भी लड़ी थी। सिविल मैरिज बिल 1923 तैयार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दौरान उन्होंने एक किताब ‘‘पीनल लॉ ऑफ इंडिय’’ लिखी ।

डाॅ. हरी सिंह गौर 1920 से लेकर 1935 तक वह केंद्रीय विधान सभा के सदस्य रहे। सन् 1922 में जब दिल्ली विश्वविद्यालय की स्थापना हुई तब डाॅ. हरि सिंह को उसका वाइस चांसलर नियुक्त किया गया। वे 1928 से 1936 तक नागपुर विश्वविद्यालय के भी वाइस चांसलर रहे। जब डॉ. आंबेडकर की अगुवाई में नया संविधान बनाने के लिए संविधान सभा का गठन हुआ तब हरि सिंह को इसका सदस्य बनाया गया और उन्होंने भारत के संविधान के निर्माण में अहम भूमिका निभाई।

अपनी सारी उपलब्धियों को वे अपूर्ण मानते थे। उनका कहना था कि ‘‘यदि हम कोई ऐसा क़दम नहीं उठाते हैं जो दूसरों का जीवन बदल सके, संवार सके, तो हमारा हर कदम व्यर्थ है।’’ उनकी यही सोच नींव थी उनके उस प्रयास की जो आगे चल कर सागर विश्वविद्यालय के रूप में सामने आई। सागर ही क्या समूचे बुंदेलखंड में उन दिनों उच्चशिक्षा का कोई केन्द्र नहीं था। डाॅ. हरी सिंह गौर यह भली-भांति जानते थे कि आर्थि दृष्टि से पिछड़ा हुआ बुंदेलखंड योग्य युवाओं से तो परिपूर्ण है लेकिन वे युवा असमर्थ हैं बाहर जा कर उच्चशिक्षा प्राप्त करने में। अतः उन्होंने सोचा कि क्यों न उच्चशिक्षा का केन्द्र ही उन युवाओं के पास ला दिया जाए। डाॅ. हरी सिंह गौर ने ब्रिटिश सरकार से आग्रह किया कि सागर में उच्चशिक्षा का केन्द्र स्थापित किया जाए। लम्बी काग़ज़ी कार्यवाही और धन के संकट का हवाला देते हुए टालमटोल करती ब्रिटिश सरकार के आगे अपनी संपत्ति सामने रखते हुए डाॅ. हरी सिंह गौर ने कहा कि अब कोई अड़चन नहीं आनी चाहिए। उन्होंने विश्विद्यालय के लिए बीस लाख रुपये दे दिए। उन्होंने अपनी वसीयत में अपनी संपत्ति का दो तिहाई हिस्सा (लगभग दो करोड़ रुपये) विश्विद्यालय के नाम कर दिया था। उन्होंने इस नए विश्वविद्यालय को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की भांति ‘‘सागर विश्वविद्यालय’’ नाम दिया। वे हर विभाग के लिए दुनिया भर से चुन-चुन कर शिक्षाविद् विद्वान सागर विश्वविद्यालय में लाए। अफ़सोस कि वे अपने द्वारा स्थापित सागर विश्वविद्यालय को फलता-फूलता अधिक दिनों तक नहीं देख सके। सन् 1949 की 25 दिसम्बर को उनका निधन हो गया। महान दानी डाॅ. हरी सिंह गौर को श्रद्धांजलि स्वरूप सन् 1983 में सागर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर ‘‘डॉ. हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय’’ कर दिया गया ताकि दुनिया भर में उनकी यह देन उनके नाम से जानी जाए। 
डाॅ. हरी सिंह गौर समय के पाबंद और मितव्ययी थे। डाॅ. हरि सिंह गौर धन के अपव्यय के प्रबल विरोधी थे। उनके जीवन की अनेक ऐसी घटनाएं हैं जिनसे उनकी मितव्ययिता का पता चलता है। डाॅ. हरि सिंह गौर जब सागर के कुलपति निवास में रहते थे, उस समय की एक घटना है कि एक दिन जब उनका निज सहायक उनसे मिलने आया तो देखा की डाॅ. हरि सिंह गौर फर्श पर घुटनों के बल झुक कर कुछ ढूंढ रहे हैं। कुछ देर देखते रहने के बाद जब निज सहायक ने न रहा गया तो उसने पूछ ही लिया कि आप क्या ढूंढ रहे हैं? डाॅ. हरि सिंह गौर ने उत्तर दिया कि मैं अठन्नी ढूंढ रहा हूं जो यहीं कहीं गिर गई है। ‘‘एक अठन्नी के पीछे आप इतने परेशान हो रहे हैं, आप तो कुलपति हैं।’’ निज सहायक कह बैठा। इस पर डाॅ. हरि सिंह गौर ने उससे कहा,‘‘बात मेरे कुलपति होने और उसके अठन्नी होने की नहीं है, बात लापरवाही और पैसे की कीमत की है। रकम चाहे छोटी हो या बड़ी, मूल्यवान होती है।’’ यह सुन कर निज सहायक ािक अपनी गलती का अहसास हो गया और वह भी अठन्नी ढूंढने लगा। जल्दी ही वह अठन्नी मिल गई और निज सहायक को मितव्ययिता का सबक भी।

एक और रोचक घटना है कि एक बार डाॅ. हरि सिंह गौर जापान सरकार के आमंत्रण पर लेक्चर देने जापान गए। उनकी बेटी भी उनके साथ गई। डाॅ. हरि सिंह गौर अपनी बेटी को निश्चित अंतराल पर जेब खर्च दिया करते थे। जापान में बेटी को एक छाता पसंद आ गया। बेटी के पास जेबखर्च के पैसा खऋत्म हो गया था और अगला जेबखर्च मिलने में अभी दो दिन शेष थे। वे जानती थीं कि उनके पिता समय से पहले जेबखर्च नहीं देंगे। अतः उन्होंने अपने पिता से वह छाता खरीदने के लिए पैसे मांगे। इस पर डाॅ. हरि सिंह गौर कहा कि यदि तुम्हारे पास पैसे नहीं है तो छाता मत खरीदो। तब बेटी से अनुरोध किया कि उधार के रूप में ही दे दीजिए। अगले जेबखर्च से काट लीजिएगा। तब डाॅ. हरि सिंह गौर ने बेटी को समझाया कि यदि पैसे नहीं हैं तो मत खरीदो, और उधार में धन ले कर यानी कर्ज ले कर तो कभी मत खरीदो। इस तरह उन्होंने पैसे देने से साफ़ मना कर दिया। लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि अपनी बेटी को मितव्ययिता और कर्ज से बचने की शिक्षा देते हुए वे पिता के अपने कर्तव्य को भूल गए हों। दूसरे ही दिन उनकी बेटी को जापान में ही एक पार्सल मिला। जब उन्होंने पार्सल खोलकर देखा तो उसमें से जापानी छाता निकला एवं उस पर लिखा था ‘‘तुम्हारे पिता का स्नेह’’। वर्तमान आर्थिक संकट के दौर में उनकी यह सीख बहुत महत्व रखती है।

डाॅ. हरि सिंह गौर ने जिस मितव्ययिता और शैक्षिक योग्यता की जो दूसरों से अपेक्षा की उसे पहले स्वयं अमल में लाया। उनके नाम पर कौंसिल ऑफ साइंस एंड टैक्नॉलॉजी, भोपाल ने ‘डॉ. हरि सिंह गौर स्टेट अवार्ड’ शुरु किया। भारत सरकार ने 26 नवंबर 1976 में उनके नाम पर एक डाक टिकट भी जारी किया था। शिक्षा क्षेत्र में एक महानदानी के रूप में वे हमेशा याद रखे जाएंगे। वे अद्वितीय थे, अद्वितीय हैं और अद्वितीय रहेंगे।   
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(दैनिक सागर दिनकर में 25.11.2020 को प्रकाशित)
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Wednesday, November 18, 2020

चर्चा प्लस | चिन्ताजनक है प्रेम का हिंसा की ओर बढ़ना | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस
चिन्ताजनक है प्रेम का हिंसा की ओर बढ़ना
 - डाॅ शरद सिंह
  महाराष्ट्र के बीड जिले में दिवाली के दिन दिल दहला देने वाली घटना घटी जिसमें एक 22 वर्षीय युवती को उसके बॉयफ्रेंड ने एसिड और पेट्रोल से जलाने के बाद सड़क किनारे फेंक दिया। इस ख़बर ने सोचने को मज़बूर कर दिया है कि क्या प्रेम इतना हिंसात्मक रूप भी ले सकता है? विगत कुछ दशकों से एकतरफा प्रेम अथवा प्रेमिका से छुटकारे के लिए हिंसात्मक कदम उठाए जाने के समाचार अकसर पढ़ने को मिलने लगे हैं। प्रेम का इस तरह हिंसा की ओर बढ़ना चिंतनीय है।   
जिसने भी चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की ‘उसने कहा था’ पढ़ी है, उसे वह यह संवाद कभी नहीं भूल सकता कि कहानी का नायक लहना सिंह एक लड़की से पूछता है-‘तेरी कुड़माई हो गई?’ और वह लड़की ‘धत्’ कह कर शरमा जाती है। लड़की ने एक दिन ‘तेरी कुड़माई हो गई’ का उत्तर दे दिया कि ‘हंा, हो गई....!’ लहना विचलित हो गया। उस लड़की का विवाह जिससे हुआ, वह आगे चल कर सेना में सूबेदार बना और वह लड़की कहलाई सूबेदारनी। एक भरा-पूरा परिवार, वीर, साहसी पति, वैसा ही वीर, साहसी बेटा। आर्थिक सम्पन्नता। सामाजिक दृष्टि से सुखद पारिवारिक जीवन। वहीं एकतरफा प्रेम में डूबा लहना सिंह उस लड़की को कभी भुला नहीं सका। युद्ध में जाते समय जब लहना सूबेदार के घर उन्हें लेने गया तो सूबेदारनी ने ही उसे पहचाना और अनुरोध किया कि युद्ध में उसके पति यानी सूबेदार की रक्षा करना। लहना सिंह ने अपना वचन निभाया। लहना चाहता तो सूबेदार को मर जाने देता ओर सूबेदारनी से अपना बदला ले लेता। या फिर बहुत पहले ‘कुड़मई’ की ख़बर पाते ही आक्रामक हो उठता। लेकिन लहना ने कोई गलत कदम नहीं उठाया क्योंकि वह उस लड़की से सच्चा प्रेम कर बैठा था। प्रेम समर्पण मांगता है हिंसा या प्रतिकार नहीं।   

आज के माहौल में लहना सिंह का समर्पित प्रेम मानो कहीं खो गया है। हाल ही में महाराष्ट्र के बीड जिले में दिवाली के दिन की दिल दहला देने वाली घटना ने यह सोचने को मजबूर कर दिया कि क्या प्रेम मर कर हिंसा का रूप ले लेता है या फिर वह वस्तुतः प्रेम होता ही नहीं है? महाराष्ट्र के बीड जिले में एक 22 वर्षीय युवती को उसके बॉयफ्रेंड ने एसिड और पेट्रोल से जलाने के बाद सड़क किनारे फेंक दिया, जहां वह 12 घंटे से अधिक समय तक मौत से जूझती, तड़पती वह पड़ी रही। किसी ने उसे देखा और पुलिस को ख़बर की जिसके बाद उसे अस्पताल पहुंचाया गया। मौत से 16 घंटे तक जूझने के बाद उस युवती ने दम तोड़ दिया। यह सिर्फ़ एक घटना नहीं है। विगत कुछ दशको से ऐसी घटनाएं अकसर पढ़ने-सुनने को मिलती रहती हैं। देश के हर प्रांत, हर जिले से एक न एक ऐसी घटना प्रकाश में आती रहती है। जून 2016 को रेवाड़ी में एक युवक ने एक तरफा प्यार के चलते युवती को चाकू मार घायल कर दिया था। मार्च 2017 मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एक युवक ने एकतरफा प्रेम के चलते एक युवती की चाकू मार कर हत्या करने की कोशिश की। युवती को फौरन अस्पताल ले जाया गया। नवंबर 2018 गाजियाबाद के सिहानी गेट थाना क्षेत्र के मालीवाडा में प्रशांत नाम के 28 वर्षीय युवक ने एक 26 वर्षीय युवती पर चाकू से हमला कर दिया। आरोपी प्रेमी ने लड़की के घर पर ही लड़की का गला चाकू से बुरी तरह रेत दिया। ग्रेटर नोएडा के एक मॉल में शुक्रवार को एकतरफा प्रेम प्रसंग के मामले में एक व्यक्ति ने 18 वर्षीय युवती की चाकू घोंपकर हत्या कर दी और इसके बाद अपने आप को भी मारने की कोशिश की। नवंबर 2019 अलीगढ़ के इगलास कोतवाली क्षेत्र के गांव जारौठ में एकतरफा प्रेम में पागल प्रेमी ने युवती की घर में घुसकर बेरहमी से हत्या कर दी। 19 वर्षीय युवती की 15 दिसंबर को शादी होने वाली थी। शादी की खबर से युवक आहत था। उसने सोमवार दोपहर युवती के घर में घुसकर उसकी गर्दन, छाती और पेट में चाकू से प्रहार किए और भाग गया। जून 2020 कोतवाली थाना क्षेत्र में एक सिरफिरे आशिक ने एकतरफा प्रेम में पड़ोस में रहने वाली लड़की पर चाकू से हमला कर दिया। ओरछा गेट निवासी विनोद पड़ोस में रहने वाली एक लड़की से एकतरफा प्यार करता था। साथ ही वह लड़की पर आये दिन शादी करने का दबाव बनाता था। जब ऐसा नहीं हो सका तो विनोद ने बुधवार की दोपहर लड़की पर चाकू से हमला कर दिया। जून 2020 दिल्ली से सटे गाजियाबाद के तुलसी निकेतन में एकतरफा प्यार में पागल एक सनकी प्रेमी ने एक युवती की चाकू से गोदकर निर्ममता से हत्या कर दी। आरोपी युवक उस युवती की कहीं और शादी तय होने से नाराज था। 

ये तो मामले हैं एकतरफा प्रेम के हिंसात्मक परिणाम के। अब लिवइन में अपनी पार्टनर से पीछा छुड़ाने के लिए हिंसात्मक तरीके अपनाएं जाने लगे हैं। जबकि लिवइन का आधार ही है प्रेम, समर्पण और विश्वास। लेकिन इस प्रकार की हिंसात्मक घटनाओं को देखते हुए लगने लगा है मानो प्रेम से ये तीनों आधार तत्व लुप्त होते जा रहे हैं। ‘प्रेम’ एक जादुई शब्द है। कोई कहता है कि प्रेम एक अनभूति है तो कोई इसे भावनाओं का विषय मानता है। कहा तो यह भी जाता है कि प्रेम सोच-समझ कर नहीं किया जाता है। यदि सोच-समझ को प्रेम के साथ जोड़ दिया जाए तो लाभ-हानि का गणित भी साथ-साथ चलने लगता है। बहरहाल सच्चाई तो यही है कि प्रेम बदले में प्रेम ही चाहता है और इस प्रेम में कोई छोटा या बड़ा हो ही नहीं सकता है। जहां छोटे या बड़े की बात आती है, वहीं प्रेम का धागा चटकने लगता है। ‘रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े गांठ पड़ जाए।’ प्रेम सरलता, सहजता और स्निग्धता चाहता है, अहम की गंाठ नहीं। इसीलिए जब प्रेम किसी सामाजिक संबंध में ढल जाता है तो प्रेम करने वाले दो व्यक्तियों का पद स्वतः तय हो जाता है। स्त्री और पुरुष के बीच का वह प्रेम जिसमें देह भी शामिल हो पति-पत्नी का सामाजिक रूप लेता है। हजारी प्रसाद द्विवेद्वी लिखते हैं कि ‘प्रेम से जीवन को अलौकिक सौंदर्य प्राप्त होता है। प्रेम से जीवन पवित्रा और सार्थक हो जाता है। प्रेम जीवन की संपूर्णता है।’ आचार्य रामचंद्र शुक्ल मानते थे कि प्रेेम एक  संजीवनी शक्ति है। संसार के हर दुर्लभ कार्य को करने के लिए यह प्यार संबल प्रदान करता है। आत्मविश्वास बढ़ाता है। यह असीम होता है। इसका केंद्र तो होता है लेकिन परिधि नहीं होती।’ कथा सम्राट प्रेमचंद ने लिखा है कि ‘मोहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृतबूंद है, जो मरे हुए भावों को ज़िन्दा करती है। यह ज़िन्दगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक़ बरक़त है।’ 

बेशक़ प्रेम की परिभाषा। प्रेम का अर्थ, एक साथ महसूस की जाने वाली उन सभी भावनाओं से जुड़ा है, जो मजबूत लगाव, सम्मान, घ्बहुत कठिन है घनिष्ठता, आकर्षण और मोह से सम्बन्धित हैं। प्रेम होने पर परवाह करने और सुरक्षा प्रदान करने की गहरी भावना व्यक्ति के मन में सदैव बनी रहती है। प्रेम वह अहसास है जो लम्बे समय तक साथ देता है और एक लहर की तरह आकर चला नहीं जाता। तभी तो कबीर ने कहा है कि -
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, हुआ न पंडित कोय। 
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।

लेकिन वर्तमान परिदृश्य चिंता में डालने वाला है। प्रेम हिंसा की ओर बढ़ता दिखाई देने लगा है। इसके कारणों पर गौर करें तो तो मूल करण यही दिखाई देते हैं कि एक तो मानवीय मूल्यों में तेजी से कमी आती जा रही है और दूसरे, युवाओं में प्रेम संबंधों को ले कर असुरक्षा की भावना बढ़ रही है। ये दोनों कारण ‘‘प्रेम करने का भ्रम पालने वालों’’ को हिंसाात्मक बना देता है। असली प्रेम करने वाले कभी, किसी भी दशा में अपने प्रिय का अहित नहीं कर सकते हैं। इस हिंसात्मक आचरण के लिए कहीं न कहीं घरेलूहिंसा भी जिम्मेदार है। जो बच्चे अपने घर में स्त्रियों के प्रति हिंसात्मक रवैया देखते हैं, वही बच्चे बड़े हो कर स्त्रियों के प्रति हिंसात्मक कदम उठाने से नहीं हिचकते हैं। समाज से जुड़ा यह एक ऐसा विषय है जिसकी अनदेखी नहीं किया जाना चाहिए। भारतीय संस्कृति प्रेम की पक्षधर है हिंसा की नहीं।               
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(दैनिक सागर दिनकर में 18.11.2020 को प्रकाशित)
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Wednesday, November 11, 2020

चर्चा प्लस | सतर्कता से दीपावली मनाना है, कोरोना को हराना है | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस
सतर्कता से दीपावली मनाना है, कोरोना को हराना है
   - डाॅ शरद सिंह
  दीपावली वह त्यौहार है जिसका नाम लेते ही दीपकों की जगमग करती कतारों की तस्वीर आंखों के आगे घूम जाती है। लाई, बताशे, पटाखे, फुलझड़ी आदि इसे और अधिक रोचक बना देते हैं। लेकिन इस बार की दीपावली वैसी नहीं होगी जैसी हम हमेशा मनाते आए हैं। कारण कि कोरोना आपदा से अभी छुटकारा नहीं मिला है। इस बार की दीपावली सतर्क दीपावली के रूप में मनाने में ही सुरक्षा और खुशियां दोनों निहित है। साथ ही इसे हम परमार्थ रूप दे कर सार्थक दीपावली यानी एक स्पेशल दीपावली में बदल सकते हैं। 

दीपावली का उत्साह कोरोना के भय पर भारी पड़ रहा है। बाज़ार में दूकानें सज गई हैं और भीड़ उमड़ने लगी है। फिर भी हर व्यक्ति दुविधा की स्थिति से गुज़र रहा है। इतने बड़े त्यौहार को वह फीका भी नहीं जाने देना चाहता है और वहीं उसके भीतर कोरोना संक्रमण कर भय भी समाया हुआ है। कोरोना के भय के प्रति देश में हर स्तर पर प्रशासन भी सतर्क है। इसी लिए दीपावली पर एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सतर्कता नोटिस जारी करते हुए देश के 23 राज्यों में पटाखों की बिक्री और उपयोग पर अस्थायी प्रतिबंध लगाने पर अपना आदेश सुनाया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना 18 अक्तूबर 2010 को एनजीटी अधिनियम, 2010 के तहत पर्यावरण संरक्षण, वन संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों सहित पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन, दुष्प्रभावित व्यक्ति अथवा संपत्ति के लिये क्षतिपूर्ति प्रदान करने एवं इससे जुड़े हुए मामलों के प्रभावशाली और त्वरित निपटारे के लिये की गई थी। दूसरे शब्दों में इसे पर्यावरण अदालत कहा जा सकता है, जिसे हाई कोर्ट के समान शक्तियां प्राप्त हैं। एनजीटी ने 30 नवंबर की रात तक दिल्ली एनसीआर सहित देश के उन शहरों और कस्बों में पटाखों पर पूरी तरह बैन लगा दिया है जहां पिछले साल नवंबर में हवा की गुणवत्ता खराब रही। आतिशबाजी पर भी पाबंदी लगाई गई है। वहीं मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने पटाखों पर पाबंदी तो नहीं लगाई है लेकिन चाईनीज़ पटाखे बेचने और चलाने पर रोक लगाई है।

दीपावली मानने को ले कर एनजीटी ने गाईडलाईन भी जारी की है जिसके अनुसार जिन शहरों में वायु प्रदूषण इंडेक्स 200 से ज्यादा है, वहां पर पटाखों की बिक्री और पटाखे जलाने पर रोक लगाई गई है। जिन शहरों में वायु प्रदूषण खतरे के बिन्दु से नीचे होगा, वहां पर पटाखे बेचे जा सकेंगे और उन्हें जलाने के लिए दो घंटे का समय निर्धारित रहेगा। यह पटाखे त्यौहारों यथा - दीपावली, छठ, न्यू ईयर और क्रिसमस जैसे त्यौहारों पर जलाए जा सकेंगे। पश्चिम बंगाल, ओडिशा, राजस्थान और हरयाणा समेत एनजीटी ने 23 राज्यों में पटाखों की बिक्री और उपयोग पर अस्थायी प्रतिबंध लगाने पर अपना आदेश सुनाया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा, ‘वैसे शहर या कस्बे जहां वायु गणवत्ता ‘मध्यम’ या उसके नीचे दर्ज की गई, वहां सिर्फ हरित पटाखों की बिक्री हो सकती है और दीपावली, छठ, नया साल, क्रिसमस की पूर्व संध्या जैसे अन्य मौकों पर पटाखों के इस्तेमाल और उन्हें फोड़ने की समय सीमा को दो घंटे तक ही सीमित रखी जा सकती है, जैसा कि संबंधित राज्य इसको तय कर सकते हैं।’ इसके साथ ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा कि ‘वहीं अन्य स्थानों पर प्रतिबंधरोक अधिकारियों के लिए वैकल्पिक है और अगर अधिकारियों के आदेश में इस संबंध में कड़े कदम हैं, तो वे लागू होंगे।’ यह गाईडलाईन इसलिए जारी की गई है क्योंकि वायु प्रदूषण से कोविड-19 के मामले बढ़ सकते हैं।  इसके अलावा जिन शहरों में वायु प्रदूषण प्रतिशत अपेक्षाकृत कम है, वहां सिर्फ ग्रीन पटाखे ही छोड़े जा सकते हैं, वह भी मात्र दो घंटे की निर्धारित अवधि में। यह याद रखना जरूरी है कि इस बार तो कोरोना आपदा का दौर है। कोरोना हवा में ही तेजी से फैलता है। अगर पर्यावरण प्रदूषित होगा तो कोरोना भी उतनी तेजी से ही फैलेगा। इसलिए प्रदेश सरकार के द्वारा दी गई छूट रूपी विश्वास का सम्मान करते हुए मध्यप्रदेश में भी पटाखे कम से कम चलाए जाएं तो इससे हवा को प्रदूषित होने से बचाए रख सकेंगे और कोरोना संक्रमण को फैलाने के अपराध के मानवीय अपराध के भागीदार भी नहीं बनेंगे। इस बार अध्योध्या में अभूतपूर्व दीपोत्सव मानाया जाना है। उस दीपोत्सव की संकल्पना का अनुसरण करते हुए हम भी दीपोत्सव मना सकते हैं। दीपक पटाखों की तरह वायु को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, वहीं जगमग रोशनी की सुंदरता से सराबोर कर देते हैं। प्रकाश का त्यौहार है दीपावली तो सही मायने में प्रकाश पर ही आधारित दीपावली हम मनाएं, व्यर्थ ही पटाखें के बारूद से धन और वायु का अपव्यय क्यों करें? कुछ पल की खुशी के लिए ध्वनि और वायु प्रदूषण बढ़ा कर कोरोना को न्योता देने से बेहतर है कि हम पटाखों में व्यय होने वाले पैसों से उन लोगों की मदद करें जो कोरोना आपदा के चलते बेरोजगार हो गए हैं अथवा महानगरों से अपने घर-गांव लौट कर आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं।

कोरोना के मामलों की गिनती में भले ही आधिकारिक रूप से कमी दिखाई दे रही हो लेकिन इससे चिन्तामुक्त नहीं हुआ जा सकता हैं। चिकित्सकों एवं विशेषज्ञों का भी मानना है कि बढ़ती सर्दी में कोरोना संक्रमण का दूसरा दौर आ सकता है। इस घातक वायरस का अभी भी कोई टीका विकसित नहीं हुआ है। इसलिए इस दीवाली हमें अपने और अपने परिवार को सुरक्षित रखने के लिए पहले की तरह सतर्क रहना होगा। लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि दीपावली के जोश को कम होने दें। थोड़ी-सी समझदारी और सतर्कता के साथ खुशियों भरी सुरक्षित दीपावली मनाई जा सकती है। सतर्कता सिर्फ़ इतनी रखनी है कि बड़े और भीड़-भाड़ वाले दीपावली के समारोहों में जाने से बचें। कोरोनावायरस के फैलने का जोखिम सबसे ज्यादा उन स्थानों पर है जहां छोटे स्थान में अधिक लोग इकट्ठा होते हैं। विस्तार वाली जगह में जहां सोशल डिस्टेंसिंग संभव है वहां भी कई बार डिस्टेंसिंग बनाए रखना कठिन हो जाता है। आप हर व्यक्ति से सतर्कता भरी बुद्धिमानी की उम्मींद नहीं कर सकते हैं। कई लोग जान की परवाह किए बिना ढिठाई की हद तक बेपरवाह हो जाते हैं और बिना मास्क के लपक कर मिलने के लिए निकट चले आते हैं। ऐसे समय आप सभ्यता एवं संकोचवश ‘‘दूर रहिए-दूर रहिए’’ भी नहीं कह पाते हैं और मन ही मन डरते रहते हैं। इसलिए बेहतर है कि ऐसी कठिनाई वाली स्थिति में ही क्यों फंसा जाए। 

जब बात भीड़ से बचने की हो तो त्यौहारी खरीददारी के लिए बाज़ार जाने से भी परहेज करना जरूरी है। त्यौहार के समय बाज़ार में भीड़ जुटना स्वाभाविक है। ऐसे में कोरोना से खुद का बचाव करना बेहद कठिन है। सभी जानते हैं कि भीड़ में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इस कोरोनाकाल में बिना किसी अतिरिक्त खर्च के स्थानीय दूकानदार ‘‘एट डोर सर्विस’’ देने लगे हैं। तो इस घर बैठी सेवा का लाभ उठाते हुए त्यौहारी खरीददारी की जा सकती है। इसलिए कोरोना के डर से मन मारने के बजाए कोरोना काल में ऑनलाइन शॉपिंग सबसे बेहतर विकल्प है।
जहां तक आर्थिक संकट से जूझ रहे लोगों की मदद का प्रश्न है तो कोरोना काल में रोजी रोटी के संकट से जूझ रहे कुम्हारों के लिए स्थानीय प्रशासन ने ‘‘बाज़ार बैठकी’’ से उन्हें मुक्त रख कर उनकी बहुत बड़ी सहायता की है। कोरोना और आर्थिक संकट दोनों से जूझते हुए भी कुम्हारों ने अपनी उम्मींद का दिया जलाए रखा है और वे उत्साहपूर्वक दिए बना रहे हैं। दीपावली के अवसर पर मिट्टी से बने हुए दीपकों के साथ ही लक्ष्मी, गणेश, कुबेर, अन्न का कूडा, ग्वालिन आदि की भी जरूरत पड़ती है। कुम्हार भी कोरोना आपदा की गंभीरता को समझते हैं। उन्हें मजबूरी में बाज़ार की भीड़ के बीच अपनी दूकानें लगानी पड़ रही हैं, फिर भी वे घर-घर घूमते हुए भी दीपक तथा मिट्टी की अन्य वस्तुएं बेचते घूम रहे हैं। यदि घर के दरवाज़े आए कुम्हारों से हम बिना अधिक मोलभाव किए दीपक आदि खरीदेंगे तो इससे हम भीड़ भरे बाज़ार में जाने से भी बचेंगे और उन कुम्हारों से सामग्री खरीद कर उनकी आर्थिक मदद भी कर सकेंगे। आखिर जो वस्तुएं वे हमारे घर के दरवाज़े पर ला रहे हैं वही वस्तुएं तो बाज़ार में मौजूद है।  

ये छोटी-छोटी लेकिन महत्वपूर्ण सतर्कता दीपावली की खुशियों पर कोरोना का ग्रहण लगने से बचाए रखेगी। फिर यह भी संभव है कि इस तरह की संकट वाली यह इकलौती दीपावली हो। दुनिया भर में चल रहे अनुसंधानों को देखते हुए हम आशा कर सकते हैं कि अगली दीपावली के पहले तक हर व्यक्ति के पास वैक्सीन पहुंच जाएगा और अगली दीपावली हम कोरोना आपदा से मुक्त हो कर मनाएंगे। तो इस बार की दीपावली में कुछ अलग हट कर, कुछ सुरक्षित, कुछ सतर्क, कुछ दूरियों के साथ दीपावली का आनंद लें और कोरोना के भय पर विजय पाएं। आखिर पटाखों के बिना भी दीपावली हो सकती है दमदार।
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(दैनिक सागर दिनकर में 11.11.2020 को प्रकाशित)
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Wednesday, November 4, 2020

चर्चा प्लस | ‘चार्ली हेब्दो’ जनित अशांति और संयम का अस्त्र | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस
‘चार्ली हेब्दो’ जनित अशांति और संयम का अस्त्र
 - डाॅ शरद सिंह
 किसी की भावनाओं को भड़काना सबसे आसान होता है यदि पता चल जाए कि वह किसके प्रति सबसे अधिक संवेदनशील है। ‘‘चार्ली हेब्दो’’ ने सटायर के नाम पर हमेशा भावनाओं को ही चोट पहुंचाया है और भड़काया है। इस बार उसके भड़कावे की आंच हमारे देश की सड़कों तक आ पहुंची। ऐसे समय में सामूहिक गुस्से का फ़ायदा उठाने वाले भी सक्रिय हो उठते हैं और आम जनजीवन की शांति भंग कर देते हैं। तब संयम ही वह अस्त्र होता है जो प्रत्येक आतंकी और कट्टरपंथी गतिविधियों को सौ प्रतिशत पराजित करता है। 
हाल ही में फ्रांस की व्यंग्य पत्रिका ‘‘चार्ली हेब्दो’’ ने एक बार फिर पूरे विश्व की शांति भंग कर दी है। ‘‘चार्ली हेब्दो’’ ने उस कार्टून को फिर से प्रकाशित कर दिया जिस पर एक बार पहले भी नृशंस गोलीकांड हो चुका है। इस बार कार्टून प्रकाशित होने के बाद राजधानी पेरिस में एक युवक ने एक स्कूली शिक्षक की सिर काटकर नृशंस हत्या कर दी थी। युवक ने ऐसा इसलिए किया था क्योंकि शिक्षक ने अपने विद्यार्थियों को पैगंबर मोहम्मद का एक कार्टून दिखाया था। इस युवक को भी तुरंत ही मौत के घाट उतार दिया गया। युवक की पहचान एक चेचेन्या निवासी के तौर पर की गई और इस संबंध में कई गिरफ्तारियां भी की गईं। इस घटना के बाद एक बार फिर बहस छिड़ गई है वैश्विक आतंकवाद पर। 

पेरिस की घटना के बाद दुनिया के हर देश में विचारधारा के दो धड़े दिखाई देने लगे हैं। एक धड़ा वह जो शिक्षक के मारे जाने की निंदा कर रहा है तथा इसे आतंकवादी गतिविधि मान रहा है और दूसरा धड़ा वह जो शिक्षक के मारे जाने का समर्थन करता है। इस बहस की आंच से भारत भी अछूता नहीं है। मानवतावाद का हिमायती भारत और भारतीय कभी भी हिंसा का समर्थन नहीं करते हैं किन्तु कुछ लोगों की भावनाओं को इतनी अधिक ठेस पहुंची कि उन्होंने सड़कों पर निकल कर फ्रांस के राष्ट्रपति का विरोध किया ओर शिक्षक की हत्या किए जाने का समर्थन किया। ऐसे संवेदनशील समय में कुछ बुद्धिजीवियों ने भी संयम का साथ छोड़ कर ऐसे बयान दे दिए जो भारतीय परिप्रेक्ष्य में उचित नहीं कहे जा सकते हैं। असल दोषी ‘‘चार्ली हेब्दो’’ है। किसी की धार्मिक भावनाओं के साथ अनावश्यक छेड़-छाड़ करना कतई उचित नहीं कहा जा सकता है जैसे कि शिक्षक की हत्या भी मानवता का हनन ही कहा जाएगा। बेशक धार्मिक कट्टरता से किसी का भला नहीं होता लेकिन धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने से भी किसी का भला नहीं होता है। ऐसी घटनाओं का सबसे अधिक लाभ उठाते हैं आतंकी संगठन। आम जनता समझ भी नहीं पाती है कि उन्हें किस तरह उकसाया जा रहा है। जब तक उन्हें समझ में आता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

आतंकवादी गतिविधियों के दो उदाहरण ऐसे हैं जिन्हें सभी आसानी से समझ सकते हैं। 9/11 की घटना जिसमें न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला किया गया था जिसमें अनेक निरपराध लोग मारे गए थे। साल 2001 में 11 सितंबर को अमेरिका में हुए आतंकी हमले ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था। इस हमले में अमेरिका का वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पूरी तरह से ध्वस्त हो गया था। दो विमानों को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के टॉवर्स में टकरा दिया, जबकि तीसरे विमान से पेंटागन पर हमला किया गया। इन हमलों में 2,996 लोगों की मौत हो गई थी और 6,000 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। अमेरिका ने इस हमले का बदला लिया और पाक के एबटाबाद में 2 मई 2011 को अमेरिकी कमांडो ने एक ऑपरेशन में अलकायदा चीफ ओसामा बिन लादेन को मौत के घाट उतार दिया। इस हमले के बाद अमेरिका ने सुरक्षा नीति में व्यापक बदलाव किए गए। दूसरी घटना भारत में मुंबई पर आतंकी हमले की। मुंबई में 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख देने वाले इस हमले को आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकियों ने अंजाम दिया था। उन्होंने देश की आर्थिक राजधानी में कई स्थानों को निशाना बनाया था। इस हमले में 166 बेगुनाह लोग मारे गए थे। छत्रपति शिवाजी टर्मिनस स्टेशन के अलावा आतंकियों ने ताज होटल, होटल ओबेरॉय, लियोपोल्ड कैफे, कामा अस्पताल और दक्षिण मुंबई के कई स्थानों पर हमले शुरू कर दिया था। एक साथ इतनी जगहों पर हमले ने सबको चौंका दिया था। 

भारत को अब तक अनेक बार आतंकी गतिविधियों का शिकार होना पड़ा है। 1991 पंजाब हत्याकांड, 1993 मुंबई बम धमाके, 1993 चेन्नई में आरएसएस कार्यालय में बमबारी, 2000 चर्च बमबारी, 2000 लाल किला आतंकवादी हमला, 2001 भारतीय संसद हमला, 2002 मुंबई बस बमबारी, 2002 अक्षरधाम मंदिर पर हमला, 2003 मुंबई बम बमबारी, 2004 असम में धमाजी स्कूल बमबारी, 2005 दिल्ली बम विस्फोट, 2005 भारतीय विज्ञान संस्थान शूटिंग, 2006 वाराणसी बमबारी, 2006 मुंबई ट्रेन बमबारी, 2006 मालेगांव बमबारी, 2007 समझौता एक्सप्रेस बमबारी, 2007 हैदराबाद बमबारी, 2007 अजमेर दरगाह बमबारी, 2008 जयपुर बमबारी, 2008 बैंगलोर सीरियल विस्फोट, 2008 अहमदाबाद बमबारी, 2008 दिल्ली बम विस्फोट, 2008 मुंबई हमले, 2010 पुणे बमबारी, 2010 वाराणसी बमबारी, 2011 मुंबई बमबारी, 2011 दिल्ली बमबारी, 2012 पुणे बमबारी, 2013 हैदराबाद विस्फोट, 2013 श्रीनगर हमला, 2013 बोध गया बमबारी, 2013 पटना बम विस्फोट, 2014 छत्तीसगढ़ हमला, 2014 झारखंड विस्फोट, 2014 चेन्नई ट्रेन बमबारी, 2014 असम हिंसा, 2014 चर्च स्ट्रीट बम विस्फोट, बैंगलोर, 2015 जम्मू हमला, 2015 गुरदासपुर हमला, 2015 पठानकोट हमला, 2016 उरी हमला, 2016 बारामुल्ला हमला, 2017 भोपाल उज्जैन पैसेंजर ट्रेन बमबारी, 2017 अमरनाथ यात्रा हमला, 2018 सुक्का हमला आदि अनेक आतंकवादी घटनाएं हैं जिन्होंने भारत की शांति को समय-समय पर चोट पहुंचाई। लेकिन आतंकवाद के विरुद्ध भारत का दृष्टिकोण हमेशा एकदम स्पष्ट रहा है। सन् 2019 की 11 सितम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ‘‘आज आतंकवाद एक वैश्विक समस्या है जिसने विचारधारा का रूप ले लिया है। उन्होंने साथ ही कहा कि आतंक की जड़ें हमारे पड़ोस में पनप रही हैं लेकिन हम इसका मजबूती से सामना कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे। आतंकवादियों को पनाह और प्रशिक्षण देने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भारत पूर्ण रूप से सक्षम है और हमने इसे करके दिखाया भी है।’’ यही तो है भारतीय दृष्टिकोण और दृढ़ता जिसने हर अशांति से देश को उबारा है।

ऐसे समय में जब विश्व कोरोना आपदा जैसे विकट संकट से जूझ रहा है, ऐसी घटनाओं के प्रति संयम बरतना जरूरी है जो भावनाओं को ठेस पहंचाने और भड़काने के लिए ही की गई हों। विकसित देशों की अपेक्षा हमारा देश अधिक संकटों से घिरा हुआ है। कोरोना आपदा ने लाखों लोगों की नौकरियां छीन ली हैं। उद्योग-धंघे एक बार फिर अपना पांव जमाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कोरोना आपदा के कारण हमारी जीवनचर्या पूरी तरह से बदल चुकी है। अब सेहत की सुरक्षा हमारा पहला मुद्दा है। इन परिस्थितियों में ‘‘चार्ली हेब्दो’’ जैसी पत्रिका को नकारना ही उचित कदम होगा। सटायर का अर्थ किसी की निजता को चोट पहुंचाना नहीं होता है।  अतः जिस प्रतिक्रिया की वे उम्मीद करते हैं, वह प्रतिक्रिया उन्हें नहीं मिलेगी तो वे स्वयं पराजित हो जाएंगे। प्रत्येक विपरीत परिस्थितियों में संयम का अस्त्र सबसे अधिक कारगर होता है।      
                  
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(दैनिक सागर दिनकर में 04.11.2020 को प्रकाशित)
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