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चर्चा प्लस | सतर्कता से दीपावली मनाना है, कोरोना को हराना है | डाॅ शरद सिंह
सतर्कता से दीपावली मनाना है, कोरोना को हराना है
- डाॅ शरद सिंह
दीपावली वह त्यौहार है जिसका नाम लेते ही दीपकों की जगमग करती कतारों की तस्वीर आंखों के आगे घूम जाती है। लाई, बताशे, पटाखे, फुलझड़ी आदि इसे और अधिक रोचक बना देते हैं। लेकिन इस बार की दीपावली वैसी नहीं होगी जैसी हम हमेशा मनाते आए हैं। कारण कि कोरोना आपदा से अभी छुटकारा नहीं मिला है। इस बार की दीपावली सतर्क दीपावली के रूप में मनाने में ही सुरक्षा और खुशियां दोनों निहित है। साथ ही इसे हम परमार्थ रूप दे कर सार्थक दीपावली यानी एक स्पेशल दीपावली में बदल सकते हैं।
दीपावली का उत्साह कोरोना के भय पर भारी पड़ रहा है। बाज़ार में दूकानें सज गई हैं और भीड़ उमड़ने लगी है। फिर भी हर व्यक्ति दुविधा की स्थिति से गुज़र रहा है। इतने बड़े त्यौहार को वह फीका भी नहीं जाने देना चाहता है और वहीं उसके भीतर कोरोना संक्रमण कर भय भी समाया हुआ है। कोरोना के भय के प्रति देश में हर स्तर पर प्रशासन भी सतर्क है। इसी लिए दीपावली पर एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सतर्कता नोटिस जारी करते हुए देश के 23 राज्यों में पटाखों की बिक्री और उपयोग पर अस्थायी प्रतिबंध लगाने पर अपना आदेश सुनाया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना 18 अक्तूबर 2010 को एनजीटी अधिनियम, 2010 के तहत पर्यावरण संरक्षण, वन संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों सहित पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन, दुष्प्रभावित व्यक्ति अथवा संपत्ति के लिये क्षतिपूर्ति प्रदान करने एवं इससे जुड़े हुए मामलों के प्रभावशाली और त्वरित निपटारे के लिये की गई थी। दूसरे शब्दों में इसे पर्यावरण अदालत कहा जा सकता है, जिसे हाई कोर्ट के समान शक्तियां प्राप्त हैं। एनजीटी ने 30 नवंबर की रात तक दिल्ली एनसीआर सहित देश के उन शहरों और कस्बों में पटाखों पर पूरी तरह बैन लगा दिया है जहां पिछले साल नवंबर में हवा की गुणवत्ता खराब रही। आतिशबाजी पर भी पाबंदी लगाई गई है। वहीं मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने पटाखों पर पाबंदी तो नहीं लगाई है लेकिन चाईनीज़ पटाखे बेचने और चलाने पर रोक लगाई है।
दीपावली मानने को ले कर एनजीटी ने गाईडलाईन भी जारी की है जिसके अनुसार जिन शहरों में वायु प्रदूषण इंडेक्स 200 से ज्यादा है, वहां पर पटाखों की बिक्री और पटाखे जलाने पर रोक लगाई गई है। जिन शहरों में वायु प्रदूषण खतरे के बिन्दु से नीचे होगा, वहां पर पटाखे बेचे जा सकेंगे और उन्हें जलाने के लिए दो घंटे का समय निर्धारित रहेगा। यह पटाखे त्यौहारों यथा - दीपावली, छठ, न्यू ईयर और क्रिसमस जैसे त्यौहारों पर जलाए जा सकेंगे। पश्चिम बंगाल, ओडिशा, राजस्थान और हरयाणा समेत एनजीटी ने 23 राज्यों में पटाखों की बिक्री और उपयोग पर अस्थायी प्रतिबंध लगाने पर अपना आदेश सुनाया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा, ‘वैसे शहर या कस्बे जहां वायु गणवत्ता ‘मध्यम’ या उसके नीचे दर्ज की गई, वहां सिर्फ हरित पटाखों की बिक्री हो सकती है और दीपावली, छठ, नया साल, क्रिसमस की पूर्व संध्या जैसे अन्य मौकों पर पटाखों के इस्तेमाल और उन्हें फोड़ने की समय सीमा को दो घंटे तक ही सीमित रखी जा सकती है, जैसा कि संबंधित राज्य इसको तय कर सकते हैं।’ इसके साथ ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा कि ‘वहीं अन्य स्थानों पर प्रतिबंधरोक अधिकारियों के लिए वैकल्पिक है और अगर अधिकारियों के आदेश में इस संबंध में कड़े कदम हैं, तो वे लागू होंगे।’ यह गाईडलाईन इसलिए जारी की गई है क्योंकि वायु प्रदूषण से कोविड-19 के मामले बढ़ सकते हैं। इसके अलावा जिन शहरों में वायु प्रदूषण प्रतिशत अपेक्षाकृत कम है, वहां सिर्फ ग्रीन पटाखे ही छोड़े जा सकते हैं, वह भी मात्र दो घंटे की निर्धारित अवधि में। यह याद रखना जरूरी है कि इस बार तो कोरोना आपदा का दौर है। कोरोना हवा में ही तेजी से फैलता है। अगर पर्यावरण प्रदूषित होगा तो कोरोना भी उतनी तेजी से ही फैलेगा। इसलिए प्रदेश सरकार के द्वारा दी गई छूट रूपी विश्वास का सम्मान करते हुए मध्यप्रदेश में भी पटाखे कम से कम चलाए जाएं तो इससे हवा को प्रदूषित होने से बचाए रख सकेंगे और कोरोना संक्रमण को फैलाने के अपराध के मानवीय अपराध के भागीदार भी नहीं बनेंगे। इस बार अध्योध्या में अभूतपूर्व दीपोत्सव मानाया जाना है। उस दीपोत्सव की संकल्पना का अनुसरण करते हुए हम भी दीपोत्सव मना सकते हैं। दीपक पटाखों की तरह वायु को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, वहीं जगमग रोशनी की सुंदरता से सराबोर कर देते हैं। प्रकाश का त्यौहार है दीपावली तो सही मायने में प्रकाश पर ही आधारित दीपावली हम मनाएं, व्यर्थ ही पटाखें के बारूद से धन और वायु का अपव्यय क्यों करें? कुछ पल की खुशी के लिए ध्वनि और वायु प्रदूषण बढ़ा कर कोरोना को न्योता देने से बेहतर है कि हम पटाखों में व्यय होने वाले पैसों से उन लोगों की मदद करें जो कोरोना आपदा के चलते बेरोजगार हो गए हैं अथवा महानगरों से अपने घर-गांव लौट कर आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं।
कोरोना के मामलों की गिनती में भले ही आधिकारिक रूप से कमी दिखाई दे रही हो लेकिन इससे चिन्तामुक्त नहीं हुआ जा सकता हैं। चिकित्सकों एवं विशेषज्ञों का भी मानना है कि बढ़ती सर्दी में कोरोना संक्रमण का दूसरा दौर आ सकता है। इस घातक वायरस का अभी भी कोई टीका विकसित नहीं हुआ है। इसलिए इस दीवाली हमें अपने और अपने परिवार को सुरक्षित रखने के लिए पहले की तरह सतर्क रहना होगा। लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि दीपावली के जोश को कम होने दें। थोड़ी-सी समझदारी और सतर्कता के साथ खुशियों भरी सुरक्षित दीपावली मनाई जा सकती है। सतर्कता सिर्फ़ इतनी रखनी है कि बड़े और भीड़-भाड़ वाले दीपावली के समारोहों में जाने से बचें। कोरोनावायरस के फैलने का जोखिम सबसे ज्यादा उन स्थानों पर है जहां छोटे स्थान में अधिक लोग इकट्ठा होते हैं। विस्तार वाली जगह में जहां सोशल डिस्टेंसिंग संभव है वहां भी कई बार डिस्टेंसिंग बनाए रखना कठिन हो जाता है। आप हर व्यक्ति से सतर्कता भरी बुद्धिमानी की उम्मींद नहीं कर सकते हैं। कई लोग जान की परवाह किए बिना ढिठाई की हद तक बेपरवाह हो जाते हैं और बिना मास्क के लपक कर मिलने के लिए निकट चले आते हैं। ऐसे समय आप सभ्यता एवं संकोचवश ‘‘दूर रहिए-दूर रहिए’’ भी नहीं कह पाते हैं और मन ही मन डरते रहते हैं। इसलिए बेहतर है कि ऐसी कठिनाई वाली स्थिति में ही क्यों फंसा जाए।
जब बात भीड़ से बचने की हो तो त्यौहारी खरीददारी के लिए बाज़ार जाने से भी परहेज करना जरूरी है। त्यौहार के समय बाज़ार में भीड़ जुटना स्वाभाविक है। ऐसे में कोरोना से खुद का बचाव करना बेहद कठिन है। सभी जानते हैं कि भीड़ में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इस कोरोनाकाल में बिना किसी अतिरिक्त खर्च के स्थानीय दूकानदार ‘‘एट डोर सर्विस’’ देने लगे हैं। तो इस घर बैठी सेवा का लाभ उठाते हुए त्यौहारी खरीददारी की जा सकती है। इसलिए कोरोना के डर से मन मारने के बजाए कोरोना काल में ऑनलाइन शॉपिंग सबसे बेहतर विकल्प है।
जहां तक आर्थिक संकट से जूझ रहे लोगों की मदद का प्रश्न है तो कोरोना काल में रोजी रोटी के संकट से जूझ रहे कुम्हारों के लिए स्थानीय प्रशासन ने ‘‘बाज़ार बैठकी’’ से उन्हें मुक्त रख कर उनकी बहुत बड़ी सहायता की है। कोरोना और आर्थिक संकट दोनों से जूझते हुए भी कुम्हारों ने अपनी उम्मींद का दिया जलाए रखा है और वे उत्साहपूर्वक दिए बना रहे हैं। दीपावली के अवसर पर मिट्टी से बने हुए दीपकों के साथ ही लक्ष्मी, गणेश, कुबेर, अन्न का कूडा, ग्वालिन आदि की भी जरूरत पड़ती है। कुम्हार भी कोरोना आपदा की गंभीरता को समझते हैं। उन्हें मजबूरी में बाज़ार की भीड़ के बीच अपनी दूकानें लगानी पड़ रही हैं, फिर भी वे घर-घर घूमते हुए भी दीपक तथा मिट्टी की अन्य वस्तुएं बेचते घूम रहे हैं। यदि घर के दरवाज़े आए कुम्हारों से हम बिना अधिक मोलभाव किए दीपक आदि खरीदेंगे तो इससे हम भीड़ भरे बाज़ार में जाने से भी बचेंगे और उन कुम्हारों से सामग्री खरीद कर उनकी आर्थिक मदद भी कर सकेंगे। आखिर जो वस्तुएं वे हमारे घर के दरवाज़े पर ला रहे हैं वही वस्तुएं तो बाज़ार में मौजूद है।
ये छोटी-छोटी लेकिन महत्वपूर्ण सतर्कता दीपावली की खुशियों पर कोरोना का ग्रहण लगने से बचाए रखेगी। फिर यह भी संभव है कि इस तरह की संकट वाली यह इकलौती दीपावली हो। दुनिया भर में चल रहे अनुसंधानों को देखते हुए हम आशा कर सकते हैं कि अगली दीपावली के पहले तक हर व्यक्ति के पास वैक्सीन पहुंच जाएगा और अगली दीपावली हम कोरोना आपदा से मुक्त हो कर मनाएंगे। तो इस बार की दीपावली में कुछ अलग हट कर, कुछ सुरक्षित, कुछ सतर्क, कुछ दूरियों के साथ दीपावली का आनंद लें और कोरोना के भय पर विजय पाएं। आखिर पटाखों के बिना भी दीपावली हो सकती है दमदार।
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(दैनिक सागर दिनकर में 11.11.2020 को प्रकाशित)
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