Pages

My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, December 23, 2020

चर्चा प्लस | 23 दिसम्बर | आज है राष्ट्रीय किसान दिवस | डाॅ शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस

23 दिसम्बर : आज है राष्ट्रीय किसान दिवस
 - डाॅ शरद सिंह

     कड़ाके की सर्दी और हज़ारों किसानों द्वारा किया जा रहा आंदोलन। इस वर्ष राष्ट्रीय किसान दिवस का स्वरूप कुछ अलग ही है। कृषि कानून 2020 के समर्थक इसे एक सामान्य किसान दिवस के रूप में मना रहे हैं, तो कृषि कानून 2020 का विरोध करने वाले किसान इसे विरोध ज्ञापन किसान दिवस के रूप में मना रहे हैं। जिनके लिए यह दिवस मनाया जाता है वही इस बार असंतुष्ट हैं। दो दिन पहले ही भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने लोगों से अपील की थी कि 23 दिसंबर को किसान दिवस के मौके पर एक समय का खाना त्याग कर किसान आंदोलन को समर्थन दें। आंदोलनकारी किसान भी क्रमिक उपवास आरम्भ कर चुके हैं। ऐसे समय में राष्ट्रीय किसान आंदोलन के बारे में चर्चा जरूरी है।
Charcha Plus, Sagar Dinkar, Rashtriya Kisan Diwas, Dr (Miss) Sharad Singh



आज राष्ट्रीय किसान दिवस है और देश में किसान आंदोलन गरमाया हुआ है। जिनका यह दिवस है, वे ही असंतुष्ट हैं। वे आज के किसान दिवस से नहीं अपितु नए कृषि कानून से व्यथित हैं। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का विचार था कि देश की सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और सुख-समृद्धि केवल सैनिकों और शस्त्रों पर ही आधारित नहीं बल्कि किसान और श्रमिकों पर भी आधारित है। इसीलिए उन्होंने ‘‘जय जवान, जय किसान’’ का नारा दिया था। 

प्रतिवर्ष 23 दिसम्बर को भारत में राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है, यह दिवस भारत के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की स्मृति में मनाया जाता है। 23 दिसम्बर को चौधरी चरण सिंह का जन्म हुआ था। इस दिवस को चरण सिंह जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। उनका जन्म 23 दिसम्बर 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर में हुआ था। वे 1967 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े रहे। तत्पश्चात 1967-77 के दौरान वे भारतीय लोक दल से जुड़े रहे। 1977 से 1980 के बीच में जनता पार्टी के साथ रहे। इसके पश्चात् 1980 से 1987 के दौरान वे लोकदल से जुड़े हुए थे। चौधरी चरण सिंह 3 अप्रैल, 1967 से 25 फरवरी, 1968 के बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। इसके पश्चात् वे 24 मार्च, 1977 से 1 जुलाई, 1978 के बीच केन्द्रीय गृह मंत्री रहे। 24 जनवरी, 1979 से 28 जुलाई 1979 के दौरान वे देश के वित्त मंत्री रहे और 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 के बीच देश के प्रधानमंत्री रहे। उनका निधन 29 मई, 1987 को नई दिल्ली में हुआ।

चौधरी चरण सिंह की असली पहचान एक किसान नेता की रही। उन्होंने भूमि सुधारों पर बहुत काम किया था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में और केन्द्र में वित्तमंत्री के रूप में उन्होंने गांवों और किसानों को प्राथमिकता में रखकर बजट बनाया था। उन्होंने हमेशा यही कहा कि किसानों को खुशहाल किए बिना देश व प्रदेश खुशहाल नहीं हो सकता है। चौधरी चरण सिंह ने किसानों की खुशहाली के लिए उन्नत खेती पर बल दिया था। उन्होंने किसानों को उपज का उचित दाम दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किए। वे ग्रामीण समस्याओं को गहराई से समझते थे और अपने मुख्यमंत्रित्व तथा केन्द्र सरकार के वित्तमंत्री के कार्यकाल में उन्होंने बजट का बड़ा भाग किसानों तथा गांवों के पक्ष में रखा था। 

चौधरी चरण सिंह के प्रयासों से ही ‘‘जमींदारी उन्मूलन विधेयक-1952’’ पारित हो सका था। यह स्वतंत्र भारत का पहला कृषि सुधार कानून था। इसने ज़मींदारों से किसानों की भूमि मुक्त कराने में बड़ी भूमिका निभाई। इसके बाद चौधरी चरण सिंह किसान नेता माने जाने लगे। उन्होंने समस्त उत्तर प्रदेश में भ्रमण करते हुए कृषकों की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया। चौधरी चरण सिंह ने देश में किसानों के जीवन और स्थितियों को बेहतर बनाने के लिए कई नीतियों की शुरुआत की थी। साथ ही उन्होंने किसानों के सुधारों के बिल प्रस्तुत कर देश के कृषि क्षेत्र में भी अग्रणी भूमिका निभाई थी।

 आज आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि एक ओर जहां किसान की खुशहाली की बात की जाती है तो वहीं दूसरी ओर अधिकांश लोग कथाकार प्रेमचंद की कहानियों के किसान के रूप में किसानों को देखना चाहते हैं। ‘पूस की रात’ में ठिठुरता किसान, कर्ज में दो बैलों की जोड़ी से भी वंचित होता किसान ही उनके लिए वास्तविक किसान है। ऐसे लोगों को किसानों द्वारा मोबाईल का प्रयोग करने, पिज्जा खाने और वर्जिश करने पर आश्चर्य होता है, वहीं भूख मरते किसान परिवार द्वारा घास की रोटी खाने पर आश्चर्य नहीं होता है। जबकि आज सरकार स्वयं यह मानती है कि किसानों को हाईटेक होने की जरूरत है। ‘‘किसान एप्प’’ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। समय के साथ किसानों का बहुमुखी विकास जरूरी है।

सबसे जरूरी है किसानों के लिए ऋणप्रणाली को सुधारा जाना। स्वतंत्र भारत से पूर्व और स्वतंत्र भारत के पश्चात् एक लम्बी अवधि बीतने के बाद भी कर्ज के मामले में भारतीय किसानों की दशा में सिर्फ 19-20 का ही अंतर दिखाई देता है। भारत कृषि प्रधान देश है। देश की कुल संपत्ति का लगभग 60 प्रतिशत भाग कृषि कार्यों में संलग्न है। देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 22 प्रतिशत कृषि क्षेत्र से मिलता है। भारतीय कृषि की विशेषता है कि सिंचाई की पर्याप्त सुविधा न होने के कारण तथा ऋतु परिवर्तन के कारण यहां सघन खेती संभव नहीं है। फलतः कृष्ण तथा कृषि श्रमिकों को पूरे वर्ष रोजगार सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती। तेजी से बढ़ते शहरों के फैलाव और औद्योगीकरण ने कृषि ज़मीन को छोटा कर दिया है। कृषि ज़मीन पर आवासीय परिसर बनाने के लिए भू-खण्ड के रूप में जिस तरह काम में लाया जा राह है वह चिन्ता का विषय है। 
 
पंजाब और हरियाणा को छोड़ कर शेष उत्तर भारत में कृषि प्रबंधन बेहद कमज़ोर है। सूखे के प्रकोप, लचर जल प्रबंधन और जल की कमी से जूझ रहे बुंदेलखंड के सैकड़ों गांवों से प्रतिवर्ष अनेक ग्रामीण अपने-अपने गांव छोड़ कर दूसरे राज्यों तथा महानगरों की ओर पलायन करने को विवश हो जाते हैं। असंगठित, अप्रशिक्षित मज़दूरों के रूप में काम करने वाले इन मज़दूरों का जम कर आर्थिक शोषण होता हैं। यह स्थिति तब और अधिक भयावह हो जाती है जब उन्हें कर्जे के बदले अपना घरबार बेच कर अपने बीवी-बच्चों समेत गांवों से पलायन करना पड़ता है। गरमी का मौसम आते ही गांवों में पानी की कमी विकराल रूप धारण कर लेती हैै। कुंआ, तालाब, पोखर और हैंडपंप सब सूख जाते हैं। अंधाधुंध खनन से यहां की नदियां भी सूखती जा रही हैं। बिना पानी के कोई किसान खेती कैसे कर सकता है? बिना पानी के सब्जियों भी नहीं उगाई जा सकती हैं। खेत और बागीचों के काम बंद हो जाने पर पेट भरने के लिए एकमात्र रास्ता बचता है मजदूरी का। हल चलाने वाले हाथ गिट्टियां ढोने के लिए मजबूर हो जाते हैं। अभावग्रस्त बुंदेलखंड से हर साल रोजी रोटी की तलाश में हजारों परिवार परदेश जाते हैं। पिछले एक दशक के दौरान करीब 45 लाख लोग यहां से पलायन कर चुके हैं। कोराना लाॅकडाउन के दौरान यही कृषक प्रवासी मजदूरों के रूप में अपार कष्टों का सामना करते हुए अपने-अपने धर लौटे और लाॅकडाउन समाप्त होने पर एक बार फिर निकल पड़े महानगरों की ओर। ये मूलतः किसान पेट की खातिर दर-दर की ठोकरें खाने वाले ‘पलायनवादी’ बन कर रह गए है। कहने का आशय यही है कि किसानों की समस्याओं को ज़मीनी स्तर पर समझने और अनेक सुधार किए जाने की आवश्यकता है। लेकिन अफ़सरशाही तरीके से नहीं अपितु उनसे चर्चा करते हुए और उन्हें साथ ले कर सुधार किए जाने की जरूरत है।

राष्ट्रीय किसान दिवस देश अैर देशवासियों के प्रति किसानों के अवदान को नमन करने का दिन है। वहीं, आज के जो हालात हैं उस पर अपनी ग़ज़ल के एक शेर के साथ किसान दिवस का आह्वान करती हूं-
       जिंदगी में आ गया  मसला बड़ा है
       अन्नदाता आज सड़कों पर खड़ा है
               ---------------------
(दैनिक सागर दिनकर में 23.12.2020 को प्रकाशित)
#शरदसिंह  #DrSharadSingh #miss_sharad #दैनिक #सागर_दिनकर #चर्चाप्लस #CharchaPlus #23दिसम्बर #RashtriyaFarmersDay #राष्ट्रीयकिसानदिवस #किसानआंदोलन #चौधरीचरणसिंह

6 comments:

  1. मीना भारद्वाज जी,
    मेरे लिए यह अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि आपने मेरे लेख को चर्चा मंच में शामिल किया है।
    आभारी हूं।
    हार्दिक धन्यवाद आपको!!!

    ReplyDelete
  2. जिंदगी में आ गया मसला बड़ा है
    अन्नदाता आज सड़कों पर खड़ा है
    शरद दी, आपके इस एक शेर ने किसान की वास्तविक स्थिति बयान कर दी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद ज्योति जी 🌹🙏🌹

      Delete
  3. किसानों की दशा पर सामायिक चिंतन ।
    हृदय स्पर्शी आलेख।

    ReplyDelete
  4. किसानों की दशा पर सामायिक चिंतन ।
    हृदय स्पर्शी आलेख।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद कुसुम कोठारी जी 🌹🙏🌹

      Delete