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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, February 10, 2021

चर्चा प्लस । सड़कों पर कहां से आते हैं ये वृद्ध भिखारी । डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस 
सड़कों पर कहां से आते हैं ये वृद्ध भिखारी
 - डाॅ शरद सिंह
       पिछले चर्चा प्लस में ‘समाज के मुंह पर ज़ोरदार तमाचा है इंदौर की घटना’ शीर्षक से इंदौर नगर निगम कर्मचारियों द्वारा भिखारी बुजुर्गों को शिप्रा के समीप छोड़ने के प्रयास की शर्मनाक घटना   की चर्चा की गई थी। बेशक भिखारी हमारे समाज की कमजोर कड़ी हैं सामाजिक कल्याण मंत्रालय के अनुसार सन् 2018 तक भारत में भिखारियों की संख्या कुल 413760 भिखारी थे। सड़कों पर ये वृद्ध भिखारी आते कहां से हैं? इस मुद्दे पर ‘चर्चा प्लस’ में प्रस्तुत है चर्चा की दूसरी कड़ी।    
        
जब चर्चा भिखारियों की चल रही हो तो महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘‘भिक्षुक’’ याद आ जाना स्वाभाविक है। स्कूल की किताब में पहली बार पढ़ी थी लेकिन मन पर एक ऐसे टैटू की तरह छप कर रह गई जो कभी मिटाया न जा सकता हो। कविता की पंक्तियां देखिए - 

पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को, भूख मिटाने को
मुंह फटी पुरानी झोली को फैलाता 
दो टूक कलेजे के करता पछताता, पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए,
बाएं से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाए
भूख से सूख होंठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?
घूंट आंसुओं के पीकर रह जाते
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए।

भिखारी शब्द से जो छवि मन में कौंधती है वह एक दीन, हीन मनुष्य की होती है। जो चलने फिरने, काम करने में अयोग्य होने के कारण अपनी जीविका कमा पाने में असमर्थ हो और भिक्षा मांगकर अपना पेट पालता हो। अंधे, लूले लंगड़े, कमजोर, लाचार व्यक्ति को देख कर मन द्रवित हो जाता है और उसके द्वारा भिक्षा मांगने पर दयाभाव उपजता ही है। कुछ भिक्षुक दूसरे प्रकार के होते हैं जो आलसी और कामचोर होते हैं। वह हृष्ट-पुष्ट और स्वस्थ होते हुए भी ढोंग करते हैं और भीख मांग कर जीवनयापन करते हैं। हमारे देश प्रत्येक स्थान पर भिक्षुक देखे जा सकते हैं। तीर्थ स्थानों, धार्मिक स्थलों, मंदिरों में तो यह बहुत अधिक संख्या में पाये जाते हैं। सड़कों, चैराहों, पर्यटन स्थलों और बाजारों में भी भिक्षावृत्ति का साम्राज्य है। भिक्षावृत्ति में अब कई प्रकार के भिखारियों ने कदम जमा लिये हैं। कुछ भिखारी अपने अंधे लंगड़े या अपाहिज होने का कारण बताते हुए भीख मांगते हैं। कुछ वेषभूषा को अजीब बना कर, लम्बे बाल करके, राख पोत कर स्वांग करके मांगते हुये दिख जाते हैं। कुछ बसों एवं रेलगाड़ियों में गा बजा कर पैसे मांगते हैं तो कुछ साधु संतों के रूप में मांगते हैं। कई अपराधी तत्व भिखारियों का वेश धारण करके महिलाओं को ठगने, बच्चों का अपहरण करने जैसा अपराध करते हैं। लेकिन वे बड़ी संख्या के भिखारी जो सड़कों, मंदिरों तथा पर्यटन स्थलों में दिखाई देते हैं, वे सब कहां से आते हैं। उनमें से अनेक बेघर होते हैं और दुर्दशापूर्ण जीवन बिताते हुए दूसरों की दया रूपी भीख पर निर्भर रहते हैं। यदि बात की जाए बुजुर्ग भिखारियों की तो इनके जीवन की पर्तें खोलते हुए वह भयावह दृश्य देखने को मिलता है जिसकी कल्पना भी सहज रूप से नहीं की जा सकती है। बच्चों और युवा भिखारियों की चर्चा बाद में पहले वृद्ध भिखारियों की बात की जाए।

भिखरियों में कुछ वृद्ध (वृद्ध का आशय वृद्धाओं से भी है) बेघर हैं और कुछ परिवार वाले होते हैं। जो वृद्ध बेघर हैं वे अपने परिवारजन द्वारा घर से निकाल फेंके गए हैं या यूं कह लें कि उन्हें अपनों के द्वारा सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। सन् 2021 के प्रथम माह की ही घटना है जब सागर जिले में दो जवान पुत्र अपने बीमार वृद्ध पिता को गांव से मोटरसायकिल पर बैठा कर शहर लाए और वहां उसे छोड़ कर भाग रहे थे कि लोगों को संदेह हुआ और उन्होंने दोनों युवकों को पकड़ कर पूछताछ की तो सच्चाई सामने आई। दोनों पुत्र अपने बीमार पिता से पीछा छुड़ाने के लिए उसे छोड़ कर भाग रहे थे। लोगों के दबाव डालने पर वे अपने पिता को साथ ले कर लौट गए। इस घटना का फाॅलोअप किसी को पता नहीं है कि उन दोनों कलियुगी बेटों ने दोबारा ऐसा प्रयास किया या नहीं? या फिर वे अपने इरादे में कामयाब हो कर अपने पिता से पीछा छुड़ा चुके हैं? ऐसी घटनाएं देश के हरेक कोने में आए दिन घटित होती रहती हैं जब युवा संतानों द्वारा अपने वृद्ध माता-पिता को घर से निकाल दिया जाता है।  हिसार में एक कलयुगी बहू ने अपनी 80 साल की सास को घर से बाहर निकाल दिया था। इतना ही नहीं बहू ने अपनी सास के कपड़े भी बाहर गली में फेंक दिए थे। सहरसा जिले मेंएक कलयुगी बेटे ने हैवानियत की हदें पार करते हुए अपने ही मां-बाप को बेरहमी से पिटाई कर घर से निकाल दिया। इस तरह घर से बाहर फेंके गए वृद्ध अशिक्षित या कम शिक्षित हैं तो उन्हें यह समझ में नहीं आता है कि इस स्थिति में वे कहां जाएं या क्या करें? दुव्र्यवहार के बावजूद संतान-मोह पुलिस के पास जाने से उन्हें रोके रखता है। ऐसी दशा में सड़कों पर भीख मांग कर अपने जीवन की गाड़ी खींचने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं बचता है। कई बार परिवार के बुरे व्यवहार और तानों से तंग आ कर वृद्ध घर छोड़ कर निकल पड़ते हैं। इसके बाद वे एक भिखारी की ज़िन्दगी जीने को विवश हो जाते हैं। सरकार की ओर से वृद्ध पेंशन जैसी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं लेकिन घर से बाहर कर दिए गए वृद्धों को इनकी कोई जानकारी नहीं होती है। यदि किसी पढ़े-लिखे वृद्ध को इनकी जानकारी हो भी तो वे अपने के द्वारा किए गए दुव्र्यवहार से इतने टूट चुके होते हैं कि उनके भीतर किसी भी तरह का अधिकार पाने या अधिकार के लिए लड़ने की इच्छा ही नहीं रह जाती है।

भिखारियों में वृद्धों की दूसरी श्रेणी वह होती है जो आर्थिक विपन्नता के कारण भीख मांगने को मजबूर होते हैं। उनके परिवार वाले भी इस तथ्य को समझते हैं कि एक बूढ़े भिखारी पर लोगों को दया आ ही जाएगी। इसलिए वे स्वयं तो भीख मांगते ही हैं, साथ ही अपने घर के वृद्धों को सड़कों पर भीख मांगने को प्रेरित करते हैं। यह विवशता की स्थिति होती है। इसमें दोषी वे नहीं अपितु उनकी परिस्थिति होती है। ऐसे भिखारी धार्मिक स्थलों के आस-पास अधिक संख्या में मौजूद होते हैं।  
       
सरकारी सर्वे के अनुसार हमारे देश की 70 प्रतिशत आबादी नौजवानों की है और यह देश के लिए एक पूंजी है, लेकिन चिंता का विषय यह भी है कि क्या यह 70 प्रतिशत आबादी हमेशा युवा ही रहेगी? जो आज युवा देश है वह वह भी बूढ़ा भी तो होगा। यूनाइटेड नेशन पॉपुलेशन फंड और हेल्पएज इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 तक भारत में बुजुर्गों की संख्या 17 करोड़ 30 लाख और 2050 में यह बढ़कर 34 करोड़ हो जाएगी अर्थात् 2050 तक हर 5 वां भारतीय 60 साल से अधिक उम्र का होगा, फिलहाल देश में 60 साल से ज्यादा उम्र के आबादी के लगभग 8 करोड़ लोग हैं। बढ़ती उम्र में प्रतिरोधक क्षमता घटने से 60 वर्ष और उससे अधिक आयु में, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, फेफड़ों की बीमारी, और हृदय की बीमारी आदि घेरने लगती है। 

अच्छे रोजगार की चाह में युवाओं का दूसरे शहरों की ओर पलायन और टूटते संयुक्त परिवारों ने वृद्धों को एकाकी कर दिया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट ‘बुजुर्गों की स्वास्थ्य समस्याएं’ बताती है कि 25 प्रतिशत भारतीय बुजुर्ग अवसाद में जी रहे हैं, 33 प्रतिशत को गठिया या हड्डी के रोग से ग्रस्त हैं, 40 प्रतिशत को एनीमिया है, गांवों में 10 और शहरों में 40 प्रतिशत को डायबीटीज है, 10 प्रतिशत कम सुनने संबंधी समस्या से गुजर रहे हैं, गांवों में 33 प्रतिशत तो शहरों में 50 प्रतिशत को हाइपरटेंशन है,  लगभग 50 प्रतिशत वृद्धों की नजर कमजोर है, 10 प्रतिशत भारतीय बुजुर्ग कहीं न कहीं  गिरकर अपनी कोई न कोई हड्डी तुड़वा बैठते हैं तो 33 प्रतिशत पाचन तंत्र के विकार से जूझ रहे हैं। इसी रिपोर्ट के अनुसार अनुमान है कि 2025 ऐसे बुजुर्गों की संख्या कुल आबादी की 12.50 प्रतिशत होगी और उनमें से 10 प्रतिशत तो पूरी तरह से बिस्तर पर होंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि 4 से 6 प्रतिशत बुजुर्ग तो हमेशा कुपोषित ही रहते हैं। भारत की मौजूदा जीवन प्रत्याशा दर 69 वर्ष है जबकि विश्व की औसत जीवन प्रत्याशा दर 72 साल है। अब यदि युवा वृद्धों को बोझ मानें और उन्हें साथ रखने को तैयार न हों तो भिखारी वृद्धों की संख्या बढ़ना तय है। यह असंवेदनशील ही नहीं बल्कि अमानवीय है। (क्रमशः) 
  
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(दैनिक सागर दिनकर 10.02.2021 को प्रकाशित)
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1 comment:

  1. अहम विषय है , चिंताजनक भी , निराला जी की इस कविता में भिखारी की दुर्दशा को बखूबी निखारा गया है ,

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