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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, July 15, 2021

चर्चा प्लस | इंसान के कारण देवता भी रह जाते हैं अधूरे | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस           
इंसान के कारण देवता भी रह जाते हैं अधूरे
- डाॅ शरद सिंह
   लगभग हर धर्म में मान्यता यही है कि इंसान को देवता ने बनाया है। मगर विडंबना यह कि इंसान ने देवता को ही पूरा नहीं होने दिया। इसका उदाहरण है पुरी की जगन्नाथ मंदिर की प्रतिमाएं। ये मूर्तियां अधूरी हैं, अधबनी हैं और साक्ष्य हैं इंसान उतावलेपन की। इंसान अपनी हठधर्मिता के कारण मानो सब कुछ खण्डित करने पर तुला है, मानवता से ले कर जंगल तक और विश्वास से ले कर भविष्य तक।

खण्डित या अधूरी मूर्ति की पूजा को अशुभ माना जाता है। खण्डित मूर्तियों की पूजा तो दूर, प्राणप्रतिष्ठा भी नहीं की जाती है। लेकिन जगन्नाथ धाम की मूर्तियां अधूरी हैं और उनकी पूजा भी की जाती है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है कि जिससे पता चलता है कि इंसान के कारण देवता भी अधूरे रह जाते हैं। कथा के अनुसार राजा इंद्रद्युम्न पुरी में मंदिर बनावा रहे थे तो भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बनाने का कार्य उन्होंने देव शिल्पी विश्वकार्मा को सौंपा। लेकिन विश्वकर्मा ने शर्त रखी कि वे मूर्ति का निर्माण बंद कमरे में करेंगे और यदि किसी ने उन्हें मूर्त बनाते देखने की कोशिश की तो वो उसी क्षण कार्य छोड़ कर चले जाएंगे। राजा इंद्रद्युम्न ने शर्त मान ली और विश्वकर्मा ने मूर्ति निर्माण का कार्य प्रारंभ कर दिया। उत्सुकतावश राजा इंद्रद्युम्न रोज दरवाजे के बाहर से मूर्ति निर्माण की आवाज़ सुनने जाने लगे। एक दिन राजा इंद्रद्युम्न को कोई आवाज सुनाई नहीं दी तो उन्हें लगा कहीं विश्वकर्मा चले तो नहीं गए। राजा से रहा नहीं गया और अपना वादा भूल कर राजा ने दरवाज़ा खोल दिया। उन्होंने जैैसे ही दरवाजा खोला देवशिल्पी विश्वकर्मा वहां से चले गएऔर मूर्तियां वैसी ही अधूरी रह गई। आज भी भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियां वैसी ही अधूरी हैं। यदि राजा इंद्रद्युम्न ने धैर्य का परिचय दिया होता जो जगन्नाथ की प्रतिमा बन गई होती। एक इंसान के कारण भगवान को भी अपने भाई-बहनों सहित अधूरा रहना पड़ा।
इंसान के कारण ही मानवता भी अब खंडित हो रही है। वही मानवता जो ईश्वर की देन मानी जाती है। कोरोना वायरस का ख़तरा अभी टला नहीं है। देश में कोरोना वायरस की दो लहरें कहर ढा चुकी हैं। आज भी दुनिया के 200 से ज्यादा देश कोरोना वायरस  का कहर झेल रहे हैं। दुनिया भर में कोरोना वायरस से 2.8 करोड़ से ज्यादा लोग संक्रमित हैं, वहीं, 9 लाख 23 हजार से ज्यादा लोग अब तक इस जानलेवा वायरस के शिकार बन चुके हैं। विगत वर्ष कोरोना वायरस की शुरुआत चीन के वुहान शहर से हुई थी। ऐसा माना जाता रहा है कि कोरोना वायरस वुहान के लैब  में ही तैयार किया गया था, लेकिन चीन इससे साफतौर पर इनकार करता रहा। लेकिन अब यह सब जान चुके हैं कि कोरोना वायरस मानव निर्मित है। चीन की वीरोलॉजिस्ट डॉ. ली मेंग यान  का दावा है कि नोवल कोरोना वायरस वुहान में एक सरकार नियंत्रित लैबोरेटरी में बनाया गया था और उसके पास यह साबित करने के लिए पर्याप्त वैज्ञानिक सबूत हैं। लैब में वायरस बना कर पूरी दुनिया पर कहर बरपा देना मानवता को पंगु बना देने के समान है। कोरोना वायरस की दूसरी लहर में शायद कोई परिवार ऐसा होगा जिसने अपने किसी न किसी रिश्तेदार को कोरोना से न खोया। दूसरी लहर किसी सुनामी की तरह आई और हज़ारों लोगों को बहा कर ले गई। तीसरी लहर का आसन्न संकट सामने खड़ा है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने एक वीडियो सन्देश में कहा कि ‘‘कोई भी देश महामारी का मुकाबला अकेले नहीं कर सकता और ना ही प्रवासन स्थिति को पूरी तरह अकेले सम्भाल सकता है। लेकिन एकजुट होकर हम वायरस के फैलाव को रोक सकते हैं। सबसे निर्बल लोगों पर होने वाले असर को कम कर सकते हैं और बेहतर तरीक़े से उबर सकते हैं जिससे सभी का भला हो सके।” निसन्देह कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर में लोगों की जिन्दगियों और आजीविकाओं पर भारी तबाही बरपा कर दी है, लेकिन सबसे ज्यादा प्रकोप सबसे निर्बल आबादी पर हो रहा है। महासचिव ने कहा कि इस आबादी में शरणार्थी, देशों के ही भीतर विस्थापित लोग और ख़तरनाक हालात में रहने को मजबूर प्रवासी शामिल हैं। ये आबादी एक ऐसे संकट का सामना कर रही हैं जिसकी तिहरी मार पड़ रही है।’’
महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि इसके अतिरिक्त प्रवासियों द्वारा अपने परिवारों और मूल स्थानों को भेजी जाने वाली धनराशि में कोविड-19 के कारण लगभग 109 अरब डॉलर तक की कमी आ सकती है। प्रवासियों द्वारा भेजी जाने वाली इस रकम पर लगभग 80 करोड़ लोगों की जिन्दगी निर्भर होती है।

जिस प्रकार सम्पूर्ण मानवता आहत् है ठीक उसी प्रकार बक्सवाहा के जंगल आहत होने जा रहे हैं। इंसान देवता के द्वारा निर्मित जंगल को खण्डित करने की तैयारी में है। वस्तुतः मध्यप्रदेश के बक्सवाहा में एक निजी कंपनी को हीरों के खुदाई करने का अधिकार मिल चुका है। इसके लिए कंपनी को 2.15 लाख जंगली पेड़ों को काटने का अधिकार भी मिल गया है। पर्यावरणविदों का कहना है कि इन जंगलों की कटाई से पर्यावरण और स्थानीय आदिवासियों को अपूर्णीय क्षति होगी। इससे केवल इस क्षेत्र में ही नहीं, बुंदेलखंड के इलाके में भी जल संकट गहराएगा क्योंकि इस क्षेत्र से होने वाला जल का बहाव ही बुंदेलखंड के क्षेत्रों तक जाता है। स्थानीय आदिवासियों ने इसे अपने जीवन पर संकट बताते हुए इस परियोजना पर रोक लगाने की मांग करते हुए एनजीटी में याचिका दाखिल कर दी है। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में राज्य सरकार ने निजी कंपनी आदित्य बिरला ग्रुप की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड को बक्सवाहा के जंगलों की कटाई करने की अनुमति दे कर आॅक्सीजन के प्राकृतिक भंडार को हीरे की चकाचैंध पर बलि देना मंजूर कर लिया है।  अनुमान है कि 382.131 हेक्टेयर के इस जंगल क्षेत्र के कटने से 40 से ज्यादा विभिन्न प्रकार के दो लाख 15 हजार 875 पेड़ों को काटना होगा। इससे इस क्षेत्र में रहने वाले लाखों वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास पर भी असर पड़ेगा। यद्यपि कंपनी और सरकार का कहना है कि ये पेड़ एक साथ नहीं काटे जाएंगे, बल्कि 12 चरणों में काटे जाएंगे और इनकी जगह 10 लाख पेड़ भी लगाए जाएंगें। देश में जानलेवा कोरोना वायरस की दूसरी लहर में लोग ऑक्सीजन नहीं मिलने के कारण तड़प-तड़प कर मरे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि ऑक्सीजन की कीमत पर हीरे क्यों ज़रूरी? जबकि एक साधारण पेड़ चार लोगों को ऑक्सीजन देता है। जबकि एक पीपल का पेड़ 24 घंटे में 600 किलो ऑक्सीजन देता है।

स्थिति की गंभीरता के प्रति लापरवाही भरा रवैया हम इंसानों को उस धरती का गुनहगार बना रहा है जिस पर सदियों से रिहाइश रही है। औपनिवेशिक काल से ही साम्राज्यवादी देशों ने प्राकृतिक साधनों का अंधाधुंध दोहन किया। बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां, संयंत्र आदि स्थापित हुए। यूरोप अमेरिका आदि देशों में जीवाश्म इंधन की खपत बढ़ती चली गई। प्राकृतिक संसाधनों के धनी देश जैसे-भारत, अफ्रिका आदि बड़े और अमीर देशों की जरूरत को पूरा करने लिए शोषित होने लगे। एक ओर जहां औद्योगिकरण की बयार, धन, ऐशो-आराम, रोमांच और जीत का एहसास लाई, वहीं पृथ्वी की हवा में जहर घुलना शुरू हो गया। इसकी परिणती पर्यावरणीय असंतुलन के रूप में सामने आई। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघलने एवं वनों की अत्यधिक कटाई से नदियों में बाढ़ आ रही है। समुद्र का जलस्तर सन् 1990 के मुकाबले सन् 2011 में 10 से 20 सेमी. तक बढ़ गया है। जिससे तटीय इलाकों में मैंग्रोव के जंगल नष्ट हो रहे हैं। परिणाम स्वरूप समुद्री तुफानों की संख्या बढ़ती जा रही है। प्रतिवर्ष समुद्र में करोड़ों टन कूड़े-कचरे एवं खर-पतवार के पहुंचने से विश्व की लगभग एक चौथाई मुंगे की चट्टाने (कोरल रीफ) नष्ट हो चूकी है। जिसमें समुद्री खाद्य प्रणाली प्रभावित होने से परिस्थिति तंत्र संकट में पड़ गया है। अनियंत्रित औद्योगिक विकास के फलस्वरूप निकले विषाक्त कचरे को नदियों में बहाते रहने से विश्व में स्वच्छ जल का संकट उत्पन्न हो गया है। विश्व के लगभग 1 अरब से अधिक लोगों को पीने का पानी नहीं मिल पा रहा है। रासायनिक खादों और किट नाशकों के अधिक प्रयोग से कृषि योग्य भूमि बंजर हो रही है। देवताओं को अधूरेपन के जिम्मेदार हम इंसान स्वयं को भी अधूरा करते जा रहे हैं जो कि चिन्तनीय है।
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(सागर दिनकर, 15.07.2021)
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