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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, August 24, 2021

पुस्तक समीक्षा | युवा पीढ़ी को समर्पित ‘श्री राम कहानी' | समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह


प्रस्तुत है आज 24.08. 2021 को #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई शायर अशोक मिज़ाज की पुस्तक "श्री राम कहानी" की  समीक्षा...
आभार दैनिक "आचरण" 🙏
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पुस्तक समीक्षा
युवा पीढ़ी को समर्पित ‘श्री राम कहानी’  
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक      - श्री राम कहानी
लेखक      - अशोक मिज़ाज
प्रकाशक    - भारतीय ज्ञानपीठ, 18, इंस्टीट्यूशनल एरिया, लोदी रोड, नई दिल्ली-3
मूल्य       - 250/-
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इस बार समीक्षा के लिए जिस पुस्तक को मैंने चुना है वह एक कहानी पुस्तक। इस पुस्तक का नाम है -‘‘श्री राम कहानी’’। इसके लेखक हैं अशोक मिज़ाज। यूं तो अशोक मिज़ाज का नाम शायरी के क्षेत्र में विख्यात है किन्तु श्रीराम की कहानी लिख कर उन्होंने अपनी शायरी के प्रशंसकों को चैंकाने वाला काम किया है। पुस्तक की विधा को प्रकाशक ने कहानी की श्रेणी में रखा है और निश्चित रूप से यह महाकाव्य के सबसे आदर्श पात्र श्रीराम के जीवन पर एक लम्बी कहानी है। इस कहानी का मूलाधार तुलसीदास कृत ‘‘रामचरित मानस’’ है। यूं तो रामकथा पर हिंदीकथा में अभी तक सबसे चर्चित लेखन रहा है नरेंद्र कोहली का। ‘‘आधुनिक तुलसीदास’’ के रूप में लोकप्रिय वरिष्ठ साहित्यकार नरेंद्र कोहली प्रख्यात कथाकार नरेन्द्र कोहली यह उपन्यास रामकथा से सामाग्री लेकर चार खंडों में पृष्ठों का एक 1800 बृहदाकार उपन्यास है। संपूर्ण रामकथा को लेकर किसी भी भाषा में लिखा गया यह प्रथम प्रकाशित उपन्यास है। इस उपन्यास के माध्यम से उनका उद्देश्य जीवन के उदात्त, महान तथा सात्विक पक्ष का चित्रण करना था। हिंदी उपन्यास की धारा बदल देने वाली इस कृति का अभूतपूर्व स्वागत हुआ। अपने इस उपन्यास के लिए नरेन्द्र कोहली ‘‘आधुनिक तुलसीदास’’ कहे जाने लगे। यूं तो ‘‘रामचरित मानस’’ की टीका सहित प्रतियां सुगमता से उपलब्ध हो जाती हैं, फिर ‘‘श्री राम कहानी’’ के रूप में ‘‘रामचरित मानस’’ का गद्यानुवाद करने की आवश्यकता अशोक मिज़ाज को क्यों महसूस हुई? इसका उत्तर लेखक ने अपनी पुस्तक के प्राक्कथन में तो दिया ही है, लेकिन इससे पहले पुस्तक के दोनों ब्र्लब पढ़ कर इसका उत्तर काफी कुछ स्पष्ट हो जाता है। पहला ब्लर्ब लिखा है जानेमाने अभिनेता एवं धर्म-दर्शन के व्याख्याकार आशुतोष राणा ने। वे लिखते हैं-‘श्रीरामचरित मानस वह पवित्र ग्रंथ है जिसने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के मात्र पूजनीय ही नहीं अपितु अनुकरणीय- धारणीय चरित्र को प्रत्येक जन के मन, मानस और हृदय सिंहासन पर सदा के लिए प्रतिष्ठित कर दिया। कुछ इसी तरह का उद्यम श्री अशोक मिज़ाज जी ने किया है, श्री अशोक जी यूं तो अपने पद्य के लिए विख्यात हैं किन्तु उन्होंने श्रीरामचरित मानस का अत्यंत सरल हिंदी भाषा में गद्यानुवाद कर केइसे आज की उस युवा पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास किया, जो संस्कृत या अवधी भाषा को न जानने के कारण श्रीरामकथामृत पढ़ने व समझने से वंचित रह गए हैं।’’
पुस्तक का दूसरा ब्लर्ब लिखा है डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के हिन्दी एवं संस्कृत के विभागाध्यक्ष प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने। वे पुस्तक पर टिप्पणी करते हुए लिखते हैं कि -’‘हिंदी और उर्दूं के मशहूर शायर अशोक मिज़ाज ने रामचरितमानस को जस का तस, सरस एवं सहज हिन्दी भाषा में श्रीराम कहानी के रूप में गद्यांतरित करने का सुंदर प्रयास किया है। ..... निस्संदेह श्रीराम कहानी अवधी भाषा से अनभिज्ञ रामकथा प्रेमियों के लिए एक अनूठा उपहार है। हमारे युवाओं और बच्चों को तुलसी के रामचरितमानस से परिचित कराने का यह स्तुत्य प्रयास कहा जाएगा।’’
‘‘श्री राम कहानी’’ के लेखक अशोक मिज़ाज अपने ‘‘प्राक्कथन’’ में इस पुस्तक के लिखने के तीन उद्देश्य बताते हैं। अपने पहले उद्देश्य की चर्चा करते हुए वे लिखते हैं कि ‘‘यह पुस्तक उन पाठकों के लिए है जो धर्मग्रंथों को छूने में संकोच करते हैं, एक भय-सा महसूस करते हैं। कम उम्र के लोग सोचते हैं कि ये तो पंडितों, बूढ़े लोगों और माता-पिता के पढ़ने के लिए है और वयस्क इसलिए नहीं छूते कि वे अपने आपको अपात्र मानते हैं।’’ अशोक मिज़ाज आगे लिखते हैं कि -‘‘ऐसे पाठकों (भक्तों) के लिए यह पुस्तक एक सच्ची कहानी के रूप में प्रस्तुत की जा रही है जिसमें कोई चित्र इत्यादि भी प्रकायिात नहीं किए गए हैं।’’
इस पुस्तक के लेखन का दूसरा उद्देश्य जो लेखक ने बताया है वह इस प्रकार है कि -‘‘तुलसीदास जी ने अवधी में रामचरित मानस लिखी है। यह एक क्षेत्रीय भाषा है जो सभी के समझ में नहीं आती है। और यह पद्य रूप में है। सभी में कविता की समझ भी नहीं होती है। जब मैंने भी रामचरित मानस पढ़ी तो मुझे भी यही दिक्कतें आईं।’’ इस ‘दिक्कत’ के निवारण के लिए लेखक ने जो तय किया वह उन्हीं के शब्दों में-‘‘मैंने इसे सरल हिन्दी में गद्यरूप में कहानी की तरह पिरोया है। यह राम कहानी मैंने परमपूज्य गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस के गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित एवं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार की टीका सहित पुस्तक के आधार पर प्रस्तुत की है।’’  
तीसरे उद्देश्य के बारे में बताते हुए अशोक मिज़ाज स्पष्ट करते हैं कि इस पुस्तक के लेखन द्वारा वे तुलसीदास कृत ‘‘श्रीरामचरित मानस’’ के श्रीराम के महत्व को स्मरणीय बनाए रखना चाहते हैं।  
समूचे विश्व में वाल्मीकि रामायण, कंबन रामायण और रामचरित मानस, अद्भुत रामायण, अध्यात्म रामायण, आनंद रामायण आदि 300 से अधिक ‘‘रामायण’’ प्रचलित हैं। वाल्मीकी रचित ‘‘रामायण’’ को सबसे पुराना रामायण माना जाता है। भारतीय साहित्यिक परंपरा में इसे उपजिव्य काव्य भी कहा जाता है, क्योंकि इस महाग्रंथ के आधार पर अन्य साहित्य विकसित हुआ है। इसके बाद तुलसीदास के द्वारा लिखा गया ‘‘श्रीरामचरितमानस’’ का स्थान है। सर्वविदित है कि रामकथा उन श्रीराम की जीवनकथा है जो आज से हजारों साल पहले त्रेता युग में भगवान विष्णु के अवतार के रूप में प्रकट हुए। रामकथा की महत्ता भारत में ही नहीं वरन् विदेशों में भी व्याप्त है। रामकथा के महत्व को निरुपित करते हुए तुलसीदास ने लिखा है-
महामोह  महिषेसु  बिसाला ।  
रामकथा  कालिका  कराला ।।
रामकथा ससि किरन समाना ।
संत चकोर करहिं जेहि पाना ।।
(बालकाण्ड, 47)
अर्थात् जीव महामोह में पड़ा हुआ है। यह मोह विशालकाय महिषासुर की तरह है और श्रीराम कथा इस राक्षस का वध करन के लिये काली देवी के समान समर्थ और शक्तिशाली हैं। रामकथा चंद्रमा की किरणों के समान है जिसकी ओर संत समाज चकोर की भांति देखता रहता है और आनन्दित होता है। ‘‘श्रीरामचरित मानस’’ के बालकाण्ड (35) में तुलसीदास ‘‘श्रीरामचरित मानस’’ नाम का औचित्य भी बताते हैं-
रामचरितमानस    एहि    नामा।    
सुनत    श्रवन   पाइअ  बिश्रामा।।
मन करि बिषय अनल  बन  जरई।  
होई  सुखी  जौं  एहिं  सर  परई।।
रामचरितमानस   मुनि    भावन।  
बिरचेउ   संभु   सुहावन  पावन।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन।
कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन।। (बालकाण्ड, 35)

 आशय यह कि श्रीराम की कथा का नाम ‘‘श्री रामचरितमानस’’ इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं। जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनेंगे तो यह उनके हृदय में पहुंचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी। श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है। जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
जनमानस में राम कथा क्यों रची-बसी है? इसीलिए कि राम का चरित्र आदर्श पुत्र, आदर्श शिष्य, आदर्श भाई, आदर्श मित्र, आदर्श वीर और आदर्श राजा के रूप में सभी को आकर्षित करता है। राम का रामत्व उनकी संघर्षशीलता में है, न कि देवत्व में। राम के संघर्ष से साधारण जनता को एक नई शक्ति मिलती है। राम उदारता, अंतःकरण की विशालता एवं भारतीय चारित्रिक आदर्श की साकार प्रतिमा हैं। रामचरित मानस महज एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं बल्कि यह सामाजिक संबंधों की आचार संहिता भी है। इस ग्रंथ में गोस्वामी तुलसीदास जी ने भाई से भाई का, पति से पत्नी का, सेवक से स्वामी का, माता से पुत्र का, मित्र का अपने मित्र से, राजा का अपनी प्रजा के साथ, भाई का बहन के साथ किस तरह का आचरण होना चाहिए इसकी चर्चा विभिन्न पात्रों के माध्यम से की है। राम चरित मानस सनातन सभ्यता व संस्कृति का साक्षात प्रतीक है। इसके नायक प्रभु श्रीराम ने अपने आचरण व व्यवहार से उदात्त चरित्र का एक अदभुत प्रतिमान स्थापित किया है। देखा जाए तो श्रीराम के नाम एवं उनके चरित्र के महत्व को समझते हुए तुलसीदास ने ऐसे विपरीत सामाजिक, राजनीति एवं धार्मिक दशा में ‘‘श्रीरामचरित मानस’’ की रचना की थी जब समाज और राजनीति विदेशी आक्रांताओं के धार्मिक दबाव में जी रहा था। ‘‘श्रीरामचरितमानस’’ 15वीं शताब्दी में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखा गया। स्वयं तुलसीदास ने रामचरित मानस के बालकाण्ड में लिखा है कि उन्होंने रामचरित मानस की रचना का आरम्भ विक्रम संवत 1631 (1574 ईस्वी) को रामनवमी के दिन (मंगलवार) किया था। तुलसीदास मुगल शासक अकबर के समकालीन थे। अकबर के पूर्ववर्ती शासकों ने जिस तरह धार्मिक कट्टरता का परिचय दिया था, उससे भारतीय जनमानस उबरना चाहता था और तब तुलसीदास ने श्रीराम की कथा को जनभाषा में जननायक की कथा श्रीरामचरित मानस के रूप में सृजित किया। यदि वर्तमान वैश्विक परिवेश पर दृष्टिपात किया जाए तो आज भी अस्थिरता और नैराश्य दिखाई देती है। कोरोना महामारी, आर्थिक संकट, बेरोजगारी, आतंकवाद आदि ने जनमानस को विचलित कर रखा है। भारत इससे अछूता नहीं है। ऐसे वातावरण में एक बार फिर रामकथा सुदृढ़ संबल बन सकती है।
सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण कथात्मक भाषा-शैली में लिखी गई पुस्तक ‘‘श्री राम कहानी’’ सुगमता से जनरुचि का विषय बन सकती है। जैसा कि इस पुस्तक का उद्देश्य युवाओं को रामकथा की ओर आकर्षित करना है तो आशा की जा सकती है कि यह पुस्तक अपने उद्देश्य को पूरा कर सकेगी और युवाओं में रामकथा तथा धर्मग्रंथों के प्रति रुचि बढ़ा सकेगी। रामकथा जीवन और समाज का दर्पण है। लेखक ने पुस्तक में श्रीराम के जीवन के प्रसंगों को श्रीरामचरित मानस के अनुरूप रखते हुए श्रीराम की कथा प्रस्तुत करने का सकारात्मक प्रयास किया है। ‘‘श्रीरामचरित मानस’’ में यह प्रसंग वर्णित है कि पुष्प पाकर मुनि विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण दोनों भाइयों को आशीर्वाद दिया कि तुम्हारे मनोरथ सफल हों-  
सुमन पाइ मुनि पूजा कीन्ही।
पुनि असीस दुहु भाइन्ह दीन्ही।।
सुफल मनोरथ होहुं तुम्हारे।
रामु लखनु सुनि भय सुखारे।।
    ठीक इसी प्रकार इस पुस्तक के उद्देश्य की सफलता के लिए कहा जा सकता है कि -‘‘सुफल मनोरथ होहुं तुम्हारे।’’ यह पुस्तक एक अच्छे उद्देश्य और एक अच्छे प्रयास के रूप में स्वागत योग्य एवं पठनीय है।  
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