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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, August 26, 2021

बुंदेली व्यंग्य | पैले बनीं, के पैले खुदीं | डॉ शरद सिंह | पत्रिका में प्रकाशित

मित्रो, 15 अगस्त 2021 को #पत्रिका समाचार पत्र में मेरा बुंदेली व्यंग्य "पैले बनीं, के पैले खुदीं " प्रकाशित हुआ था... आप भी पढ़ें...आंनद लें....
#Thank you #Patrika
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बुंदेली व्यंग्य    
पैले बनीं, के पैले खुदीं
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
        ‘‘काए, नोने भैया! आज का हो गओ, जो ऐसो मों लटकाए बैठे हो?’’ मैंने पूछी नोने भैया से। काए से के नोने भैया को मों तभई लटकत आए जबे उने कोनऊ गम्म खान लगत आए। 
‘‘कछु नईयां!’’ नोने भैया मरी-सी आवाज में बोले।
‘‘ये लेओ, अब अपनी जे बिन्ना से ने छिपाओ। तुमाए मों पे तुमाई चिन्ता की फिलम चल रई है, बाकी डिस्क तनक गड़बड़ आए सो साफ नई दिखा रओ के पर्दा पे का चल रओ आए।’’ मैंने कही। मोरी बात सुन के नोने भैया ने मुस्का दओ।
‘‘जे भई न बात! चलो अब बता भी देओ। जे कोनऊ जेम्सबांड की फिलम नइयां के अखीरी में पता चले के कतल कोन करो हतो।’’ मैंने तनक और पिंची-सी करी। सो, काम कर गई पिंची।
‘‘हऔ, जे तो शाहरुख की फिलम आए जीमें सुरुअई से सबई खों पता रैत है के कौन ने कतल करो।’’ नोने भैया बोले।
‘‘सो, अब बताओ के का भओ? मुतकी पहेलियां-सी ने बुझाओ।’’
‘‘हमें जे समझ में ने आ रई बिन्ना के हमाई सिटी स्मार्ट कब लौं बनहें?’’ नोने भैया कहत भए, फेर के चिन्ता में डूब गए। 
‘‘ऐं, सो तुम जे आ सोच रए हो? हमने तो सोची के कोनऊ गंभीर बात आए।’’ मोए बड़ो अचरज भओ।
‘‘काए, जे का गंभीर बात नइयां?’’
‘‘तुम काए चिन्ता कर रए? हो जे हे स्मार्ट। और होत्तो जा रई आए, तुमें दिखात नइयां का? बे उते सिविल लाईन के पांछू आई लव सागर लिखो है। सबरे उते जा के सेल्फी-सेल्फी खेलत हैं। तुमने तो सोई अपनी फोटू खिंचवाई हती उते’’ मैंने सुरता कराई।
‘‘हऔ, ओ बोई के पांछू वारी घास-पतूले की दीवार गिर गई हती, बा भुला गईं?’’ नोने भैया चिढ़ के बोले।
‘‘बे तो अपनी सिटी में मुतकी जांगे लगी हैं, कोऊ कहां-कहां लो सम्हारे? एकाध गिर गई सो फेर के खड़ी कर दई। अब ईमें मूंड़ खराब करबे की का बात है?’’ मैंने पूछी।
‘‘चलो घास-पतूला की छोड़ो, झील की बोलो?’’ 
‘‘का बोले?’’
‘‘झील तो ने सुधरी बाकी गिलावा मच गओ। हाय, कित्ती नोनी झील हती, अब का हो के रै गई। सुंगरा बी न लोटें अब तो उते।’’ नोने भैया बोले।
‘‘अब ऐसो बी ने कहो। सब ठीक हो जेहे।’’
‘‘तुमें का बताएं, बिन्ना! हमने अपने अनवरसिटी वारे दिनन में नाव पे सैर करी हती ऊ झील में, वो बी एक मोड़ी के संगे। हमाए साथ पढ़त्ती।’’ नोने भैया खयालन में डूबत भए बोले।
‘‘सो अब वो कहां गई? कहीं हमाई भौजी तो ने आए वो?’’ मैंने पूछी।
‘‘अरे, भली कहीं! कहां वो गोरी-चिट्टी पहाड़न औ कहां तुमाई भौजी, करिया-सी भंटा-सी।’’ नोने भैया ठंडी आह भरत बोले।
‘‘जो का कै रए भैया? भौजी के लाने कछू और कही तो सो हमसे चुप ने रई जेहे, उनके ऐंगर सबलो हाल सुना देबी।’’ हमें नोने भैया की लवस्टोरी ने पोसाई।
‘‘अरे, बा तो ऊंसई कै दई हमने। अब तो खबरई नईयां ऊकी। बाकी जे झील को नास कर दओ, सबने मिल के।’’ नोने भइया को सुर फेर के झील पे पोंच गओ।
‘‘अरे झील को छोड़ो भैया, तुमें सड़कें ने दिखा रईं का? उने देख के तो लगत आए के बे सिमेंट या डामल की नोईं, गिलावे की बनी आएं। जैसे बरफ वारी स्लेज गाड़ी चलत आए न, ऊंसई गिलावे वारी स्लेज गाड़ी मंगा लेओ चइए।’’ मोसे बी चुप ने रओ गओ। 
‘‘जे कही तुमने हमाए मन की बात, बिन्ना! जुग-जुग जियो! जे ई सब तो हम सोच रए के कां तो हमाई सिटी स्मार्ट बनबे जा रई हती और कां अब गिलावा सिटी बन के रै गई आए। जो का हो रओ?’’ नोने भैया चहक के बोले। उने मोरो समर्थन जो मिल गओ।
‘‘गम्म खाओ भैया! एक दिना हमाई सिटी सोई बन जेहे स्मार्ट। अभई तो हमाई सड़कें हड्डियन के डाक्टर की फ्रेंडली आएं।’’ 
‘‘हऔ, भली कही! ऊंसई हमाए इते अंडा-मुर्गी को खेल चलत रैत आए। पैले सड़क बनत है, फेर टेलीफोन वारे, मोबाईल वारे, पाईप वारे, नाली वारे, जे वारे-बे वारे, सबरे वारे जमीन खोदत की मशीन ले के सड़कई खोद देत आएं। फेर पाईप, नाली, तार को काम हो जात आए तो फेर के सड़क बनत है। ओ, सड़क बन के तैयार ने हो पाए के फेर के कोनऊ ने कोनऊ सड़क खोदबे के लाने दनदनानत भओ आ जात है। जेई समझ में न आ पात है के पैले सड़क बनी, के पैले सड़क खुदी? रामधई, सोच-सोच के मूंड़ पिरान लगत आए।’’ नोने भैया अपनो मूंड़ पकड़त भए बोले।
‘‘येल्लो, अब सोच-सोच के तुमई पिछड़ रए? अरे भैया, स्मार्ट बनने है तो सोच-फिकर छोड़ो। तुम सोई अपने घरे घास-पतूला लगाओ, ऊमें पानी डारो और खुस हो जाओ। स्मार्ट सिटी के लाने सोचबे खों हमाए नेता औ अधिकारी तो हैं, तुम ने फिकर करो! जे ऊंसई बरसात को सीजन आए, सो भुंटा खाओ औ खुस हो जाओ!’’
‘‘हऔ, बिन्ना! जे सही कही। अबई हम तुमाई भौजी से भुंटा भूंजबे के लाने कहत हैं, मनो पैले भुंटा लाने पड़हे।’’ नोने भैया ने भुंटा की सुनी सो स्मार्ट सिटी की भूल गए। और गिलावा में फिसलत भए चल पड़े भुंटा लाने। हम सबई तो हमाए नोने भैया घांई आएं के भुंटा याद आ गओ तो पिराबलम भूल गए। अब कहां की झील, कहां की सड़कें, कहां के गढ़ा और कहां को गिलाबो! सो भैया, सबई जने भुंटा खाओ औ खुस हो जाओ!     
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