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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, February 17, 2022

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय की दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम सत्र की अध्यक्षता

"हर शोधकार्य डिवोशन/ समर्पण की मांग करता है। जब आप अपने काम से तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं तभी उसे बेहतर ढंग से कर पाते हैं।" यह बात मैंने प्रथम सत्र की अध्यक्ष के रूप में शोध छात्र, छात्राओं से कही। मैंने उन्हें क्लाईमेट चेंज के ख़तरों से आगाह करते हुए "खजुराहो की मूर्तिकला में जैव विविधता" के बारे में भी जानकारी देते हुए चंदेलों की जैवविविधता के प्रति जागरूकता से परिचित कराया। अवसर था  प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव संदर्भ में आयोजित "बुंदेलखंड की सांस्कृतिक विरासत" विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम दिवस के प्रथम सत्र का।
     प्रथम सत्र के ठीक पूर्व उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता की विश्वविद्यालय की कुलपति विदुषी प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता ने तथा मुख्य अतिथि थे पद्मश्री श्री राम सहाय पांडे उद्घाटन सत्र में बीज वक्तव्य प्रस्तुत किया प्रो. बी के श्रीवास्तव ने। 
🚩 मैं आभारी हूं डॉ नागेश दुबे अध्यक्ष प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व की जिन्होंने मुझे शोधार्थियों से सीधा संवाद करने का अवसर प्रदान किया तथा सत्र की अध्यक्षता सौंपी।🙏 
❗️आभारी हूं उस 'पृथ्वी धारित वाराह' प्रतिमा के स्मृतिचिन्ह के लिए जो संग्रहालय की द्वार प्रतिमा होने के साथ ही उसका प्रतीक भी है। 🙏
   💐इस अवसर पर डॉ सरोज गुप्ता और मैंने पद्मश्री श्री राम सहाय पांडे को शाल ओढ़ा कर व्यक्तिगत रूप से उनका सम्मान किया।
     🌷आयोजन में डॉक्टर आरपी सिंह, डॉ सुरेंद्र यादव का विशेष योगदान रहा तथा डॉ प्रदीप शुक्ला, डॉ ए के त्रिपाठी, डॉ कविता शुक्ला झांसी से आईं  डॉ उमा पाराशर एवं उज्जैन से पधारे डॉक्टर परमार की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। प्रथम सत्र के मुख्य अतिथि थे लोकगीतों के मर्मज्ञ श्री हरगोविंद विश्व तथा संचालन किया डॉ सुरेंद्र यादव जी ने।
📌Date : 17.02.2022

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