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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, April 27, 2022

चर्चा प्लस | ज़रूरी है निरंतर जाप करना ‘प्रशासन चालीसा’ का | डॉ. (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर


चर्चा प्लस 
ज़रूरी है निरंतर जाप करना ‘प्रशासन चालीसा’ का
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह                                                                                                                                                                 
          हम वक़्तीतौर पर जागते हैं, मांगे करते हैं और मांगे पूरी करवाने की ज़िद करने के पहले ही चादर ओढ़ कर सो जाते हैं। गोया भूल जाते हैं कि हमारी कुछ ज़रूरतें थीं कि जिनकी हमने मांग की थी कि जो पूरी नहीं हुई हैं। हम नेताओं को कोसते हैं कि उन्हें हमारी पांच साल बाद याद आती है लेकिन हमें खुद भी तो अपनी मांगों की ऐन चुनावों के ठीक पहले याद आती हैं। इसी चर्चा पर चलिए, कुछ मेमोरी-रीकाॅल कर ली जाए।


आने वाली नस्लें ख़ुद हल तलाश कर लेंगी
आज के मसाइल को ख़ुश-गुमान रहने दो
           - अजरा नकवी का ये शेर चाहे जिन समस्याओं पर कहा गया हो लेकिन हम सागर वासियों पर एकदम फिट बैठता है। हमारी बहुत-सी मांगे हैं जिनके बारे में हम समय-समय पर जागते हैं और फिर चादर ओढ़ कर, घोड़े बेंच कर सो जाते हैं या फिर झपकियां लेते रहते हैं। शायद यह सोच कर कि आने वाली पीढ़ी अपने लिए इंतेजाम खुद ही कर लेगी। तब तक हम लम्बी झपकियां ले लेंगे। अगर जागे भी तो एक-दूसरे की कमियां गिनाते हुए, बगलें झांकते हुए काम चला लेंगे।
अभी हाल ही में एक मजेदार घटना घटी। हुआ यूं कि रेलवे स्टेशन पर चौबीस घंटे, सातों दिन पेयजल सेवा का शुभारंभ था जिसके संचालक श्रीराम सेवा समिति के श्री विनोद तिवारी हैं। उस शुभारंभ कार्यक्रम में मैं भी शामिल हुई। मैंने भी रेल यात्रियों को पानी पिला कर जलसेवा की। जब वहां से प्रस्थान का समय आया और हम कुछ लोग प्लेटफाॅर्म से बाहर आए तो एक सज्जन ने सागर रेलवे स्टेशन की नाम पट्टिका की ओर इशारा करते हुए मुझे उलाहना दिया-‘‘मैडम, आप तो कह रही थीं कि स्टेशन के नाम की स्पेलिंग बदल दी गई है और अब सोगर के बदले सागर ही लिखा जाएगा। मगर यहां तो अभी भी सागोर स्पेलिंग लिखी हुई है।’’ वे तंज़ करना चाह रहे थे कि यानी या तो मैंने झूठ बोला है या फिर मेरा प्रयास पूरी तरह सफल नहीं हुआ है। मैंने उन सज्जन से कहा,‘‘भैया, रेल मंत्रालय के तरफ से मंजूरी का समाचार तो अखबारों में भी छपा था, अब ये पट्टिका जल्दी बदलवाने का प्रयास आप लोग कर डालिए। आपका भी कुछ योगदान हो जाएगा।’’
‘‘नहीं-नहीं, वो तो समाचार मैंने भी पढ़ा था और ये पट्टिका बदली भी जाएगी। मैं तो ऐसे ही कह रहा था।’’ इतना कहते हुए वे वहां से खिसकने के लिए अपने एक संगी-साथी को आवाज़ देने लगे। जुमला उछालना और कुछ कर गुज़रने की इच्छा रखना, इन दोनों में बहुत अंतर होता है। पिछले चुनावों के पहले जोरदार तरीके से एक मांग उभर कर सामने आई थी- सागर में आईटी पार्क बनाए जाने कीै। मांग में दम थी। आईटी पार्क को इस तरह से डिज़ाइन किया जाता हैं कि जिससे प्रत्येक आर्थिक इकाई पर अर्थव्यवस्थाओं का लाभ मिले। भारत के सभी प्रमुख शहरों में अब कम से कम एक आई टी पार्क है जिसमें परिसर में सभी आवश्यक सुविधाएं हैं। जैसे राजीव गांधी चंडीगढ़ प्रौद्योगिकी पार्क चंडीगढ़, क्रिस्टल आईटी पार्क इंदौर, वेंकटदात्री आईटी पार्क बैंगलोर, ईन पार्क और डीएलएफ आईटी सेज हैदराबाद है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत में कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां है। उनमें से प्रमुख हैं - इंफोसिस, टी.सी.एस. , विप्रो, सत्यम, इंटेल, माइक्रोसॉफ़्ट, टी.आई., गूगल, याहू ,सैप लैब्स इंडिया, ऑरेकल आदि।
यदि अतीत में झांकें तो भारत में आई टी उद्योग को सन् 2004 में करीब पचीस बिलियन अमेरिकी डालर से अधिक का राजस्व मिला जिसमें करीब सत्रह से बीस बिलियन डालर की आय अकेले निर्यात से प्राप्त हुई। भारत में इस उद्योग में एक मिलियन से भी अधिक लोग सीधे रोजगार पा रहे हैं जबकि 2.5 मिलियन से ज्यादा लोग अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़ चुके हैं। आईटी पार्क के अंतर्गत विभिन्न देशों में उत्पाद इकाइयां बनाना, हर देश में उपलब्ध श्रेष्ठ संसाधन का उपयोग करना, विभिन्न देशों से काम करते हुए पूरे 24 घंटे अपने ग्राहक के लिए उपलब्ध रहना और ऐसे डेटा सेंटर बनाना जो कहीं से भी इस्तेमाल किए जा सकें, ये कुछ ऐसे कार्य हैं जिनसे देश की अर्थव्यवस्था के साथ ही बेरोजगारों को भी रोजगार का बहुत बड़ा क्षेत्र प्राप्त हुआ है।
भारत की वर्तमान प्रगति में आईटी पार्क का बहुत बड़ा योगदान है। भारतीय आईटी उद्योग देश का पहला वैश्विक व्यवसाय सिद्ध हो रहा है। भारत की टाटा कंसलटेंसी ने ब्रिटेन में प्रमुख कंप्यूटर प्रदाता कंपनी के रूप में वैश्विक बाजार में अपनी जगह बनाई है। सूचना प्रौद्योगिकी के लचीले व्यवसायिक नियमों के कारण आज कई कंपनियां ज्यादा कुशलतापूर्वक अपना काम कर रही हैं। भारतीय साफ्टवेयर और आईटीईएस उद्योग का पिछले छह वर्ष के दौरान करीब 30 प्रतिशत के सीएजीआर की दर से विकास सामने आया है।
माइक्रोसाफ्ट, ओरेकल, एसएपी जैसे साफ्टवेयर उत्पादों की बड़ी कंपनियों ने अपने विकास केंद्र भारत में स्थापित किए हैं। मध्यप्रदेश का ही उदाहरण लें तो मध्य प्रदेश औद्योगिक विकास केन्द्र निगम (एमपीएवीकेएन) की भविष्य संबंधी परियोजना, आईटी पार्क (सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क) को इंदौर में एक उच्च तकनीकी औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। यह उच्च तकनीकी क्षेत्र, सभी विकासशील सूचना प्रौद्योगिकी संस्थारपना (सेटअप) में विश्व स्तर के उत्पादों और समाधानों को प्रस्तुीत करने में आईटी कंपनियों को सक्षम बनायेगा। व्यापार नीतियों में कुशल समर्थन के साथ, तेजी से विकास कर रहे सभी क्षेत्रों में इस परियोजना को प्रगतिशील बनाने का एक सुनहरा अवसर है। आईएसडीएन लाइनों, उपग्रह सेटअप, ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क, और अन्य बुनियादी जरूरतों के साथ, आईटी पार्क भविष्य के लिए एक कॉस्मो सॉफ्टवेयर शहर के रूप में विकसित किया जा रहा है। भोपाल आईटी पार्क में एलईडी बल्ब का उत्पादन शुरू हो चुका है। ग्रीन सर्फर नामक यह कंपनी यहां बने ऊर्जा बचत करने वाले ये बल्ब पंजाब, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और गुजरात सहित पांच राज्यों को सप्लाय करने लगी है। एमपी ऑनलाइन, सोलर प्लांट बनाने वाली कंपनी डाउसन, एक्सट्रा नेट, सर्विन बीपीओ, पी नेट और स्मार्ट चिप जैसी कंपनियां यहां आ चुकी हैं। अब सागर जिले को भी प्रतीक्षा है एक आई टी पार्क की जिससे स्थानीय युवाओं को उनकी योग्यता के अनुरुप रोजगार उपलब्ध करा सके और उन्हें वैश्विक विकास से सीधा जोड़ सके।
ये सितम्बर 2018 की बात है जब मध्यप्रदेश में इन्दौर, भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर के बाद सागर में भी आई पार्क बनाए जाने के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन चलाया गया था। प्रदेश शासन द्वारा स्वीकृति के बाद जिला प्रशासन द्वारा पार्क के लिए ज़मीन भी तय की गईं। मध्यप्रदेश राज्य इलेक्ट्राॅनिक्स विकास निगम पहले ही इसे हरी झंडी दे दी थी। सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री के रूप में गृहमंत्री भूपेन्द्र सिंह पहले ही यह कह चुके थे कि आई टी माध्यम से प्रदेश में कौशल विकास कार्यक्रम भी संचालित होने चाहिए जिससे युवाओं को रोजगार मिलेगा, वहीं दूसरी ओर आई टी कम्पनियों को प्रशिक्षित मानवक्षमता का लाभ मिल सकेगा। विडम्बना यह है कि सागर में आई टी पार्क की प्रतीक्षा कुछ अधिक ही लम्बी हो गई जिससे अब नागरिकों के धैर्य का बांध टूटने लगा और वे जुलूस निकाल कर, ज्ञापन सौंप कर अपनी मांग के पक्ष में आवाज उठाने लगे। स्थानीय गैरराजनीतिक संस्था ‘‘गतिविधि’’ ने इस दिशा में हस्ताक्षर अभियान चलाया, पोस्टकार्ड अभियान चलाया, जनजागृति अभियान चलाया और जिला कलेक्टर को ज्ञापन भी सौंपा। संस्था के सचिव शिवा पुरोहित कहा कि ‘‘यह हमारे युवाओं के रोजगार का रास्ता खोल देगा, इसलिए हम तब तक आंदोलन जारी रखेंगे जब तक कि सागर में आई टी पार्क स्थापित करने की दिशा में काम शुरू नहीं हो जाता है।’’
दुर्भाग्य से 2019 में कोरोनाकाल आ गया। दो साल के इसे बड़े व्यवधान ने येाजनाओं और मांगों को भारी चोट पहुंचाई लेकिन अब जब माहौल सामान्य हो चुका है तब इस मांग के अपडेट के बारे में चर्चा होना चाहिए। मगर लगता है मानो आईटी पार्क की मांग आने वाले चुनावी माहौल की प्रतीक्षा में कहीं किसी इमारत छांव में झपकियां ले रही है। पेड़ की छांव तो वैसे भी कम बची है शहर में। सड़कों के चैड़ीकरण की स्मार्टनेस ने कई दशकों पुराने वृक्षों का सफ़ाया कर दिया।
दरअसल, आईटी पार्क, नाम पट्टिका या भारत रत्न जैसी मांगों के मामले में प्रशासन को ‘‘प्रशासन चालीसा’’ का पाठ सुनाने जरूरत होती है। प्रशासन हर मामले को निपटाने में सक्षम होता है बस, उसे उसकी शक्तियां याद दिलाना भी जरूरी होता है। यदि मह मांग करने वाले अपटेड ही न मांगे तो प्रशासन के पास बहुत से ठंडे बस्ते होते हैं जिनमें मांगों को तहा कर रख दिया जाता है।
हम आज गर्व करते हैं कि राई नर्तक एवं मृदंगवादक राम सहाय पांडे  जी  को भारत सरकार ने ‘‘पद्मश्री’’ से सम्मनित किया। लेकिन हम यदि अपनी गतिविधियों को खंगाल कर देखें तो इसमें हमें अपनी कोई मांग, कोई योगदान दिखाई नहीं देगा। यह सम्मान उन्हें मिला है तो इसलिए कि हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चाहते हैं कि जिनकी पहुंच से ये सम्मान दूर हैं किन्तु वे इस तरह के सम्मान के योग्य हैं तो उन्हें ऐसे सम्मान अवश्य मिलने चाहिए। सारांशतः यह कि इसका श्रेय प्रधानमंत्री जी को है न कि हम मांगकर्ताओं को। यह बात कहने, सुनने, पढ़ने में कठोर अवश्य लगेगी लेकिन सच से हम कब तक मुंह मोड़ कर बैठे रहेंगे।
आईटी पार्क तथा आवागमन की सुविधा से जुड़ी हुई एक और मांग थी -हवाईयात्रा सेवाओं की। यह मांग भी सो रही है आने वाले चुनाव की सरगर्मियों की प्रतीक्षा में। सागर से भोपाल अथवा जबलपुर जा कर हवाई जहाज पकड़ना समय और पैसे दोनों के हिसाब से मंहगा और असुविधाजनक पड़ता है। यदि छोटे विमानों की सेवा द्वारा सागर को देश के प्रमुख नगरों से जोड़ दिया जाए तो भोपाल, जबलपुर जा कर हवाई जहाज पकड़ने वालों की जिन्दगी आसान हो जाएगी। टैक्सी का खर्चा बचेगा। समय बचेगा और बाहरी निवेशक भी यहां आने में सुविधा महसूस करेंगे। लेकिन यह  सब तभी जल्दी संभव है जब हम अपनी नींद से जाग कर, आलस को त्याग कर ‘‘प्रशासन चालीसा’’ और ‘‘जनप्रतिनिधि चालीसा’’ का निरंतर शांतिपूर्वक पाठ करते रहेंगे। यानी हमारी जागरूकता में ही हमारी प्रगति है।
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(27.04.2022)
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