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My Editorials - Dr Sharad Singh

Sunday, April 3, 2022

प्लीज़ कॉल मी हनी | व्यंग्य | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नवभारत

#ThankYou #Navbharat 🌷
नवभारत में प्रकाशित | व्यंग्य
प्लीज़ काॅल मी हनी!
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘अप्सरा उर्वशी! आजकल मेनका दिखाई नहीं दे रही है? मैंने भी उसे कहीं नहीं भेजा, फिर वह कहां व्यस्त है?’’ देवराज इन्द्र ने अपने सिंहासन पर पहलू बदलते हुए उर्वशी से पूछा। 
‘‘बाॅस, फिलहाल बड़े चुनाव निपट गए। अब तो मेनका वेकेशन पीरियड एन्ज्वाय कर रही होगी।’’ उर्वशी ने लापरवाही से उत्तर दिया।
‘‘लेकिन ये तो गलत है। मैं देवराज इन्द्र हूं और मुझसे अनुमति लिए बिना छुट्टी मनाना, सारासर गलत है। यह मेरे दरबार के नियमों का सरासर उल्लंघन है।’’ देवराज इन्द्र की भृकुटी तन गई। वे एक टिपिकल बाॅस की तरह व्यवहार पर उतर आए।
‘‘लेखापाल को बुलाऊं क्या?’’ उर्वशी ने पूछा। दरअसल वह भी मेनका पर तनिक क्रोधित थी कि वह अकेली ही छुट्टी मनाने चली गई।
‘‘लेखापाल को क्यों? क्या मेनका के बदले अब मैं उसका नृत्य देखूंगा?’’ देवराज इन्द्र खिसिया कर बोले।
‘‘नृत्य कराने के लिए नहीं बाॅस! मेनका के लिए शोकाॅज़ नोटिस बनवाने के लिए।’’ उर्वशी ने कहा।
‘‘उसकी कोई ज़रूरत नहीं है। आजकल हमारे दरबार के संदेशवाहकों को भी पृथ्वी की हवा लग गई है। वे चार दिन में नोटिस पहुंचाएंगे। उस पर कहीं मेनका ने उन्हें उत्कोच का लालच दे दिया तो कह देंगे कि मेनका का उन्हें पता ही नहीं लगा। क्या मैं जानता नहीं हूं कि जब से कुछ सिफारशी पृथ्वीवासी मेरे दरबार में काम करने लगे हैं तब से यहां भी भ्रष्टाचार मच गया है। मुझे भी अब सफ़ाई अभियान चलाना होगा वरना मेरी भी दशा तेजी से कालकवलित होते राजनीतिक दलों जैसी हो जाएगी।’’ देवराज इन्द्र ने उर्वशी के सामने अपनी चिंता व्यक्त की।
‘‘यू आर राईट बाॅस।’’ उर्वशी ने कहा।
‘‘बाॅस इज़ आॅलवेज़ राईट!’’ इन्द्र ने अकड़ कर कहा। फिर दूसरे ही पर झुंझला कर बोल उठा,‘‘ये क्या, तुम अप्सराओं के चक्कर में मैं देवभाषा यानी अपनी भाषा संस्कृत भूल कर अंग्रेजी बोलने लगा हूं। यह मेरे लिए लज्जाजनक बात है।’’
‘‘इसमें लजाने वाली कोई बात नहीं बाॅस! पृथ्वीलोक में तो हिन्दी, संस्कृत के पक्ष में लम्बे-लम्बे भाषण देने वाले महानुभाव भी अपने बच्चों को सिर्फ़ अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाना पसंद करते हैं। खाने के दांत कुछ और और दिखाने के दांत कुछ और। खैर, बाॅस! फिर क्या सोचा आपने मेनका के बारे में?’’ उर्वशी ने चर्चा को विषयांतर होने से रोक दिया।
‘‘सोचना क्या है? मैं अभी उसे मानस संदेश भेजता हूं। वह जहां कहीं भी होगी उसे तुरंत यहां उपस्थित होना होगा।’’ देवराज इन्द्र ने कहा।
‘‘बाॅस, पृथ्वीवासी भी मानस संदेश का फामूर्ला ढूंढने में जुटे हुए हैं। मुझे तो यह सोच कर भय होता है कि जब अभी मोबाईल सेवा का सहारा ले कर एक-दूसरे का जीना मुश्क़िल किए रहते हैं तो जब उन्हें मानस संदेश सेवा हासिल हो जाएगी तो फिर तो तबाही मचा देंगे।’’ उर्वशी ने कहा।
‘‘ठीक है, ठीक है। पृथ्वीवासी जानें और उनका काम जाने। लेकिन तुम लोग अपनी भाषा पर ध्यान दो।’’ देवराज इन्द्र ने कहा।
‘‘हम लोग ऐसा नहीं कर सकती हैं। क्योंकि जब आप हमें ड्यूटी पर पृथ्वी के भारतीय भू-भाग में  भेजते हैं तो हमें वहां अंग्रेजी में ही बात करनी पड़ती है। हिन्दी भी चल जाती है मगर संस्कृत तो बिलकुल नहीं चलती है। सो क्षमा करें बाॅस! हम आपकी इस आज्ञा का पालन नहीं कर सकेंगी। अगर हमने आपकी यह आज्ञा मानी तो भारतीय भू-भाग में पहुंच कर आपकी दूसरी आज्ञाओं का पालन नहीं हो सकेगा।’’
देवराज इन्द्र कोई उत्तर दे पाते इससे पहले मेनका वहां उपस्थित हो गई।
‘‘व्हाय आर यू काॅल मी, बाॅस?’’ मेनका ने इठलाते हुए पूछा।
‘‘ये तुमने क्या फटेचिटे कपड़े पहन रखे हैं? कहीं कटीली झाड़ियों में उलझ गई थीं क्या?’’ देवराज इन्द्र ने मेनका की कटी-फटी जींस-टाॅप की ओर इशारा करते हुए कहा।
‘‘अरे नहीं बाॅस! ये तो पृथ्वीलोक के सबसे फैशनेबुल कपड़े हैं। वह तो आपने शीघ्र उपस्थित होने का संदेश दिया इसलिए मैं कपड़े नहीं बदल पाई और पृथ्वीलोक के कपड़ों में ही यहां चली आई।’’ मेनका ने कहा और फिर पूछा,‘‘आपने बताया नहीं कि मुझे इतनी जल्दबाज़ी में क्यों बुलाया? कोई इमरजेंसी?’’
‘‘नहीं कोई इमरजेंसी नहीं! लेकिन तुम लोग यहां स्वर्ग लोक में अंग्रेजी मत बोला करो। तुम लोगों की संगत में मेरी भाषा भी भ्रष्ट हुई जा रही है...।’’
‘‘बट माई बाॅस!’’ मेनका ने देवराज इन्द्र को टोक कर कुछ कहना चाहा। जिस पर देवराज इन्द्र क्रोधित हो कर बोले-‘‘शटअप! अप्सरा मेनका तुम भूल रही हो कि मैं देवराज इन्द्र हूं और तुम एक अदना सी अप्सरा। जो मैं कहूंगा वहीं यहां होगा।’’ 
‘‘माई फुट! मैं भी देखती हूं कि यहां तो आप अपनी चला लेंगे मगर वहां पृथ्वीलोक में तपभंग कराने का काम फिर किससे कराएंगे? क्यों कि अगर आपने मेरी बात नहीं मानी तो मैं अभी, इसी समय रिज़ाइन कर दूंगी। पृथ्वीलोक में बहुत-सी कंपनियां हैं, राजनीतिक भी और कार्पोरेट जगत में भी जहां मेरी और उर्वशी की बहुत डिमांड है।’’ मेनका ने भाव दिखाते हुए कहा।
‘‘अप्सरा मेनका, क्या आशय है तुम्हारा?’’ देवराज इन्द्र ने चकित होते हुए पूछा।
‘‘पहले तो आप हमें ये अप्सरा-वप्सरा कहना बंद करें। ये आउटडेटेड हो गया है।’’ मेनका ने आपत्ति की।
‘‘तुम अप्सराओं को मैं अप्सरा न कहूं तो और क्या कहूं?’’ देवराज इन्द्र को कुछ समझ में नहीं आया।
‘‘आप हमें हनी कह कर पुकारिए!’’ मेनका ने कहा।
‘‘यस, काॅल अस हनी!’’ उर्वशी ने भी तुरंत समर्थन दिया। ठीक वैसे ही जैसे विरोधी संासद, विधायक भी अपना वेतन-भत्ता बढ़वाने के लिए एक सुर में बोलने लगते हैं। 
‘‘लेकिन हनी क्यों?’’ देवराज इन्द्र ने पूछा।
‘‘आजकल पृथ्वीलोक में तप भंग करने, अपनी सुंदरता के जाल में फंसाने वालियों को हनी और उनके जाल को हनीट्रेप कहा जाता है। आप भी हमसे यही काम कराते आए हैं। इस ऋषि का तप भंग कर दो, उस ऋषि को अपने रूपजाल में फंसा लो, तो हम लोग भी तो हनी कहलाएंगी।’’ मेनका ने देवराज इन्द्र को समझाया।
‘‘ठीक है अप्सरा मेनका...।’’
‘‘नो-नो! प्लीज़ काॅल मी हनी!’’ मेनका ने टोका।
‘‘ओके हनी मेनका डियर! रिज़ाइन मत दो! तुम लोगों के बिना मेरी सत्ता कैसे चलेगी?’’ देवराज इन्द्र अनुनय-विनय करते हुए कहा।
‘‘ठीक है, तो फिर डील! आप हमें हमारे पृथ्वीलोक के अनुरुप कपड़े पहनने दें, पृथ्वीलोक के अनुरुप भाषा बोलने दें, कुछ दिनों का वेकेशन दें फिर देखिए कि हम आपके कितने विरोधियों के ट्रेप करती हैं। क्यों उर्वशी, मैंने ठीक कहा न?’’
‘‘हंड्रेड परसेंट ट्रू!’’ उर्वशी मेनका के प्रति अपने गुस्से को भूल कर उसका समर्थन करने लगी। जैसे हर बुद्धिमान राजनेता अपनी पार्टी को धता बता कर दमदार पार्टी में शामिल हो जाता है। यह अवसरवादिता भी उसने पृथ्वीलोक में ही सीखी थी।
‘‘लेकिन मैंने तो सुना है कि हनीट्रेप वाली हनियां पैसा कमाने के लिए भी जाल बिछाती हैं।’’ देवराज इन्द्र ने कहा।
‘‘हां, आपने ठीक सुना है। पर वे लोस्टैंडर्ड की हनीज़ होती हैं, जस्ट लाईक काॅलगर्ल। लेकिन हमारी जैसी हनीज़ हाई प्रोफाईल काम करती हैं, सिर्फ पाॅलिटिक्स और कार्पोरेट के लिए। बट ओके! मैं अपना वेकेशन बरबाद नहीं होने दे सकती हूं। मैं जा रही हूं छुट्टी मनाने। हां, अगर कोई इमरजेंसी आ जाए तो आप मुझे काॅल कर सकते हैं, बाॅस!’’ मेनका ने कहा और वहां से अंतध्र्यान हो गई।
‘‘तो बाॅस, मेनका तो चली गई और मैं भी अब वेकेशन पर जा रही हूं।’’ उर्वशी ने कहा।
‘‘ठीक है अप्सरा उर्वशी!’’ देवराज इन्द्र ने मन मार कर कहा। क्योंकि जो वे युगों-युगों से हनीट्रेप कराते आ रहे हैं वह इन्हीं अप्सराओं के दम पर। इसलिए इन्हें खुश रखना ही होगा। उन्होंने फिर दोहराया,‘‘ठीक है अप्सरा उर्वशी, तुम भी छुट्टी मना लो।’’
‘‘थैंक यू बाॅस! बट नो अप्सरा, प्लीज़ काॅल भी हनी!’’ उर्वशी ने भी मेनका की नकल में कहा और वहां से अंतध्र्यान हो गई। वहीं, देवराज इन्द्र अपने सूने दरबार को टुकुर-टुकुर देखते रह गए।
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03.04.2022
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