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My Editorials - Dr Sharad Singh

Saturday, April 9, 2022

ज़मीनी सच्चाई को साहित्य में लेखबद्ध किया जाना ही है वास्तविक प्रगतिशीलता है।- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मैंने एक बार डॉक्टर कमला प्रसाद जी से पूछा था की प्रगतिशील विचारधारा और साम्यवाद में क्या अंतर है? यह उस समय की बात है। उन दिनों में पन्ना में रहती थी तथा वहां प्रलेस की पन्ना इकाई का संचालन डॉ मकबूल अहमद करते थे। तब मैं कॉलेज में पढ़ती थी और वह दौर ऐसा था कि जब कॉलेज का लगभग हर विद्यार्थी (मैं भी) अपने आप को कम्युनिस्ट विचारधारा से जुड़ा हुआ पाता था। लेव टॉलस्टॉय, गोर्की, दोस्तोवस्की, निकोलाई ऑस्त्रोवस्की के उपन्यास और कहानियों के बीच हम डूबे रहते थे। उस दौर में प्रगतिशील और कम्युनिस्ट विचारधारा के बीच अंतर कर पाना हम विद्यार्थियों के लिए ज़रा कठिन काम था। तब मेरे प्रश्न के उत्तर में कमला प्रसाद जी ने मुझे बताया था कि सरल शब्दों में कहूं तो प्रगतिशीलता जीवनशैली है और साम्यवाद राजनीतिक विचारधारा। उनके इस कथन का स्मरण करते हुए कल मैंने अपने विचार रखें प्रगतिशील लेखक मंच के स्थापना दिवस पर। मैंने इस बात पर ज़ोर दिया कि जनजीवन से जुड़कर, लोगों की समस्याओं को अनुभव करते हुए, आत्मसात करते हुए, अपने साहित्य में लेखबद्ध किया जाना ही है  वास्तविक प्रगतिशीलता है।
        अधिवक्ता पेट्रिस फुसकेले जी के निवास पर कल शाम प्रगतिशील लेखक संघ का स्थापना दिवस मनाया गया। इस अवसर पर हिंदी कथा साहित्य के पुरोधा प्रेमचंद एवं स्व. महेंद्र फुसकेले जी का स्मरण किया गया। आयोजन में डॉ टीआर त्रिपाठी, पीआर मलैया, श्री वीरेंद्र प्रधान, मैं डॉ (सुश्री) शरद सिंह, श्रीमती देवकी नायक भट्ट, श्रीमती नमृता फुसकेले, पेट्रिस  फुसकेले, श्री मुकेश तिवारी, नलिन जैन, बृंदावन राय सरल, डॉ मनोज श्रीवास्तव आदि बड़ी संख्या में शहर के साहित्यकार उपस्थित थे।
08.04.2022
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#डॉसुश्रीशरदसिंह

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