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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, May 27, 2022

बतकाव बिन्ना की | सबई खों डर के रओ चाइए | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | साप्ताहिक प्रवीण प्रभात

ब्लॉग मित्रो, "सबई खों डर के रओ चाइए!" ये है मेरा बुंदेली कॉलम-लेख "बतकाव बिन्ना की" अंतर्गत साप्ताहिक "प्रवीण प्रभात" (छतरपुर) में।
हार्दिक धन्यवाद #प्रवीणप्रभात 🙏
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बतकाव बिन्ना की             
सबई खों डर के रओ चाइए!
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
            ‘‘काए भैयाजी, जे कपड़ा-लत्ता ले के किते फिर रए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अरे, ने पूछो बिन्ना! जे कमीजन पे अपनों नांव-पता कढ़वाने रओ, पर ऊने कह दई के आजकल हम शादी के कपड़ा सिलबे में बिजी आएं, कोनऊ और से जे काम करा लेओ।’’ भैयाजी बोले। 
‘‘सो का सबरी कमीजन पे अपनो नांव-गांव कढ़वाने आए का? पर मोए जे नईं समझ में आ रई के जे आप कर काए रए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी। 
‘‘अरे बिन्ना, आजकाल अपनी कमीजन पे अपनो कुल्ल पतो औ मोबाईल नंबर सोई लिखवाबो जरूरी आए।’’ भैया जी बोले।
‘‘जे सो आप ऐसे कै रए जैसे अंग्रेजी स्कूल के मोड़ा-मोड़ी हरें होंए। बड़े शहरन में एक-दो स्कूलन ने जे उपाय करो हतो। मोड़-मोड़ियन की यूनीफार्म पे उनको घर को पतो कढ़वा दओ रओ। आप सोई ऊंसई कर रैए आएं।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘अब का करो जाए बिन्ना!’’ भैयाजी गहरी सांस लेत भए बोले।
‘‘पर जे आप करा कए रए?’’ मैंने भैयाजी से फेर के पूछी।
‘‘बात जे है बिन्ना के अब मोरी उमर हो चली आए।’’
‘‘उमर होबे से जे कमीज पे नांव-गांव कढ़वाबे से का मेल?’’ मैंने पूछी। मोए भैयाजी की जे हरकत समझई में ने आ रई हती।
‘‘उमर होबे से जे मेल के अब मोए जे बात को डर लगन लगो आए के कल को मोए कहूं बाहरे जाने परो। ठीक! औ बाहरे जा के कहूं मोरी याददास्त हिरा गई, तो का हुइए?’’ भैयाजी बोले।
‘‘का हुइए? कोनऊं मलोमानुस आप खों थाने पोंचा देगा, उते से थानेवारे आपको आपके घरे भेज देंगे।’’ मैंने कही।
‘‘हऔ, औ जो कहूं कोनऊ नीमच घांई नेता मिल गओ, सो फेर पोंच गए थाने। थपड़िया-थपड़िया के पैलऊं राम नाम सत्त कर देहे। अब बड़ी उमर में कोन ठिकानों के दिमाग ने साथ नई दओ औ मोए याद नईं आओ के मोरो धरम का है? सो का हुइए? मनो चलो मान लओ के ने भूलबी, पर जो कहूं ऐसई कोनऊं से टकरा गए औ ऊने एक लपाड़ा मार दओ, सो उत्तई में तो रओ-सओ दिमाग बढ़ा जाने आए।’’ भैयाजी बोले जा रए हते के मैंने टोंकी।
‘‘जे कहां की अल्ल-गल्ल बातें कर रए? आप काए डरा रए? आपके संगे कछु न हुइए।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘जे ने कओ बिन्ना, कोन खों पतो रओ हुइए के जैन साब के संगे जा कांड हो जेहे। मनो जैन साब मुसलमान निकर आते तो का उने छोड़ दओ जातो? उनकी दिक्कत जेई रई के बे बोल नई पाए। जेई मंत्रीजी ने कही। बाकी जो जैन साब अपनो धरम बता पाए होते तो का बे नेता भैया उनखों पलका पे बिठा के खीर-पुड़ी खवाउते? सो बिन्ना, हमने सोची के कोनऊ रिस्क नई लेनो चाइए। अपने कपड़ा पे अपनो नांव, पतो औ मोबाईल नंबर लिखाओ औ निस्फिकर हो के रओ। जो अपन ने बता पाएं सो मारबे वारो कपड़ा पे नांव-गांव पढ़ के शायद छोड़ई दे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बड़ी दूर की सोच रए भैयाजी!’’ मोसे और कछु कहो नई गओ।
‘‘सोचो चाइए! सबई जनन खों सोचो चाइए। को जाने को कबे, कहां फंस जाए और राम नाम सत्त हो जाए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बात सो ठीक कै रए आप! बच के रओ चाइए।’’ अब मोए बात समझ में आ गई हती।
‘‘बच के का, डर के रओ चाइए। हमने सो तुमाई भौजी से कई रई के तुम सोई अपनी साड़ी के पल्ला पे, ने तो ब्लाउ पे अपनो नांव-पतो काढ़ ले। औ संगे हमाई कमीजन पे बी काढ़ दइयो। मनो उन्ने मोरी कभऊं सुनी, के आए सुनतीं। बोलीं हमें अपनी कोनऊं साड़ी-ब्लाउज़ को सत्यानास नई कराने, औ ने हमाए ऐंगर इत्तो टेम आए के तुमाई कमीजन पे तुमाओ नांव काढ़त फिरें। रामधई बिन्ना! घंटा-खांड़ बे बमकत फिरीं।’’ भैयाजी ने अपनी पीरा बताई।
‘‘सच्ची?’
‘‘औ का? मोए का परी झूठ बोलबे की? तुम खुदई पूछ लइयो अपनी भौजी से। उन्ने मना कर दओ, जभी लों टेलर की दूकान जानो परो। पर ऊने सोई पल्ला झार दओ। कहन लगो के शादी-ब्याओ को सीजन चलो आए, फेर आइयो, अभईं टेम नईंया। हमने कही के दूनो पइसा ले ले। वा बोलो, तुमाओ दूनो बी ब्याओ के जोड़ा से कम पड़हे। बाकी गम्म करो, ब्याओ के सीजन के बाद हम दूनो का आधे पइसा में तुमाई कमीजें काढ़ देबी।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, सो ब्याओ को सीजन निपट जान देओ फेर कढ़वा लइयो।’’ मैंने कही।
‘‘हऔ, औ जो कहूं मोए ब्याओं में बाहरे जाने परो, सो का करबी? बा वारो वीडियो देख के मोरो जी सो डरान लगो आए।’’ भैयाजी घबड़ात भए बोले। 
‘‘काए डरा रए आप? जो कछु लिखो हुइए वोई हुइए। आप के टारे से नईं टर जाने। बो कशीदा वारो कही कै रओ के तनक गम्म खाओ।’’ मैंने भैयाजी खों हर तारां से समझावो चाओ।
‘‘तुमें बी हमाई फिकर नइयां!’’ भैयाजी बुरऔ मानत भए बोले।
‘‘जो का कै रए? मोए आपकी पूरी फिकर आए। मनो मोए कढ़ाई-वढ़ाई आऊत नइयां, ने तो मैं ई आपको नांव काढ़ देती।’’ मैंने भैयाजी खों मनाबे के लाने कही।
‘‘चलो कछु नईं, हमसे सो ऊंसई कै आई, बाकी हमें पतो आए के तुमे हमाई बड़ी फिकर रैत आए।’’ भैयाजी बोले।
उनकी जे बात सुन के मोई तसल्ली भई। 
‘‘अरे हओ बिन्ना! हमें अभईं लों एक आईडिया आओ कहानो।’’ भैयाजी मनो उचकत भए बोले। 
‘‘कैसो आईडिया?’’
‘‘जे के तुमसे कढ़ाबो नईं बनत पर चित्रकारी सो कर लेत हो। पेंटिंग-मेंटिंग बनाउत रैत हो।’’
‘‘हऔ सो?’’
‘‘सो जे, के तुम हमाई कमीजन पे कपड़ा वारे पेंट से हमाओ नांव लिख देओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘पर....!’’
‘‘पर-वर कछु नईं! हमाए लाने तुम इत्तो सो काम तो करई सकत हो। तुम तो जे बताओ के बो कपड़ा वारो पेंट, बो का कहाउत आए फेब्रिक कलर... हऔ, कौन-कौन से रंग चाउने है, तुम तो जे बताओ। औ कैसो ब्रश लगहे। एक वो छल्ला सो रैत आए कढ़ाई वारो, वो सोई लगहे का?’’ भैयाजी बोलतई जा रए हते।
‘‘ भैयाजी पर मोरो ऐंगर टेम नईयां!’’ मैंने कही।
‘‘लेओ! अभई सो बड़ी-बड़ी बातें कै रई हतीं औ अब टेम नइयां? तुम सोई औरन घांई करन लगीं?’’ भैयाजी पांछू हटबे वारे नईं हते।
सो मैंने मन मार के रंग गिना दए। ब्रश गिना दए। औ अब डरबे की बारी मोरी हती के उनकी बीसेक कमीजन पे उनको नांव-पतो लिखबे में कित्तो टेम लगहे?

भैयाजी निकर गए रंग लाबे। मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। बाकी बिधौना हतो सो बिध गओ। चाए रो के लिखो जाए, चाए हंस के लिखो जाए, मनो लिखने सो परहेई। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(26.05.2022)
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